Magazine - Year 1991 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
एक सरल किन्तु समग्र उपचार पद्धति
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
ब्रिटेन के मूर्धन्य चिकित्सा विज्ञानी डॉ. हैरी एडवर्ड्स ने अपनी कृति “टुथ अबाउट स्प्रिचुअल हीलिंग“ में इस चिकित्सा पद्धति के सिन्द्धातों और विधियों का उल्लेख करते हुए बताया है कि आध्यात्मिक चिकित्सा एक निश्चयात्मक विधि है और इसका परिणाम भी तर्क संगत है। इस उपचार पद्धति का मूल आधार सिद्धाँत है - मनुष्य को उसके उद्गम स्त्रोत से जोड़ना उसके और सृष्टा के बीच उचित संबंधों को पुनः स्थापित करना । प्रायः मानवी मनः असंतुलित, उद्विग्न तथा शोक संतापो से भरा रहता है। उसमें रहने वाली दुश्चिन्ताएँ, कुँठायें, उलझने, ग्रंथियों और चिंतन की विकृतियाँ ही चित्त पर अपना डेरा जमाये रहती हैं परिणाम स्वरूप शारीरिक एवं मानसिक बीमारियाँ मनुष्य को घेरे रहती हैं। साथ ही मानसिक विकृतियाँ चेतना क्षेत्र पर आवरण बनकर छा जाती हैं। और व्यक्ति का अपनी आत्मा से परम चेतना से एक प्रकार का संबंध विच्छेद सा हो जाता है। इसके मूल में मानसिक विकृतियाँ ही विद्यमान रहती हैं और वही रोगोत्पत्ति का निमित्त कारण बनती हैं।
प्रचलित आधुनिक चिकित्सा प्रणाली मनुष्य को कुछ रासायनिक तत्वों का योग भर मानकर चलती है और स्वास्थ्य में खराबी के कारण उन रासायनिक संतुलनों-का हार्मोन का गड़बड़ा जाना मात्र समझती है। दवायें, परहेज, उपचार ओर शल्य चिकित्सा आदि सभी उपाय इस लड़खड़ाये संतुलन को साधने के लिए किये जाते हैं। यह रासायनिक संतुलन दवा और उपचार से कुछ समय के लिए स्थापित भी हो जाते हैं। किन्तु समग्र स्वास्थ्य का मूल प्रयोजन इससे नहीं सधता। डॉ. एडवर्ड्स के अनुसार समग्र स्वास्थ्य की सही सिद्धि अपने मूल स्रोत से जुड़ जाने पर ही पूरी होती है। वह मूल स्रोत आध्यात्मिकता या परम चेतना है॥ यही कारण है कि जिन कई रोगों को आधुनिक चिकित्सा असाध्य अथवा दुःसाध्य मानती है, आध्यात्मिक चिकित्सा द्वारा उन्हें बड़ी सरलता से थोड़े ही समय में ठीक कर दिया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति को अपनाकर वर्षों पुरानी पीड़ा दूर होती देखी गयी है। नेत्रहीनों को, जन्मजात अंधों को पुनः नेत्र ज्योति मिलती देखी गयी है।
अपनी उक्त पुस्तक में डॉ. एडवर्ड्स ने ऐसे कई रोगियों के विवरण दिये हैं जिन्हें डॉक्टरों ने लाइलाज घोषित कर दिया था, किन्तु उनने उन्हें आध्यात्मिक चिकित्सा से ठीक कर दिया। लन्दन की एक महिला एलिजाबेथ विल्सन की रोग गाथा और उससे मुक्त होने की कथा का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है कि सन् 1909 में जब वह साढ़े तीन वर्ष की थी, तभी उनकी रीढ़ की हड्डी में दर्द हुआ। फलतः उसे वर्षों बिस्तर पर पड़े रहना पड़ा परन्तु रोग ठीक होने के बजाय गंभीर होता गया। पूरे तीस वर्षों तक वह बिस्तर पर दर्द झेलती रही। चिकित्सकों ने भी हार मान ली और उसे असाध्य घोषित कर दिया। जब उसके अभिभावकों को किसी प्रकार डॉ. एडवर्ड्स के संबंध में ज्ञात हुआ तो उपचार के लिए एलिजा को उनके पास ले जाया गया। आध्यात्मिक चिकित्सा से वह कुछ ही हफ्तों में रोग मुक्त हो गयी। इसी तरह लंदन के ही विलियम ओल्सन ‘प्रोजेल्ड स्पाइनलडिस्क’ नामक बीमारी से ग्रस्त थे जिन्हें चिकित्सकों ने लाइलाज घोषित कर दिया था, इस उपचार से वे भी पूर्णतया निरोग होकर सामान्य जीवन व्यतीत करने लगे।
डॉ. एडवर्ड्स का कहना था कि आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति सुनिश्चित नियमों और तर्क संगत कारणों के आधार पर अपना प्रभाव उत्पन्न करती है। इसका उद्गम आत्मिक जगत के अभौतिक आयाम हैं और किसी भी अभौतिक अथवा अलौकिक विषय को भौतिक और लौकिक भाषा में या शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। चूँकि हर बात का कोई न कोई कारण होता है और हर परिवर्तन के लिए किसी न किसी शक्ति का उपयोग किया जाता है, अतः अध्यात्म चिकित्सा के लिए भी एक विशेष प्रकार की समझ आवश्यक है। रोगोत्पत्ति के मूल में पहुँच कर ही उसका सफल निदान किया जा सकता है।
अध्यात्म चिकित्सा पद्धति पूर्णतः वैज्ञानिक और एक मात्र सच्चाई है। उपचार की इस समग्र किन्तु अति सरल पद्धति को जिस प्रकार सफलता मिल रही हैं उसे देखते हुए यह आश्चर्य नहीं मना जाना चाहिए कि अगले दिनों प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों की तुलना में अध्यात्म चिकित्सा को ही सर्वोपरि महत्ता मिलें।