Books - मानवी क्षमता असीम अप्रत्यासित
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Language: HINDI
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अद्भुत चमत्कारी संकल्प शक्ति
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विन्डसर स्टेट (अमरीका) की विधान सभा के सम्मानित सम्माननीय सदस्य क्लेरेंस एडम, राजकीय पुस्तकालय के निर्देशक भी थे। यह पद उन्होंने बड़े यत्न से प्राप्त किया था सो भी केवल स्वाध्याय का शोक पूरा करने के लिये एडम की दिनचर्या में सर्वाधिक घण्टे पढ़ाई के थे। दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य एक दिन क्लेरेन्स एडम के हाथ आगस्टाइन एडम की पुस्तक मैस्मरेजम पर पच्चीस रहस्यमय पाठ (ट्वेन्टी फाइव सीक्रेट लेसंस इन मेस्मरेजिम) और डॉक्टर बर्नहम की हिप्नोटिज्म का इतिहास (हिस्ट्री आफ हिप्नोटिज्म) हाथ लग गईं। पुस्तकें अभी तक पूरी नहीं पढ़ी जा सकी थीं कि एडम के मन में इस विद्या के प्रयोग की तीव्र इच्छा उठ खड़ी हुई। एडम मानवी चेतना की अद्भुत शक्तियों के प्रमाण थे यद्यपि उन्होंने अपराधी जीवन प्रारम्भ कर दिया किन्तु इस बात के प्रमाणीयकरण में कोई त्रुटि नहीं आई कि मनुष्य की प्राण-चेतना सचमुच ही एक आश्चर्यजनक शक्ति है। प्राणशक्ति के प्रयोग से व्यक्ति अद्भुत कार्य कर सकता है। सिद्धियां प्राणशक्ति के ही नियन्त्रण का अद्भुत परिणाम होती हैं।
एडम ने पहला प्रयोग वाटरमैन फ्लावरा मिल में किया। एक दिन घनी रात के अन्धकार में एडम उस मील के फाटक में जा घुसे। न तो सेंध काटी और न ही संतरी को जबरन क्लोरोफार्म सुंघाया। जड़ चेतन किसी को भी प्रभावित कर मन मर्जी के अनुसार काम ले लेना तो अब मात्र उनकी दृष्टि का काम था; हिप्नोटिज्म और मैस्मरेज्म का उन्होंने कुछ इस तरह अभ्यास किया। फ्लावरा मील खजाने का चौकीदार हाथ में रायफल लिये खड़ा था। एडम ने कोई मार-पीट नहीं की। भरपूर दृष्टि डाली चौकीदार के चेहरे पर। नजरें चार हुईं, न जानें कौन सा मन्त्र फूंका एडम ने चौकीदार जहां था वहीं खड़े का खड़ा रहा गया। मानो उस खड़े-खड़े सोने की बीमारी हो गई हो। एडम अब तिजोरी के पास पहुंचा। ताला खोला बिना किसी चाभी के जड़ पदार्थ भी अब उनकी दृष्टि प्रखरता के दास बन गये थे। तिजोरी से 15 हजार डालर निकाले। ताला उसी तरह बन्द कर दिया और बड़े मजे से वहां से चले आये मानो डालर चुराये नहीं हों वरन् अपनी ही सम्पत्ति लेकर निकले हों। चौकीदार अभी तक यन्त्रवत् खड़ा था। एडम के जाने के बाद उसे पता चला कि कोई आया था और तिजोरी की चोरी हो गई। प्रातःकाल पुलिस के सामने उसने बयान दिया—‘‘एक आदमी आया उसने मेरी ओर देखा तो मैं संज्ञाहीन सा खड़ा रह गया उसने सारा काम किया पर मुझे पता नहीं वह कौन था क्यों मैं न तो बोल सका और न ही हिल-डुल सका। चोरी उसने मेरे देखते की पर मुझे ऐसा लगता था कि मेरे ऊपर हल्का-सा धुयें का पर्दा पड़ा हुआ है और मैं उसमें बन्दी हूं कुछ कर नहीं सकता था मैं, जब तक वह व्यक्ति यहां रहा।’’
इस घटना के कुछ ही दिन बाद बिन्डसर के एक जौहरी की दुकान में एक आदमी आया, उसने अपनी विलक्षण दृष्टि से जौहरी को देखा। जौहरी इस तरह निस्तब्ध रह गया मानो वह काष्ठ विनिर्मित हो उस आगन्तुक ने अच्छे-अच्छे जवाहरात, जौहरी और बाजार की भारी भीड़ के बीच अपनी जेब में भरे और वहां से चला गया देखा सबने पर किसी ने न पहचाना, न प्रतिरोध किया, कौन आया, कहां गया यह भी किसी को पता नहीं था पीछे जौहरी से पुलिस ने बयान लिये तो उसने भी वही शब्द दोहराये जो पहले चौकीदार ने कहे।
एक दिन समुद्र की हवा खाने के लिये बिन्डसर के एक करोड़पति अपनी पत्नी के साथ कार पर आ रहे थे उनकी भेंट अनायास ही इस जादूगर से हो गई। उसने उनके सारे जेवर और घड़ियां उतरवा लीं और उन्होंने ऐसे दे दिया मानो उपहार दे रहे हों पीछे जो बयान दिये उन्होंने, वह पहले वाले पीड़ितों के बयानों से अक्षरशः मिलते-जुलते थे। इन खबरों ने एक बार तो विन्डसर राज्य में तहलका मचा दिया। कुबेरों की नींद हराम हो गई। एक मिल मालिक ने तो अपने बंगलें के सभी निकासों पर स्वचालित बन्दूकें लगवा दीं। इन्हीं बन्दूकों के बल पर क्लेरेंस एडग पकड़े जा सके। एक रात वे जब इस बंगले के एक दरवाजे पर पहुंचे और अन्दर प्रवेश का प्रयत्न करने लगे तो बन्दूक ने उन्हें घायल कर दिया। धड़ाके की आवाज सुनकर लोग दौड़े-दौड़े आये। एडम को पहचान कर लोग आश्चर्यचकित रह गये। अदालत में एडम ने अपने ऊपर लगाये गये वह सारे अभियोग स्वीकार कर लिये और यह भी मान लिया कि यह सब उन्होंने सम्मोहन विद्या (हिप्नोटिज्म) के द्वारा किया है।
इन अपराधों के लिए इन्हें दस वर्ष सश्रम कारावास का दण्ड दिया गया और वे शहर की अपेक्षा बिन्डसर की पहाड़ी जेल में भेज दिये गये। जेलर उनकी भद्र वेष-भूषा और सांस्कृतिक रहन-सहन से बहुत अधिक प्रभावित हुआ सो वह एडम के लिये अनायास ही उदार बन गया। इस उदारता का लाभ एकबार फिर एडम को मिला। उसने जेलर की सहायता से अपने लिये कुछ पुस्तकें पढ़ने के लिये प्राप्त करलीं इन्हीं पुस्तकों में उसकी वह दोनों मनचाही पुस्तकें भी थीं। दरअसल अन्य पुस्तकें तो साथ में एडम ने केवल इसलिये मंगाई थीं कि किसी को उस पर शक न हो जाये। यह पुस्तकें उसने अपनी विद्या को आगे बढ़ाने के लिये मंगाई थीं सो एक बार फिर से जेल में ही उसका साधना-अनुष्ठान चल पड़ा और दूसरे लोगों को इस बात की कानों-कान खबर न हुई।
एक दिन दैवयोग से जब एडम अपने कमरे की चीजों पर हिप्नोटिज्म का अभ्यास कर रहे थे तब उन्हें जेल के एक अन्य डॉक्टर कैदी ने देख लिया, उसका भी हिप्नोटिज्म सीखने का मन था। धीरे-धीरे दोनों में बातचीत होने लगी और यही बातचीत एक दिन प्रगाढ़ मैत्री में बदल गई।
