Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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पाल ब्रन्टन का मृतात्माओं से संपर्क
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मिस्र के पिरामिडों का रहस्य अभी भी वैसा ही अविज्ञात बना हुआ है जैसा पहले कभी था। फराऊ-शासकों की यह कला कृत्य वास्तु कला विशेषज्ञों के लिए इसलिए रहस्यमय है कि उस क्षेत्र में दूर-दूर तक उस स्तर के पत्थर नहीं हैं जैसे कि उसमें प्रयुक्त हुए हैं। फिर व इतने भारी हैं कि उन्हें उतनी ऊंचाई तक उठा ले जाना और फिटिंग में कहीं रत्ती भर भी अन्तर दृष्टि-गोचर न होना मानवी श्रेय के लिए आज तो नितान्त असम्भव ही लगता है। इसके लिए उठाने वाली और रेतने वाली आधुनिकतम मशीनें ही कदाचित् सफल हो सकें जिनके उस जमाने में उपलब्ध होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। फिर वे इतने रहस्यमय ढंग से विचित्र आकृतियों में बनाये गये? जबकि संसार में उससे भी सुन्दर इमारतें रही हैं। उनकी अनुकृति की जाती तो और भी सरल सस्ते और सुन्दर बन सकते थे। पर ऐसा क्यों नहीं सोचा गया, क्यों नहीं किया गया? यह काफी समय तक एक रहस्य बना रहा।
मिस्र पर जब नैपोलियन ने चढ़ाई की और उसे जीता तो प्रचलित किंवदंतियों के संदर्भ में उसने इन पिरामिडों की नये सिरे से खोज की। उनने उन्हें ज्योतिर्विज्ञान की शोध दृष्टि के आधार पर बना पाया। मध्याह्न रेखा और ध्रुव वृत्त का सही स्थान ढूँढ़कर ही वह स्थान चुना गया जहाँ यह पिरामिड बने हैं। उनमें जहाँ-जहाँ ऐसे छिद्र भी हैं जो ब्रह्मांड की झाँकी कराते हैं और ग्रह नक्षत्रों की स्थिति में जो चल अन्तर पड़ा है उसका विवरण बताते हैं।
अंग्रेजों का शासन जब उस क्षेत्र पर हुआ तो उन्होंने कब्रों के साथ दबी हुई बहुमूल्य सम्पदा खोज निकालने और पुरातत्व विज्ञान से सम्बन्धित तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने की दृष्टि से भीतरी भागों की खोजबीन की पर शोधकर्ताओं की आश्चर्यजनक ढंग से ऐसी मृत्युएं होती रहीं जिनका कोई प्रत्यक्ष कारण समझा नहीं जा सका। उन दुर्घटनाओं को इस खोद कुरेद का अभिशाप माना जाता है तो भी वह क्रम साहसी लोगों ने आगे भी चलाया किन्तु अविज्ञात रहस्य या बात का बतंगड़ बनाकर उन लोगों ने भी विराम लिया।
कहा जाता रहा है कि पुरातन काल के फराऊ राजाओं की आत्माएं अभी भी पिरामिडों के अन्तराल में विद्यमान हैं और जब तब अपने अस्तित्व का परिचय देती रहती हैं। इसकी परख करने के लिए जो लोग किसी प्रकार उनमें घुस गये और रात्रि के दृश्य देखने के लिए रुक गये, उनमें से अधिकाँश मर गये या पागल बन कर लौटे। अभी भी उन विश्व के सात आश्चर्यों में से एक माने जाने वाले इन पिरामिडों को देखने कई व्यक्ति जाते हैं और फोटो खींचकर या इधर-उधर चक्कर लगाकर खाली लौट आते हैं। उस क्षेत्र में रहने वाले रक्षकों या दुकानदारों के मुंह चित्र-विचित्र किम्वदंतियां सुनने के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं लगता। जिन भूतों के साथ छेड़खानी करने की किसी की हिम्मत नहीं पड़ती और उपयोगिता भी नहीं जान पड़ती।
इंग्लैण्ड के विश्व विख्यात आत्मिकी एवं पुरातत्वविद् कथा लेखक पाल ब्रन्टन ने इस संदर्भ में एक अनोखा साहस किया और वे जान हथेली पर रखकर किसी प्रकार गहराई में बनी कब्रों में रात बिताने के लिए उद्यत हो गये। साथ में चलने के लिए उनने एक मिस्री व्यक्ति से अनुरोध भी किया और लालच भी दिया किन्तु उसने अपनी जान गंवाने से स्पष्ट इनकार कर दिया और साथ ही उन्हें भी सलाह दी कि वे ऐसा कदम न उठायें जिससे अकारण ही जान गंवानी पड़े।
ब्रन्टन रहस्यों का पता लगाने में भी मानवी ज्ञान में एक कड़ी जोड़ने के काम को कम महत्वपूर्ण नहीं मानते थे। इसलिए वे अपने निश्चय पर दृढ़ रहे और चौकीदारों से आँख बचाकर उस कक्ष में जा घुसे जिसमें सम्राट तूतन खामन की कब्र बनी हुई है और उसके भीतर बहुत सा लबाजमा भी गढ़ा हुआ है।
