Magazine - Year 1987 - Version 2
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Language: HINDI
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मनोबल की प्रचण्ड सामर्थ्य
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साधनों के आधार पर ही सफलताएँ मिलती है। साधनों का ही बल भी कहते हैं। प्रत्यक्ष बलों में धनबल, बाहुबल, शास्त्रबल, बुद्धिबल आदि प्रमुख हैं। इस सबसे बढ़कर है मनोबल। मनोबल का तात्पर्य शिक्षा की कल्पना, बहुज्ञता, अनुभवशीलता से नहीं वरन् दृढ़ निश्चय से है। जब यदि आदर्शों के निमित्त प्रयोग किया जाता है तो उसी को संकल्प बल भी कहते हैं। जिसकी संकल्प शक्ति जितनी बलवान है, उसे उतने ही स्तर का बलवान कहना चाहिए।
बहुत साधन होते हुए भी लोग साधारण से काम भी नहीं कर पाते। इनके विचार डगमगाते रहते हैं। जो काम हाथ में लिया है वह उचित भी है या नहीं। अपने से बन पड़ेगा या नहीं। ऐसे विकल्प मन में उठते रहते हैं। कच्चामन में एक को छोड़ दूसरा काम हाथ में लेते हैं। कुछ दिन बाद दूसरा हाथ भी छूट जाता है और तीसरे को अपनाते हैं। इस तरह अनिश्चय की दशा में शक्ति का अपव्यय होता रहता है। दिशा निश्चित न होने पर कुछ दूर पूर्व को कुछ दूर उत्तर-पश्चिम दक्षिण को चलने वाले दिनभर घोर परिश्रम करते रहने पर भी थकान सिर पर ओढ़ते हैं। अच्छा यही है कि पहले ऊँच नीच के हर पहलू पर विचार कर लिया जाय। बुद्धिपूर्वक जो निश्चय निकले उसे दृढ़तापूर्वक अपनाया जाय।
काम देखने को शरीर से किया जाता प्रतीत होता है, पर वास्तविकता यह है कि वह मन में होता है। मनोयोग लगा देने से योजना के सब पक्ष सामने आते हैं। अन्यथा बाल कल्पनायें मन में उठती रहतीं और पानी के बबूले की तरह अस्त-व्यस्त होती रहती हैं। बच्चे सारे दिन उछल कूद करते रहते हैं। इनमें से हर एक क्रिया के पीछे कुल उद्देश्य होता है, पर ये उद्देश्य ठहरने नहीं पाते। एक के बात दूसरी इच्छा सामने आ जाती है और पिछली को छोड़कर अगली में हाथ डालते हैं। इस प्रकार दिन भर में ढेरों मनोरथ सामने आते हैं और वे सभी आधे अधूरे रहकर अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। इसी को ...सर्वांगपूर्ण बने। उसके लाभ हानि पर साँगोपाँग विचार किया जाय। साधन जुटाने के लिए जो करना पड़ेगा, उसका मानचित्र मस्तिष्क में रहना चाहिए। जो कार्य वर्तमान साधनों के सहारे किया जा सकना सम्भव है उसमें हाथ डाला जाय। भविष्य में जितने साधन बढ़ते जायं उतने काम बढ़ाते चला जाय। साधन कम पड़ें तो काम की रूप रेखा में काँट-छाँट कर ली जाय। यह सब तभी बन पड़ता है जब प्रस्तुत योजना पर समग्र मनोयोग एकत्रित किया जाय। अधूरे चिन्तन से न पूरी रूप−रेखा समक्ष में आती है और न उसका क्रम बनाने का तारतम्य ठीक से बनता है। दिलचस्पी जितनी जिस काम में रहेगी। कार्य ठीक तरह बन पड़ेगा। साधनों का नियोजन भी तभी होता है, जब पूरा मन उसमें लग पा रहा है अन्यथा उपयुक्त साधन होते हुए भी उनका उपयोग ठीक तरह नहीं हो पाता। ......... अधूरे मन से किये हुए काम सदा अधूरे रहे हैं।
मनोबल का एक अर्थ हिम्मत है। जिसमें दिलचस्प ...... शामिल है। किसी काम को रुचिपूर्वक किया जाय तो उसका प्रतिफल दूसरा होगा और बेगार भुगतने की तरह निबटाया जाय तो उसकी उपलब्धि बिल्कुल दूसरी होगी। रुचिपूर्वक बया घोंसला बनाती है तो उसकी सुँदरता और मजबूती देखते ही बनती है। मंदबुद्धि कबूतर आड़ी तिरछी लकड़ियाँ डाल देता है, उसका परिणाम ऐसे घोंसले के रूप में सामने आता है जो जरा सा हवा का झोंका भी बरदाश्त नहीं कर सकता। नौकरों द्वारा कराये गये काम में और मालिक के द्वारा अपने हाथों किये गये काम में