किन्तु इन्हीं दिनों एडम बीमार पड़ गये उनका इलाज हुआ पर वे अच्छे हुए ही नहीं। एक दिन अपने डॉक्टर मित्र के कमरे में प्राण त्याग दिये। जेल के डॉक्टर ब्राउस्टर उनकी अन्त्य परीक्षा की और उन्हें मृत घोषित कर मृत्यु का प्रमाण-पत्र भी दे दिया। एडम के भतीजे विलियम डान को वह शव भी सौंप दिया गया। शव ले जाकर विलियम डान ने विन्डसर के कब्रगाह के संरक्षक को सौंप दिया ताकि अगले दिन उसे एक सुरक्षित कब्र में दफनाया जा सके। एडम का शव एक सन्दूक में कफ़न लपेट कर रख दिया गया।
जाड़े के दिन थे, उस दिन तो और भयंकर शीत थी, हिमपात हो रहा था ऐसे समय तीन-चार व्यक्ति उस कब्रिस्तान में प्रविष्ट हुये और जिस पेटी में एडम का शव था उसके पास गये। सन्दूक खोलकर उनका शव निकाला और उसके स्थान पर उन्होंने अपने साथ लाये शव को लिटा दिया। ताला जैसे का तैसा बन्द कर वह लोग बाहर आ गये और घनघोर अन्धकार में न जाने कहां खो गये। इस बार कब्रिस्तान के संरक्षक के साथ भी वही सम्मोहन हुआ वह सब देखते हुए भी कुछ कर न सका पर उसने जो रिपोर्ट दी—उससे यह पता चल गया कि लाश बदली गई और जिसने यह सारा काम किया उसका हुलिया डा. मार्टिन जैसा था। दूसरे दिन एलियास से खबर मिली कि वहां से एक शव की चोरी हो गई है लोगों ने जाकर बदले हुये शव को खुलवा कर देखा पर उसका चेहरा कुछ इस तरह विकृत था कि पहचान में ही नहीं आया जबकि एडम के शव में किसी प्रकार के दाग धब्बे नहीं थे। तो भी यह रहस्य रहस्य ही बना रह गया।
कुछ दिन बीते बिन्डसर का एक नागरिक कनाडा आया। वहां एक होटल में खाना खाने पहुंचा तो यह देखकर अवाक् रह गया कि वहां एडम और डा. मार्टिन दोनों साथ-साथ बैठे भोजन कर रहे हैं। वह बहुत घबराया, जब तक सम्भव कर पुलिस को सूचना दे तक तक वह दोनों व्यक्ति वहां से जा चुके थे। घटना अखबारों में छपी तो एक बार फिर से बिन्डसर के धन कुबेर कांप गये। इस बीच कई स्थानों पर उसके देखे जाने की खबरें मिलीं। सभी खबरें विश्वस्त व्यक्तियों द्वारा दी गई थीं। फलस्वरूप एकबार फिर से पुलिस और सी.आई.डी. विभाग सतर्क किया गया। पर एडम पकड़ा नहीं जा सका। कहते हैं उसने ओझल और अन्तर्धान होने की विद्या जान ली थी यही नहीं उसने अपने शरीर की हर अनैच्छिक किया पर नियन्त्रण प्राप्त कर लिया था। एक क्षण में मर जाना और दूसरे ही क्षण जीकर काम में लग जाना उसके लिए बांये हाथ का खेल था।
आखिरी भेंट एक सी.आई.डी. ऑफिसर से अमेरिका के ही टोरन्टो नगर में हुई। एडम ने अधिकारी से काफी देर तक बातचीत की। जैसे ही पुलिस के सिपाही गिरफ्तार करने के लिए सी.आई.डी. ऑफिसर मौका पाकर आगे बढ़े और उसे चारों ओर से घेरे में लिया, एडम एकाएक अन्तर्धान हो गया। सी.आई.डी. अधिकारी तथा सिपाही एक दूसरे का मुंह ताकते खड़े रह गये। इसके बाद एडवर्ड स्मिथ ने उसका विस्तृत परिचय छापा और स्वीकार किया कि उसके पास कोई अद्भुत योग शक्ति थी जो किसी भी भौतिक शक्ति से कहीं अधिक समर्थ थी किन्तु उसके बाद से आज तक एडम के बारे में कुछ भी पता नहीं चला पाया कि वह कहां गया है, है भी या नहीं और है तो लोगों को दीखता क्यों नहीं? यह घटना भारतीय योगियों की सी सिद्धि और प्राण नियन्त्रण की जैसी घटना है उससे जीवनी शक्ति की विलक्षणता, विलगता और समर्थता का ही प्रतिपादन होता है। पश्चिमी देशों में योग सिद्धि और प्राण नियन्त्रण के भारतीय विज्ञान की अनुकृति ही सम्मोहन तथा मानवीय विद्युत के प्रयोगों के रूप में अपनायी गई। इस विद्या के मूल में मनुष्य की संकल्प शक्ति की प्रगाढ़ता ही काम करती है और वही बल अपने परिमाण के अनुसार पात्र को प्रभावित करता व इच्छानुयायी बनाता है।
मानवी विद्युत का उपयोग
इस विद्या का वशीकरण, मूर्च्छा प्रयोग, दैवी आवेश आदि के रूप में प्रचलन तो पहले भी था पर उसे व्यवस्थित रूप अठारहवीं शताब्दी के आरम्भ में आस्ट्रिया निवासी डॉक्टर फ्रान्ज मेस्मर ने दिया। उन्होंने मानवी विद्युत का अस्तित्व, स्वरूप और उपयोग सिद्ध करने में घोर परिश्रम किया और उसके आधार पर कठिन रोगों के उपचार में बहुत ख्याति कमाई। वे अपने शरीर की बिजली का रोगियों पर आघात करते साथ ही लौह चुम्बक भी आवश्यकतानुसार प्रयोग में लाते। इस दुहरे प्रयोग से न केवल शारीरिक वरन् मानसिक रोगों के उपचार में भी उनने आशातीत सफलता प्राप्त की।
मेस्मर के शिष्ट प्युइसेग्यूर ने प्रयोग को अधिक तत्परतापूर्वक आगे बढ़ाया और उन्होंने चुम्बकीय शक्ति द्वारा तन्द्रा उत्पन्न करने में नई सफलताएं पाईं। यह तन्द्रा मानसिक तनाव को विश्राम द्वारा शान्त करने और अवचेतना के रहस्यमय परतों को खोलने में बहुत कारगर सिद्ध हुई। इस प्रकार चिकित्सक की सहायता के बिना भी कोई व्यक्ति स्वनिर्देशन विधि का उपयोग करके अपनी शारीरिक एवं मानसिक चिकित्सा आप कर सकता है।
सम्मोहन प्रयोग से गहरी निद्रा लाकर गहरे आपरेशन में सफलता सबसे पहले डा. ऐसडेल को मिली। उन्होंने लगभग 30 ऐसे आपरेशन किये। उनके दावे विवादास्पद माने गये। अस्तु सरकारी जांच कमीशन बिठाया गया। कमीशन ने अपनी उपस्थिति में आपरेशन कराये और ऐसडेल के प्रयोगों को यथार्थ घोषित किया। यह प्रक्रिया संसार भर में फैली। फ्रान्स के डॉ. सार्क को इस विद्या से हिस्टीरिया को अच्छा करने में कारगर सफलता मिली। विश्लेषण विज्ञान को मूर्त रूप देने वाले डा. फ्रायड ने अपने प्रतिपादन में डॉ. सार्का के प्रयोगों से विशेष प्रेरणा ली थी।
इंग्लैंड की रायल मेडीकल सोसाइटी के अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय में चिकित्सा विज्ञान के प्राध्यापक डा. जान एडिसन ने सम्मोहन विज्ञान में सन्निहित तथ्यों को बहुत उपयोगी माना और वे इस प्रयत्न में जुट पड़े कि रोगी को पीड़ा की अनुभूति से बचाकर आपरेशन करने में इस विद्या का उपयोग किया जा सकता है उन दिनों बेहोश करने की दवाओं का आविष्कार नहीं हुआ था इस कारण आपरेशन के समय रोगी कष्ट पाते थे। इस कठिनाई को हल करने में सम्मोहन विज्ञान बड़ी सहायता कर सकता है। इसी दृष्टि से उनका अनुसन्धान एवं प्रयोग कार्य चलता रहा इसमें उन्हें आरम्भिक सफलता भी मिली।
