Magazine - Year 2003 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
विश्व−वसुधा के लिए (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक प्रसिद्ध ज्ञानी नगर के शाँत कोने में रहते थे और जब लेखन से समय बचता तो अपनी फूस की झोंपड़ी के बाहर बैठकर एकतारा बजाया करते थे। एक धनिक उनकी ख्याति सुनकर अपने रथ पर चढ़कर उनसे मिलने आया। रास्ता इतना सँकरा था कि उसे उतरकर पैदल जाना पड़ा। संत अतिथि का स्वागत करने द्वार पर आए। फटे वस्त्र, पत्ते की टोपी, फिर भी चेहरे पर एक दिव्य शाँति व प्रफुल्लता। देखते ही धनिक ने कहा, “ओह, संत, आप इतने दुखी, दरिद्र, संकटग्रस्त।”
संत मुस्कराए और बोले, “मैंने सुना है, धन के अभाव में मनुष्य गरीब भर रहता है परन्तु दुखी वे रहते हैं, जो अज्ञानग्रस्त हैं। बताओ मैं गरीब हुआ या दुखी?” धनिक सिटपिटाए से चुप खड़े रह गए।
संत ने धनिक से कहा, “संतों के पास देने को अपार आत्मिक संपदा है। वे किसी से धन−संपदा नहीं चाहते, वरन्, इच्छुकों को, पात्रों को बाँटते रहने में सदैव प्रसन्नता अनुभव करते हैं। जो याचक है, वह सच्चा संत नहीं। जब भी वह माँगता है, सीधे ईश्वर से, पर अपने लिए नहीं, मानव मात्र के लिए, विश्व−वसुधा के लिए।”