Magazine - Year 1991 - Version 2
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Language: HINDI
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परोक्ष जगत से जुड़ा-पिरामिडों का ज्ञान-विज्ञान
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मनुष्य की शक्ति असीम है। शरीर बल में वह सीमित अवश्य है, पर आत्मबल, मनोबल एवं प्रतिभा-पुरुषार्थ में वह असीम और असाधारण है। प्रतिकूल परिस्थितियों एवं साधन-सुविधाओं के अभाव में भी वह अपनी आकाँक्षाओं और संकल्पों को पूरा कर सकता है। विश्व में सदियों पूर्व विनिर्मित जहाँ-तहाँ ऐसी अनेकों संरचनाएँ बिखरी पड़ी हैं जो मानवी पुरुषार्थ का बुद्धि कौशल का परिचय देती हैं। मिश्र के पिरामिड इनमें से एक हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि मानवी सभ्यता का प्रतिनिधित्व करने वाले कुशल शिल्पियों ने इन बहुउद्देशीय भवनों का निर्माण किया था। नीरव विराट रेगिस्तान में विशालकाय चट्टानों को सुदूर पर्वत श्रृंखलाओं से लाकर उनसे ज्यामितीय प्रक्रिया द्वारा वृहदाकार पिरामिडों के निर्माण भूतकालीन मानवी पराक्रम का साक्ष्य तो प्रस्तुत करते ही हैं, साथ ही उन्नत एवं प्रगतिशील कहे जाने वाले आधुनिक विज्ञानवेत्ताओं के लिए अनुसंधान के विषय बने हुए हैं। आश्चर्यचकित करने वाले इन निर्माणों की दिशा धारा को अभी तक पुरी तरह से समझा नहीं जा सका है।
‘पिरामिडोलॉजी’ नामक एक विशुद्ध विज्ञान का विकास आज इन्हीं संरचनाओं के रहस्यों को समझने के लिए किया गया है। इसके प्रवक्ताओं का मत है कि पिरामिडों के विशिष्ट आकार-प्रकार में अलौकिक शक्ति छिपी पड़ी है। इनकी आकृति इतनी मायावी है कि उसे लिखित ब्रह्माण्ड का मानव कृत लघु संस्करण कहा जा सकता है। उसमें सूक्ष्म ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का बहुलता से एकत्रीकरण होता है जो जीवित तथा निर्जीव पदार्थों को प्रभावित किये बिना नहीं रहती। कुछ अन्वेषणकर्ताओं का कहना है कि इन्हें लोकोत्तर वासियों ने विनिर्मित किया था, तो कुछ का मत है कि इन्हें भवनकला विशेषज्ञों ने बनाया है, जो ज्योतिर्विज्ञान और भौतिकी के निष्णात विद्वान थे।
डॉ. विलशुल, एडपेटिट, डॉ. टाम्पकिन्स, डॉ. पीटर जैसे विख्यात वैज्ञानिकों ने पिरामिडोलॉजी पर गहन अध्ययन किया है। इनका निष्कर्ष है कि पिरामिड के अन्दर कुछ विलक्षण प्रकार की शक्ति तरंगें काम करती है जो जड़ और चेतन दोनों को प्रभावित करती हैं। प्रयोग परीक्षणों में पाया गया है कि इन संरचनाओं के अन्दर नीचे के एक तिहाई ऊपर के दो तिहाई भाग के जंक्शन पर पुराने सिक्के एवं रेजर ब्लेड रखने पर शक्ति के प्रभाव से क्रमशः सिक्कों पर चमक एवं ब्लेड पर तेज धार आ जाती है। लम्बे समय तक रखे जाने पर भी दूध खराब नहीं होता, वरन् वह बाद में स्वतः ही दही में बदल जाता है, पर फटता नहीं।
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार पिरामिड आकार में वस्तुओं को जल शुष्क करके खराब होने से बचाये रखने की अद्भुत क्षमता है। इसमें रखे गये फूल एवं पत्तियां जल हीन होकर ज्यों के त्यों बने रहते हैं। न तो वे मुर्झाते हैं और न ही उनका रंग उड़ता है। इसी गुणवत्ता के कारण मिस्र के पिरामिड में अब से ढाई सहस्राब्दी पूर्व रखी गई वस्तुएँ यथावत पायी गयी हैं।
“वेव्स फ्राम फार्म्स “ नामक अपनी कृति में फ्रान्स के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एल. तूरेने ने कहा है कि ब्रह्मांड से अपने अनुकूल एवं प्रभावशाली ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए ही सम्भवतः पिरामिडों की संरचना वास्तुविज्ञान विशारदों द्वारा की गई थी। इनका निर्माण मात्र मिस्र में ही नहीं हुआ, वरन् ऐसी संरचनाएँ दक्षिण अमेरिका, चीन, साइबेरिया, मैक्सिको, कम्बोडिया, फ्राँस, इंग्लैण्ड आदि देशों में भी पाई गयी है। नील नदी के तट पर लगभग एक सौ पिरामिड फैले हुए हैं। काहिरा के गीजा पठार पर एक वर्ग मील के दायरे में पिरामिडों के त्रिकोणकार पहाड़ खड़े हैं। इनमें ‘खूफू का पिरामिड सबसे पुराना एवं आकार में बड़ा है। आधुनिक वास्तु शिल्पियों एवं विज्ञानवेत्ताओं का ध्यान इन दिनों इस ओर विशेष रूप से आकृष्ट हुआ है और वे इस अध्ययन-अनुसंधान में निरत हैं कि भवनों की संरचनाओं के आकार का मानव