इसी शोध सन्दर्भ में इंग्लैंड के एक दूसरे डॉक्टर जेम्स ब्रेन ने यह सिद्ध किया कि दूसरे के प्रयोग से ही नहीं वरन् आत्म निर्देश एवं ध्यान की एकाग्रता से भी सम्मोहन निद्रा की स्थिति बुला सकना सम्भव है। दूसरों के दिये सुझाव को बिना किसी तर्क-वितर्क स्वीकार कर लेना एक अद्भुत बात है। इसमें तर्क शक्ति सुप्त स्थिति में चली जाती है और आदेश अनुशासन पालन करने वाली श्रद्धा का आधिपत्य मस्तिष्क पर छाया रहता है। इस स्थिति से लाभ उठाकर उपचारकर्ता मन में उगी हुई अवांछनीय परतों को उखाड़ कर उस जगह नई स्थापनाएं करता है। यह शारीरिक सर्जरी जैसी क्रिया है। सड़े अंग काट कर फेंक देना और उस स्थान पर नई चमड़ी नया मांस जोड़ देना सर्जरी के अन्तर्गत सरल है। इसी प्रकार सम्मोहन विद्या—हिप्नोटिज्म के प्रयोगों से मन की विकृतियों के झाड़-झंखाड़ उखाड़ना और उनके स्थान पर नई पौध जमाना सम्भव होता है। उपचार कर्ता यही करते हैं। यों इन प्रयोगों का एक हानिकारक पक्ष भी है जिसे भूतकाल में तान्त्रिक लोग किन्हीं को क्षति पहुंचाने के लिए मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि रूपों में करते रहे हैं।
इसके भले बुरे परिणामों में शक्ति का दोष नहीं है। दोष है उनके प्रयोक्ताओं का। आग का उपयोग भोजन पकाने, जाड़ा भगाने, सर्दी से बचने के लिए भी किया जा सकता है और घर जलाने में हो सकता है। इसमें आग का क्या दोष? दोष तो आग का उपयोग करने वाले का है। उचित यही है कि इस शक्ति का सदुपयोग किया जाय। दुरुपयोग के साथ अपनी स्वयं के हानि होने की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है।
अद्भुत और चमत्कारी शक्ति
संकल्प शक्ति के इस स्वरूप को अद्भुत और चमत्कारी कहा जा सकता है। इसकी पृष्ठ भूमि प्रत्येक मस्तिष्क में विद्यमान रहती है। कई बार अनायास और आकस्मिक ही जागृत हो उठती है। इस चमत्कारी क्षमता से सम्पन्न होने के रूप में विख्यात रूसी महिला नेल्या मिखायलोव ने सहसा असामान्य इच्छा शक्ति उस समय विकसित हो गई, जब वह युद्ध के दिनों में सैनिक के रूप में मोर्चे पर लड़ते हुए शत्रु के गोले से गम्भीर रूप में आहत होकर अस्पताल में आरोग्य लाभ कर रही थी।
मास्को विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान शास्त्री एडवर्ड नोमोन ने नेल्या का परीक्षण विश्लेषण किया। प्रयोगशाला में उसने मेज पर बिखरी माचिस की तीलियों को बिना छुये, तनिक ऊपर से हाथ घुमा कर जमीन पर गिरा दिया। फिर वही तीलियां कांच के डिब्बे में बन्द कर दी गईं। नेल्या ने बन्द डिब्बे के ऊपर हाथ घुमाया, तो तीलियों में हलचल मच गई।
इसी तरह सोवियत लेखक बदिममारीन के साथ भोजन करते समय नेल्या ने मेज पर थोड़ी दूर पड़े रोटी के टुकड़े पर अपना ध्यान एकाग्र किया, तो वह टुकड़ा खिंचकर नेल्या के पास आ गया। फिर उसने झुककर मुंह खोला, तो वह टुकड़ा नेल्या के मुंह में उछलकर समा गया। नेल्या का परीक्षण भलीभांति रूसी वैज्ञानिकों ने किया और पाया कि उसके मस्तिष्क में विद्युत-शक्ति-सी कौंधती है और देह से चुम्बकीय शक्ति निकलती है।
बिजली के भले बुरे परिणाम सभी को विदित है। तन्त्रिक वर्ग के लोगों में से कितने उसका दुष्प्रयोजनों में व्यय करते और अपने प्रति-पक्षियों को हानि पहुंचाते भी देखे गये हैं।
युगांडा के एक भूमिगत संगठन ‘दिनी बा मसांबूबा’ के कार्यों की जानकारी के लिए नियुक्त एक ब्रिटिश गुप्तचर अधिकारी ने अपनी संस्मरण पुस्तक में विभिन्न घटनाओं का उल्लेख किया है। ये ब्रिटिश अफसर जान क्राफ्ट प्रगतिशील अन्धविश्वासों से सर्वथा मुक्त, कुशाग्र बुद्धि साहसी व प्रशान्त मस्तिष्क से काम करने वाले हैं। उन्हें जादू टोने पर तनिक भी विश्वास नहीं था, पर जब वे गुप्त संगठन का पता लगाने में सक्रिय हुए, तो उन्हें चेतावनी दी गई कि वे इस कार्य से हाथ खींच लें। जब वे न माने, तो उनके ऊपर सर्वथा अप्रत्याशित व अस्वाभाविक तौर पर महा विषैले सर्पों से आक्रमणों की योजना बताई गई। वे एक भोज में गई, वहां से लौटते समय, आगे अनेक अतिथि तो निरापद चले गये, पर जब जानक्रिफ्ट सीढ़ियों पर उतरने लगे, तो वह भयंकर विषधर घात लगाए बैठा था। मेजबान ने जानक्रिफ्ट को एकदम से धक्का देते बने, न ठेल दिया होता, तो उन्हें डसने ही वाला था।
एकबार वे अकस्मात् एक सहयोगी के यहां पहुंचे, तो वहां भी एक भयंकर फणिधर ने तीखी विषधार उनकी आंखों की ओर छोड़ी। सहकर्मी सतर्क व चुस्त था, उसने उन्हें तत्काल नीचे गिरा दिया और जहरीली घात ऊपर निकल गई। अन्यथा उनका प्राणांत हो जाता या फिर वे जनम भर के लिये अन्धे हो जाते।
फिर एक बार मोटर के दरवाजे के पास दूसरी बार बिस्तर पर ही भयंकर विषैले सर्प दीखे। एकबार क्रिफ्ट के दफ्तर के अन्धेरे कोने में दुबका बैठा था। घटनाओं का विश्लेषण स्पष्ट बताता था कि यह संयोग मात्र नहीं हो सकता। उनके अकस्मात् दूर कहीं पहुंचने की सूचना उनके शत्रुओं को भी नहीं मिल सकती थी, अतः सम्भावना भी नहीं मानी जा सकती थी कि वे लोग चुपके से ये सर्प छोमें जाते रहे होंगे। फिर भोज में आये अनेक नागरिकों में से सिर्फ क्रिफ्ट पर ही प्रहार की चेष्टा सर्प ने क्यों की। घटनाएं इस तथ्य को मानने को विवश करती हैं कि वहां प्रचलित यह मान्यता सही हो सकती है कि वहां के मांत्रिक सर्पों को वश में कर उनका इस तरह मनचाहा प्रयोग करते हैं। इस स्तर की सिद्धियां कठिन योगाभ्यासों और दीर्घकाल तक की जाने वाली साधनाओं के परिणाम स्वरूप ही प्राप्त होती हैं। किसी को पूर्व जन्म के संचित पुण्यों से अथवा ईश्वरीय कृपा के परिणाम स्वरूप ये चमत्कारी उपलब्धियां प्राप्त हो जायं, यह बात और है। सामान्य व्यक्ति अपने जीवन में इस संकल्प शक्ति का थोड़ा भी उपयोग कर सके तो बहुत सी चिन्ताओं और परेशानियों से बच सकता है।
