Magazine - Year 2002 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
देव दक्षिणा की परिणति : एक आदर्श ग्राम
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
‘सात्विक जीवनम् अमृत फलप्रदम’ यह संस्कृत सुभाषित पुरातन ऋषियों की सुदीर्घ जीवन साधना का निष्कर्ष है। इसे जब भी कोई जहाँ भी चाहे अपने प्रायोगिक जीवन की कसौटी पर सत्यापित कर सकता है। सात्विक जीवन का विस्तार जितना होगा, इसके अमृत फल भी उतने ही व्यापक होंगे। व्यक्ति गत, पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में इसके प्रयोगों के अनुरूप व्यक्ति , परिवार एवं समाज इसके सत्परिणामों से धन्य होते हैं। उत्तरप्रदेश में सहारनपुर जनपद के देवबंद कस्बे के उत्तर−पूर्व में बसे मिरगपुर गाँव के लोग सामूहिक रूप से पिछले साढ़े चार सौ वर्षों से इस सचाई को अनुभव कर रहे हैं।
इस गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि करीब साढ़े चार सौ साल पहले एक उच्चकोटि के संत बाबा फकीरा ने गुरु दक्षिणा के रूप में गाँव वालों से कभी भी माँस−मदिरा व तामसिक पदार्थों का सेवन न करने की प्रतिज्ञा कराई थी। तब से यहाँ माँस, शराब व अंडे की बात तो छोड़िए, गाँव का कोई भी वृद्ध, युवक या बालक, स्त्री अथवा पुरुष, यानि कि गाँव का कोई भी रहने वाला बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, सुल्फा, चरस, गाँजा, अफीम तो क्या लहसुन व प्याज तक का सेवन नहीं करता। अपने किसी रिश्तेदार या मित्र की भावभगत में यहाँ धूम्रपान की बात नहीं करता। मिरगपुर गाँव के लोग बाबा फकीरा को दिए गए वचन के अनुसार पीढ़ी−दर−पीढ़ी उसी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए सात्विक जीवन जी रहे हैं। बावा फकीरा में लोगों की अटूट आस्था है। वह पूरे गाँव के देवता हैं। गाँव में होने वाले प्रत्येक शुभ कार्य में चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामाजिक, गाँववासी बाबा की कृपा अनुभव करते हैं।
सात्विक खान−पान व रहन−सहन का शरीर, स्वास्थ्य व आचरण पर कितना असर पड़ता है, यह अहसास मिरगपुर वासियों को देखकर अपने आप ही हो जाता है। यहाँ के लोगों की मिलनसारिता, सहयोगी स्वभाव व उनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व के सभी कायल हैं। नदी किनारे ऊँचे टीले पर बसा मिरगपुर सात्विक आचार−विचार व आवभगत में अपनी अलग ही छाप छोड़ता है। यहाँ के लोग गोरे−चिट्टे, लंबे कद व स्वस्थ शरीर वाले हैं। साफ सुथरी वेशभूषा के नाते भी इलाके में मिरगपुर के व्यक्ति अलग ही पहचाने जाते हैं। गुर्जर बहुल इस गाँव में सभी जातियों के लोगों का सात्विक खान−पान की सात्विक एकरूपता में मिरगपुर का कोई सानी नहीं है।
अपनी अलग पहचान वाले इस गाँव पर पिछले साढ़े चार सौ वर्षों में बाबा फकीरा की कृपा−छाया है। गाँव के बाहर फकीरा बाबा की समाधि है। इसे सिद्धकुटी कहा जाता है। लोग यहाँ आकर मन्नतें माँगते और अपनी तमन्नाएँ पूरी करते हैं। शिवरात्रि से तीन दिन पहले सिद्धकुटी पर इलाके का मेला लगता है। जितना अनूठा मिरगपुर है, उतना ही अनूठा यहाँ का सिद्धकुटी मेला है। मेले के अवसर पर सभी लोग अपनी रिश्तेदारियों में चिट्ठियाँ भेजकर उन्हें बाकायदा आमंत्रित करते हैं। ससुराल गई लड़कियों व मायके गई बहुओं को इस दिन के लिए खासतौर पर उनके यहाँ जाकर लाया जाता है। आस−पास के शहरी भी इस मेले की आध्यात्मिक उमंगों में सराबोर होने के लिए आते हैं।
इस दिन मिरगपुर का कोई घर ऐसा नहीं होता, जिसमें देशी घी का हलुआ न बनता हो। सुबह से शाम तक गाँव के घर−घर में मेहमानों की दावतें होती हैं। सिद्धकुटी पर भंडारे का इंतजाम किया जाता है। पूरा गाँव अध्यात्मिक रसानुभूति में डूब जाता है। अपनी सात्विक एवं आध्यात्मिक जीवन शैली के बल पर इस गाँव के लोगों ने बहुआयामी विकास किया है। विकास की दृष्टि से शासकीय मानक के अनुसार यह एक आदर्श गाँव है। सुख−समृद्धि एवं सुरक्षा की दृष्टि से इसे श्रेष्ठ मानक के रूप में पहचाना जाता है। सात्विक जीवन से प्राप्त होने वाले सभी अमृत फल यहाँ के निवासियों को सहज सुलभ हैं। इस अमृत फलों की प्राप्ति अन्य लोग भी सात्विक एवं आध्यात्मिक जीवन की रीति−नीति अपनाकर कर सकते हैं।