Magazine - Year 1995 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
प्राण ऊर्जा से ओत−प्रोत है, यह कायपिंजर
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
ताप का मोटा नियम यह है कि अधिकतम ताप अपने संस्पर्श में आने वाले न्यून ताप उपकरण की ओर दौड़ जाता है। एक गरम दूसरा ठण्डा लौह खण्ड सटा कर रखे जाएँ तो ठण्डा गरम होने लगेगा, गरम ठण्डा वे परस्पर अपने शीत व ताप का आदान-प्रदान करेंगे और समान स्थिति में पहुँचने का प्रयत्न करेंगे बिजली की भी यही गति है। प्रवाह वाले तार को स्पर्श करते ही सारे सम्बद्ध क्षेत्र में बिजली दौड़ जायेगी। उसकी सामर्थ्य उस क्षेत्र में बँटती चली जायेगी।
प्राण विद्युत का प्रभाव भी शीत ताप के सान्निध्य जैसा ही होता है। प्राणवान व्यक्ति दुर्बल प्राणों को अपना बल ही नहीं, स्तर भी प्रदान करते हैं। इनके प्रचण्ड व्यक्तित्व का प्रभाव क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। अपने प्रभाव से व्यक्तित्वों को ही नहीं परिस्थितियों को भी बदलने में सफल होते हैं ऋषियों के आश्रम में सिंह और गाय के प्रेम पूर्वक निवास करने का तथ्य इसलिए देखा जाता था कि प्राणवान ऋषि अपनी सद्भावना से उन पशुओं को भी प्रभावित कर देते थे। महर्षि रमण की गुफा में नियमित रूप से जंगली जानवरों का आना और शाँत भाव से बैठकर वापस चले जाना, इसी प्राण प्रवाह से अनुप्राणित होने का उदाहरण है। बिजली, लोहे-सोने में, संत-कसाई में कोई भेद नहीं करती, वह सब पर अपना समान प्रभाव दिखाती है। जो भी उससे जैसा भी काम लेना चाहे, वैसा करने में उसकी सहायता करती है। पर मानव शरीर में संव्याप्त विद्युत की स्थिति निष्ठा है। वह मात्र शक्तिः ही नहीं, सम्वेदना भी है। विचारशीलता उसका विशेष गुण है। वह नैतिक और अनैतिक तथ्यों का अनुभव करती है।
जीव भौतिकी के नोबुल पुरस्कार प्राप्त विज्ञानी एच. हक्सले एवं एकल्स जिन्होंने मानवी ज्ञान तन्तुओं में काम करने वाली विद्युत आवेग की खोज की है, का कहना है कि निस्सन्देह मनुष्य एक जीता जागता बिजली घर है, किन्तु झटका मारने वाली, बल्ब जलाने वाली सामान्य विद्युत से, प्राण विद्युत असंख्य गुनी परिष्कृत एवं संवेदनशील है। ज्ञान तन्तु एक प्रकार के विद्युत संवाही तार है, जिनमें निरन्तर बिजली दौड़ती रहती है। पूरे शरीर से इन धागों को समेट कर एक लाइन में रखा जाय, तो उनकी लम्बाई एक लाख मील से ज्यादा बैठेगी। विचारणीय है इतने बड़े तंत्र को विभिन्न दिशाओं में गतिशील रखने वाले यंत्र को कितनी अधिक बिजली कि आवश्यकता पड़ेगी।
परा मनोविज्ञानी महिला एलीन गैरट की पुस्तक “अवेयरनेस” में अनेकों शोध विवरण छपे हैं, जिसमें उन्होंने शरीर के इर्द-गिर्द एक विद्युतीय कुहरे का चित्रांकन किया है। वे इस कुहरे के रंगों एवं उभारों में होते रहने वाले परिवर्तनों को विचार के उतार-चढ़ाव का परिणाम मानती है। सोवियत विज्ञानी कोरलियन ने इन कुहरे में हुए परिवर्तन को मात्र विचारों का ही नहीं, शारीरिक स्वास्थ्य का प्रतीक भी माना है। उसके आधार पर अन्तराल में छिपे हुए रोगों के कारण भी परखे गये। इस प्रकार के परीक्षणों में मास्को मेडिकल इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष पावलोव ने विशेष ख्याति प्राप्त की है। उन्होंने रोग निदान के लिए इस अध्ययन को बहुत उपयोगी माना है।