संकल्प शक्ति के उपयोग लाभ
सामान्य जीवन में आने वाली छुटपुट असफलताओं का दोष दुर्भाग्य, दैव और दूसरों को देते रहने वाले लोग जीवन भर असफलताओं को ही आमन्त्रित करते रहते हैं। क्योंकि सफलता प्राप्त के लिये उनमें न अभीष्ट मनोबल होता है और न ही संकटों से जूझने का साहस जबकि कितने ही व्यक्तियों ने सामान्य से भी गिरी नितांत दुर्दशा ग्रस्त स्थिति में रहते हुये भी असाधारण सफलताएं प्राप्त कर दिखाई हैं।
कितने ही व्रत शील उच्च उद्देश्यों को लेकर कार्य क्षेत्र में उतरे और तुच्छ सामर्थ्य के रहते हुए भी महान कार्य कर सकने में सफल हुए हैं। उन्हें निरंतर आगे बढ़ने और अवरोधों को गिराने की सामर्थ्य आन्तरिक मनोबल से ही मिली है। बिहार के हजारी बाग जिले के हजारी नामक किसान ने इस प्रदेश के गांव में आम के बगीचे लगाने का निश्चय किया था। यदि दृढ़ संकल्प प्रबल आकांक्षा बन कर उभरे तो फिर मस्तिष्क को उसका सरंजाम खड़ा करने ओर शरीर को उसे व्यवहार में परिणित करते देर नहीं लगती। यही सदा सर्वदा से होता रहा है यही हजारी किसान ने भी कर दिखाया। उसने उस सारे इलाके में आम के दरख्त लगाये और अन्ततः उन आम्र उद्यानों की संख्या एक हजार तक जा पहुंची। वही इलाका इन दिनों बिहार का हजारी बाग जिला कहलाता है सत्संकल्पों की परिणिति सदा इसी प्रकार से व्यक्ति और समाज के लिये महान् उपलब्धियां प्रस्तुत करती रही हैं।
नर हो या नारी, बालक हो या वृद्ध स्वस्थ हो या रुग्ण, शनी हो या निर्धन परिस्थितियों से कुछ बनता बिगड़ता नहीं, प्रश्न संकल्प शक्ति का है। मनस्वी व्यक्ति अपने लिये उपयुक्त परिस्थितियां बनाते और सफल होते हैं। समय कितना लगा और श्रम कितना पड़ा उसमें अन्तर हो सकता है, पर आत्मा-निर्माण के लिये प्रयत्नशील अपनी आकांक्षा में शिथिलता एवं प्रखरता के अनुरूप देर सवेर में सफल होकर ही रहता है नारी की परिस्थितियां नर की अपेक्षा कई दृष्टियों से न्यून मानी जाती हैं किन्तु यह मान्यता वहीं तक सही है जहां तक कि उसका मनोबल गया-गुजरा बना रहे। यदि वे अपनी साहसिकता को जगा लें संकल्प शक्ति का सदुद्देश्य के लिये उपयोग करने लगें तो कोई कारण नहीं कि अपने गौरव गरिमा का प्रभाव देने में किसी से पीछे रहें।
मैत्रेयी याज्ञवल्क्य के साथ पत्नी नहीं धर्म-पत्नी बन कर रही। राम कृष्ण परमहंस की सहचरी शारदा मणि का उदाहरण भी ऐसा ही है। सुकन्या ने च्यवन के साथ रहना किसी विलास वासना के लिए नहीं उनके महान लक्ष्य को पूरा करने में साथी बनने के लिये किया था। जापान के गान्धी कागावा की पत्नी भी दीन दुखियों की सेवा का उद्देश्य लेकर के ही उनके साथ दाम्पत्य सूत्र में बंधी थी। नर पामरों को जहां दाम्पत्य जीवन में विलासिता के पशु प्रयोजन के अतिरिक्त और कोई उद्देश्य दृष्टिगोचर ही नहीं होता वहां ऐसी आदर्शवादी नर-नारियों की भी कमी नहीं जो विवाह बन्धन की आवश्यकता तभी अनुभव करते हैं जब उससे वैयक्तिक और सामाजिक प्रगति का कोई उच्चस्तरीय उद्देश्य पूरा होता हो।
कुन्ती भी सामान्य रानियों की तरह एक महिला थी। जन्म जात रूप से तो सभी एक जैसे उत्पन्न होते हैं। प्रगति तो मनुष्य अपने पराक्रम पुरुषार्थ के बल पर करता है। कुन्ती ने देवत्व जगाया—आकाश वासी देवताओं को अपना सहचर बनाया और पांच देव पुत्रों को जन्म दे सकने में सफल बन सकी। सुकन्या ने आश्विनी कुमारों को और सावित्री ने यम को सहायता करने के लिये विवश कर दिया था। उच्चस्तरीय निष्ठा का परिचय देने वाले देवताओं की ईश्वरीय सत्ता की सहायता प्राप्त कर सकने में भी सफल होते हैं। टिटहरी के धर्म युद्ध में महर्षि अगस्त सहायक बन कर सामने आये थे। तपस्विनी पार्वती अपने व्रत संकल्प के सहारे शिव की अर्धांगिनी बन सकने का गौरव प्राप्त कर सकी थी। पति को आदर्श पालन के लिए प्रेरित करने वाली लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला स्वयं भी वनवास जैसी साधना घर पर करती रही। इन महान गाथाओं में आदर्शवादी संकल्प ही अपनी गरिमा प्रकट करते दीखते हैं।
बंगाल के निर्धन विद्वान प्रताप चन्द्र राये ने अपनी सारी शक्ति और सम्पत्ति को बाजी पर लगा कर महाभारत के अनुवाद का कार्य हाथ में लिया। वे उसे अपने जीवन में पूरा न कर सके तो उनकी पत्नी ने अपना संस्कृत ज्ञान पूरा करके उस अधूरे काम को पूर्ण करके दिखा दिया ऐसी साहसिकता वहां ही दिखाई पड़ती है जहां उच्च स्तरीय आदर्शों का समावेश हो।
विद्वान कैयट व्याकरण शास्त्र की संरचना में लगे हुए थे। उनकी पत्नी भारती मूंज की रस्सी बट कर गुजारे का प्रबन्ध करती थी। साम्यवाद के प्रवर्तक कार्लमार्क्स भी कुछ कमा नहीं पाते यह कार्य उनकी पत्नी जैनी करती थी वे पुराने कपड़े खरीद कर उनमें से बच्चों के छोटे कपड़े बनाती और फेरी लगाकर बेचती थीं। आदर्शों के लिये पतियों को इस प्रकार प्रोत्साहित करने और सहयोग देने में उनका उच्चस्तरीय संकल्प-बल ही कार्य करता था।
जहां सामान्य नारियां अपने बच्चों को मात्र सुखी सम्पन्न देखने भर की कामना संजोये रहती हैं वहां ऐसी महान महिलाएं भी हुई हैं जिन्होंने अपनी सन्तान को बड़ा आदमी नहीं महामानव बनाने का सपना देखा ओर उसे पूरा करने के लिये अपनी दृष्टि और चेष्टा में आमूल चूल परिवर्तन कर डाला। ऐसी महान महिलाओं में विनोबा की माता आती हैं जिन्होंने अपने तीनों बालकों को ब्रह्मज्ञानी बनाया। शिवाजी की माता जीजाबाई को भी यही गौरव प्राप्त हुआ। मदालसा ने अपने सभी बालकों को बाल ब्रह्मचारी बनाया था। शकुन्तला अपने बेटे भरत को—सीता अपने लवकुश को सामान्य नर वानरों से भिन्न प्रकार का बनाना चाहती थीं। उन्हें जो सफलताएं मिलीं वे अन्यान्यों को भी मिल सकती हैं, शर्त एक ही है कि आदर्शों के अन्तःकरण में गहन श्रद्धा की स्थापना हो सके और उसे पूरा करने के लिए अभीष्ट साहस संजोया जा सके। संकल्प इसी को कहते हैं।
