Magazine - Year 1983 - Version 2
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Language: HINDI
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अतीन्द्रिय क्षमताओं के बीजाँकुर जो कभी भी कहीं भी उग सकते हैं।
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अन्य प्राणियों की तुलना में मानवी शरीर संरचना ही विशिष्ट नहीं है। उसकी सम्भावनाएँ भी इतनी विपुल हैं कि जहाँ भी दृष्टि डाली जाय वहाँ सब कुछ आश्चर्य, अद्भुत ही दीखता है।
अद्भुत का अर्थ है वह प्रक्रिया जो सर्वसाधारण में- सामान्य रूप से दृष्टिगोचर नहीं होती। मनुष्य के साथ ऐसा बहुत कुछ जुड़ा हुआ है, उसमें सूक्ष्म रूप से विद्यमान है जिसे यदि जागृत किया जा सके- निखारा या उभारा जा सके तो वह उस स्तर पहुँच सकता है, जिसमें सामान्य जन निर्वाह नहीं करते।
समझा जाता है कि विचित्रताएँ और विशेषताएं किसी-किसी में जन्मजात ही होती हैं। उन्हें संयोग, पूर्ण संचय, ईश्वर अनुग्रह आदि ही कह और अपवाद तुल्य मान सकते हैं। यह कथन आँशिक रूप से ही सत्य है। इसमें मात्र उस सम्बन्ध में विचार किया गया है कि यह विचित्रताएँ किस प्रकार प्रकट होती हैं। मूल प्रश्न यह नहीं वरन् यह है कि मानवी सत्ता में वैसे प्रकटीकरणों का उपयुक्त गठन है या नहीं। समझा जाना चाहिए कि मनुष्य विचित्र है। उसकी सामान्य गतिविधियाँ तो अन्य प्राणियों की तरह काम चलाऊ निर्वाह के लिए आवश्यक जितनी दीखती हैं किन्तु विशेष अवसरों पर विशेष उपायों से उन विशेषताओं को भी उभारा जा सकता है जिस आधार पर उसे अद्भुत कहा जा सके। और यह आशा की जा सके कि जब वैसी संरचना विद्यमान है तो उसे आवश्यकतानुसार प्रयत्नपूर्वक उभारा भी जा सकता है।
मनुष्य का शरीर भी ऐसी विचित्रताओं से भरा है और मन भी। अवसर मिले तो शरीर का कलेवर, तथा बल पराक्रम असाधारण रूप में विकसित हो सकता है। अवसर मिले तो यही काया ऐसी सुदृढ़ता एवं सहनशीलता का परिचय दे सकती है, जैसी कि सामान्य काया से आशा नहीं की जा सकती। हाड़माँस का शरीर तो तनिक से झटकों से भी टूट सकता है। उसमें बहुत बड़ी सहन शक्ति नहीं है। मृत्यु उत्पन्न करने वाले आघातों से उसकी रक्षा नहीं हो सकती। किन्तु देख गया है कि आकार, बल एवं सुदृढ़ता की दृष्टि से कई बार मनुष्यों में ऐसी क्षमता पाई जाती है जिसे अद्भुत ही कहा जा सकता है।
स्मरण रखने योग्य बात यह है कि सृष्टा की इस संरचना में न कहीं अपवाद है न व्यतिरेक। प्रकृति भूल नहीं करती। उसके कुछ नियम हैं। जिनमें से हम बहुत थोड़ों को जानते हैं और उतनों तक ही प्रकृति को सीमाबद्ध मानते हैं। वस्तुतः ऐसा है नहीं। अविज्ञात नियमों को भी यदि समझा और प्रयुक्त किया जा सके तो आज का अद्भुत कल नितांत सामान्य बन सकता है। मानवी काय संरचना में कितनी सम्भावनाएँ भरी पड़ी हैं जिनका परिचय यदा-कदा ही देखने को मिलता है। इन्हें कौतूहल मात्र नहीं समझा जाना चाहिए वरन् यह माना जाना चाहिए कि अपवाद रूप में देखी जाने वाली सम्भावनाएँ भी मानवी संरचना का एक अविच्छिन्न अंग हैं। वे प्रयुक्त नहीं होतीं, उनकी आवश्यकता नहीं समझी गई, उन्हें जगाने का प्रयत्न नहीं हुआ- इसलिए उपेक्षित, प्रसुप्त स्थिति में किसी कोने में पड़ी रहती हैं। यदि आवश्यकता समझी जाय और चेष्टा हो तो काय संरचना में विद्यमान अनेकानेक विचित्रताओं में से जिन्हें आवश्यक समझा जाय उन्हें जागृत एवं प्रखर किया जा सकता है।
