Magazine - Year 1991 - Version 2
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Language: HINDI
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आदर्श-पथ
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नये निर्माण के इस यज्ञ में समिधा बनो साथी।
बड़ा ही सुख मिलेगा गंध बन जग में बिखरने में ॥
हुए हम इकट्ठा युग नया निर्माण करने को।
शिवम् सत् सुन्दरम् से मनुजता का प्राण भरने को॥
मगन मन हो गया था लोकहित का लक्ष्य वरने में ॥
घरों में जाओगे जब ज्ञान का संदेश नव लेकर।
मिलेगा देवदूतों सा तुम्हें सम्मान और आदर॥
समय का पुण्य है फैला हुआ अज्ञान हरने में॥
चलें हम अग्रगामी बन, नये निर्माण के मग में।
भले चुभ जाये काँटे या फफोले ही पड़े पग में॥
मगर संतोष मिलता है जगत का काम करने में॥
जरा सोचो किसी घर में अँधेरा ही अँधेरा हो।
बहुत ही दूर सुख सौभाग्य का दिखता सवेरा हो॥
मिलेगा सुख वहाँ पर आस का एक दीप धरने में॥
चला है सूख साथी! संस्कृति का विमल जल पनघट।
पुनः मृग स्वर्ण का बनता, उतरता द्रौपदी का पट॥
भलाई है पवनसुत या कि अर्जुन बन सँवरने में ॥
वही है ज्ञान की गंगा नये निर्माण का जल है।
कराएँ हम सभी को प्राप्त यह कर्त्तव्य का पल है॥
कि कोई भी मनुज चूके न गागर आज भरने में ॥
सदा होता रहा है यह कि जब भी युग बदलता है।
मनस्वी ही हमेशा युग पुरुष के साथ चलता है॥
मरण जीवन बनेगा लोकहित की राह मरने में॥
-माया वर्मा