पुरुष महिलाओं की आत्मिक प्रगति में सहायक बनें, महिलायें पुरुषों, छोटे बच्चों को संस्कारवान बनाने का व्रत लें, तो इस पारस्परिक सहयोग से राष्ट्र जागरण, आध्यात्मिक चेतना का विकास तथा आदर्शवादी आस्थाओं की स्थापना जैसे महान कार्य सहज ही किये जा सकते हैं।
वंश परम्परा या पारिवारिक परिस्थितियों की हीनता किसी की प्रगति में चिरस्थायी अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकी है। इस प्रकार की अड़चनें अधिक संघर्ष करने के लिये चुनौती देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकतीं। सत्यकाम जाबाल वेश्या पुत्र थे। उनकी माता यह नहीं बता सकी थी कि उस बालक का पिता कौन था। ऐतरेय ब्राह्मण के रचयिता ऋषि ऐतरेय—इयरा रखैल के पुत्र थे। महर्षि वशिष्ठ, मातंगी आदि के बारे में भी ऐसा ही कहा जाता है। रैदास, कबीर, बाल्मीक आदि का जन्म छोटे कहे जाने वाले परिवारों में ही हुआ था। पर इससे इन्हें महानता के उच्च पद तक पहुंचने में कोई स्थायी अवरोध उत्पन्न नहीं हुआ। मनुष्य की संकल्प शक्ति इतनी बड़ी है कि वह अग्रगमन के मार्ग में उत्पन्न होने वाली प्रत्येक बाधा को पैरों तले रौंदती हुई आगे बढ़ सकती है।
इस घटना के कुछ ही दिन बाद बिन्डसर के एक जौहरी की दुकान में एक आदमी आया, उसने अपनी विलक्षण दृष्टि से जौहरी को देखा। जौहरी इस तरह निस्तब्ध रह गया मानो वह काष्ठ विनिर्मित हो उस आगन्तुक ने अच्छे-अच्छे जवाहरात, जौहरी और बाजार की भारी भीड़ के बीच अपनी जेब में भरे और वहां से चला गया देखा सबने पर किसी ने न पहचाना, न प्रतिरोध किया, कौन आया, कहां गया यह भी किसी को पता नहीं था पीछे जौहरी से पुलिस ने बयान लिये तो उसने भी वही शब्द दोहराये जो पहले चौकीदार ने कहे।
एक दिन समुद्र की हवा खाने के लिये बिन्डसर के एक करोड़पति अपनी पत्नी के साथ कार पर आ रहे थे उनकी भेंट अनायास ही इस जादूगर से हो गई। उसने उनके सारे जेवर और घड़ियां उतरवा लीं और उन्होंने ऐसे दे दिया मानो उपहार दे रहे हों पीछे जो बयान दिये उन्होंने, वह पहले वाले पीड़ितों के बयानों से अक्षरशः मिलते-जुलते थे। इन खबरों ने एक बार तो विन्डसर राज्य में तहलका मचा दिया। कुबेरों की नींद हराम हो गई। एक मिल मालिक ने तो अपने बंगलें के सभी निकासों पर स्वचालित बन्दूकें लगवा दीं। इन्हीं बन्दूकों के बल पर क्लेरेंस एडग पकड़े जा सके। एक रात वे जब इस बंगले के एक दरवाजे पर पहुंचे और अन्दर प्रवेश का प्रयत्न करने लगे तो बन्दूक ने उन्हें घायल कर दिया। धड़ाके की आवाज सुनकर लोग दौड़े-दौड़े आये। एडम को पहचान कर लोग आश्चर्यचकित रह गये। अदालत में एडम ने अपने ऊपर लगाये गये वह सारे अभियोग स्वीकार कर लिये और यह भी मान लिया कि यह सब उन्होंने सम्मोहन विद्या (हिप्नोटिज्म) के द्वारा किया है।
इन अपराधों के लिए इन्हें दस वर्ष सश्रम कारावास का दण्ड दिया गया और वे शहर की अपेक्षा बिन्डसर की पहाड़ी जेल में भेज दिये गये। जेलर उनकी भद्र वेष-भूषा और सांस्कृतिक रहन-सहन से बहुत अधिक प्रभावित हुआ सो वह एडम के लिये अनायास ही उदार बन गया। इस उदारता का लाभ एकबार फिर एडम को मिला। उसने जेलर की सहायता से अपने लिये कुछ पुस्तकें पढ़ने के लिये प्राप्त करलीं इन्हीं पुस्तकों में उसकी वह दोनों मनचाही पुस्तकें भी थीं। दरअसल अन्य पुस्तकें तो साथ में एडम ने केवल इसलिये मंगाई थीं कि किसी को उस पर शक न हो जाये। यह पुस्तकें उसने अपनी विद्या को आगे बढ़ाने के लिये मंगाई थीं सो एक बार फिर से जेल में ही उसका साधना-अनुष्ठान चल पड़ा और दूसरे लोगों को इस बात की कानों-कान खबर न हुई।
एक दिन दैवयोग से जब एडम अपने कमरे की चीजों पर हिप्नोटिज्म का अभ्यास कर रहे थे तब उन्हें जेल के एक अन्य डॉक्टर कैदी ने देख लिया, उसका भी हिप्नोटिज्म सीखने का मन था। धीरे-धीरे दोनों में बातचीत होने लगी और यही बातचीत एक दिन प्रगाढ़ मैत्री में बदल गई।
किन्तु इन्हीं दिनों एडम बीमार पड़ गये उनका इलाज हुआ पर वे अच्छे हुए ही नहीं। एक दिन अपने डॉक्टर मित्र के कमरे में प्राण त्याग दिये। जेल के डॉक्टर ब्राउस्टर उनकी अन्त्य परीक्षा की और उन्हें मृत घोषित कर मृत्यु का प्रमाण-पत्र भी दे दिया। एडम के भतीजे विलियम डान को वह शव भी सौंप दिया गया। शव ले जाकर विलियम डान ने विन्डसर के कब्रगाह के संरक्षक को सौंप दिया ताकि अगले दिन उसे एक सुरक्षित कब्र में दफनाया जा सके। एडम का शव एक सन्दूक में कफ़न लपेट कर रख दिया गया।
जाड़े के दिन थे, उस दिन तो और भयंकर शीत थी, हिमपात हो रहा था ऐसे समय तीन-चार व्यक्ति उस कब्रिस्तान में प्रविष्ट हुये और जिस पेटी में एडम का शव था उसके पास गये। सन्दूक खोलकर उनका शव निकाला और उसके स्थान पर उन्होंने अपने साथ लाये शव को लिटा दिया। ताला जैसे का तैसा बन्द कर वह लोग बाहर आ गये और घनघोर अन्धकार में न जाने कहां खो गये। इस बार कब्रिस्तान के संरक्षक के साथ भी वही सम्मोहन हुआ वह सब देखते हुए भी कुछ कर न सका पर उसने जो रिपोर्ट दी—उससे यह पता चल गया कि लाश बदली गई और जिसने यह सारा काम किया उसका हुलिया डा. मार्टिन जैसा था। दूसरे दिन एलियास से खबर मिली कि वहां से एक शव की चोरी हो गई है लोगों ने जाकर बदले हुये शव को खुलवा कर देखा पर उसका चेहरा कुछ इस तरह विकृत था कि पहचान में ही नहीं आया जबकि एडम के शव में किसी प्रकार के दाग धब्बे नहीं थे। तो भी यह रहस्य रहस्य ही बना रह गया।