गोल्ड हिल आँरुगान (यू.एस.ए.) में जैक शवार्ज नामक व्यक्ति ने सामान्य शरीर में असामान्य विशेषताएँ होने की सम्भावना प्रदर्शित करने के लिए एक प्रयोगशाला स्थापित की है। इसमें वह सिद्ध करता है कि शरीर को तेजधार वाले हथियारों का प्रवेश होने पर भी उसका कुछ नहीं बिगड़ता। पानी में ढेला फेंकने पर कुछ ही क्षण के लिए आघात वाले स्थान का पानी हटता है और तत्काल उस स्थान पर पास का पानी आकर उस गड्ढे को समतल बना देता है ऐसा ही दृश्य मानवी शरीर में भी देखने को मिल सकता है। बात सहज ही समझ में नहीं आती, पर है सच। जैक शवार्ज ने यह प्रदर्शन अनेकों स्थानों पर किये हैं और सामान्य जनों से लेकर विशेषज्ञों तक को यह चुनौती दी है कि वे जिस तरह भी चाहें इस विशेष की यथार्थता परखने के लिए जाँच-पड़ताल करलें और यह भ्रम मिटालें कि इस कृत्य में कोई बाजीगरी की जा रही होगी।
मैनिंगर फाउण्डेशन के डायरेक्टर ‘एलियर ग्रीन’ ने अपनी आँखों से देखा कि उसने लोहे की पैनी शलाख अपने हाथ में आर पार की। लिपटे कपड़े में सूराख हो गए किन्तु खून नहीं निकला। बाद में शलाख निकाल लेने पर वह छेद भी अपने आप भर गया जो शरीर में सलाख पार होने के कारण हुआ था। वह पैनी नोंकें लगे तख्त पर सोकर भी दिखाता है और छाती पर अपने से भी अधिक वजन का आदमी खड़ा कर लेता है ताकि नोंकें उसके शरीर में न घुसने की दूसरी क्षमता का भी प्रदर्शन हो सके।
हिमाचल प्रदेश के भोरज ब्लाक में एक छोटा गाँव है- बस्सी। यह शिमला से 85 किलोमीटर दूर है। यहाँ का 23 वर्षीय युवक रामचन्द्र विषपायी होने के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है। यह शौक उसे जन्मजात विशेषता के रूप में मिला है। जब आठ वर्ष का था तभी साँप, बिच्छू आदि जहरीले कीड़े को चाव पूर्वक पकड़ लेता था। 13 वर्ष की आयु में उसने तेजाब पीकर दिखाया। बाद में उसने अनेकों इससे भी बड़े ‘पोटेशियम साइनाइड’ जैसे विष विशेषज्ञों की उपस्थिति में खाकर दिखाये। नींद की गोली वह दर्जनों निगल जाता है। यह प्रदर्शन उसने चण्डीगढ़ के कृषि विश्व विद्यालय तथा दूसरे प्रामाणिक संस्थानों में करके यथार्थता प्रमाणित की है। कई समाचार पत्रों में यह विवरण छपा है और टेलीविजन पर भी प्रदर्शित हुआ है।
इसी प्रकार मनुष्य शरीर एक विलक्षण बिजली घर है। बिजली को शक्ति का प्रतिनिधि माना जाता है। उसके सहारे कितने ही यन्त्र उपकरण काम करते हैं। ऊर्जा की आवश्यकता उससे पूरी होती है। जहाँ शक्ति की आवश्यकता है वहाँ बिजली का प्रयोग किया जाता है। मनुष्य शरीर की सामान्य गतिविधियों के लिए जितनी बिजली काम आती है प्रायः उतनी ही उसमें बनी रहती है। अधिक की आवश्यकता समझी जाय तो उसके अन्तराल में ऐसे स्रोत विद्यमान हैं जिनके सहारे उसे अधिक बिजली उगलते पाया जा सकता है। यदाकदा ऐसी घटनाएँ देखने में मिलती रहती हैं जिनमें मनुष्य को एक चलते-फिरते बिजली घर जैसा काम करते पाया गया है।