मनुष्य शरीर में विद्युत की तेज तरंगें विद्यमान हैं, यह बात सर्व प्रथम 1969 में फ्राँस से निकलने वाली “मेडिकल टाइम्स एण्ड गजेट” पत्रिका में डॉक्टर द्वारा निरीक्षण के ताजे बयान के रूप में आई। डॉक्टरों ने परीक्षण करके पाया कि एक सात माह के बालक के शरीर के स्पर्श करने पर विद्युत के झटके का अनुभव होता हैं। यह बच्चा थोड़े ही दिन जीवित रहा। मरने से पूर्व उसके शरीर से हल्का नीला प्रकाश प्रस्फुटित हुआ। डॉक्टरों ने इस प्रकाश की तस्वीर भी उतारी पर वे उसका कुछ विश्लेषण न कर सके। मृत्योपरांत मृत शरीर में न कोई गर्मी थी न कोई झटका। इससे यही साबित होता है कि मनुष्य में प्राण विद्युत जैसी कोई शक्ति है चाहे वह ग्रहण किये हुए अन्न से उत्पन्न होती हो या किसी और आकाशस्थ माध्यमों से, पर यह निश्चित है कि यह विद्युत ही जीवन गति और चेतना को धारण करने वाली है।
येल विश्वविद्यालय में न्यूरोलॉजी के प्रो. हेराल्डवर ने प्रमाणित किया है कि प्रत्येक प्राणी एक “इलेक्ट्रो डायनेमिक” आवरण से घिरा है। उसकी चेतनात्मक क्षमता को इसी क्षेत्र के कारण बाहर भागने और दूसरे प्रभावों को पकड़ने की सुविधा होती है। इस विद्युतीय आवरण की शोध में आगे चलकर विज्ञानी लिनयोनाई रोविग्स ने यह प्रमाणित किया कि यह लौह कवच नहीं है, वरन् मस्तिष्क के प्रभाव से उसे हल्का, भारी, गहरा और उथला किया जा सकता है। उसकी कार्य क्षमता घटाई या बढ़ाई जा सकती है।
भौतिक क्षेत्र में विद्युत की अनेकानेक विदित एवं अविदित धाराओं की महत्ता को समझा जा रहा है। इसके प्रभाव से जो लाभ उठाया जा रहा है, उससे भी महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ अगले दिनों मिलने की अपेक्षा की जा रही है। ठीक इसी प्रकार मानवी विद्युत के अनेकानेक उपयोग सूझ पड़ने की सम्भावना सामने हैं।
चैकोस्लोवाकिया पोलैण्ड बुल्गारिया के जीव-शास्त्री मनुष्य की अतीन्द्रिय क्षमताओं के बारे में विशेष रूप से दिलचस्पी ले रहे हैं। उनने पिछले पैंतीस वर्षों में आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त की है। दूरदर्शन, विचार संग्रहण, भविष्य कथन अब पुराने विषय हो गये हैं। उसमें नई कड़ी “सायकोकिनेसिस” की जुड़ा है। इसका संक्षिप्त संकेत पी0 के0................................. जिसका अर्थ है-विचार विद्युत से वस्तुओं को प्रभावित एवं परिचालित करने की सामर्थ्य। जिस प्रकार आग या बिजली के सहारे वस्तुओं का स्वरूप एवं उपयोग बदला जा सकता है, उन्हें स्थानान्तरित किया जा सकता है, वैसी ही सम्भावना इस बात को भी है कि मानव शरीर पाई जाने वाली विशिष्ट स्तर को विद्युत धारा से चेतना स्तर को प्रभावित किया जा सकेगा। इससे न केवल अतीन्द्रिय क्षमता के विकसित होने से मिलने वाले लाभ मिलेंगे वरन् शारीरिक और मानसिक रोग निवारण में भी बहुत सहायता प्राप्त है।
आवश्यकता इस बात कि है कि मनुष्य अपने अन्दर छिपी हुई इस सामर्थ्य को पहचाने एवं उभरने के लिए तदनुरूप प्रयास पुरुषार्थ करें। इस प्रयास में स्वयं को भलाई एवं सामाजिक हित दोनों को सन्निहित हैं।