कुछ दिन बीते बिन्डसर का एक नागरिक कनाडा आया। वहां एक होटल में खाना खाने पहुंचा तो यह देखकर अवाक् रह गया कि वहां एडम और डा. मार्टिन दोनों साथ-साथ बैठे भोजन कर रहे हैं। वह बहुत घबराया, जब तक सम्भव कर पुलिस को सूचना दे तक तक वह दोनों व्यक्ति वहां से जा चुके थे। घटना अखबारों में छपी तो एक बार फिर से बिन्डसर के धन कुबेर कांप गये। इस बीच कई स्थानों पर उसके देखे जाने की खबरें मिलीं। सभी खबरें विश्वस्त व्यक्तियों द्वारा दी गई थीं। फलस्वरूप एकबार फिर से पुलिस और सी.आई.डी. विभाग सतर्क किया गया। पर एडम पकड़ा नहीं जा सका। कहते हैं उसने ओझल और अन्तर्धान होने की विद्या जान ली थी यही नहीं उसने अपने शरीर की हर अनैच्छिक किया पर नियन्त्रण प्राप्त कर लिया था। एक क्षण में मर जाना और दूसरे ही क्षण जीकर काम में लग जाना उसके लिए बांये हाथ का खेल था।
आखिरी भेंट एक सी.आई.डी. ऑफिसर से अमेरिका के ही टोरन्टो नगर में हुई। एडम ने अधिकारी से काफी देर तक बातचीत की। जैसे ही पुलिस के सिपाही गिरफ्तार करने के लिए सी.आई.डी. ऑफिसर मौका पाकर आगे बढ़े और उसे चारों ओर से घेरे में लिया, एडम एकाएक अन्तर्धान हो गया। सी.आई.डी. अधिकारी तथा सिपाही एक दूसरे का मुंह ताकते खड़े रह गये। इसके बाद एडवर्ड स्मिथ ने उसका विस्तृत परिचय छापा और स्वीकार किया कि उसके पास कोई अद्भुत योग शक्ति थी जो किसी भी भौतिक शक्ति से कहीं अधिक समर्थ थी किन्तु उसके बाद से आज तक एडम के बारे में कुछ भी पता नहीं चला पाया कि वह कहां गया है, है भी या नहीं और है तो लोगों को दीखता क्यों नहीं? यह घटना भारतीय योगियों की सी सिद्धि और प्राण नियन्त्रण की जैसी घटना है उससे जीवनी शक्ति की विलक्षणता, विलगता और समर्थता का ही प्रतिपादन होता है। पश्चिमी देशों में योग सिद्धि और प्राण नियन्त्रण के भारतीय विज्ञान की अनुकृति ही सम्मोहन तथा मानवीय विद्युत के प्रयोगों के रूप में अपनायी गई। इस विद्या के मूल में मनुष्य की संकल्प शक्ति की प्रगाढ़ता ही काम करती है और वही बल अपने परिमाण के अनुसार पात्र को प्रभावित करता व इच्छानुयायी बनाता है।
मानवी विद्युत का उपयोग
इस विद्या का वशीकरण, मूर्च्छा प्रयोग, दैवी आवेश आदि के रूप में प्रचलन तो पहले भी था पर उसे व्यवस्थित रूप अठारहवीं शताब्दी के आरम्भ में आस्ट्रिया निवासी डॉक्टर फ्रान्ज मेस्मर ने दिया। उन्होंने मानवी विद्युत का अस्तित्व, स्वरूप और उपयोग सिद्ध करने में घोर परिश्रम किया और उसके आधार पर कठिन रोगों के उपचार में बहुत ख्याति कमाई। वे अपने शरीर की बिजली का रोगियों पर आघात करते साथ ही लौह चुम्बक भी आवश्यकतानुसार प्रयोग में लाते। इस दुहरे प्रयोग से न केवल शारीरिक वरन् मानसिक रोगों के उपचार में भी उनने आशातीत सफलता प्राप्त की।
मेस्मर के शिष्ट प्युइसेग्यूर ने प्रयोग को अधिक तत्परतापूर्वक आगे बढ़ाया और उन्होंने चुम्बकीय शक्ति द्वारा तन्द्रा उत्पन्न करने में नई सफलताएं पाईं। यह तन्द्रा मानसिक तनाव को विश्राम द्वारा शान्त करने और अवचेतना के रहस्यमय परतों को खोलने में बहुत कारगर सिद्ध हुई। इस प्रकार चिकित्सक की सहायता के बिना भी कोई व्यक्ति स्वनिर्देशन विधि का उपयोग करके अपनी शारीरिक एवं मानसिक चिकित्सा आप कर सकता है।
सम्मोहन प्रयोग से गहरी निद्रा लाकर गहरे आपरेशन में सफलता सबसे पहले डा. ऐसडेल को मिली। उन्होंने लगभग 30 ऐसे आपरेशन किये। उनके दावे विवादास्पद माने गये। अस्तु सरकारी जांच कमीशन बिठाया गया। कमीशन ने अपनी उपस्थिति में आपरेशन कराये और ऐसडेल के प्रयोगों को यथार्थ घोषित किया। यह प्रक्रिया संसार भर में फैली। फ्रान्स के डॉ. सार्क को इस विद्या से हिस्टीरिया को अच्छा करने में कारगर सफलता मिली। विश्लेषण विज्ञान को मूर्त रूप देने वाले डा. फ्रायड ने अपने प्रतिपादन में डॉ. सार्का के प्रयोगों से विशेष प्रेरणा ली थी।
इंग्लैंड की रायल मेडीकल सोसाइटी के अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय में चिकित्सा विज्ञान के प्राध्यापक डा. जान एडिसन ने सम्मोहन विज्ञान में सन्निहित तथ्यों को बहुत उपयोगी माना और वे इस प्रयत्न में जुट पड़े कि रोगी को पीड़ा की अनुभूति से बचाकर आपरेशन करने में इस विद्या का उपयोग किया जा सकता है उन दिनों बेहोश करने की दवाओं का आविष्कार नहीं हुआ था इस कारण आपरेशन के समय रोगी कष्ट पाते थे। इस कठिनाई को हल करने में सम्मोहन विज्ञान बड़ी सहायता कर सकता है। इसी दृष्टि से उनका अनुसन्धान एवं प्रयोग कार्य चलता रहा इसमें उन्हें आरम्भिक सफलता भी मिली।
इसी शोध सन्दर्भ में इंग्लैंड के एक दूसरे डॉक्टर जेम्स ब्रेन ने यह सिद्ध किया कि दूसरे के प्रयोग से ही नहीं वरन् आत्म निर्देश एवं ध्यान की एकाग्रता से भी सम्मोहन निद्रा की स्थिति बुला सकना सम्भव है। दूसरों के दिये सुझाव को बिना किसी तर्क-वितर्क स्वीकार कर लेना एक अद्भुत बात है। इसमें तर्क शक्ति सुप्त स्थिति में चली जाती है और आदेश अनुशासन पालन करने वाली श्रद्धा का आधिपत्य मस्तिष्क पर छाया रहता है। इस स्थिति से लाभ उठाकर उपचारकर्ता मन में उगी हुई अवांछनीय परतों को उखाड़ कर उस जगह नई स्थापनाएं करता है। यह शारीरिक सर्जरी जैसी क्रिया है। सड़े अंग काट कर फेंक देना और उस स्थान पर नई चमड़ी नया मांस जोड़ देना सर्जरी के अन्तर्गत सरल है। इसी प्रकार सम्मोहन विद्या—हिप्नोटिज्म के प्रयोगों से मन की विकृतियों के झाड़-झंखाड़ उखाड़ना और उनके स्थान पर नई पौध जमाना सम्भव होता है। उपचार कर्ता यही करते हैं। यों इन प्रयोगों का एक हानिकारक पक्ष भी है जिसे भूतकाल में तान्त्रिक लोग किन्हीं को क्षति पहुंचाने के लिए मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि रूपों में करते रहे हैं।
