Magazine - Year 1987 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
हम क्षीण व खोखले क्यों होते जा रहे हैं?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मानवी प्रगति के लिए इन दिनों पहले की अपेक्षा कहीं अधिक गुँजाइश है। साधनों में कमी नहीं वृद्धि हुई है। पूर्वजों के पास भोजन के घटिया साधन थे, उनसे अधिक प्रकार के शाक, भाजी, फल मेवे हम प्राप्त कर लेते हैं चिकनाई की मात्रा भी अपेक्षाकृत अधिक हिस्से में आती है। जरा भी बीमारी होने पर पड़ौस में ही हकीम-डाक्टर मिल जाते हैं। नित नई औषधियों के आविष्कार होते चलते मिल जाते हैं। नित नई औषधियों के आविष्कार होते चलते हैं। अस्पताल से लेकर प्रयोगशालाओं और शोध शालाओं की धूम है, जिससे किसी को बीमारी कष्ट न सहना पड़े। औसत आदमी के भोजन में पौष्टिक तत्वों की मात्रा पूर्वजों की अपेक्षा हलकी नहीं, भारी ही पड़ती है। ऐसी दशा में हम सब का स्वास्थ्य अच्छा ही होना चाहिए, किन्तु देखने में स्थिति इसके विपरीत ही आती है।
लम्बाई, ऊँचाई, वजन की दृष्टि से हम अपेक्षाकृत बढ़ नहीं वरन् घट रहे हैं। घटोत्तरी का सबसे चिन्ताजनक पक्ष है- जीवनी शक्ति की न्यूनता, रोग निरोधक शक्ति, बिना थके परिश्रम करने की क्षमता, मनोबल, साहस, हिम्मत यह जीवन शक्ति की न्यूनता, रोग निरोधक शक्ति, बिना थके परिश्रम करने की क्षमता, मनोबल, साहस, हिम्मत यह जीवनी शक्ति की न्यूनता, रोग निरोधक शक्ति, बिना थके परिश्रम करने की क्षमता, मनोबल, साहस, हिम्मत यह जीवनी शक्ति के चिन्ह हैं। जब इन क्षमताओं की कमी पड़ जाती है। तो शरीर माँस - चर्म से ढँका होने पर भी ढीला पोला पिलपिला रह जाता है। देखने-दिखाने भर के काम आता है। जीवन तत्व की जब कमी पड़ जाती है, तब चेहरों पर तेजस्विता दिखाई नहीं पड़ती, आकर्ष नहीं रह जाता उदासी छाई रहती है, कोई काम हाथ में लेते ही उसके पूरा होने की आशा नहीं बँधती, निराशा छाने लगती है। जरासा काम में हाथ डाला नहीं कि अंग - अवयव थकान अनुभव होती है। जो काम हँसते-खेलते, उछलते - कूदते हो सकते थे, उन्हें करने के लिए सहायक की नौकर वहन की आवश्यकता पड़ती है। जिम्मे लिए हुए कामों का ढेर लगा रहता है। आज का कल पर कल का परसों पर टलता रहता है। स्फूर्ति के अभाव में टालम-टोल ही एक मात्र उपाय रह जाता है। जब काम ज्यादा जमा हो जाता है तो कोई बहाना बनाकर जिस-तिस पर दोष मढ़ना पड़ता है; पर इससे भी कुछ बनता तो नहीं। दूसरों की आँखों में अपनी आँखें में अपनी इज्जत घटती है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निकम्मापन सिर पर लदा रहता है।
सुविधाएँ जहाँ पहले की अपेक्षा बढ़ी हैं, वहाँ क्षमता क्योँ घटी हैं? इसका उत्तर एक ही है- “जीवनी शक्ति की घटोत्तरी”। इसी के बलबूते मनुष्य कुछ पुरुषार्थ कर पाता है, रोगों से लड़ पाता है, दीर्घ जीवन का आनन्द ले पाता है। जीवन शक्ति गिरने पर शरीरबल और मनोबल दोनों में ही न्यूनता पड़ती है। ऐसी दशा में सुयोग और सुअवसर भी आँखों के सामने देखते-देखते निकल जाते हैं तथा उदासी और असफलता ही गाँठ बँधती है।
