Magazine - Year 1983 - Version 2
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Language: HINDI
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स्वप्न उच्चस्तरीय भी होते हैं।
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समझा गया है कि अनेकता की सूक्ष्म परतें न केवल स्वयं रहस्यपूर्ण हैं वरन् इस विश्व ब्रह्माण्ड में जो कुछ अदृश्य सूक्ष्म रहस्य है उसके साथ सम्बन्ध जोड़ने, आदान-प्रदान करने की क्षमता भी उसमें विद्यमान है। प्रश्न एक ही है कि उसे उपयुक्त अवसर मिलता है या नहीं। उपयुक्त आधार उसे मिल सकता या नहीं? यह कार्य आमतौर से मन संयम की ध्यान धारणाओं द्वारा मनस्वी लोग प्रयत्नपूर्वक सम्पन्न करते हैं, पर कई बार वह पूर्व संचित अभ्यास के आधार पर अथवा अन्य अविज्ञात कारणों से इस स्थिति में भी पहुँच जाता है कि परिष्कृत स्तर जैसी अनुभूतियाँ उपलब्ध कर सके। जब कभी कुछ ऐसा होता है स्वप्न सार्थक भी होते देखे गए हैं। उनमें ऐसे संकेत रहते हैं, जिनके माध्यम से विगत का इतिहास और भविष्य का भवितव्य जाना जा सके। न केवल इतना ही होता है वरन् वर्तमान उलझनों तथा आवश्कताओं के सम्बन्ध में उस माध्यम से ऐसा मार्गदर्शन परामर्श भी उपलब्ध होता है जिसे दिव्य प्रेरणा कहा जा सके। ऐसा सर्वदा तो नहीं होता, पर जब कभी अचेतन की उत्कृष्टता और सचेतन द्वारा उसे समझने की उभयपक्षीय विशिष्टता एक साथ उभरती है तो ऐसा संयोग बन पड़ता है जिससे स्वप्न को सार्थक ही नहीं महत्वपूर्ण भी कहा जा सके। ऐसे सपने कई बार तो मनुष्यों की जीवन दिशा को उलट देने तक में समर्थ हुए हैं।
ऐसी स्वप्न शृंखला का इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। हिटलर सन् 1916 में एक मामूली सिपाही था। मोर्चे पर खंदक में वह लेटा पड़ा था। इसी बीच उसे झपकी आ गई। स्वप्न देखा कि एक भयानक अग्नि पिण्ड सामने से उसकी ओर लपकता आ रहा है। स्थिति मरने जैसी बन गई, पर किसी दिव्यशक्ति ने उसे हाथ पकड़कर दूसरी ओर उछालकर फेंक दिया और कहा- “यह विशेष व्यक्ति है। अभी उसे विशेष काम करना है। यह समय इसके मरने का नहीं है।” स्वप्न का अन्त होने भी न पाया था कि हिटलर आतंकित होकर हड़बड़ाते हुए उठने लगा। अभी पूरी तरह संभल भी न पाया था कि सचमुच ही तोप का गोला सामने से सनसनाता हुआ आया और उसका कंधा छूते हुये निकल गया। यही वह दृश्य था जिसने हिटलर को अपने बारे में सर्वथा नवीन धारणा बनाने का अवसर दिया। उसी दिन से वह अपनी सहायता का सपना देखने लगा। इसी मानसिक उथल-पुथल ने उसे वह कर गुजरने तथा इतिहास में एक अहम् भूमिका निभाने का अवसर दिया। जिसकी कि एक सामान्य स्तर के सिपाही से आशा की नहीं जा सकती।
जे. गुवे की पुस्तक ‘एन एक्सपेरीमेन्ट विद टाइम’ में ऐसे अविज्ञात आयामों का उल्लेख किया है जो विज्ञात तीन आयामों की तरह सर्वविदित तो नहीं, पर अपने अस्तित्व के प्रमाण समय-समय पर प्रस्तुत करते रहते हैं। लम्बाई-चौड़ाई-गहराई की तरह प्रकृति में कुछ अन्य आयाम भी हैं। आइन्स्टीन ने टाइम, स्पेश और कॉजेशन को भी आयामों में गिना है साथ ही ऐसे अन्यान्य आयामों की सत्ता का भी संकेत दिया है जिसके आधार पर रहस्यों की दुनिया में प्रवेश पाया जा सकता है।