इसके भले बुरे परिणामों में शक्ति का दोष नहीं है। दोष है उनके प्रयोक्ताओं का। आग का उपयोग भोजन पकाने, जाड़ा भगाने, सर्दी से बचने के लिए भी किया जा सकता है और घर जलाने में हो सकता है। इसमें आग का क्या दोष? दोष तो आग का उपयोग करने वाले का है। उचित यही है कि इस शक्ति का सदुपयोग किया जाय। दुरुपयोग के साथ अपनी स्वयं के हानि होने की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है।
अद्भुत और चमत्कारी शक्ति
संकल्प शक्ति के इस स्वरूप को अद्भुत और चमत्कारी कहा जा सकता है। इसकी पृष्ठ भूमि प्रत्येक मस्तिष्क में विद्यमान रहती है। कई बार अनायास और आकस्मिक ही जागृत हो उठती है। इस चमत्कारी क्षमता से सम्पन्न होने के रूप में विख्यात रूसी महिला नेल्या मिखायलोव ने सहसा असामान्य इच्छा शक्ति उस समय विकसित हो गई, जब वह युद्ध के दिनों में सैनिक के रूप में मोर्चे पर लड़ते हुए शत्रु के गोले से गम्भीर रूप में आहत होकर अस्पताल में आरोग्य लाभ कर रही थी।
मास्को विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान शास्त्री एडवर्ड नोमोन ने नेल्या का परीक्षण विश्लेषण किया। प्रयोगशाला में उसने मेज पर बिखरी माचिस की तीलियों को बिना छुये, तनिक ऊपर से हाथ घुमा कर जमीन पर गिरा दिया। फिर वही तीलियां कांच के डिब्बे में बन्द कर दी गईं। नेल्या ने बन्द डिब्बे के ऊपर हाथ घुमाया, तो तीलियों में हलचल मच गई।
इसी तरह सोवियत लेखक बदिममारीन के साथ भोजन करते समय नेल्या ने मेज पर थोड़ी दूर पड़े रोटी के टुकड़े पर अपना ध्यान एकाग्र किया, तो वह टुकड़ा खिंचकर नेल्या के पास आ गया। फिर उसने झुककर मुंह खोला, तो वह टुकड़ा नेल्या के मुंह में उछलकर समा गया। नेल्या का परीक्षण भलीभांति रूसी वैज्ञानिकों ने किया और पाया कि उसके मस्तिष्क में विद्युत-शक्ति-सी कौंधती है और देह से चुम्बकीय शक्ति निकलती है।
बिजली के भले बुरे परिणाम सभी को विदित है। तन्त्रिक वर्ग के लोगों में से कितने उसका दुष्प्रयोजनों में व्यय करते और अपने प्रति-पक्षियों को हानि पहुंचाते भी देखे गये हैं।
युगांडा के एक भूमिगत संगठन ‘दिनी बा मसांबूबा’ के कार्यों की जानकारी के लिए नियुक्त एक ब्रिटिश गुप्तचर अधिकारी ने अपनी संस्मरण पुस्तक में विभिन्न घटनाओं का उल्लेख किया है। ये ब्रिटिश अफसर जान क्राफ्ट प्रगतिशील अन्धविश्वासों से सर्वथा मुक्त, कुशाग्र बुद्धि साहसी व प्रशान्त मस्तिष्क से काम करने वाले हैं। उन्हें जादू टोने पर तनिक भी विश्वास नहीं था, पर जब वे गुप्त संगठन का पता लगाने में सक्रिय हुए, तो उन्हें चेतावनी दी गई कि वे इस कार्य से हाथ खींच लें। जब वे न माने, तो उनके ऊपर सर्वथा अप्रत्याशित व अस्वाभाविक तौर पर महा विषैले सर्पों से आक्रमणों की योजना बताई गई। वे एक भोज में गई, वहां से लौटते समय, आगे अनेक अतिथि तो निरापद चले गये, पर जब जानक्रिफ्ट सीढ़ियों पर उतरने लगे, तो वह भयंकर विषधर घात लगाए बैठा था। मेजबान ने जानक्रिफ्ट को एकदम से धक्का देते बने, न ठेल दिया होता, तो उन्हें डसने ही वाला था।
एकबार वे अकस्मात् एक सहयोगी के यहां पहुंचे, तो वहां भी एक भयंकर फणिधर ने तीखी विषधार उनकी आंखों की ओर छोड़ी। सहकर्मी सतर्क व चुस्त था, उसने उन्हें तत्काल नीचे गिरा दिया और जहरीली घात ऊपर निकल गई। अन्यथा उनका प्राणांत हो जाता या फिर वे जनम भर के लिये अन्धे हो जाते।
फिर एक बार मोटर के दरवाजे के पास दूसरी बार बिस्तर पर ही भयंकर विषैले सर्प दीखे। एकबार क्रिफ्ट के दफ्तर के अन्धेरे कोने में दुबका बैठा था। घटनाओं का विश्लेषण स्पष्ट बताता था कि यह संयोग मात्र नहीं हो सकता। उनके अकस्मात् दूर कहीं पहुंचने की सूचना उनके शत्रुओं को भी नहीं मिल सकती थी, अतः सम्भावना भी नहीं मानी जा सकती थी कि वे लोग चुपके से ये सर्प छोमें जाते रहे होंगे। फिर भोज में आये अनेक नागरिकों में से सिर्फ क्रिफ्ट पर ही प्रहार की चेष्टा सर्प ने क्यों की। घटनाएं इस तथ्य को मानने को विवश करती हैं कि वहां प्रचलित यह मान्यता सही हो सकती है कि वहां के मांत्रिक सर्पों को वश में कर उनका इस तरह मनचाहा प्रयोग करते हैं। इस स्तर की सिद्धियां कठिन योगाभ्यासों और दीर्घकाल तक की जाने वाली साधनाओं के परिणाम स्वरूप ही प्राप्त होती हैं। किसी को पूर्व जन्म के संचित पुण्यों से अथवा ईश्वरीय कृपा के परिणाम स्वरूप ये चमत्कारी उपलब्धियां प्राप्त हो जायं, यह बात और है। सामान्य व्यक्ति अपने जीवन में इस संकल्प शक्ति का थोड़ा भी उपयोग कर सके तो बहुत सी चिन्ताओं और परेशानियों से बच सकता है।
संकल्प शक्ति के उपयोग लाभ
सामान्य जीवन में आने वाली छुटपुट असफलताओं का दोष दुर्भाग्य, दैव और दूसरों को देते रहने वाले लोग जीवन भर असफलताओं को ही आमन्त्रित करते रहते हैं। क्योंकि सफलता प्राप्त के लिये उनमें न अभीष्ट मनोबल होता है और न ही संकटों से जूझने का साहस जबकि कितने ही व्यक्तियों ने सामान्य से भी गिरी नितांत दुर्दशा ग्रस्त स्थिति में रहते हुये भी असाधारण सफलताएं प्राप्त कर दिखाई हैं।
कितने ही व्रत शील उच्च उद्देश्यों को लेकर कार्य क्षेत्र में उतरे और तुच्छ सामर्थ्य के रहते हुए भी महान कार्य कर सकने में सफल हुए हैं। उन्हें निरंतर आगे बढ़ने और अवरोधों को गिराने की सामर्थ्य आन्तरिक मनोबल से ही मिली है। बिहार के हजारी बाग जिले के हजारी नामक किसान ने इस प्रदेश के गांव में आम के बगीचे लगाने का निश्चय किया था। यदि दृढ़ संकल्प प्रबल आकांक्षा बन कर उभरे तो फिर मस्तिष्क को उसका सरंजाम खड़ा करने ओर शरीर को उसे व्यवहार में परिणित करते देर नहीं लगती। यही सदा सर्वदा से होता रहा है यही हजारी किसान ने भी कर दिखाया। उसने उस सारे इलाके में आम के दरख्त लगाये और अन्ततः उन आम्र उद्यानों की संख्या एक हजार तक जा पहुंची। वही इलाका इन दिनों बिहार का हजारी बाग जिला कहलाता है सत्संकल्पों की परिणिति सदा इसी प्रकार से व्यक्ति और समाज के लिये महान् उपलब्धियां प्रस्तुत करती रही हैं।