जमीन आसमान जैसा अन्तर होता है। यह कारण है कि मजूरों द्वारा कराई गई लम्बी चौड़ी काश्त में भी कुछ लाभ नहीं होता वरन् उलटा पुलटा हो जाता है इसके विपरीत जिस खेती को घर मालिक मिलजुल कर करते हैं वह सोना उगलती है। सेना का इतिहास इसी तथ्य से भरा पड़ा है जिसके सैनिक भले ही थोड़े रहे हैं पर जो हार जीत को निजी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर लड़ते हैं वे कमाल दिखाते हैं। सफलता उनके चरण चूमती है किन्तु जो नौकर की तरह जान बचाते हुए लड़ते हैं उनकी संख्या बहुत होते हुए भी, साधन बढ़िया होते हुए भी हारते हैं। मनोबल ऊँचा बना रहे तो पीछे हटती हुई सेना भी पुनः आक्रमण करके अपने खोये हुए इलाके पुनः प्राप्त कर लेती है। इसके अभाव में वे खबरी से ग्रसित सेनापति अपने जीते हुए इलाके भी हाथ से गँवा बैठते हैं।
संसार में महापुरुषों का अपना विशेष इतिहास है। कोलम्बस, नैपोलियन आदि के पराक्रम ऐसे हैं कि जिन्हें पढ़ सुनकर दांतों तले उंगली दबानी पड़ती है। इनकी शारीरिक, मानसिक बनावट में कोई खास विशेषता नहीं थी। वे भी दूसरे लोगों जैसे ही थे पर बढ़े चढ़े मनोबल के सहारे बड़ी योजनाएँ बनाने और उसे सफल बनाने में जो पराक्रम दिखाया उसके पीछे उनका बढ़ा हुआ मनोबल ही जादू चमत्कार दिखाता रहा है।
कितने ही महान आन्दोलन संसार में चले और व्यापक बने हैं। इनके मूल में एक दो व्यक्तियों का ही पराक्रम काम करता रहा है। जो अपनी लड़ाई आँधी के साथ अनेकों को आसमान तक उठा ले गये, वे न तो महाबली योद्धा थे और न साधन सम्पन्न करोड़पति। गाँधी ने जो आँधी चलाई उसके साथ लाखों पत्ते और तिनके जैसी हस्ती वाले गगनचुम्बी भूमिकायें निभाने लगे। ऐसे आन्दोलन समय-समय पर अपने देश और विदेशों में उठते रहे और व्यापक बनते रहे हैं। इनके मूल में एक दो मनस्वी लोगों के संकल्प और प्रयत्न ही काम करते रहे हैं। इसीलिए संसार के मनुष्यों में सबसे बड़ा बल मनोबल ही माना गया है। संकल्प और निश्चय तो कितने ही व्यक्ति करते हैं, पर उन पर टिके रहना और अन्त तक निर्वाह करना हर किसी का काम नहीं। विरोध, अवरोध सामने आने पर कितने ही हिम्मत हार बैठते हैं और किसी बहाने पीछे लौट पड़ते हैं पर जो हर परिस्थिति से लोहा लेते हुए अपने पैरों अपना रास्ता बनाने और अपने हाथों अपनी नाव खेकर उस पार तक पहुँचाते हैं, ऐसे मनस्वी विरले ही होते हैं। मनोबल ऐसे साहस का नाम है जो समझ सोचकर कदम उठाते और उसे प्राणपण से पूरा करते हैं।
चाहे व्यक्तिगत जीवन हो चाहे सामाजिक, सफलता के लिए मनुष्य का मनस्वी होना स्वाभाविक है। पैसा से पैसा कमाने की विद्या तो वणिक बुद्धि को भी आती है। अपराधियों जैसी हिम्मत तो चोर उचक्कों में भी होती है। आवेश में आकर लड़-झगड़ बैठना तो क्षुद्र स्तर के व्यक्ति भी कर सकते हैं किन्तु जिसमें अपना कोई व्यक्तिगत लाभ न होता हो, मात्र सिद्धान्तों का परिपोषण अथवा सार्वजनिक हित साधन ही बन पड़ता हो ऐसे कामों में हाथ डालना-उनके मार्ग में आने वाले अवरोधों से टकराना, बिगड़ती हुई परिस्थितियों में धैर्य न खोने और साथियों का उत्साह ढीला न पड़ने देना हर किसी का काम नहीं है। ऐसे लोगों में एक ही विशेषता पाई जाती है-उसका नाम है-मनोबल।
मनोबल किसी-किसी में जन्मजात भी होता है। पर यह आवश्यक नहीं। उसे अभ्यास से बढ़ाया जा सकता है। छोटे कामों में हाथ डालना और उन्हें पूरा करके ही चैन लेना यह मनोबल बढ़ाने का तरीका है। एक के बाद दूसरा काम हाथ में लेने और उनकी कठिनाइयों से निपटना यही है वह मार्ग जिस पर चलते हुए मनोबल अर्जित किया जा सकता है। यह विभूति जिसके हाथ लग गई समझना चाहिए कि महामानव बनने का सूत्र उसके हाथ लग गया।