मार्क ट्वेन ने स्वप्नों के सम्बन्ध में गहन अनुसन्धान किये हैं। उसने अनेकानेक उदाहरणों के आधार पर कितने निष्कर्ष ही निकाले हैं। इस दिशा में इतनी तत्परता के साथ जुटने की प्रेरणा उन्हें अपने भाई के स्वर्गवास का पूर्वाभास होने से मिली। उसका भाई अच्छा-खासा था पर ट्वेन ने स्वप्न में देखा कि वह एक ताबूत में मरा पड़ा है और ऊपर से सफेद फूल रखें हैं। आँख खुलने पर उस डरावने स्वप्न से असमंजस तो हुआ पर वैसा घटित होने का कोई कारण न देखकर उसे भुला दिया गया ठीक एक महीने बाद वही घटना घटित हुई और उनका भाई स्टीम वोट में दुर्घटनाग्रस्त होकर मर गया। उनके सामने लाश ठीक उसी रूप में आई जैसा कि उनने स्वप्न में देखा था।
जर्मनी के मनोविज्ञानी जिस रिचर्ड ने स्वप्नलोक की संरचना में ‘एक्स्ट्रा सेंसुअरी परसेशन’ को कारण माना है और कहा है कि जिस बाह्य वातावरण से मनुष्य घिरा रहता है और उससे जितना जिस स्तर का प्रभाव ग्रहण करता है उसी से स्वप्नलोक का सृजन होता है। अपना तो इतना ही होता है कि बाह्य घटनाचक्र को किस दृष्टि से देखा और किस सीमा तक अपनाया गया। इतने पर भी वे यह मानते हैं कि भली-बुरी घटनाओं का क्रम तो सभी के सामने चलता रहता है उनसे किसने क्या समझा सीखा? यह अपनी निजी विशेषता है। इस विशेषता का परिचय स्वप्नों के पर्यवेक्षण से जाना और किसी के व्यक्तित्व के स्तर को देखकर समझा जा सकता है।
बाइबिल में एक मिस्त्री राना के रहस्य भरे सपने का उल्लेख है। उसकी व्याख्या सन्त जोसेफ ने की है। उसमें बताया गया था कि अमुक सात वर्ष समृद्धि के और अमुक सात वर्ष घोर दुर्भिक्ष के रहेंगे। वह भविष्यवाणी अक्षरशः सच सिद्ध हुई थी।
सिकन्दर महान ने सपने में अपनी ढाल के ऊपर एक घोड़े के कान और वैसी पूँछ का देवता नाचता हुआ देखा। इस विचित्र स्वप्न का अर्थ तत्कालीन भविष्यदर्शी अरिस्ताँदर ने बताया कि अगले युद्ध में तुम्हारी विजय निश्चित है। इसी आशा और उत्साह से उसने तत्काल नये युद्ध की तैयारी की और विजय पाई।
मिस्र के राजकुमार तुत्मेस ने स्वप्न देखा कि देवता उससे कह रहे हैं- “मैं तुझे छोटे राज्य का न रहने दूँगा। बहुत बड़े क्षेत्र का शासन प्रबन्ध कराऊँगा। धन सम्पत्ति की कमी न रहने दूँगा। तू अपने पिता होरयाखू की शानदार स्मृति बनाना।” राजकुमार ने सपना याद रखा और देखा कि राजगद्दी पर बैठते ही ठीक वैसी ही परिस्थितियाँ बनने लगीं जैसा कि स्फिंक्स देवता ने उसे बताईं थीं। उसने अपने पिता की सामान्य-सी कब्र को बहुमूल्य पत्थरों से इस प्रकार बनवाया जिससे उनकी स्मृति चिरकाल तक बनी रहे।
स्वप्नों की सच्चाई भी अनेक बार प्रकट होती है। पौराणिक कथा के अनुसार बाणासुर की पुत्री उषा को स्वप्न में बिना किसी पूर्व विचार के श्रीकृष्ण पौत्र अनिरुद्ध के दर्शन हुए और दोनों के बीच प्रणय सम्बन्ध बन गये। बाद में बहुत ढूँढ़ खोज के बाद पता चला कि स्वप्न में देखा गया वह व्यक्ति कौन था? इस जानकारी के उपरान्त ही वह विवाह सम्पन्न हुआ।
जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर के जनम से पूर्व उनकी माता को ऐसे स्वप्न आये थे जिनमें होनहार बालक की जीवनगाथा का स्वरूप, पराक्रम एवं भविष्य दर्शाया था।