देखना यह है कि पूर्वजों की तुलना में यह घटोत्तरी क्यों हो रही है? किस कदर हो रही है? पिछली शताब्दी पर दृष्टि डालते हैं तो शरीरों के आकार-प्रकार में भी कमी प्रतीत होती। इन दिनों औसत लम्बाई 5 फुट 8 इंच और वजन 60 किलो ग्राम है; पर कुछ दशकों पूर्व ऐसी स्थिति नहीं थी। कद भी ऊँचा था और वजन भी अधिक था। उसमें ज्यादा कमी न हुई हो, तो भी पराक्रम वाली जीवनी शक्ति तो निश्चित रूप से कम हो गई है। स्फूर्ति और हिम्मत दोनों ही घट रही हैं। जरा-सा परिश्रम करते ही थकान और उदासी छाने लगती है।
इसका कद और वजन से सम्बन्ध है। जिसकी हड्डियाँ भारी, मजबूत और चौड़ी हैं - वह पराक्रम भी अधिक कर सकेगा, भोजन भी अधिक करेगा, उसके पचने पर रक्तमाँस अधिक बनेगा और पुरुषार्थ भी अधिक बन पड़ेगा; पर यदि शरीर हल्का, फुल्का, ठिगना, कमजोर है, तो उससे खाया भी कम जायेगा, पचेगा भी कम और रक्त माँस की न्यूनता से कमजोरी के चिन्ह सर्वत्र दृष्टिगोचर होंगे।
स्त्रियाँ इन दिनों औसतन 5 फुट इंच और वजन में 55 से 58 किलो ग्राम की होती हैं। इसकी तुलना में इन्हीं दिनों जीवित व्यक्तियों में इस औसत की तुलना में कहीं अधिक कद और भार देखा जा सकता है। जो चले गये, वे तो दोनों ही दृष्टियों में अधिक भारी-भरकम थे। इसी अनुपात से उसकी क्षमता भी काफी बढ़ी-चढ़ी थी “विलीव इट ओर नाट’ पुस्तक के कुछ उदाहरण इस सम्बन्ध में यहाँ दिये जा रहे हैं।
सन् 1962 की बात है कि फिलिस्तीन का एक पहलवान डेविड नाम से मशहूर था। उसकी ऊँचाई 210 सेन्टीमीटर अर्थात् दै हाथ से भी अधिक थी। उतनी ही मजबूत उसकी जीनी शक्ति थी।
ईरान के बसरा शहर का सिपाह खाँ 312 सेन्टीमीटर ऊँचा था। प्रामाणिक लम्बाई के हिसाब से अमेरिका का राबर्ट वाशिंग वाडलों 242 सेन्टीमीटर तक पहुँच गया था। टैनेसी का जार्ज विलियम रीगन 254 सेन्टीमीटर का था। पाकिस्तान का मुहम्मद आलम चन्ना 259 सेन्टीमीटर नापा गया। इस प्रकार पिछले दिनों दर्जनों 250 सेन्टीमीटर लम्बाई के लगभग के व्यक्ति हुए हैं।
संसार के जीवित व्यक्तियों में शिकागो (अमेरिका) का जान काइलर सबसे लम्बा आदमी है। उसकी लम्बाई 8 फुट 4 इंच है। इससे भी बढ़कर सिंध (पाकिस्तान) का मकसूद आलम है। उसकी लम्बाई 8 फुट 6 इंच है। ऐसे मामलों में थाइराइड की बीमारी के कारण लम्बाई बढ़ना कहा जाता है; किन्तु इन दोनों का स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक है। एक दूसरा व्यक्ति जिसकी मृत्यु 22 वर्ष की उम्र में हो गई थी, रार्बड कनिंघम 11 फुट 1 इंच तक पहुँच गये थे। सम्भवतः वह एक्रोमिगैली रोग से ग्रस्त रहा हो।
महिलाओं में चीन के हुनान प्रान्त की साँग चुन लिंग की लम्बाई 217 सेन्टीमीटर तक आँकी गई थी। कनाडा की सेडी एलन 231 सेन्टीमीटर लम्बाई की थी। दुनिया के सबसे लम्बे दम्पत्ति कनाडा के डाहन ओर उनकी पत्नी मार्टिन दोनों लगभग 250 सेन्टीमीटर के थे। तुतनी की आदिम जातियों में लोग 231 से 244 सेन्टीमीटर तक पाये जाते रहे हैं उनमें दमखम भी खूब होता है।
