Magazine - Year 1997 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वासरुपिणौ
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
इस संसार-मरुभूमि में तुम पथिक हो। यहाँ तनिक भी रुकने का मतलब है, राह में झुलस कर नष्ट हो जाना। अपने लिए सद्विचारों का कारवाँ बना लो तथा जीवन्त विश्वास के जल की व्यवस्था कर लो। सभी मृगतृष्णा से सावधान रहो। लक्ष्य वहाँ नहीं है। बाह्य आकर्षणों से भ्रमित न होओ। सरल विश्वास को तोड़ने वाले कपट जाल में फंस कर उसका अनुसरण मत करो। परम विश्वासी शिष्य की भाँति एक उन्मत्त छलाँग लगाकर स्वयं को सद्गुरु के कृपा सागर में डुबो दो।
ओ महान ज्योतिर्मय की किरण ! सरल विश्वास से बढ़कर और कुछ भी तुम्हारे लिए नहीं है। इसी क्षण अपने आप से पूछो, क्या तुम विश्वास करते हो ? पहले स्वयं पर विश्वास करो। आखिर यह सरल, निश्छल एवं वज्र की भाँति वज्र विश्वास ही तो परमशिव है। विश्वास ! विश्वास !! विश्वास !!! सभी कुछ विश्वास पर ही निर्भर करता है। वह विश्वास नहीं जो केवल आस्था मात्र है, किन्तु वह विश्वास है जो दर्शन है। संशय के अतिरिक्त और कोई महापाप नहीं। गीता के उपदेश को अपने अस्तित्व की गहराइयों में अनुभव करो- "संशयात्मा विनश्यति।” संशय को विष के समान त्याग देना सीखो। सबसे बड़ी दुर्बलता संशय है, जो शिष्य को सद्गुरु के अनुदानों-वरदानों से वंचित रखती है।
ओ अमृतपुत्र ! सरल विश्वास से ओत-प्रोत अन्तःकरण में ही सजल भावनाएँ अंकुरित, प्रस्फुटित, एवं विकसित होकर श्रद्धा का रूप लेती हैं। सजल श्रद्धा ही समस्त दिव्यशक्तियों का स्रोत है। विश्व के समस्त महामानव इस सजल श्रद्धा की शक्ति से अभिभूत होकर ही अपने महान लक्ष्य को पा सके। यह शक्ति जो जगन्माता का स्वरूप है, परम शिव से सर्वथा अभिन्न है, उस पर ध्यान करो और तुम से अनायास ही मुक्त होकर उन महाशक्ति की प्रेरणा ग्रहण कर सकोगे। उनके दिव्य वात्सल्य के सुख को सहज अनुभव कर पाओगे।
सरल विश्वास और सजल श्रद्धा-प्राण और वेद की भाँति परस्पर गुँथे हुए हैं। द्वैत का आभास होने पर भी इनमें सर्वथा अद्वैत है। शिव और शक्ति भला एक दूसरे से भिन्न हो भी कैसे सकते हैं ? स्वयं के अन्तःकरण में इनकी अनुभूति सघन होते ही अपनी अन्तर्दृष्टि के समक्ष प्रखर प्रज्ञा और सजल श्रद्धा की युगल मूर्ति सहज साकार हो उठेगी और सुनायी पड़ने लगेगी गुरुपर्व पर उनकी यह परावाणी-शब्द कहे जा चुके हैं, उपदेश दिये जा चुके हैं। अब कार्य करने की आवश्यकता है। बिना आचरण के उपदेश व्यर्थ है। तुमने बहुत पहले ही अपने संकल्पों तथा अन्तर्दृष्टि को आचरण में नहीं लाया, इस बात का तुम्हारे साथ हमें भी गहरा दुःख है। जब रास्ता मिल गया है तब वीरता पूर्वक आगे बढ़ो। जिसने भी श्रद्धा-विश्वास का अवलम्बन लिया है, वह अकेला नहीं है। ईश्वर ही उसका साथी है, मित्र है, सर्वस्व है। मेरी समस्त शक्तियाँ तुम्हारे साथ हैं आगे बढ़ो और लक्ष्य प्राप्त करो।