परमाणु भौतिकी के आद्य प्रवर्तक नील्स बोहर जिन दिनों इस उधेड़ बुन में लगे हुये थे और सम्भावना को मूर्त रूप न दे पाने के असमंजस में फँसे थे उन दिनों उनने एक स्वप्न देखा- जिसमें सारे ग्रह नक्षत्र एक रस्सी में बँधे दीखे। वे ठण्डे होकर एक केन्द्र पर जमे और विस्फोट होने पर बिखर कर अपनी-अपनी कक्षा में घूमने लगे। इस स्वप्न को उनने अणु संरचना में उसके नाभिक तथा सदस्य घटकों की संगति बिठाई। यह सूत्र हाथ लगने पर उनका पर्यवेक्षण आगे बढ़ा और अन्ततः परमाणु भौतिकी का एक व्यवस्थित ढाँचा खड़ा हो गया।
सिलाई मशीन के आविष्कारक इलिलास हार्वे बहुत समय से अपने प्रयास में लगे थे पर उसके लिये उपयुक्त सुई का कोई सही स्वरूप बन नहीं पा रहा था। जिन दिनों वे इस उलझन से ग्रसित थे उन्हीं दिनों उन्होंने एक सपना देखा कि बर्बर लोगों के एक झुण्ड ने उन्हें पकड़ लिया है। उनके नेता ने हुक्म दिया कि या तो यह चौबीस घण्टे के भीतर सिलाई की मशीन विनिर्मित करे या इसे कत्ल कर दिया जाय। हार्वे ने जान बचाने के लिए भरपूर प्रयत्न किया, पर वे नियत अवधि में वैसा न कर सके। इस पर उन्हें भालों से बेधने के लिए जल्लाद आ गए। भालों की नोक विचित्र थी। हार्वे ने उन्हें गौर से देखा तो पाया कि नोंक से ऊपर सभी भालों में छेद थे। सपना टूट गया। भालों के नोक से ऊपर छेद की विचित्रता उनके मन में घर कर गई और उन्होंने इसी संकेत पर सिलाई मशीन की सुई बनाई और आविष्कार हो गया।
फ्रेण्डरिक केकुले ने सुगन्धित द्रव्य रसायनों के अभूतपूर्व फार्मूले ढूँढ़ निकाले। इससे उसने धन भी कमाया और यश भी। इस आविष्कार में सहायक उनका साँपों का सपना प्रख्यात है। उसी से प्रेरणा पाकर उन्होंने प्रस्तुत संकेतों के आधार पर अपना कदम उठाया और सफलता तक पहुँचाया। केकुले स्वप्नों को सार्थक सिद्ध करने में बहुत उत्साही रहे।
यूनान देश के दालदिस नगर निवासी आर्तेमिदोरस नामक विद्वान ने एक ग्रन्थ रचा था- ‘ओनाईकर्मसी’ जिसका अर्थ होता है- स्वप्न दिया। बहुत समय तक उसकी बहुत धूम रही और असंख्यों ने उस आधार पर अपने स्वप्नों के अर्थ लगाये। अभी भी उसमें दिये हुये समाधानों का संदर्भ संसार भर के स्वप्न विशारद समय-समय पर देते रहते हैं।
हेगरी के डा. साँडर फोरेस्त्सी ने अपनी निजी तथा दोस्तों के अनेक विवरण प्रस्तुत करते हुए स्वप्नों में से अधिकाँश के सारगर्भित एवं उद्देश्यपूर्ण होने की बात कही है।
न्यूयार्क में मेमनाइड मेडिकल सेण्टर ने स्वप्नों के तारतम्य का विश्लेषण करते हुए एक साधन सम्पन्न “ड्रीम लेबोरेटरी’ की स्थापना की है। इसके मूर्धन्य अनुसंधान कर्ताओं में से डा. डलमैन ओर क्रिपनर ने जो निष्कर्ष पिछले दिनों निकाले थे उन्हें अधिकाँश में सारगर्भित पाया गया। उपरोक्त दोनों डाक्टर अब इस प्रयास में जुटे हैं कि स्वप्नों की सहायता से जागृत को अधिक सुखद और समुन्नत बनाया जाय।