पाल ब्रन्टन इससे पूर्व रहस्यमयी विद्याओं की खोज करने के संदर्भ में भारत की यात्रा भी कर चुके थे। हिमालय की कन्दराओं तथा रहस्यमय योगियों से उनने भेटें भी की थीं। यहाँ आने पर उनकी जिज्ञासा घटी नहीं, बढ़ी ही थी। उनने प्रत्यक्ष देखा था कि अतीन्द्रिय क्षमताएं बहुतों में अनायास ही होती हैं और बहुत से उन्हें अपनी तप साधना के सहारे जागृत कर सकते हैं। यह बढ़ी हुई जिज्ञासा ही पिरामिडों में निवास करने वाली दिव्य आत्माओं के सम्बन्ध में अधिक, और अधिक जानने के लिए, मिस्र घसीट ले गई थी और वे पिरामिडों के सम्बन्ध में प्रचलित अनेकानेक किंवदंतियों की यथार्थता जानने के लिए अपनी जान हथेली पर रखने के लिए तुल गये थे।
कई दिन चक्कर काटने के उपरान्त ब्रन्टन ने भीतरी कक्ष में प्रवेश पा लिया तथा एक टार्च तथा चाय का थर्मस लेकर वहाँ एक पत्थर पर बैठ गये।
ब्रन्टन द्वारा प्रकट किये गये अनुभवों के आधार पर जाना गया कि वे उस अन्धेरे क्षेत्र में एक चट्टान पर इस प्रकार लेट गये थे कि किसी अविज्ञात आगन्तुक को उनकी उपस्थिति का सहज ही पता न चले। थोड़ी-सी रात्रि बीतते-बीतते वहाँ उन्हें भारी ठण्ड लगने लगी जबकि वह समूचा क्षेत्र बालू जपने से गरम रहता है। कसी हुई जाकिट पहनकर उनने अपनी शीतजन्य कठिनाई का समाधान किया। थोड़ी रात्रि बीतते ही वहाँ की निस्तब्धता टूटी और भयावह आकृतियों के आगमन की सूचना मिलने लगी। घने अन्धकार के बीच भी उन आत्माओं की आकृतियाँ उभर रही थीं और हाथ कुछ न सूझ पड़ने पर भी अपनी हरकतों का परिचय ध्वनि के आधार पर देते रहे। यह क्रम कई घण्टे चलता रहा। उनका उद्देश्य इस अजनबी को डराकर भय से घबराकर विक्षिप्त कर देने या प्राण छोड़ बैठने की स्थिति तक पहुँचा देने का था। पर ब्रन्टन इतने डरपोक नहीं थे। यदि होते तो उस क्षेत्र के निवासियों द्वारा सुनाई गई अनेकों डरावनी घटना पर ही विश्वास करके इरादा छोड़ बैठते। उन्हें बड़ी से बड़ी कठिनाई सहकर भी यथार्थता को खोज निकालने की धुन थी।
सन्नाटा छा गया। उसे चीरती हुई दो दिव्य छायाएँ प्रकट हुईं। उनमें से एक राजा प्रतीत होता था और दूसरा पुरोहित। दोनों शान्त मुद्रा में थे। उनने नवागन्तुक के आगमन का अभिप्राय बिना पूछे ही जान लिया और हाथ उठाकर सहायता करने जैसा आश्वासन दिया।
इसके उपरान्त वे आत्माएं उनके शरीर को तन्द्राग्रस्त बनाकर सूक्ष्म आत्मा रूप में अपने साथ ले गईं और किसी विचित्र लोक में पहुँची। वहाँ डरावना जैसा कुछ नहीं था, वरन् शान्ति का साम्राज्य था और निवासी अधिक ऊंची आत्मिक स्थिति में पहुँचने के लिए प्रयत्नशील थे। सम्भवतः मृतात्माओं में से जो विचारशील थे,आत्मिक दृष्टि से ऊंचे उठे हुए थे उनके लिए बना हुआ यह विचित्र क्षेत्र था।
उन आत्माओं में से जो प्रमुख थीं उनने एक ही परामर्श दिया कि बाहर से अपने को समेटो और भीतर के क्षेत्र में प्रवेश करो। वहाँ वह सब कुछ मिलेगा जिसकी तुम्हें तलाश है। दिव्य क्षमताओं की उपलब्धि के लिए बाहर के किसी का आश्रय लेने की अपेक्षा यह कहीं अधिक सरल है कि अपने को समझा जाये और उसका परिशोधन किया जाये। इतना संक्षिप्त और सारगर्भित मार्गदर्शन पाकर ब्रन्टन जैसे विद्वान का समाधान हो गया।
वे वापस शरीर चेतना में लौटे तो उस क्षेत्र में विद्यमान डरावनी आत्माएँ भयभीत करने की स्थिति में नहीं थीं। हलचलें उनकी चल रही थीं पर वह सब कुछ सामान्य प्राणियों की स्वाभाविक उछल-कूद जैसा लगता रहा। भोर होते ही जैसे ही पिरामिड का फाटक चौकीदारों ने खोला, वे बाहर निकल आये और नया दृष्टिकोण लेकर वापस लौटे कि प्राणि चाहे जीवित स्थिति में हों या मृतात्मा के रूप में, अपने स्वभाव के अनुरूप ही आचरण करते रहते हैं। उनसे न अधिक लाभ मिल सकता है, न हानि की सम्भावना है। अपनी आत्मा ही सब कुछ है।