Magazine - Year 2002 - Version 2
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Language: HINDI
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गुरुसत्ता के चरणों में समर्पित होंगे हीरकमाल
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संगठन-सशक्तीकरण का जोन वर्गीकरण का महापुरुषार्थ
विश्व में जब भी महत्वपूर्ण स्तर के सुधार-संशोधन के कार्यक्रम चले हैं, युग समस्याओं का समाधान खोजा गया है, तो वह संगठनात्मक पुरुषार्थ द्वारा ही संपन्न हुआ है। संगठन की शक्ति अपार होती है, जिसके साथ संघ बल होता है, उसके पीछे अन्य बल उसी प्रकार फिरते हैं, जैसे सूर्य के आस-पास नवग्रह परिक्रमा लगाते हैं। गायत्री परिवार रूपी संगठन इसीलिए अपना एक स्थान राष्ट्रीय स्तर पर रखता है, सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बना हुआ है, आशावाद का प्रतीक है एवं इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य का उद्घोष सभी को स्पष्ट सुनाई देता है। प्रस्तुत वर्ष संगठन-सशक्तीकरण वर्ष है। यह प्रक्रिया साधना की धुरी पर चलते हुए एक लंबी 75 वर्ष की यात्रा पूरी करने के बाद की जा रही है। निश्चित ही इस पुरुषार्थ में साधना प्रधान हैं, इसीलिए इसके सशक्त होने की संभावनाएँ सुनिश्चित दिखाई देती है।
परमपूज्य गुरुदेव ने ‘अखिल विश्व गायत्री परिवार’ रूपी इस संगठन को आत्मीयता-संवेदना-महत्व की धुरी पर खड़ा किया है एवं एक ही संपदा इसके लिए प्रयुक्त की है। यह संपदा है भावनाशीलों का समयदान। गुरुसत्ता के तप ने प्रमुख भूमिका निभाई। उनने अपने भागीरथी तप के साथ लाखों साधकों का तप जोड़ दिया एवं देखते-देखते साँस्कृतिक नवोन्मेष को संकल्पित, लोकमानस के परिष्कार एवं सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन की योजना वाली एक जन मेदिनी खड़ी होती चली गई। परमपूज्य गुरुदेव का संगठनात्मक मार्गदर्शन एवं परमवंदनीया माता जी का आत्मीयता भरा स्पर्श पाकर यह संगठन विराटतर होता चला गया। इसके द्वारा देव संस्कृति दिग्विजय के आश्वमेधिक, वाजपेय स्तर के महापुरुषार्थ संपन्न हुए। दो विराट् महापूर्णाहुतियाँ युगसंधि महापुरश्चरण हेतु आँवलखेड़ा (1995) एवं हरिद्वार (2000) में संपन्न हुई, जिनमें लाखों भावनाशीलों की भागीदारी रही।
अब इस वर्ष की गुरु पूर्णिमा की वेला में हम संगठन के सशक्तीकरण की मध्य वेला से गुजर रहे हैं। इसे करने के लिए हमने प्रखर साधना वर्ष, महापूर्णाहुति वर्ष एवं हीरक जयंती वर्ष जैसी तीन अनुष्ठान विगत तीन वर्षों में किए है। अब सारे भारत व विश्व का संगठनात्मक एकीकरण इस वर्ष करने जा रहे हैं, जो दो वर्ष की अवधि में पूरा हो जाएगा। इस प्रक्रिया के अंतर्गत विकसित,अर्द्ध विकसित एवं अविकसित क्षेत्र को मिलाकर पूरे भारत को छह जानों में बाँटा गया है, ताकि एक विराट् मंथन इन छह क्षेत्रों में केंद्र के मार्गदर्शन तंत्र द्वारा समयदानियों की फौज के माध्यम से संभव हो सके। यह छह जोन इस आधार पर बाँटे गए हैं कि प्रत्येक में कुछ विकसित-समर्थ समयदानियों से भरे क्षेत्र हों, शक्तिपीठें हों या केंद्र के तंत्र हों। विकसित क्षेत्र से समयदानियों की आपूर्ति होती रहे एवं उनके केंद्र-शक्तिपीठें प्रशिक्षण शिविरों की, छावनियों की भूमिका निभाती रहें। यह छह जोन इस प्रकार हैं-