एडगन ऐलन, मोजार्ट और आइन्स्टीन सदृश्य उच्चस्तरीय विज्ञानवेत्ता यह स्वीकार करते थे कि उन्हें कितने ही स्वप्नों ने शोध कार्य में सहायता दी है और उलझी गुत्थियों को खोलने वाले संकेत दिये हैं। स्वयं अलबर्ट आइन्स्टीन के इस सम्बन्ध में अनुभव बड़े अद्भुत थे। विश्व विख्यात गणितज्ञ आइन्स्टीन को एक वैज्ञानिक गोष्ठी में किसी जटिल समीकरण का हल प्रस्तुत करना था। वे कई दिनों से उसे हल करने में लगे थे पर कोई हल नहीं निकल पा रहा था। एक दिन पूर्व वे सोये तो उन्हें लगा कि किसी अज्ञात सत्ता ने उनके सारे कठिन सन्दर्भों को सरल बनाकर आइन्स्टीन के सामने समाधान प्रस्तुत कर दिया। स्वप्न टूटने के बाद आइन्स्टीन ने स्वप्न में देखे गये दृश्य के अनुसार फिर से प्रश्न को हल किया और उसका सही उत्तर उन्हें मिल गया। ऐसा उनके जीवन में कई बार हुआ। इसलिए वे कहा करते थे कि स्वप्नों में कोई सत्य है जो हम वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे हैं।
“अपनी अद्भुत कल्पनाओं के उठने का मूल स्रोत कहाँ है?” इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आइन्स्टीन ने कहा था कि प्रायः निद्रित अथवा अर्द्धनिद्रित अवस्था में कभी-कभी ऐसे समय आते हैं जब मस्तिष्क अपनी सामान्य मर्यादाओं का उल्लंघन करके ऐसी सूचनायें देने लगता है जिनके आधार पर आविष्कारों की आधारशिला रखी जा सके।
स्वामी रामतीर्थ के सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि गणित का कोई कठिन प्रश्न आने पर वे उसे हल करने की भरसक कोशिश करते थे। फिर भी हल नहीं होता तो वे थककर सो जाते थे और सोते समय स्वप्न में भी उन्हें अपने प्रश्नों का हल मिल जाता था।
फ्राँसीसी राजक्रांति की सफल संचालिका ‘जॉन आफ आर्क’ एक मामूली किसानी के घर जन्मी थीं। उन्होंने वहीं एक रात सपना देखा कि आसमान से उतरता कोई फरिश्ता उन्हें कह रहा है कि ‘अपने को पहचान समय की पुकार सुन, स्वतन्त्रता की मशाल जला।’ ये तीनों ही बातें उसने गाँठ बाँध लीं और उसी समय से फ्राँस को स्वतंत्र कराने के लिए नये आवेश के साथ उस संग्राम में कूद पड़ीं।
इंग्लिश महाकवि कॉलरीज और प्रख्यात उपन्यासकार स्टीवेंसन ने अपनी प्रमुख कृतियों के लिये प्रेरणास्रोत स्वप्नों के माध्यम से ही उपलब्ध किये बताये हैं।
मनोविज्ञानी डैविड रेवैक ने जार्जिया विश्व विद्यालय के 433 स्नातकोत्तर छात्रों से उनके स्वप्नों के सम्बन्ध में 80 प्रश्नों की प्रश्नावली बनाकर पूछताछ की, जिससे समझदार लोगों का अनुभव एवं अभिमत इस सम्बन्ध में जाना जा सके। प्रश्नों का उत्तर देते हुये अधिकाँश छात्रों ने यही बताया कि उनके बहुत सारे स्वप्न सार्थक रहे हैं और उनके सहारे उन्हें सामयिक वस्तुस्थिति तथा भावी सम्भावना के सम्बन्ध में समय-समय पर संकेत मिलते रहे हैं।
फ्राँस के डा. अलफ्रेड मरे ने प्रायः 3000 प्रामाणिक व्यक्तियों के स्वप्न अनुभव एकत्रित करके उनके निष्कर्षों को प्रकाशित किया है। इनमें अधिकाँश ऐसे थे जिनमें सारगर्भित सूचना मिली और वे उपयोगी सिद्ध हुईं। वे कहते हैं कि आवश्यक नहीं कि स्वप्न भविष्यदर्शी हों या अदृश्य का ही उद्घाटन करते हों। उनमें मनुष्य की अपनी शारीरिक, मानसिक स्थिति का भी दिग्दर्शन रहता है।
भारत के वायसराय लार्ड डफरिन ने एक रात डरावना सपना देखा कि कुछ हत्यारे किसी को कत्ल करके उसकी लाश को लादकर भाग रहे हैं। डफरिन उनका पीछा करते हैं। उनमें से एक को पकड़ भी लेते हैं पर जैसे ही वह पकड़ा हुआ व्यक्ति मुड़कर देखता है डफरिन उसकी भयानक आकृति को देखकर बेतरह घबड़ा जाते हैं। इस घबड़ाहट में उनकी नींद खुल गई। बात गई आई हुई, पर उसका प्रभाव इतना अधिक रहा कि कारण ढूंढ़ने की दृष्टि से उन्होंने उसे अपनी डायरी में नोट कर लिया।
