Magazine - Year 2003 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
देवाधिदेव महादेव के ज्योतिर्लिंग की प्राण−प्रतिष्ठा विश्वविद्यालय परिसर में
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मंत्रमहार्णव ग्रंथ में बताया गया है कि कलियुग के प्रधान देवता तंत्राधिपति महाकाल शिव हैं। इसी ग्रंथ में उद्धृत है−
ब्रह्मकृत युगे देवः त्रेतायाँ भगवान रविः।
द्वापरे भगवान विष्णुः कलौ देवो महेश्वरः॥
सतयुग में ब्रह्मा प्रधान देव थे। त्रेता में सूर्य भगवान उपासना के प्रमुख देव हुए। द्वापर में मुख्य रूप से विष्णु भगवान की पूजा की प्रधानता थी। इसी प्रकार कलियुग के प्रधान देव भगवान महादेव−महाकाल हैं।
ऐसे महाकाल की रथयात्रा पुण्यभूमि भारतवर्ष की कुँभनगरी नासिक (महाराष्ट्र), ज्योतिर्लिंगों में एक प्रमुख त्र्यंबकेश्वर, भगवान श्रीराम की पंचवटी एवं पावनतीर्थ शिरडी से होती हुई, मध्य भारत की सतपुड़ा, विंध्याचल श्रृंखलाओं को पार कर, गोदावरी, ताप्ती, नर्मदा, पार्वती, चंबल, यमुना का सान्निध्य पाकर शाँतिकुँज हरिद्वार पहुँच रही है। महाशिवरात्रि की पूर्व वेला में, वसंत के तुरंत बाद। 1, 10, 11, 12 जनवरी की तारीखों में पंचवटी क्षेत्र में गोदावरी तट पर कैलाश मठ, भक्तिधाम में इस ज्योतिर्लिंग का पूजन संपन्न हुआ। साढ़े सात क्विन्टल के नर्मदा तट पर पाए गए ये महाकाल स्वयंभू शिवलिंग के रूप में शाँतिकुँज, गायत्रीतीर्थ में स्थापित होने आ रहे हैं। सुपर्ब मिनरल्स के प्रमुख एवं ‘गारगोटी’ म्यूजियम के मुख्य निदेशक एक पुण्यात्मा श्री कृष्णचंद्र पाँडेय जी ने इसे प्राप्त होते ही शाँतिकुँज के लिए संकल्पित कर लिया था। श्री पाँडेय जी व कैलाश मठ के महामंडलेश्वर श्री संविदानंद जी के हाथों पूजन संपन्न कर एक विराट रथयात्रा 14 जनवरी मकरसंक्राँति की पावन वेला में रवाना हुई हैं। इसका शाँतिकुँज पहुँचने का निर्धारित दिन 13 फरवरी गुरुवार है। इस बीच यह प्रायः सत्ताईस स्थानों से होती हुई आ रही है।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यह महाराष्ट्र की यात्रा पूर्ण कर मध्य भारत के गुना क्षेत्र तक आ चुकी थी। अब वसंत पर्व पर गायत्री तपोभूमि, अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा रहकर यह फरीदाबाद, नोएडा होकर 13 फरवरी की शाम तक शाँतिकुँज आ जाएगी। पत्रिका सबके पास पहुँचने तक यह यात्रा पूरी हो चुकी होगी। भारत इतना बड़ा देश है। इसका एक छोटा−सा क्षेत्र में ही महाकाल की इस भव्ययात्रा का साक्षी बन पाया। मन तो यह था कि सभी उनका दर्शन करते, फिर ये स्थापित होते, पर यह संभव नहीं था, इसीलिए इस पत्रिका से, वीडियो पत्रिका युगप्रवाह द्वारा, अलग से उपलब्ध वीडियो पत्रिका युगप्रवाह द्वारा, अलग से उपलब्ध वीडियो कैसेट/सीडी द्वारा जन−जन को यह ज्ञात होगा कि जन−जन में इस यात्रा ने कैसी उमंगे पैदा की हैं। जन उत्साह किस तरह हिलोरें ले रहा है।
नासिक से शिरपुर तक की यात्रा में चाँदवड़, धुले होकर इस यात्रा ने अपना सफर चार दिन में पूरा किया। सेंधवा के माध्यम से उसका प्रवेश मध्यप्रदेश में हुआ। पावन निमाड−मालवा अंचल के धामनोद, इंदौर, उज्जैन, देवास, शाजापुर राजगढ़, कुँभराज होकर यह गुना पहुँची है। शिवपुरी, झाँसी, डबरा, ग्वालियर, मुरैना, धौलपुर, आगरा, आँवलखेड़ा होकर यह मथुरा पहुँच रही है, जहाँ इसका विश्राम दो दिन रखा गया है। फरीदाबाद, नोएडा, गाजियाबाद, मोदीनगर, मेरठ, मुजफ्फरनगर होकर ब्रह्मकुँड, हर की पौड़ी के समझ से निकल यह गायत्री तीर्थ में प्रवेश कर 27 फरवरी तक यहीं विराजमान रहेगी। 1 मार्च महाशिवरात्रि की ब्राह्ममुहूर्त−वेला में गायत्रीकुँज−देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के केंद्र में इसकी प्राण−प्रतिष्ठा है। इसमें सभी उन परिजनों को आमंत्रित किया गया है, जिन्हें विशिष्ट दायित्व अगले दिनों सँभालने हैं।
इस यात्रा के साथ पाँच वाहन चल रहे हैं। हर जगह उत्साह देखते बनता है। त्रिपुरारि−महाकाल की यह सवारी परिवर्तन का संकेत लेकर आई है। शिवत्व धारण करने का, व्यसनों से मुक्त होकर सद्बुद्धि के मार्ग पर चलने का लाखों लोगों ने संकल्प लिया है। युगसाहित्य विभिन्न धर्म−मतावलंबियों ने पढ़ा व देवसंस्कृति का दिग्दर्शन प्रदर्शनी के माध्यम से किया है। महाकाल से साझेदारी करने हेतु हर किसी का मन मचल रहा है। माना जा रहा है कि युग−परिवर्तन की वेला आ पहुँची। इस ज्योतिर्लिंग की प्राण−प्रतिष्ठा हिमवान् विराट हिमालय के द्वार पर विशिष्ट महत्त्व रखती है। आइए, हम सभी इससे जुड़ें व स्वयं को सौभाग्यशाली बना।