(1) हैदराबाद-नागपुर जोन- इस जोन के अंतर्गत महाराष्ट्र (34 जिले), आँध्रप्रदेश (23 जिले), तमिलनाडु (24 जिले), कर्नाटक (20 जिले), केरल (14 जिले), उड़ीसा (29 जिले), छत्तीसगढ़ के दस जिले एवं मध्यप्रदेश के दक्षिणी भाग के छह जिले शामिल किए गए हैं। कुल मिलाकर 160 जिलों वाला यह जोन सर्वाधिक बड़ा व विराटतम है। इसमें उड़ीसा, छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश के दक्षिणी जिले, महाराज के विकसित क्षेत्र के उत्तरी व मध्य भाग के जिले, मुँबई क्षेत्र तथा आँध्र का नवविकसित क्षेत्र प्रशिक्षण केंद्रों की व समयदानियों की आपूर्ति की महती भूमिका निभाएँगे। जहाँ विशन विगत कई वर्षों से सक्रिय है, वहाँ अब प्रशिक्षण व क्षेत्रीय समयदानी दो स्तरों के कार्यकर्ताओं के निर्माण व सुनियोजन का तंत्र खड़ा किया जाना है। इससे हम सुदूर दक्षिण तक पहुँच सकेंगे एवं 2005 में कन्याकुमारी में एक वृहत् स्तर का कार्यक्रम संपन्न कर सकेंगे। इस पूरे जोन के वर्तमान में दो केंद्र नागपुर एवं हैदराबाद बनाए गए हैं, बाद में इनके 8-10 उपकेंद्र भी बनाए जा सकते हैं।
(2) टाटानगर-सिलिगुड़ी जोन- यह जोन भी काफी बड़ा है। इसमें कुल 105 जिले हैं। उत्तर-पूर्व के सारे क्षेत्र सहित प्रायः दस प्राँत एवं भूटान-नेपाल राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व भी यह करता है। इसमें झारखंड के 18 जिले, पश्चिमी बंगाल के 17 जिले, आसाम के 25 जिले, अरुणाचल प्रदेश के 13 जिले, मणिपुर के 8 जिले, मिजोरम के 2, नागालैंड के 7, त्रिपुरा के 3, मेघालय के 5, सिक्किम के 4 तथा भूटान के 7 जिलों सहित बिहार के पूर्वी भाग के 4 जिले सम्मिलित किए गए हैं, साथ में नेपाल के पूर्वी भाग के 2 जिले भी लिए गए हैं। झारखंड के टाटानगर क्षेत्र एवं पश्चिमी बंगाल के सिलिगुड़ी को इस योजना का प्रशिक्षण केंद्र-छावनी बनाया गया है। बिहार व झारखंड के जाग्रत् क्षेत्रों तथा पं. बंगाल के कोलकाता (दक्षिणी भाग) व सिलिगुड़ी (उत्तरी भाग) से समयदानियों की आपूर्ति की जाएगी। बाद में तिनसुकिया, जीरो, गुवाहाटी, अगरतला तथा ग्रामीण बंगाल में उपकेंद्र बनाए जा सकते हैं।
(3) शाँतिकुँज-मोहाली (चंडीगढ़) जोन- यह उतरी-पश्चिमी सीमा से जुड़ा बड़ा व्यापक क्षेत्र है। इसमें भी लगभग 84 जिले आते हैं। यह क्षेत्र जहाँ उत्तराँचल की हिमालय से लगी सीमाओं को छूता है, वहाँ दिल्ली व पश्चिमी उत्तरप्रदेश के सात जिलों को भी अपने घेरे में लिए है वह पाकिस्तान से लगी पूरी सीमा तक फैला है। इसमें उत्तराँचल के 13 जिले, जम्मू-कश्मीर के 14 जिले, पंजाब के 14, हरियाणा के 11, हिमाचल के 12 तथा राजस्थान के हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर सहित 2 जिले एवं दिल्ली (पूरे राज्य सहित) पश्चिमी उत्तरप्रदेश के 7 जिले हैं। शाँतिकुँज एवं मोहाली शक्तिपीठ (चंडीगढ़) को अभी इनका केंद्र बनाया गया है। बाद में कुरुक्षेत्र, नोयडा, जम्मू शिमला, धर्मशाला, हल्दूचौड़ आदि में इनके उपकेंद्र खोले जाएँगे।