लम्बे दम्पत्तियों में केन्प्रट मार्ट वेडूस की लम्बाई 7 फुट 5 इंच थी। उनकी पति एन्ना स्वान 7 फुट 7 इंच लम्बे थे दोनों ने मिलकर सरकस में नौकरी कर ली थी, जहाँ उन्हें अच्छा वेतन मिलता था। अमेरिका का क्विफर्ड टायसन एक माना हुआ वकील था। उसकी लम्बाई 8 फुट 7 इंच थी। आयरलैण्ड के कार्टर का कद 8 फुट 3 इंच था। तब वह 19 वर्ष का था। वह कहता था मेरा बाप ब्राडन 9 फुट का था। उसके बराबर होने में भी उससे कम न रहूँगा।
लम्बे आदमी अपने कद के हिसाब से खाते भी हैं और मेहनत भी करते हैं। पहनने के कपड़े, जूते स्पेशल बनवाने पड़ते हैं बिस्तर भी बड़े बनते हैं। इतने पर भी उनके कारण किसी को घाटा नहीं पड़ता।
अब से कोई 300 वर्ष पहले अब की अपेक्षा बहुत लम्बे और वजनदार आदमियों की पीढ़ी संसार भर में भी। तब उनका ऐसा होना कोई आश्चर्यजनक नहीं माना जाता था। आदमियों की घटोत्तरी तो धीरे-धीरे हुई है। इतिहास वेत्ता मेगेनिल ने दक्षिणी अमेरिका के रैड इन्डियनों को साढ़े 7 फुट ऊँचा पाया था। मिस्र का शासक सिसरो 8 फुट का था। रोम का शासक मैक्समन भी 8 फुट का था। शाही दरबारों में ऐसे ही लम्बे आदमी ढूँढ़-ढूँढ़ कर तब रखे जाते थे।
परशिया के शासक फ्रेडरिक विलियम ने लम्बे मनुष्यों की एक सेना बनाई थी, जिसमें 2900 सैनिक थे। इनका औसत कद 8 फुट था। चाँग नामक एक चीनी लड़का 19 वर्ष की आयु में ही 9 फुट लम्बा और 204 कि.ग्रा. को हो गया था। वह आजीवन स्वस्थ रहा। मिसूँरी, अमेरिका की एक लड़की इलाहीविग 25 वर्ष की होते-होते साढ़े सात फुट और 113 कि.ग्रा. वजन की हो गई थी।
रिकार्डस में सबसे भारी मनुष्य वाशिंगटन का मिचेल सिस्टल था। उसका वजन 635 पौंड था। उसे करवट लिवाने के लिए 6 आदमियों की जरूरत पड़ती थी। लंदन की मिल्स नामक महिला का वजन 405 कि.ग्रा. था। 380 कि.ग्रा. से अधिक भारी पिछले दिनों संसार भर में 8 आदमी थे।
दीर्घायु लोगों में से जिनने पिछले 50 वर्षों में कीर्तिमान स्थापित किए हैं, उनकी आयु 100 से लेकर 118 वर्ष तक की हो सकी है। इनमें अधिकाँश यूरोप व एशिया के ठंडे इलाकों के रहे हैं। भारत में भी अभी भी पहाड़ों पर दीर्घायु व्यक्ति पाये जाते हैं। एडवर्ड होल्योग प्राप्त की। 80 वर्ष तक वह सलेम अमेरिका में प्रेक्टिस करता रहा। जिसमें उसने 25 लाख रोगियों का इलाज किया। 90 वर्ष की उम्र तक ऑपरेशन करता रहा। उसी साल सलेम बैंक का प्रधान भी चुना गया।
अनबक्तदीन जब आर्कोट की लड़ाई में लड़ने गया, तब वह 107 वर्ष का था। दो गोलियाँ लगने से वह मारा गया। आस्ट्रिया के मारक्रिशन चर्च की 700 वीं वर्ष गांठ पर 12 मील राज चल कर सम्मिलित होने वाली महिला का नाम बारबरा वाइ. आइ. टेलर। तब वह 119 वर्ष की थी। न्यूजीलैण्ड के माटामारा इलाके में जन जाति का एक सदस्य “होहुआ” बहिष्कृत कर जंगल में अकेला छोड़ दिया गया। वह कन्दमूल खाकर रहा और 124 वर्ष तक जिया। फ्राँस का एडमण्ड मौथ्यूस सन् 1870 से 1985 तक 115 वर्ष जिया। इसमें वह 75 वर्ष तक मेयर रहा। हार्लर काउण्टी की एक महिला सैली ईगर 90 वर्ष की उम्र में अपनी ऐनक खे बैठी। इस पर उसकी आँख की रोशनी घटी नहीं बढ़ गई और खुली आँख से सुई में धागा पिरोती रही। 95 वर्ष की आयु तक उसे चश्मे की फिर जरूरत ही न पड़ी।
