Books - प्राणघातक व्यसन
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अफीम का चातक दुर्व्यसन
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
राब, तंबाकू, पान आदि की भाँति अफीम भी प्रचलित है । इसका नशा घातक है और तनिक सी अधिक मात्रा में लेने से मृत्यु का भय है । श्रीयुत पैटन ने 'भारत में अफीम' नामक पुस्तक में इस प्रकार लिखा है-
''भारत में बच्ची तक को अफीम दी जाती है । थकावट तथा जाड़े को भगाने के लिए भी उसका उपयोग किया जाता है । किसी बीमारी को रोकने या भगाने के लिए लोग अफीम का सेवन करते हैं और अनेक केवल व्यसन के लिए खाया करते हैं । ये सभी सेवन के तरीके कृत्रिम और अनुचित हैं । बच्चों को देने से वे नशे में पड़े तो रहते हैं, किंतु उनका स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, भूख मारी जाती है, स्वाभाविक चैतन्य शक्ति, उल्लास, उत्साह, प्रसन्नता मारी जाती है । शरीर कृष, दिमाग निर्बल एवं रक्तहीनता हो जाती है । उनकी जीवनशक्ति क्षीण हो जाने से वे जल्दी ही बीमारियों के शिकार बनते जाते हैं । दवाइयों तक का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । ऐसे बच्चे जब अध्ययन में पड़ते हैं तो, उनमें एकाग्रता और कुशाग्रता का अभाव होता है ।''
थकावट और जाड़े से मुक्ति के लिए इसका प्रयोग करना मूर्खता है, क्योंकि इससे कहीं स्वास्थ्यकर वस्तुएँ इसके लिए उपलब्ध हो सकती हैं । क्षणभर के नशे में हम यह भूले रह सकते हैं कि हम थके हुए नहीं हैं, किंतु अफीम का नशा उतरने पर और भी निर्बलता एवं आलस्य धर दबाता है । न दर्द, न थकान और न जाड़ा कोई भी हटते नहीं, वरन यह नशा लाकर रोगों या थकान के वास्तविक लक्षणों को ढँक देती है ।
श्री पैटन के अनुसार अफीमची को (१) कब्ज (२) रक्त की न्यूनता (३) भूख कम लगना (४) हृदय, फेंफड़ों एवं गुरदों के रोग (५) स्नायुजन्य कमजोरी (६) फुरतीलेपन का अभाव (७) आलस्य, निद्रा में कमी, चित्त भ्रम, दिवास्वप्न (८) नैतिक भावना की कमजोरी ( १) कठोर कार्य से भागना (१०) अविश्वास और शारीरिक निर्बलता उत्पन्न होते हैं । इनके अतिरिक्त जीवन-तत्त्वों को क्षीण करने और शरीर को निस्तेज बनाने में अफीम का प्रमुख हाथ है । पक्वाशय निर्बल हो जाने के कारण अफीमची सूखता जाता है ।
मानसिक क्षेत्र में अफीम के प्रयोग से ज्ञानात्मक शक्तियाँ निर्बल होती हैं । विशेषतः स्मरण शक्ति बिगड़ जाती है । स्नायु और ज्ञानतंतुओं में रोग लग जाते हैं । कुटेव पड़ जाने से यदि नियमित समय पर अफीम प्राप्त न हो तो किसी भी कार्य में तबीयत नहीं लगती, हाथ-पाँव बेजान से पड़े रहते हैं, क्योंकि अफीम उनकी स्वाभाविक शक्ति को पहले ही नष्ट कर डालती है । अफीम की आदत धीरे-धीरे मनुष्य के शरीर और आत्मा को भी खा जाती है । जिन स्थानों में अफीम खाने या पीने की आदत है, वहाँ का संपूर्ण पुरुष वर्ग निकम्मा हो जाता है ।
''भारत में बच्ची तक को अफीम दी जाती है । थकावट तथा जाड़े को भगाने के लिए भी उसका उपयोग किया जाता है । किसी बीमारी को रोकने या भगाने के लिए लोग अफीम का सेवन करते हैं और अनेक केवल व्यसन के लिए खाया करते हैं । ये सभी सेवन के तरीके कृत्रिम और अनुचित हैं । बच्चों को देने से वे नशे में पड़े तो रहते हैं, किंतु उनका स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, भूख मारी जाती है, स्वाभाविक चैतन्य शक्ति, उल्लास, उत्साह, प्रसन्नता मारी जाती है । शरीर कृष, दिमाग निर्बल एवं रक्तहीनता हो जाती है । उनकी जीवनशक्ति क्षीण हो जाने से वे जल्दी ही बीमारियों के शिकार बनते जाते हैं । दवाइयों तक का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । ऐसे बच्चे जब अध्ययन में पड़ते हैं तो, उनमें एकाग्रता और कुशाग्रता का अभाव होता है ।''
थकावट और जाड़े से मुक्ति के लिए इसका प्रयोग करना मूर्खता है, क्योंकि इससे कहीं स्वास्थ्यकर वस्तुएँ इसके लिए उपलब्ध हो सकती हैं । क्षणभर के नशे में हम यह भूले रह सकते हैं कि हम थके हुए नहीं हैं, किंतु अफीम का नशा उतरने पर और भी निर्बलता एवं आलस्य धर दबाता है । न दर्द, न थकान और न जाड़ा कोई भी हटते नहीं, वरन यह नशा लाकर रोगों या थकान के वास्तविक लक्षणों को ढँक देती है ।
श्री पैटन के अनुसार अफीमची को (१) कब्ज (२) रक्त की न्यूनता (३) भूख कम लगना (४) हृदय, फेंफड़ों एवं गुरदों के रोग (५) स्नायुजन्य कमजोरी (६) फुरतीलेपन का अभाव (७) आलस्य, निद्रा में कमी, चित्त भ्रम, दिवास्वप्न (८) नैतिक भावना की कमजोरी ( १) कठोर कार्य से भागना (१०) अविश्वास और शारीरिक निर्बलता उत्पन्न होते हैं । इनके अतिरिक्त जीवन-तत्त्वों को क्षीण करने और शरीर को निस्तेज बनाने में अफीम का प्रमुख हाथ है । पक्वाशय निर्बल हो जाने के कारण अफीमची सूखता जाता है ।
मानसिक क्षेत्र में अफीम के प्रयोग से ज्ञानात्मक शक्तियाँ निर्बल होती हैं । विशेषतः स्मरण शक्ति बिगड़ जाती है । स्नायु और ज्ञानतंतुओं में रोग लग जाते हैं । कुटेव पड़ जाने से यदि नियमित समय पर अफीम प्राप्त न हो तो किसी भी कार्य में तबीयत नहीं लगती, हाथ-पाँव बेजान से पड़े रहते हैं, क्योंकि अफीम उनकी स्वाभाविक शक्ति को पहले ही नष्ट कर डालती है । अफीम की आदत धीरे-धीरे मनुष्य के शरीर और आत्मा को भी खा जाती है । जिन स्थानों में अफीम खाने या पीने की आदत है, वहाँ का संपूर्ण पुरुष वर्ग निकम्मा हो जाता है ।