Magazine - Year 2001 - Version 2
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Language: HINDI
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मानवी बर्बरता ही कारण है इस महाविनाश का
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जैव विविधता प्रकृति का अनुपम एवं अद्भुत शृंगार है। वृक्ष-वनस्पति एवं जीव-जन्तु प्रकृति में नूतन प्राण का संचार करते हैं। इन्हीं के कारण पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बना रहता है। प्राकृतिक संतुलन ही प्रकृति को समृद्ध एवं विकसित कर सकता है। सृष्टि के सबसे बुद्धिमान प्राणी मानव पर ही इसके संरक्षण का उत्तरदायित्व था। परंतु दुर्भाग्य से वह रक्षक की जगह भक्षक सिद्ध हुआ। मानव ने अपने तथाकथित आधुनिक विकास की नींव जैव विविधता के विनाश पर रखी। शहरीकरण, औद्योगीकरण आदि मानव उद्यमों से जैव विविधता की विनाश-लीला चल पड़ी और आज संसार के समस्त पादप एवं जीव-जंतु तथा सभी जंगल व वन इससे प्रभावित हैं।
जैव विविधता का विनाशचक्र आधुनिकता के विकास एवं विस्तार के साथ ही प्रारंभ हो गया था। पहले यह दर अपेक्षाकृत बहुत कम थी, लेकिन देखते-देखते इस विनाश में भारी वृद्धि हुई हैं। सन् 16 से 17 के बीच प्रत्येक चार साल में एक प्रजाति विलुप्त हुई थी। इसके पश्चात् सन् 1975 तक मानवी निरंकुशता ने इसमें एक हजार से 1 हजार गुना वृद्धि की है। इस तरह सन् 22 तक इस विनाश की दर प्रति घंटे एक प्रजाति होने की संभावना है। रेड डाका बुक के अनुसार प्राणियों में 35 प्रजातियाँ तथा पादप में 22 प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है। जैव विविधता का सर्वाधिक विनाश बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ही हुआ है।
जैव विविधता का उद्गम एवं आश्रयस्थल वन एवं जंगल होते हैं। वन विनाश के साथ ही इनका अस्तित्व संकट में पड़ जाता है। पश्चिमी एंडियन तलहटी में बसा ‘सेंटेनेला’ जैव विविधता के लिए विश्वप्रसिद्ध घाटी के रूप में विख्यात है। सन् 1978 में जेंड्री और हडसन ने इस सुरम्य और मनोरम घाटी का दौरा किया था। एंडीज पर्वत के दोनों ओर 42 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैले इस वन में स्पर और सैड्लस वृक्षों की भरमार थी। हडसन के अनुसार यहाँ पर 1 पादप प्रजातियाँ मौजूद थीं। दुर्लभ प्रकार के आर्किड्स एवं इपीफाट्स यहाँ की विशेषता थी। 1983 तक इस वन के 16 प्रतिशत भाग को काटकर कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित कर दिया गया। इससे जैव विविधता का व्यापक अवसान हुआ, जिसे ‘सेंटेनलीयन अवसान’ के रूप में जाना गया है। अब तो यहाँ की प्रायः समस्त प्रजातियाँ समाप्त हो गई हैं।
‘सैंटेनेलीयन अवसान’ किसी एक क्षेत्र विशेष का उदाहरण मात्र नहीं हैं, वरन् इसे समस्त विश्व में देखा जा रहा है। पैसीफिक द्वीप में पक्षियों के जीवाश्म का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों स्टार आल्सन, हेलेन जेमेन और डेविड स्टीडमेन के अनुसार यहाँ पर पिछले दस वर्षों में पक्षियों का अत्यधिक विनाश हुआ। इन दस सालों में हुए विनाश का अनुपात पिछले सैकड़ों सालों के बराबर है। इस द्वीप में मॉडर्न पोलीनेषीयन जाति के पूर्वज लापिता जाति के लोग निवास करते हैं। प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए ये लोग 3 वर्ष पूर्व फिजी, टोंगा व सोमाओ में आकर बस गए। बाद में इनका प्रवास हवाई द्वीप में हुआ। तोंगा में 1 वर्ष पूर्व जब ये आदिम जाति पहुँची, तो वहाँ पक्षियों की 25 प्रजातियाँ थीं, परंतु आज केवल आठ प्रजाति ही शेष हैं। न्यूजीलैंड और हैंडरसन के 19 कि.मी. के लंबे मोतियों के द्वीप में भी जैव विविधता का अस्तित्व संकट में हैं।