स्वास्थ्य एवं मनः संस्थान पर क्या प्रभाव पड़ता है? व्यस्तता एवं तनावग्रस्तता भरे इस तकनीकी युग में इस तरह के निर्माणों में लोगों को बसा कर क्या उन्हें तनाव से मुक्ति दिलाई जा सकती है? एल. तूरेने इसका उत्तर ‘हाँ’ में देते हुए कहते हैं कि पिरामिडनुमा भवन चाहे वह चौकोर हो अथवा गोलाकार, विभिन्न प्रकार की ब्रह्माण्डीय तरंगों को आकर्षित कर अपना प्रभाव शरीर और मन पर अवश्य डालते हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि सभी पिरामिड उत्तर-दक्षिण पर बने हैं। यह भी एक वैज्ञानिक रहस्य है जो बताता है कि भू चुम्बकत्व एवं ब्रह्माण्डीय तरंगों का इस विशिष्ट संरचना से निश्चय ही कोई सम्बन्ध है। उत्तर-दक्षिण गोलार्द्धों को मिलाने वाली रेखा पृथ्वी की चुम्बकीय रेखा है। चुम्बकीय शक्तियाँ विद्युत तरंगों से सीधी जुड़ी हुई हैं जो यह दर्शाती हैं कि ब्रह्मांड में बिखरी मैग्नेटोस्फीयर में विद्यमान चुम्बकीय किरणों को संचित करने की अभूतपूर्व क्षमता पिरामिड में है। यही किरणें एकत्रित हो कर अपना प्रभाव अन्दर विद्यमान वस्तुओं या जीवधारियों पर डालती हैं। इन निर्माणों में ग्रेनाइट पत्थर का उपयोग भी सूक्ष्म तरंगों को को अवशोषित करने की क्षमता रखता है।
एक संभावना यह भी व्यक्त की गई है कि इन पिरामिडों का निर्माण ज्योतिर्विज्ञान के आधार पर किया गया है, जिसमें मानव जाति को लाभान्वित करने का उद्देश्य सन्निहित था। देखा गया है कि पिरामिड के अन्दर उत्पन्न ध्वनि तरंगें जब प्रतिध्वनित होकर वापस लौटती है, तो उनकी तरंगदैर्ध्य में परिवर्तन आ जाता है और उसके प्रभाव से अन्दर उपस्थित व्यक्ति को तनाव शैथिल्य एवं मानसिक स्फूर्ति की-शान्ति की अनुभूति होती है।
इस संदर्भ में अनुसंधान कर रहे चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि सिर दर्द और दाँत दर्द के रोगी को पिरामिड के अन्दर बिठाने पर वे दर्दमुक्त हो जाते हैं। गठिया, वातरोग, पुराना दर्द भी इस संरचना में संघनित ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के प्रभाव से दूर हो जाते हैं। पेड़-पौधों पर पिरामिड के प्रभाव के अध्ययन से भी यह निष्कर्ष सामने आया है कि एक ही प्रकार के पौधों को अन्दर के तथा बाहर के वातावरण में रखने पर पिरामिड के अन्दर वे कहीं ज्यादा तेजी से पनपते हैं। उसकी ऊर्जा तरंगें वनस्पतियों की वृद्धि पर सूक्ष्म एवं तीव्र प्रभाव डालती है।
पिरामिड के अन्दर रखे जाल का प्रयोग करने वाले पाचन सम्बन्धी अनियमितता से मुक्ति पाते देखे गए हैं। यही जल जब त्वचा पर लगाया जाता है तो झुर्रियाँ मिटा देता है। घावों को जल्दी भरने में भी इस प्रकार का ऊर्जा संचित जल एण्टीसेप्टिक औषधियों की तरह प्रयुक्त होता है। विश्लेषण कर्ताओं का कहना है कि इस प्रकार के जल के अन्दर छिपी हुई सूक्ष्म सामर्थ्य उसमें ऋणायनों की अभिवृद्धि के कारण होती है।
पिरामिड के रहस्योद्घाटन के सम्बन्ध में अनेकों पुस्तकें लिखी गई हैं। टाम्पकिन्स कृत ‘सीक्रेट्स आफ द ग्रेट पिरामिड’ बिलशुल एवं एडपेडिट की ‘दि सीक्रेट पावर आफ पिरामिड,’ टोथ की ‘पिरामिड पावर’ आदि पुस्तकों में इन आकृतियों में छिपी सूक्ष्म शक्तियों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। ‘साइकिक डिस्कवरीज बिहाइण्ड दि आयरन करटेन नामक पुस्तक में कहा गया है कि पिरामिडों के अन्दर विद्युत चुम्बकीय शक्तियाँ होती हैं। यह ब्रह्माण्डीय ऊर्जा इतनी सशक्त होती है कि अन्दर रखे किसी भी पदार्थ को सड़ने नहीं देती। इनके अन्दर हजारों वर्षों से जो शव एक विशिष्ट स्थान पर रखे हैं, वे अभी भी सुरक्षित हैं सड़े नहीं। इसका प्रमुख कारण यह है कि जिस विशिष्ट ज्यामितीय आधार पर उन्हें बनाया गया है, उस कारण उनके अन्दर विशेष प्रकार के ऊर्जा प्रवाह विनिर्मित होते हैं और सूक्ष्म माइक्रोवेव सिगनल्स सतत् प्रकम्पित होते रहते हैं। पूजागृहों की भाँति इन भवनों का निर्माण भी कभी किन्हीं उच्च उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही हुआ होगा, ऐसा विशेषज्ञों का मत है।
पिरामिड के अन्दर बैठ कर ध्यान साधना करने वाले साधकों पर भी कुछ प्रयोग परीक्षण हुए हैं। पाया गया है कि इसके अन्दर बैठने पर तनाव से सहज ही छुटकारा मिल जाता है और शरीर में एक नयी स्फूर्ति के संचार का अभाव होता है।