लन्दन के डा. डिन्वल ने अपने अनुभव में आये विशेष विद्युतीय क्षमता वाले कितने ही व्यक्तियों के विवरण अपनी पुस्तक में प्रकाशित किये हैं। इस पुस्तक का नाम है- “एवनार्मल हिप्नोटिक फिनामिना” इसमें प्रस्तुत किये गए वर्णनों से विदित होता है कि कभी-कभी किसी की शरीर विद्युत असाधारण रूप से उद्दीप्त हो उठती है और वह अपने स्पर्श करने वाले व्यक्तियों तथा पदार्थों पर आक्रामक प्रभाव छेड़ने लगती है। वे कहते हैं- “एक सीमित मात्रा में यह जैव विद्युत हर किसी के शरीर में रहती है और नाड़ी संस्थान के सहारे इस छोर से उस छोर तक दौड़ती रहती है। इसी के आधार पर शरीर यन्त्र के विभिन्न क्रिया कलाप चलते हैं। सामान्य या स्वाभाविक मात्रा में कमी आने पर व्यक्ति निर्बल, निस्तेज हो जाता है और उसकी हर क्रिया प्रक्रिया से शिथिलता दीखने लगती है। साथ ही यह भी देखा गया है कि वह मात्रा अनावश्यक रूप से बढ़ने लगे तो आदमी आवेशग्रस्त, क्रोध, आक्रामक, अस्थिर प्रकृति का बनने लगता है। सामान्य जाँच-पड़ताल से कोई रोग प्रतीत न होने पर इसे वैयक्तिक विशेषताएं माना जाने लगता है, पर वस्तुतः यह होता बिजली की मात्रा घटने बढ़ने के कारण ही है। जिस प्रकार अन्यान्य विकृतियों की अभिवृद्धि के उपचार हैं। उसी प्रकार शरीर गत विद्युत प्रवाह की अव्यवस्था को भी नियन्त्रित किया जा सकता है।
अपवाद रूप में मानवीय विद्युत के अत्यधिक उद्दीप्त हो उठने की कई घटनाओं का प्रामाणिक विवरण वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की जाँच-पड़ताल से होकर गुजर चुका है। इसमें एक घटना अमेरिका लड़की लूलू हर्स्ट की है। उसकी आयु 14 वर्ष की होते-होते एक ऐसा विद्युतीय उभार आया कि सभी सम्बन्धियों के लिए विशेषतया उसके लिए सर दर्द बन गया। वह जिसे भी छूती उसी को बिजली का भारी झटका लगता। मनुष्य छूते तो औंधे मुँह गिरते। धातुओं की वस्तुएँ छूती, तो वे बुरी तरह हिलने-डुलने लगती।
इस अनोखेपन की चर्चा गली मुहल्ले में फैली और कई दिन कौतूहल के लिए भीड़ इकट्ठी होती रही, पर अन्त में यह मामला विशेषज्ञों के सामने प्रस्तुत किया गया पुलिस आई वास्तविकता की जाँच-पड़ताल होने लगी। अनेकों परीक्षण हुए। अन्ततः पाया गया कि उसके शरीर से बिजली का प्रवाह फूटता है।
लड़की तथा उसके अभिभावक कई दिन तक बहुत हैरान रहे कि उसे अछूत बनाकर किस प्रकार रखा जाय और एकाकी निर्वाह में होने वाली कठिनाइयों का सामना कैसे किया जाय। अन्ततः कुछ बुद्धिमान लोगों की सलाह से यह उपाय अपनाया गया कि इस कौतूहल का जगह-जगह प्रदर्शन करके धन कमाया जाय। सूझबूझ के साथ वह व्यवस्था बना ली गई। दो वर्ष तक उसकी विशेष स्थिति रही। इस अवधि में उससे लाखों की राशि एकत्रित कर ली। इसके बाद वह उभार उतर गया और लड़की सामान्य जीवन जीने लगी।