(4) चित्रकूट-आँवलखेड़ा जोन यह मध्य भारतवर्ष का वह क्षेत्र है, जहाँ मिशन बड़े व्यापक रूप में फैला हुआ है, किंतु ग्राम-ग्राम तक पहुँचने के लिए एक व्यापक पुरुषार्थ रचनात्मक स्तर पर अनिवार्य है। इसमें कुल 112 जिले हैं, पर इसमें अधिकाँश विकसित क्षेत्र है। इसमें उत्तरप्रदेश के 51 जिले (तराई व पश्चिमी छोड़कर), मध्यप्रदेश के 35 जिले (दक्षिणी व पश्चिमी छोड़कर), बिहार के 20 जिले (पटना सहित गंगा के दक्षिणी भाग के) तथा छत्तीसगढ़ के 6 जिले (उत्तरी भाग) शामिल किए गए हैं। अभी चित्रकूट एवं आँवलखेड़ा को इनका केंद्र बनाया गया है, किंतु बाद में पटना, कोरबा, भोपाल, गुना, जबलपुर आदि को उपकेंद्र बनाया जा सकेगा।
(5) बस्ती-मुजफ्फरपुर जोन- इसमें नेपाल के सभी 64 जिले, उत्तरप्रदेश के तराई क्षेत्र के 11 जिले तथा उत्तरी बिहार के पाँच जिले इस प्रकार कुल 80 जिले लिए गए हैं तथा बस्ती (उ.प्र.) एवं मुजफ्फरपुर (बिहार) को जोनल केंद्र बनाया गया है। बाद में सहरसा, गोरखपुर अयोध्या, बहराइच को भी उपकेंद्रों के रूप में विकसित किया जा सकेगा।
(6) अहमदाबाद-गाँधीधाम-पुष्कर जोन- यह भी बड़ा सघन व मिशन के प्रभाव की दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जहाँ काफी कार्य किया जा चुका है। इसमें राजस्थान क्षेत्र है, जहाँ काफी कार्य किया जा चुका है। इसमें राजस्थान के 29 जिले एवं गुजरात के 25 जिलों सहित दक्षिण पश्चिमी मध्यप्रदेश के 6 जिले लिए गए हैं। इनके तीन केंद्र क्षेत्र की विराटता व सघनता को देखकर बनाए गए है। अहमदाबाद (क्राँतिकुँज), गाँधीधाम (कच्छ) एवं पुष्कर (अजमेर)। बाद में मेहसाणा, अमरेली, सूरत, चुरु, जोधपुर, राजसमंद तथा कोटा भी उपकेंद्र बनाया जा सकेगा। इसमें दक्षिणी-पश्चिमी म.प्र. के 6 जिलों के तथा गुजरात-राजस्थान के सक्रिय क्षेत्रों के प्राणवान कार्यकर्ता रिसोर्स पर्संस बनेंगे व सारे क्षेत्र का संगठनात्मक मंथन किया जाएगा। इस पूरे जोन में 60 जिले हैं।
रणनीति यह है कि गाँव-तहसील व जिला स्तर पर एक प्रामाणिक तंत्र बने, जो जोन व शाँतिकुँज से सीधा संबंध रखे। शाँतिकुँज के वरिष्ठ कार्यकर्ता इस प्रारंभिक निर्धारण (मार्च अंतिम सप्ताह) के बाद एक वर्कशॉप करके क्षेत्रों के मंथन प्रधान दौरे हेतु निकल गए हैं। वे रणनीति बनाकर लाएँगे व स्थापित किए जाने वाले केंद्रों की सभी व्यवस्थाओं की समीक्षा करेंगे। बाद में इनके साथ बारह-बारह केंद्रीय सहनायक स्तर के प्रतिनिधि तीन-चार माह के लिए इन केंद्रों पर बैठेंगे एवं अपने साथ बारह (न्यूनतम) 4 माह के क्षेत्रीय समयदानियों को लेकर सारे क्षेत्र का मंथन कर प्रशिक्षण सत्रों में भागीदारी करेंगे। शक्तिपीठ, रचनात्मक ट्रस्ट, जिला समन्वय समिति, प्रज्ञा मंडल, महिला मंडल में पारस्परिक समन्वय स्थापित हो तथा एक सशक्त संगठन का स्वरूप प्रत्येक क्षेत्र में बने, यह महापुरुषार्थ मिशन को विराट्-व्यापक एवं सुव्यवस्थित बनाएगा, ताकि हम गुरुसत्ता के चरणों में हीरकमाल भेंट कर सकें।