शरीर की बलिष्ठता और बहादुरी लगभग एक ही चीज है। जिसका शरीर सुदृढ़ होगा, वही कुछ बड़े काम कर सकता है। अधिक दिन तक जी भी सकता है।
दीर्घ जीवन भी इसी जीवनी शक्ति से सम्बन्धित है। जिसका शरीर मजबूत गठन का है, वही लम्बे समय तक जीवित भी रह सकता है और आपत्तियों को सहन भी कर सकता है।
युद्ध में लड़ने वाले सेनापति किसी जमाने लोहे के तारों से बने कवच पहनते थे, ताकि शत्रु की तलवार उनका कुछ बिगाड़ न सके। वोर्सस्टर विलियम साँमरसेट का कवच 37 किलो ग्राम भारी था, वह पाँच हिस्सों में जोड़कर बना था। उसके बुलेट प्रुफ हिस्से समेत वजन 60 कि.ग्रा. था। प्रिन्स ऑफ अर्ल के अत्यन्त भारी कवच की कीमत 428 लाख पौण्ड आँकी गई थी, वह रत्न जड़ित था मिस्र का सेनापति लुँग पाशा 15 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक एक मन भारी कवच पहनकर नील नदी को तैरने और वापस आने का नियम बनाये रहा। वाइजेन्टियम का शासक रोमैजस अपने भारा लोहे के कवच पहने हुए उछलकर घोड़े की पीठ पर बैठकर जाता था।
इतना ही नहीं, उन लोगों की ताकत और हिम्मत भी असामान्य स्तर की होती थी। स्काटलैंड का बादशाह अलेक्जेन्डर अंगरक्षक नहीं रखता था। एक रात वह सोया हुआ था कि छह शत्रुओं ने मिलकर हमला किया। आँख खुलते ही वह भिड़ पड़ा और देखते-देखते छहों का सफाया कर दिया। उसकी ताकत और हिम्मत दोनों एक से एक बढ़कर थी। जर्मनी के एक होस्ट का एक रीछ से पाला पड़ जाने पर उसने उसे घूँसों से मार डाला।
फ्राँस के वारेन क्रीस्टोफ का घोड़ा सफर में घायल हो गया। उसे वह कंधे पर लाद कर डेढ़ मील दूर पशु चिकित्सालय तक ले गया। घोड़े का वजन 424 पौण्ड था।
एक असाधारण पहलवान कीवेस्ट का निवासी पीटर जेकक्स था, जिसने दो आदमियों को हाथों पर बिठाकर लम्बी दूरी तय की।
संसार में तीर से गेंडे का शिकार करने वाला एकमात्र व्यक्ति अफ्रीका का इमेस था। उसकी भुजाओं में इतनी शक्ति थी कि उसका तीर एक इंच मोटी खाल पार करता हुआ दो फुट भीतर घुस गया था। पहले के लोगों का साहस भी देखते ही बनता था। स्पेन के सेनाधिकारी रोडिगो पान्स को शेरों के एक झुण्ड के कटघरे में से हाथ के दस्ताने निकालने के लिए छलाँग लगानी पड़ी। शेर सकपका गये और सेनापति दस्ताना लेकर सकुशल वापस लौट आया।
ननवग्र जर्मनी के एक कैदी माँलीजन को फाँसी की सजा मिली। उसने मरने से पूर्व अंतिम इच्छा प्रकट की कि उसे अपने घोड़े पर एक बार चढ़ लेने दिया जाए। स्वीकृति मिल गई। कैदी ने घोड़े पर चढ़ते ही 12 फुट ऊँची दीवार छलाँगी, 30 फुट की खाई पार की और ऐसा भागा कि फिर कभी पकड़ में न आया।
ये घटनाएँ एवं प्रसंग बताते हैं कि अब से कुछ ही समय पूर्व लोग कद में लम्बे, वजन में भारी, अधिक खाने वाले और अधिक पराक्रम करने वाले तथा दीर्घजीवी होते थे। उनकी हिम्मत और बहादुरी भी बढ़ी-चढ़ी थी। यह उनकी जीवनी शक्ति की बहुलता थी, जो प्राकृतिक रहन-सहन तथा अस्तित्व के समग्र विकास का प्रयत्न करने पर ही उपलब्ध होती है। इस ओर उपेक्षा बरतने पर ही उपलब्ध होती है। इस आरे उपेक्षा बरतने से ही आज हम स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत कुछ खोते व खोखले होते चले जा रहे हैं।