एक ऐसा ही उदाहरण फ्राँस के लावेरे नगर में देखा गया। एगलिन कोटिन नामक लड़की ने जनवरी 1946 में पन्द्रहवें वर्ष में प्रवेश किया तो उसके शरीर से असाधारण बिजली का प्रवाह फूटने लगा, छूने पर झटके खाने वालों और वस्तुओं के गिर पड़ने की बात वैज्ञानिक अनुसंधान का विषय बन गई। भौतिक विज्ञानी फेंकाई ऐरगो के नेतृत्व में एक कमेटी इस संदर्भ में गहरी जाँच पड़ताल करने के लिए बिठाई गई। उनने इस विशेषता का कारण शरीर में उभरने वाले विशेष प्रकार के मैगनेट को पाया और इसका प्रभाव न केवल दूसरों पर वरन् उसके निजी शरीर को भी उत्तेजित करता देखा गया।
‘एवनारवल हिप्नोटिक फिनामिना’ पुस्तक में एक ऐसी ही तीसरी घटना का भी वर्णन है। लन्दन की 17 वर्षीय लड़की केरोलिन सन् 1870 में बीमार पड़ी। चारपाई छोड़ते-छोड़ते उसे एक नई व्यथा लग गई शरीर से विद्युत धारा फूट पड़ने की। इसका प्रथम बार परिचय तब मिला, जब उसका एक युवक मित्र मिलने आया और जैसे ही चाय का प्याला पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया वैसे ही उँगलियाँ छू जाने के कारण वह झटका खाकर गिरा। इस युवती की स्थिति भी प्रायः दो वर्ष ही ऐसी विचित्र रही बाद में वह भी सामान्य स्थिति में आ गई।
लन्दन के स्नायु रोग विशेषज्ञ ज्ञान एस. क्राफ्ट के सामने भी सुप्रसिद्ध जैनी मार्गन नामक लड़की का प्रसंग आया था जिसमें उसका शरीर बिजली घर बना हुआ था और उसे बिना सुरक्षा उपकरणों की सहायता लिए कोई उसे छूने का साहस नहीं करता था।
इस प्रकार की घटनाओं में प्रायः लड़कियों को ही प्रधान रूप से प्रभावित पाया गया है। सो भी चौदह से अठारह वर्ष की उठती आयु में लड़कों की एक भी ऐसी घटना प्रकाश में नहीं आई।
हाँ पुरुषों में एक ‘स्टोन सलावा’ नामक व्यक्ति पोलैण्ड में हुआ है। जिसने 1908 में वैज्ञानिक जगत में खलबली मचादी थी। वह इच्छानुसार अपनी उँगलियों से चुम्बकीय किरणें प्रवाहित करता था और धातु विनिर्मित पदार्थों में से जिसे भी हाथ में लेता उसे चुम्बकीय विशेषताओं से सम्पन्न कर देता। उसकी यह विशेषता वैज्ञानिकों के लिए एक विशेष अनुभव एवं अनुसंधान का कारण बनी रही। उसमें भी यह क्षमता अधिक समय न रही दो तीन वर्षों में ही घटते-घटते समाप्त हो गई।
देखने में सामान्य लगने वाले मनुष्य शरीर में एक से एक अद्भुत सम्भावनाओं बीजाँकुर भरे पड़े हैं। आवश्यकता उनके उभारने की है। यह साधना द्वारा सम्भव हो सकता है। किन्हीं-किन्हीं की पूर्व जन्मों की साधना भी इस जन्म में काम आती देखी गई है। अनायास ऐसी अद्भुताएँ प्रकट होना इसी कारण सम्भव होता। जिनमें यह क्षमताएँ प्रकट हों उसका उत्तरदायित्व है कि वे उन्हें खिलवाड़ में खर्च न करें। मात्र उच्चस्तरीय प्रयोजनों में ही लगायें।
स्पेन की एक ईसाई भिक्षुणी मेरी आमतौर से अपने गिरजे में ही रहती थी। पूजा में निरत रहती और अहाते से बाहर भी नहीं निकलती थी। फिर भी उसके बारे में यह कहा जाता रहा कि वह सूक्ष्म शरीर में मैक्सिनों में बसे आदिवासियों में ईसाई धर्म का प्रसार करने जाती रहती है। तथ्य की जाँच पड़ताल करने के लिए जैम्स कैरिको ने अमेरिका का दौरा किया और उसने प्रस्तुत प्रमाणों के साथ यह विवरण छपाया कि वस्तुतः मेरी मैक्सिको जाती है। वहाँ के आदिवासी उसे नीली पुतलियों वाली देवी के नाम से जानते और चली जाने पर उसके आगमन की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करते रहते हैं।