हवाई द्वीप में 1778 में कैप्टन कुक के प्रथम बार आगमन के समय यहाँ पर 5 प्रकार की प्रजातियाँ थीं दो शताब्दी बाद अब केवल 15 प्रजातियाँ बच पाई हैं। शेष 35 प्रकार के पक्षियों की पहचान जीवाश्म के द्वारा होती है। इसमें दुर्लभ किस्म के गिद्ध, बतख, उल्लू आदि शामिल हैं। मानव की बर्बरता एवं नृशंसता ने इन जीवों पर कहर ढाया है। सेटेंनेलीयन अवसान का परिदृश्य अफ्रीका एवं यूरोपियन देशों में भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उत्तरी अमेरिका में 12, वर्ष पूर्व पेलियो इंडियन शिकारी जाति के लोग रहते थे। इन्होंने वनों को काटना प्रारंभ किया। सभ्यता के विकास ने कृषि एवं शहरों की संख्या में वृद्धि की। इसके परिणामस्वरूप जैव विविधता में गंभीर संकट पैदा हो गया। यहाँ अब तक स्तनधारियों को 76 प्रतिशत जातियाँ लुप्त हो चुकी है। दक्षिण अमेरिका में यह संख्या 7 प्रतिशत को पार कर गई हैं। ये विभिन्न प्रजातियाँ प्लिस्टोसीन के अंतिम काल में बहुतायत में थीं। 12, साल पहले पेलियो इंडियन शिकारी प्रतिवर्ष औसतन 16 किसी, जंगल को काटते चले गए और वर्तमान समय में विद्यमान कोलंबियन, इम्पिरीयल तथा वूली नाम के शिकारी लोगों ने तमाम तरह के दुर्लभ पक्षियों का शिकार कर इन्हें समाप्तप्रायः कर दिया है।
‘द डायर्विसीटी आफ लाइफ’ के लेखक एडवर्ड ओविल्सन की मान्यता है कि जैव विविधता की क्षति प्राकृतिक कारणों की अपेक्षा मानवीय नृशंसता के ही कारण होती है। इन्होंने इसकी पुष्टि के लिए बहुत वर्षों पूर्व के काल को उद्धत किया है। उस समय अमेरिका में क्लेवीस जाति के लोग रहते थे। इन बर्बर जातियों ने शताब्दियों तक वन्य जीवों का सफाया किया है। इसके परिणामस्वरूप अधिकांश जीव समाप्त हो गए। पाल मार्टिन के अनुसार न्यूजीलैंड, मेडागास्कर और आस्ट्रेलिया में भी कानव के विकास के साथ-साथ जैव विविधता का विनाश चक्र प्रारंभ हो गया था।
न्यूजीलैंड में 1 एडी में मनुष्य का पदार्पण हुआ। इस दौरान वहाँ पर बड़ी संख्या में पक्षी थे। इसमें से 13 प्रजातियाँ भारी भरकम थीं। इसमें एक मोआ पक्षी का वजन 23 कि.ग्रा. था। लेकिन 18 ई. में अंग्रेजों ने इस द्वीप के ‘फलोराकाना’ को तहस-नहस कर डाला।
मेडार्गास्कर दुनिया का चौथा सबसे बड़ा द्वीप है। यहाँ पर मानव का विकास लगभग 5 एडी पूर्व हुआ। यह द्वीप भी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ पर दुर्लभ किस्म के पक्षी पाए जाते थे। इतिहास प्रसिद्ध ऐपियार्निस के मैक्सीमस नामक पक्षी इसी क्षेत्र का देन है। तीन मीटर ऊँचे इस पक्षी का अंडा फुटबाल जैसा होता था। लेकिन आज अंग्रेजी जीवाश्म ही मिलते हैं। इसी तरह छह से बारह तरह भीमकाय पक्षी आज विलुप्त हो गए।
आस्ट्रेलिया का पूर्वी तट न्यू कैलेडोनिया वन एवं वन्य जीवों के लिए विख्यात है। यहाँ पर 1575 पादप प्रजातियों में से 89 प्रतिशत स्थानीय हैं। फ्रेंच कालोनी के आगमन से यह वन लगभग समाप्तप्रायः हो गया है। अब तो 15 वर्ग कि.मी. यानि कि द्वीप का केवल 9 प्रतिशत भाग ही शेष है। दक्षिणी पश्चिमी आस्ट्रेलिया में 366 प्रकार के पादप पाए जाते हैं। इसमें से 78 प्रतिशत स्थानीय हैं। इसकी एक-चौथाई प्रजातियाँ आज खतरे में हैं। इस प्रकार विश्व के प्रमुख वनों में पाए जाने वाली जैव विविधता के सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि ये सभी खतरे में हैं।
पश्चिमी इक्वेडोर भी कोलंबिया के समान समृद्ध संपन्न रहा है। एंडीज के पश्चिम में स्थित यह घाटी लगभग 1 पादप प्रजातियों से भरी-पूरी है। यह घाटी आर्किड एवं इपीफाइट्स से समृद्ध है। डेनियल जैनेन ने इसे ‘जीवित मृत घाटी’ की संज्ञा दी है। पश्चिमी अमेजन की घाटियाँ भी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं। यह दक्षिण कोलंबिया से बोलिविया तक 5 मीटर चौड़ी व 15 मीटर ऊँची तथा 5 कि.मी. तक फैली है। इसकी विशेषता कोलंबिया व इक्वेडोर के समान है। पिछले चालीस वर्षों में यहाँ की जनसंख्या 45 से तीन लाख तक पहुँच गई है। यदि इसी दर से जनसंख्या बढ़ती गई, तो 9 प्रतिशत जीव एवं वनस्पति अपने आप समाप्त हो जाएंगे।
