Magazine - Year 1986 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
कार्तिकी अमावस्या का ज्योति पर्व
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
दीपावली भारतीय संस्कृति का प्रमुख त्यौहार है। उत्तर भारत के व्यवसायी इस अवसर पर अपना आर्थिक वर्ष आरंभ करते हैं। इस पर्व में कई देवताओं के पूजन का विधान सम्मिलित है। लक्ष्मी और गणेश की आमतौर से पूजा होती है। यों पौराणिक तारतम्य के अनुसार दोनों के बीच कोई संबंध-रिश्ता नहीं है; पर दोनों को एक केन्द्र पर जोड़ देने का दार्शनिक महत्व अवश्य है।
गणेश बुद्धि के देवता है और लक्ष्मी सम्पदा की देवी। सम्पत्ति की अपेक्षा व्यक्ति को बुद्धिमान होना चाहिए, साथ ही देवोपम-नीतिवान भी। धन का उपार्जन न्याय-नीति के आधार पर हो और उसका उपयोग करने में भी विवेकशीलता से काम लिया जाय। यदि अनीतिपूर्वक उपार्जन और अपव्यय जैसा खर्च किया जाय, तो लक्ष्मी की प्रसन्नता का लाभ न मिल सकेगा। दुरुपयोग से तो उल्टा अनर्थ ही होता है और लक्ष्मीवान गरीब ईमानदार की तुलना में अधिक घाटे में रहता है।
रावण विजय पर दीपावली के दिन राम का राज्याभिषेक हुआ था, इसलिए उसकी खुशी में दीपदान किया गया। नरकासुर वध की कथा भी इस पर्व के साथ जुड़ी हुई है। यहाँ नरक को गंदगी के रूप में व्याख्यापित किया गया है। वर्षा के बाद कीचड़, गंदगी, ज्वर या फुँसी आदि का प्रकोप होता है। इसका कारण भीतरी और बाहरी गंदगी का उबल पड़ना है। दीपावली के अवसर पर घरों की लिपाई-पुताई तो होती ही है। इसके अतिरिक्त जलाशयों, खाद-कूड़ा आदि जमा करने के स्थानों की स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।
एक दार्शनिक प्रतिपादन है कि जब सूर्य-चन्द्र नहीं होते और अमावस्या की भयानक रात डरावनी लगती है, तब उस संकट का निवारण छोटे-छोटे दीपक मिलकर करते हैं। इसमें छोटों की उस गरिमा का प्रतिपादन है, जो उनके एकत्रित होने पर हो सकती है। गोवर्धन पूजा भी दीपावली के दूसरे ही दिन होती है। गोवर्धन का शब्दार्थ है- गौओं का संवर्धन, उनका पालन एवं अभ्युदय। दीपावली इतनी विशेषताओं से भरी हुई है।
इसके अतिरिक्त इस दिन कुछ ऐसी घटनाएँ भी हुई हैं, जो प्रेरणाप्रद भी हैं और अविस्मरणीय भी। इसी दिन जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान महावीर का स्वर्गवास हुआ था। उनका जीवन जितने समय रहा, जन-जन को प्रेरणा और प्रकाश देता रहा। उन्होंने अहिंसा, प्रेम, तप और त्याग को अपने जीवन का प्रतीक बनाया। जो कुछ कहा, लिखा और किया वह सभी इस आदर्शवादिता के अनुकूल था।