Magazine - Year 1996 - Version 2
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Language: HINDI
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काल से बँधे हम सब
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सारा राजदरबार स्तब्ध था, राज कर्मचारी हैरान। किसी को कल्पना भी न थी कि मुज्जन इतना नीचे गिर जायेंगे। सभी को पता था कि उन्हें महाराज सिन्धु ने किस कदर उठाया उबारा था। गरीबी की दयनीयता, पारिवारिक परेशानियों के कुचक्र से घिरे मुज्ज को उन्होंने न केवल सुविधाएं सुलभ करायीं, बल्कि सैनिक प्रशिक्षण दिलाया और अपना विश्वस्त सहयोगी बनाया। महाराज सिन्धु को जब अकाल मृत्यु पाश में आबद्ध होना पड़ा तो उन्होंने मुज्ज को ही अपने पाँच वर्षीय युवराज का संरक्षक नियुक्त किया। युवराज की बाँह मुज्ज के हाथों में थमाते हुए उन्होंने कहा था-तुम भोज के संरक्षक को मुज्ज, भोज के बड़े होने तक तुम्हीं राज्य व्यवस्था का संचालन करना तथा युवराज को राजनीति की दीक्षा देना।
काफी समय तक तो मुज्ज अपने कर्तव्य मार्ग पर चलते रहे। पर धीरे-धीरे सत्ता की लोलुपता और अधिकार लोभ के छिद्रों ने उनकी सारी निष्ठा, कर्तव्य, राजभक्ति बहा दी। लोभ लोलुपता की आसुरी वृत्ति ने छल−छद्म का सहारा लिया ओर युवराज भोज को मिथ्या आरोपों में निष्कासन दण्ड भोगना पड़ा। राज्य सीमा से निर्वासित अज्ञात प्रदेश में रहने की राजकीय आज्ञा हुई और भोज चल पड़े अवश निरुपाय होकर।
इतने पर भी मुज्ज के मन का काँटा नहीं निकला। युवराज होने के कारण भोज जनश्रद्धा के सहज अधिकारी थे। उसका लाभ उठाकर कहीं वह जन संगठन न करने लगे। संगठित जनशक्ति के आधार पर वह कभी भी मुझे राजसिंहासन से नीचे उतार सकते हैं। इस आशंका से भयभीत मुज्ज ने गौड़ेश्वर वत्सराज को आदेश दिया कि भोज का सिर काट कर उसका कटा हुआ मस्तक लाए ताकि अपने प्रतिद्वंद्वी को मृत देखकर निष्कंटक राज्य सुख भोगा जा सके।
हवाओं की तरंगों में बहकर यह आदेश मंत्री, सभासदों, सामन्तों एवं राजकर्मियों तक जा पहुँचा। सभी हतप्रभ थे और निरुपाय भी। उन्हें नहीं मालुम था कि युवराज इस समय कहाँ है। शिष्ट, शालीन, सद्गुण सम्पन्न, सहज स्नेही स्वभाव के युवराज पर लगाए गए आरोपों पर किसी को विश्वास न था। सभी इसे मुज्ज की राजनीतिक चतुराई मान रहे थे। पर सभी विवश थे। हर एक का मन अंतर्द्वंद्व में उलझा हुआ था।
उलझनों के चक्रव्यूह में तो घिरे थे वत्सराज भी। जो इस समय अपने तीव्रगामी रथ पर सवार होकर उस ओर जा रहे थे, जिधर भोज ने प्रस्थान किया था। लम्बी यात्रा पूरी करने के बाद भुवनेश्वरी वन के मध्य में भोज को पकड़ा जा सका। भोज के निष्कपट चेहरे को देखकर वत्सराज का मन राजा मुज्ज के आदेश पालन एवं मानवीय सम्वेदनाओं के झूले में झूलने लगा। इसी असमंजस की स्थिति में वत्सराज ने भोज को राज्यादेश कह सुनाया कि मुज्ज राजसिंहासन का पूरा अधिकार निःशंक निश्चिन्त होकर भोगना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने आपके वध की आज्ञा दी है।
तो विलम्ब क्यों करते हो गोड़ेश्वर। भोज ने कहा। तुम्हें जिस कार्य के लिए नियुक्त किया गया है उसे पूरा करो।
वन की नीरवता में कृष्ण पक्ष की अंधियारी रात काली चादर ओढ़े मृत्यु के समान लगती थी। वत्सराज के हाथों में चमकती तलवार उस समय ऐसी लग रही थी। जैसे मृत्यु भी निरपराध का वध करने में सहम रही हो। फिर न जाने क्या हुआ कि वत्सराज के हाथों से तलवार छूट गयी और वह कुमार से लिपटकर कहने लगा-’मैं भी मनुष्य हूँ कुमार! ममता, वात्सल्य से पूरित हृदय वाला मनुष्य और उन्होंने कुमार को अंक में भर लिया।
प्रातः होते ही वह वहाँ से चल दिए। अब की बार उनके हाथ में तलवार के साथ एक वटपत्र भी था। जिस पर भोज ने अपने हाथों कुछ लिखा था। दरबार में पहुँचते ही मुज्ज ने उनसे पहला सवाल किया-दिए गए दायित्व को पूरा करने में सफल हुए? वत्सराज ने हिचकिचाहट के साथ धीरे से स्वीकार भावों में सिर हिला दिया और साथ ही एक लिखित एक वटपत्र मुज्ज के हाथों थमा दिया। मुज्ज ने पत्र पर लिखी हुई पंक्तियाँ पढ़ीं, लिखी भोज ने ही थी लिखा था
मान्धाता च महीपति; कृतयुगालंकार भूतोगतः।
सेतुर्येन महोदधौ विरचितः क्वासौदशास्यन्तकः ॥
अन्ये चापि युधिष्ठिर प्रभृतयो याता दिपं भूपते।
नैकेक चापि समं गता वसुमति
मुज्ज! त्वया यास्यति॥
अर्थात्-सतयुग के अलंकार मांधाता, समुद्र में सेतु बनाने वाले भगवान राम और युधिष्ठिर आदि
अनेकों महाप्रतापी राजा हुए। यह धरती उनमें से किसी के साथ नहीं गयी। पर अब ऐसा लगता है मुज्ज। यह तुम्हारे साथ जाएगी।
श्लोक पढ़ कर मुज्ज का न जाने कौन सा मर्मस्थल दग्ध हो उठा। अपनी गलती का भान होते ही वह जोरों से विलाप करने लगा- ‘मैंने क्या कर डाला। इतना बड़ा पाप, महाराज सिन्धु की दिवंगत आत्मा को क्या उत्तर दूँगा? अन्तरात्मा की प्रताड़ना और पश्चाताप की अग्नि ने मुज्ज को विदग्ध कर डाला। उन्हें इस बात का अनुभव हो रहा था कि सब कुछ काल के आधीन है। यह धरती मेरे साथ भी नहीं जाएगी।
इसके बाद जैसे-तैसे वस्तुस्थिति से आवरण हटाया गया। कुमार भोज को सुरक्षित पाकर मुज्ज की व्यथा कुछ कम हुई। सब काल के आधीन है, तो लोभ किसलिए, अनीति क्यों? दुराचरण किस हेतु। मुज्ज ने विधिवत् भोज को राज्यशासन सौंपा और स्वयं तप के लिए प्रस्थान कर दिया।