ब्राजील का अटलाँटिक तट सुरम्य वन के रूप में जाना जाता है। सन् 1832 में चार्ल्स डार्विन इस वन को देखकर बहुत प्रभावित हुए थे। लाखों वर्ग कि.मी. में फैला यह अटलाँटिक वन सचमुच ही धरती का वरदान था। परंतु मानवी नृशंसता एवं बर्बरता ने इसके 9 प्रतिशत भाग को समाप्त कर दिया है। केवल 5 प्रतिशत भाग में जैव विविधता अपनी अंतिम सांसें गिन रही हैं। दक्षिण पश्चिमी आखोरी तट के वन का क्षेत्रफल 1,6, वर्ग कि.मी. में फैला है। यह वन प्रतिवर्ष 2, कि.मी. की दर से कटता रहा। अब केवल 16, वर्ग कि.मी. में ही सीमित रह गया है। प्राकृतिक वनस्पतियों का यह निवास अब अवसान के गर्त में हैं। दक्षिण अफ्रीका का जंगल 89 वर्ग कि.मी. में फैला था। इस वन में 86 पादप प्रजातियाँ पाई जाती थीं। इसमें 73 प्रतिशत स्थानीय हैं। आधुनिक मानव ने इसमें से 26 प्रजातियों को नष्ट कर डाला हैं एवं 15 को अस्तित्व संकट में झोंक दिया है। इसे दक्षिण अफ्रीका की प्राकृतिक विरासत माना जाता है।
श्रीलंका भी जैव विविधता का अच्छा उदाहरण हैं, परंतु यहाँ वन की कटाई प्रतिवर्ष 26 व्यक्ति प्रति कि.मी. की दर से बढ़ रही है। अतः केवल 1 प्रतिशत मूल व नहीं शेष हैं। मलेशिया में 85 प्रकार के पादप पाए जाते हैं। सन् 198 के बाद यह भी गंभीर संकट से गुजर रहा है। इसका आधा भाग अर्थात् 425 प्रजातियाँ खतरे में हैं। फिलीपींस के वनों में भी 71 वृक्ष-वनस्पतियों की प्रजातियाँ मिलती है। आज के आधुनिकीकरण ने वन विनाश किया है। अमेरिका में 2, पौधों में से 213 से 228 प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं। सन् 2 के अंत तक इसकी 68 किस्मों के और समाप्त हो जाने के आसार बढ़ गए हैं। जर्मनी, आस्ट्रिया एवं हालैंड में भी पिछले साठ वर्षों में 4 से 5 प्रतिशत फंजाई समाप्त हो चुके हैं। इसके लिए औद्योगिक क्षेत्रों से निकलते हुए धुएँ को जिम्मेदार माना गया है।
इसी तरह मैक्सिको में कठफोड़वा पक्षी का लगभग सफाया हो गया है। अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको में 133 प्रकार की मछलियाँ पाई जाती थीं। पिछले सौ वर्षों में 27 किस्म की (3 प्रतिशत) मछलियाँ विलुप्त हो गई हैं एवं 265 या 27 प्रतिशत मछलियाँ संकट से गुजर रही हैं। मीठे जल की 2 प्रतिशत मछलियाँ या तो समाप्त हो चुकी हैं या समाप्ति के कगार पर है।
यही नहीं पिछले दो हजार वर्षों में विश्व में कुल पक्षियों का पाँचवाँ भाग समाप्त हो गया है। 11 प्रजातियों में केवल 14 प्रजातियाँ ही शेष हैं। इसमें भी 11 प्रतिशत या 129 खतरे में हैं। सोलोमन द्वीप में 164 प्रकार के पक्षी हैं। सन् 1953 के पश्चात् इनमें से 12 का तो निशान तक नहीं है। मध्य अटलाँटिक अमेरिका में सन् 194 से 8 के बीच प्रवासी पक्षियों में 5 प्रतिशत की कमी आई हैं।
इस तरह देखा जाए, तो समस्त विश्व जैव विविधता के आसन्न संकट से जूझ रहा है। इसका एकमात्र कारण हैं, मानवीय बर्बरता, नृशंसता एवं स्वार्थ। जारेड डायमंड के अनुसार मानवी विकास के साथ जहाँ प्रकृति को समृद्ध करने का प्रयास किया जाना चाहिए था, वहीं मानव ने इसका विनाश करना प्रारंभ कर दिया। अब तो यही प्रचलन बन चुका है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का संदेश देने वाले अपने देश में वन एवं वन्य जीवों को अपनी संस्कृति का अंग माना जाता रहा है। परंतु इस भाव के तिरोहित होते ही यहाँ भी वही विनाश का परिदृश्य है। सादगी भरे जीवन का विस्तार एवं मानवी सहिष्णुता ही इस विनाश लीला को रोक सकता है। मनुष्य, प्रकृति एवं जीवों में संतुलन बना रहे, तभी हम सुखी रह सकते हैं।