Magazine - Year 1995 - Version 2
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Language: HINDI
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सतयुग की तैयारी (Kavita)
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दीपयज्ञ से अश्वमेध तक यज्ञों का क्रम जारी है।
इस धरती पर फिर से सतयुग लाने की तैयारी है॥
पीले परिधानों में लगती कितनी प्यारी-प्यारी सी।
बिखराती माधुर्य चेतना है केसर की क्यारी सी॥
हर मन में ममता लहराती, हर तन है अनुशासन में।
सद्गति का वैभव बिखरा माँ गायत्री के शासन में॥
दूर भागने को दुर्मति दुर्जयः दुर्गा हुंकारी है
इस धरती पर फिर से सतयुग लाने की तैयारी है। 1
वंदनीय माँ के चरणों के प्रति असीम अनुराग लिये।
वीर पुत्र चल पड़े सुपथ पर उस में पुण्य पराग लिये॥
नहीं स्वयं सेवक यह केवल यह संस्कृति का प्रहरी है।
जिसके प्रण में उमड़ रही जनहित की गंगा लहरी है॥
दुःख हरने को मातृ रूप में, निश्चय शक्ति पधारी है।
इस धरती पर फिर से सतयुग लाने की तैयारी है॥ 2
अब शिक्षा का अर्थ फलेगा बागों में व्यवहारों के।
सद्भावों के स्रोत सजेंगे रूपों में त्योहारों के॥
परम्पराओं में विवेक की पुनः प्रतिष्ठा जागेगी।
पराधीनता इस समाज से मुँह दुबकाकर भागेगी।
संस्कारों के महापर्व ने कलियुग की मति मारी है।
इस धरती पर फिर से सतयुग लाने की तैयारी है॥3
महामंत्र के कालचक्र का दर्प भरा मुख मोड़ दिया।
कर्तव्यों का बोध नित्य आनंद भर रहा जन-जन में।
बरसाती अनुदान प्रकृति हर निश्छल मन के आँगन में॥
हर मानव भव-सिंधु तर रहा, गुरुवर की बलिहारी है।
इस धरती पर फिर से सतयुग लाने की तैयारी है। 4
कहता है उज्ज्वल भविष्य, जल्दी ही वह दिन आयेगा।
जब यह भारत देश पूर्व सा विश्व गुरु कहलायेगा॥
फिर से इसके मुख मण्डल से ज्ञान-रश्मियाँ फूट रहीं।
द्वेष, ईर्ष्या कलुष, क्लेश की सब करायें टूट रहीं॥
परस रहा देवत्व विश्व को तत्पर हर नर-नारी है।
इस धरती पर फिर से सतयुग लाने की तैयारी है। 5
-देवेन्द्र कुमार ‘देव’