समय बीता द्वितीय महायुद्ध के समय ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फ्राँस का राजदूत बनाकर उन्हें भेजा। एक बार वे किसी महत्वपूर्ण चर्चा के लिए फ्राँस के उच्च अधिकारियों से मिलने के लिए गये। दफ्तर पांचवीं मंजिल पर था। लिफ्ट से जाना था। लिफ्ट पर पैर रखने भी न पाये थे कि चालक की आकृति देखते ही वे घबड़ा गये और दस कदम पीछे हट गए। यह वही आकृति थी जो उन्होंने भारत वायसराय रहते समय सपने में देखी थी। डफरिन सन्न खड़े रहे। लिफ्ट चली गई। किन्तु कुछ मिनट ही गुजरे होंगे कि लिफ्ट दुर्घटना ग्रस्त हो गई और उसमें सवार सभी लोग मर गए।
इसी प्रकार एक घटना अमेरिका की है। प्रिस्टीन युद्धपोत विदेश यात्रा पर जा रहा था। उसका प्रवास उद्घाटन कर्नल डेविडगार्डी को एक समारोह के साथ करना था। उनकी पुत्री जूलिया और पत्नी भी साथ रहने वाली थी। निर्धारित तिथि से दो दिन पूर्व कर्नल की पुत्री और पत्नी ने अपने-अपने ढंग के दो स्वप्न देखे जिसमें भयानक विस्फोट और मृत्यु के भयानक दृश्य थे। दोनों ने उसकी संगति समारोह में दुर्घटना होने की सम्भावना से जोड़ी और सम्मिलित न होने का अनुरोध किया। किन्तु वे माने नहीं। स्वप्नों की सच्चाई वाली बात उसने हँसी में उड़ा दी। समारोह यथा-समय रहा। सभी लोग उसमें पहुँचे।
उद्घाटन के अवसर पर युद्धपोत पर लगी तोपों द्वारा सलामी दिये जाने का कार्यक्रम था। रस्म पूरी किये जाने के समय एक तोप फटी और तत्काल कई अधिकारियों के चिथड़े उड़ गये। उन्हीं में से एक गार्डी भी थे। सपना सच निकला।
प्रकृति की सूक्ष्म परतों में अनेकानेक हलचलें होती रहती हैं। उन्हें समझ सकना कामकाजी मस्तिष्क के लिये सम्भव नहीं। यह अतीन्द्रिय क्षमताओं के धनी अचेतन या सुपरचेतन का काम है। अचेतन की- प्रकृति की सूक्ष्म परतों तक पहुँच है और सुपर चेतन- ब्रह्माण्डव्यापी चेतना ब्रह्म सत्ता से संपर्क साधने में समर्थ है। यह दोनों ही क्षेत्र सूक्ष्म शरीर की परिधि में नहीं आते। वह तो दृश्य जगत के साथ ही व्यवहाररत रहता और अनुभवों के आधार पर सोचना चाहता है और किसी निर्णय पर पहुँचता है। इसके आगे प्रकृति या ब्रह्म की रहस्यमयी परतों के साथ सम्बन्ध जोड़ने का और कोई साधन नहीं है। यह साधन उच्चस्तरीय स्वप्नों के माध्यम से ही सम्भव होता है।
व्यावहारिक जीवन में मस्तिष्क का सचेतन ही कार्यरत रहता है किन्तु जहाँ तक श्रद्धा-प्रज्ञा-निष्ठा का तृप्ति-तुष्टि-शान्ति का- प्रतिभा और वरिष्ठता का सम्बन्ध है, पूर्णतया वह अचेतन और सुपर चेतन की स्थिति पर निर्भर है। अतीन्द्रिय क्षमताओं का भाण्डागार उस क्षेत्र में प्रसुप्त रूप में पड़ा रहता है। इसे अपना भार हलका करने और परिष्कृत स्तर की ओर बढ़ने के लिये सचेतन के दबाव से छुटकारा पाने की आवश्यकता पड़ती है। यह कार्य योगीजन प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि के द्वारा सम्पन्न करते हैं। मेडीटेशन के विभिन्न प्रकार और प्रयोग इसी प्रयोजन के निमित्त किये जाते हैं। समाधि की एक छोटी भूमिका उच्चस्तरीय स्वप्नों के माध्यम से ही सम्पन्न हो सकती है।