जिन दिनों गोवा भारत में पुर्तगाल का उपनिवेश था उन दिनों एक पुर्तगाली व्यवसायी अचानक गायब हुआ और कुछ भी क्षणों में अपने देश में जा प्रकट हुआ। उसने यह आश्चर्यजनक विवरण सुनाया तो किसी ने विश्वास नहीं किया वरन् अतिशयोक्ति कहने के अपराध में उसे जीवित जल दिया गया। बाद में खोज करने पर ऐसे प्रमाण मिले जिससे सिद्ध हुआ कि वस्तुतः व्यवसायी ने जैसा कहा वही तथ्य था।
पौराणिक कथाओं में भी मनुष्य में अतीन्द्रिय सामर्थ्यों की सम्भावना सम्बन्धी अनेकों प्रमाण मिलते हैं। कभी इन बातों को कपोल कल्पनाएँ कहा जाता था, पर अब वैसी स्थिति नहीं रही। कई प्रत्यक्ष प्रमाणों की जाँच-पड़ताल करने के उपरान्त प्रत्यक्षवादी जिस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं, उसके अनुसार मनुष्य में ऐसी सामर्थ्यों का होना शक्य माना गया है, जो मानवी सामर्थ्य से बाहर की हैं- इन्द्रियातीत हैं।
संजय की दूर-दर्शन दूर श्रवण की क्षमता का उल्लेख मिलता है। वे महाभारत के मोर्चे पर चल रहे दृश्यों और सम्भाषणों का यथावत् विवरण जन्मान्ध धृतराष्ट्र को घर बैठे सुनाते रहते थे। लोक-लोकान्तरों में परिभ्रमण करते रहने की शक्ति देवर्षि नारद में थी। उन्हें पूर्वाभास भी होता था और वे सम्बन्धित व्यक्तियों तक सहज सेवा साधना के भाव से पहुँचते रहते थे। गाँधारी की आँखों की विद्युतशक्ति ही थी जिसने दुर्योधन को लोहे जैसा सुदृढ़ बना डाला था। बाली की शक्ति के शाप वरदान के कितने ही वर्णन दुर्वासा-अम्बरीश, शृंगी, परीक्षित, कपिल मुनि-सागर के आख्यानों के रूप में मिलते हैं।
महाबली रावण मायावी विद्याओं का जाना-माना महामांत्रिक था। उसने दस सिर, बीस भुजा, देव-विजय स्वर्ण भवन, काल-विजय जैसी अनेकों अद्भुत सिद्धियों का अर्जन किया था। मारीच ने सीता हरण में जो भूमिका निभाई उससे विदित होता है कि वह अदृश्य प्रकट होने की आँख मिचौनी खेलता था और वेश बदलकर मनुष्य से स्वर्ण-मृग बन जाने जैसे छद्मों में प्रवीण था। हनुमान जी ने “मसक समान रूप कपिधरी” और “तब कपि भयेऊ भू धरा कारा” जैसी अनिमा और महिमा सिद्धियों का परिचय दिया था।
ये समस्त उदाहरण एक ही तथ्य का प्रतिपादन करते हैं कि मनुष्य अद्भुत क्षमताओं का पुँज है। असीम सम्भावनाएँ उसमें छिपी पड़ी हैं। कभी-कभी यदा-कदा छुट-पुट घटनाएँ जो प्रकाश में आती रहती हैं, अतीन्द्रिय सामर्थ्य की वास्तविकता ही प्रामाणित करती हैं। यदि इन्हें सुनियोजित किया जा सके, इनसे प्रेरणा लेकर इनका प्रयोग मात्र प्रदर्शन में नहीं उच्चस्तरीय व्यक्तित्व सम्पन्न बनने हेतु करने का संकल्प उठने लगे तो ही इनका सार्थकता है। विधाता ने किसी को शक्ति दी है तो छीनने का भी उसे पूरा अधिकार है। यदि प्राप्त सामर्थ्य का दुरुपयोग होगा तो वे स्वतः लुप्त भी हो सकती हैं। अनुशासन की विधि-व्यवस्था से संचालित यह धरती और सारा चेतन जगत इस तथ्य का प्रमाण समय-समय पर देते रहते हैं।