नर हो या नारी, बालक हो या वृद्ध स्वस्थ हो या रुग्ण, शनी हो या निर्धन परिस्थितियों से कुछ बनता बिगड़ता नहीं, प्रश्न संकल्प शक्ति का है। मनस्वी व्यक्ति अपने लिये उपयुक्त परिस्थितियां बनाते और सफल होते हैं। समय कितना लगा और श्रम कितना पड़ा उसमें अन्तर हो सकता है, पर आत्मा-निर्माण के लिये प्रयत्नशील अपनी आकांक्षा में शिथिलता एवं प्रखरता के अनुरूप देर सवेर में सफल होकर ही रहता है नारी की परिस्थितियां नर की अपेक्षा कई दृष्टियों से न्यून मानी जाती हैं किन्तु यह मान्यता वहीं तक सही है जहां तक कि उसका मनोबल गया-गुजरा बना रहे। यदि वे अपनी साहसिकता को जगा लें संकल्प शक्ति का सदुद्देश्य के लिये उपयोग करने लगें तो कोई कारण नहीं कि अपने गौरव गरिमा का प्रभाव देने में किसी से पीछे रहें।
मैत्रेयी याज्ञवल्क्य के साथ पत्नी नहीं धर्म-पत्नी बन कर रही। राम कृष्ण परमहंस की सहचरी शारदा मणि का उदाहरण भी ऐसा ही है। सुकन्या ने च्यवन के साथ रहना किसी विलास वासना के लिए नहीं उनके महान लक्ष्य को पूरा करने में साथी बनने के लिये किया था। जापान के गान्धी कागावा की पत्नी भी दीन दुखियों की सेवा का उद्देश्य लेकर के ही उनके साथ दाम्पत्य सूत्र में बंधी थी। नर पामरों को जहां दाम्पत्य जीवन में विलासिता के पशु प्रयोजन के अतिरिक्त और कोई उद्देश्य दृष्टिगोचर ही नहीं होता वहां ऐसी आदर्शवादी नर-नारियों की भी कमी नहीं जो विवाह बन्धन की आवश्यकता तभी अनुभव करते हैं जब उससे वैयक्तिक और सामाजिक प्रगति का कोई उच्चस्तरीय उद्देश्य पूरा होता हो।
कुन्ती भी सामान्य रानियों की तरह एक महिला थी। जन्म जात रूप से तो सभी एक जैसे उत्पन्न होते हैं। प्रगति तो मनुष्य अपने पराक्रम पुरुषार्थ के बल पर करता है। कुन्ती ने देवत्व जगाया—आकाश वासी देवताओं को अपना सहचर बनाया और पांच देव पुत्रों को जन्म दे सकने में सफल बन सकी। सुकन्या ने आश्विनी कुमारों को और सावित्री ने यम को सहायता करने के लिये विवश कर दिया था। उच्चस्तरीय निष्ठा का परिचय देने वाले देवताओं की ईश्वरीय सत्ता की सहायता प्राप्त कर सकने में भी सफल होते हैं। टिटहरी के धर्म युद्ध में महर्षि अगस्त सहायक बन कर सामने आये थे। तपस्विनी पार्वती अपने व्रत संकल्प के सहारे शिव की अर्धांगिनी बन सकने का गौरव प्राप्त कर सकी थी। पति को आदर्श पालन के लिए प्रेरित करने वाली लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला स्वयं भी वनवास जैसी साधना घर पर करती रही। इन महान गाथाओं में आदर्शवादी संकल्प ही अपनी गरिमा प्रकट करते दीखते हैं।
बंगाल के निर्धन विद्वान प्रताप चन्द्र राये ने अपनी सारी शक्ति और सम्पत्ति को बाजी पर लगा कर महाभारत के अनुवाद का कार्य हाथ में लिया। वे उसे अपने जीवन में पूरा न कर सके तो उनकी पत्नी ने अपना संस्कृत ज्ञान पूरा करके उस अधूरे काम को पूर्ण करके दिखा दिया ऐसी साहसिकता वहां ही दिखाई पड़ती है जहां उच्च स्तरीय आदर्शों का समावेश हो।
विद्वान कैयट व्याकरण शास्त्र की संरचना में लगे हुए थे। उनकी पत्नी भारती मूंज की रस्सी बट कर गुजारे का प्रबन्ध करती थी। साम्यवाद के प्रवर्तक कार्लमार्क्स भी कुछ कमा नहीं पाते यह कार्य उनकी पत्नी जैनी करती थी वे पुराने कपड़े खरीद कर उनमें से बच्चों के छोटे कपड़े बनाती और फेरी लगाकर बेचती थीं। आदर्शों के लिये पतियों को इस प्रकार प्रोत्साहित करने और सहयोग देने में उनका उच्चस्तरीय संकल्प-बल ही कार्य करता था।
जहां सामान्य नारियां अपने बच्चों को मात्र सुखी सम्पन्न देखने भर की कामना संजोये रहती हैं वहां ऐसी महान महिलाएं भी हुई हैं जिन्होंने अपनी सन्तान को बड़ा आदमी नहीं महामानव बनाने का सपना देखा ओर उसे पूरा करने के लिये अपनी दृष्टि और चेष्टा में आमूल चूल परिवर्तन कर डाला। ऐसी महान महिलाओं में विनोबा की माता आती हैं जिन्होंने अपने तीनों बालकों को ब्रह्मज्ञानी बनाया। शिवाजी की माता जीजाबाई को भी यही गौरव प्राप्त हुआ। मदालसा ने अपने सभी बालकों को बाल ब्रह्मचारी बनाया था। शकुन्तला अपने बेटे भरत को—सीता अपने लवकुश को सामान्य नर वानरों से भिन्न प्रकार का बनाना चाहती थीं। उन्हें जो सफलताएं मिलीं वे अन्यान्यों को भी मिल सकती हैं, शर्त एक ही है कि आदर्शों के अन्तःकरण में गहन श्रद्धा की स्थापना हो सके और उसे पूरा करने के लिए अभीष्ट साहस संजोया जा सके। संकल्प इसी को कहते हैं।
पुरुष महिलाओं की आत्मिक प्रगति में सहायक बनें, महिलायें पुरुषों, छोटे बच्चों को संस्कारवान बनाने का व्रत लें, तो इस पारस्परिक सहयोग से राष्ट्र जागरण, आध्यात्मिक चेतना का विकास तथा आदर्शवादी आस्थाओं की स्थापना जैसे महान कार्य सहज ही किये जा सकते हैं।
वंश परम्परा या पारिवारिक परिस्थितियों की हीनता किसी की प्रगति में चिरस्थायी अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकी है। इस प्रकार की अड़चनें अधिक संघर्ष करने के लिये चुनौती देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकतीं। सत्यकाम जाबाल वेश्या पुत्र थे। उनकी माता यह नहीं बता सकी थी कि उस बालक का पिता कौन था। ऐतरेय ब्राह्मण के रचयिता ऋषि ऐतरेय—इयरा रखैल के पुत्र थे। महर्षि वशिष्ठ, मातंगी आदि के बारे में भी ऐसा ही कहा जाता है। रैदास, कबीर, बाल्मीक आदि का जन्म छोटे कहे जाने वाले परिवारों में ही हुआ था। पर इससे इन्हें महानता के उच्च पद तक पहुंचने में कोई स्थायी अवरोध उत्पन्न नहीं हुआ। मनुष्य की संकल्प शक्ति इतनी बड़ी है कि वह अग्रगमन के मार्ग में उत्पन्न होने वाली प्रत्येक बाधा को पैरों तले रौंदती हुई आगे बढ़ सकती है।