Magazine - Year 1991 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
देव संस्कृति को विश्वव्यापी बनाने का संकल्प
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
प्रज्ञा पुरुष परम पू. गुरुदेव ने अपना सारा जीवन, सारी शक्ति, सिद्धियाँ सामर्थ्य देव संस्कृति के पुनरुद्धान के लिए होम दीं। इस तपश्चर्या के ही पुण्य फल हैं कि सृजन शिल्पियों का विश्वव्यापी देव परिवार संगठित हो गया है। इस समर्थ संगठन शक्ति के समर्पण और सेवा भावना को आज हर विचारशील सर्वोपरि मान रहा है। कोटि कोटि अंतःकरण आज देव संस्कृति को विश्वव्यापी बनाने के लिए उसी तरह मचल रहे हैं जिस तरह ग्वाल-बाल गोवर्धन पर्वत उठाने और रीछ-वानर दुर्भाव और दम्भ की लंका जलाने के लिए मचले थे।
इस संदर्भ में समूचे वर्ष 1992 में गुरुदेव की लेखनी से निस्सृत संदेश, देवसंस्कृति के मूल भूत सिद्धाँत, धर्म व दर्शन, देव संस्कृति की जननी महामाया गायत्री, पर्व संस्कार, साधनायें, परम पू. गुरुदेव के आद्योपाँत साहित्य, मिशन के विश्वव्यापी स्वरूप का परिचय और भावी कार्यक्रमों के क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण की रूपरेखा बनायी गयी हैं ताकि लोग अनुभव कर सकें- देवसंस्कृति कितनी विज्ञान सम्मत, बुद्धिसंगत और मानवीय प्रगति और प्रसन्नता का आधार रही है। अखण्ड ज्योति का कलेवर तो उतना ही रहेगा, पर इस वसंत पर्व से अंक विशेषाँक जैसे संग्रहणीय होंगे। इसे देवसंस्कृति का समग्र परिचय-प्रशिक्षण समझा जाना चाहिए।
इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि आज इस महान तत्वदर्शन से अपनी पीढ़ियाँ तो दूर जिन कंधों पर उसे संभाले रखने का भार और उत्तर दायित्व डाला गया है वे ही सर्वथा अपरिचित और अनभिज्ञ है। इसलिए पहली आवश्यकता तो यह है कि इसे देश के कोने कोने में प्रत्येक भाषा के प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति तक पहुँचाया जाय। अखण्ड ज्योति सात भाषाओं में छपती है, उनमें तो यह सभी सामग्री यथावत अनुवाद प्रकाशित होगी पर अभी तक जिन भाषाओं में अखण्ड ज्योति छपती नहीं उसमें भी पुस्तकाकार सामग्री देने का प्रयास किया जायेगा। इसके लिए शाँतिकुँज में तैयारियाँ की जा रही हैं। सामग्री, संचयन, संपादन, अनुरूप चित्रों, ग्राफों के संदर्भ प्राप्त करने, डिजाइनों और ब्लॉक आदि बनवाने, अन्य भाषाओं के अनुवाद में तथा उपयुक्त छपाई आदि के लिए तत्काल दौड़-भाग प्रारंभ कर दी गयी है।
एक कार्य अपने परिजनों को भी सौंपा जा रहा है, वह है इसका विस्तार। एक से दस की प्रक्रिया अपनाकर इसे सहज ही पूरा किया जा सकता है। दस परिजनों, शिक्षितों, मित्रों, संबंधियों को देवसंस्कृति की महान विशेषताओं से परिचित कराना किसी के लिए भी कठिन नहीं होगा। इसे स्वाभिमान का प्रश्न बनाने और लोगों के पास जाकर अखण्ड ज्योति दिखाकर उसकी उपयोगिता पर चर्चा करने भर की बात है। अनेक लोग तो एक तरह से प्रतीक्षा के प्यासे से मिलते हैं और तुरन्त सदस्य बनने के लिए तैयार हो जाते हैं। विशेष रूप से बुद्धिजीवी वर्ग को उपरोक्त संदेश दिये जाये तो इस वसंत पर्व पर दस नये सदस्यों की श्रद्धाँजलि समर्पित करना किसी के लिए कठिन नहीं होगा।
वर्ष 1992 का वसंत पर्व 8 फरवरी को है। अपने परिजन, अपने बालक, अपना भावावेग छोड़ नहीं पाते और बड़ी संख्या में वसंत पर्व पर शाँतिकुँज श्रद्धा सुमन चढ़ाने आते हैं। आत्मीय कुटुम्बियों को उसके लिए मना करना तो संभव नहीं पर यदि यहाँ न आकर परिजन अपनी उपरोक्त श्रद्धांजलि समर्पित करेंगे तो यह मिशन, देव संस्कृति और समूचे राष्ट्र व विश्व के लिए कल्याणकारी होगा। देव संस्कृति को विश्व व्यापी बनाना है तो आइये इस संकल्प, श्रद्धाँजलि में हम सब भागीदार बनें।
*समाप्त*