Books - शिष्टाचार और सहयोग
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Language: HINDI
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बातचीत करने की कला का महत्त्व
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अनेक व्यक्ति ऐसे भी पाए जाते हैं जो इतने योग्य नहीं होते जितना कि सब लोग उन्हें समझते हैं, पर वाणी की कुशलता के द्वारा वे लोग दूसरों के मन पर अपनी ऐसी छाप बिठाते हैं कि सुनने वाले मुग्ध हो जाते हैं । कई बार योग्यता रखने वाले लोग असफल रह जाते हैं । प्रकट करने के साधन ठीक हों तो कम योग्यता को ही भले प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है और उसके द्वारा बहुत काम निकाला जा सकता है । विद्युत विज्ञान के आचार्य जे० बी० राड का कथन है कि उत्पादन केंद्र में जितनी बिजली उत्पन्न होती है उसका दो-तिहाई भाग बिना उपयोग के ही बर्बाद हो जाता है पावर हाउस में उत्पन्न हुई बिजली का एक तिहाई भाग ही काम में आता है । वे कहते हैं कि अभी तक जो यंत्र बने हैं वे अधूरे हैं इसलिए आगे ऐसे यंत्रों का आविष्कार होना चाहिए जो उत्पादित बिजली की बरबादी न होने दें, जिस दिन इस प्रकार के यंत्र तैयार हो जावेंगे तब बिजलीघरों की शक्ति तिगुनी बढ जाएगी, अर्थात खरच तिहाई रह जाएगा ।
करीब-करीब ऐसी ही बरबादी मानवीय योग्यताओं की होती है। जिस तरह अधूरे विद्युत यंत्रों के कारण दो-तिहाई बिजली नष्ट हो जाती है, बातचीत की कला से अनभिज्ञ होने के कारण दो- तिहाई से भी अधिक योग्यताएँ निकम्मी पड़ी रहती हैं । यदि इस विद्या की जानकारी हो तो तिगुना कार्य संपादन किया जा सकता है । जितनी सफलता आप प्राप्त करते हैं उतनी तो तिहाई योग्यता रखने वाला भी प्राप्त कर सकता है । आप अपनी शक्तियों बढ़ाने के लिए जो परिश्रम करें किंतु उनसे लाभ उठाने में असमर्थ रहें तो वह उपार्जन किस काम का ? उचित यह है कि जितना कुछ पास में है उसका ठीक ढंग से उपयोग किया जाए । जिन्हें मूर्ख कहा जाता है या मूर्ख समझा जाता है वास्तव में वे उतने अयोग्य नहीं जितना कि विचार किया जाता है । उनमें भी बहुत अंशों तक बुद्धिमत्ता होती है, परंतु जिस अभाव के कारण उन्हें अपमानित होना पड़ता है वह अभाव है- "बातचीत की कला से परिचित न होना ।''
मनोगत भावों को भले प्रकार, उचित रीति से प्रकट कर सकने की योग्यता एक ऐसा आवश्यकीय गुण है जिसके बिना जीवन विकास में भारी बाधा उपस्थित होती है । आपके मन में क्या विचार है, क्या इच्छा करते हैं, क्या सम्मति रखते हैं, जब तक यह प्रकट न हो तब तक किसी को क्या पता चलेगा ? मन ही मन कुड़कुडा़ने से दूसरों के संबंध में भली-बुरी कल्पनाएँ करने से कुछ फायदा नहीं । आपको जो कठिनाई है, जो शिकायत है, जो संदेह है उसे स्पष्ट रूप से कह दीजिए जो सुधार या परिवर्तन चाहते हैं उसे भी प्रकट कर दीजिए । इस प्रकार अपनी विचारधारा को जब दूसरों के सामने रखेंगे और अपने कथन का औचित्य साबित करेंगे तो मनोनुकूल सुधार हो जाने की बहुत आशा है ।
भ्रम का, गलतफहमी का सबसे बड़ा कारण यह है कि झूठे संकोच की झिझक के कारण लोग अपने भावों को प्रकट नहीं करते इसलिए दूसरा यह समझता है कि आपको कोई कठिनाई या असुविधा नहीं है जब तक कहा न जाए तब तक दूसरा व्यक्ति कैसे जान ले कि आप क्या सोचते हैं ? आप क्या चाहते हैं ? अप्रत्यक्ष रूप से सांकेतिक भाषा में विचारों को जाहिर करना केवल भावुक और संवेदनशील लोगों पर प्रभाव डालता है साधारण कोटि के हृदयों पर उसका बहुत ही क्रम असर होता है अपनी निजी गुत्थियों में उलझे रहने के कारण दूसरों की सांकेतिक भाषा को समझने में वे या तो समर्थ नहीं होते या फिर थोड़ा-बहुत जरूरी कामों की ओर पहले ध्यान दिया जाता है । संभव है आपकी कठिनाई या इच्छा को कम जरूरी समझकर पीछे डाला जाता हो फिर के लिए टाला जाता हो । यदि सांकेतिक भाषा में मनोभाव प्रकट करने से काम चलता न दिखाई पड़े तो अपनी बात को स्पष्ट रूप से नम्र भाषा में कह दीजिए, उसे भीतर ही भीतर दबाए रह कर अपने को अधिक कठिनाई में मत डालते जाइए ।
संकोच उन बातों के कहने में होता है जिनमें दूसरों की कुछ हानि की या अपने को किसी लाभ की, संभावना होती है । ऐसे प्रस्ताव को रखते हुए झिझक इसलिए होती है कि अपनी उदारता; सहनशीलता को धब्बा लगेगा, नेकनीयती पर आक्षेप किया जाएगा या क्रोध का भाजन बनना पड़ेगा । यदि आपका पक्ष उचित, सच्चा और न्यायपूर्ण है तो इन कारणों से झिझकने की कोई आवश्यकता नहीं है, हाँ अनीतियुक्त मांग कर रहे हों, तो बात दूसरी है । यदि अनुचित या अन्याय युक्त आपकी माँग नहीं है तो अधिकारों की रक्षा के लिए निर्भयता पूर्वक अपनी माँग को प्रकट करना चाहिए । हर मनुष्य का पुनीत कर्त्तव्य है कि मानवता के अधिकारों को प्राप्त करे और उनकी रक्षा करे । केवल व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं वरन इसलिए भी कि अपहरण और कायरता इन दोनों घातक तत्त्वों का अंत हो ।
करीब-करीब ऐसी ही बरबादी मानवीय योग्यताओं की होती है। जिस तरह अधूरे विद्युत यंत्रों के कारण दो-तिहाई बिजली नष्ट हो जाती है, बातचीत की कला से अनभिज्ञ होने के कारण दो- तिहाई से भी अधिक योग्यताएँ निकम्मी पड़ी रहती हैं । यदि इस विद्या की जानकारी हो तो तिगुना कार्य संपादन किया जा सकता है । जितनी सफलता आप प्राप्त करते हैं उतनी तो तिहाई योग्यता रखने वाला भी प्राप्त कर सकता है । आप अपनी शक्तियों बढ़ाने के लिए जो परिश्रम करें किंतु उनसे लाभ उठाने में असमर्थ रहें तो वह उपार्जन किस काम का ? उचित यह है कि जितना कुछ पास में है उसका ठीक ढंग से उपयोग किया जाए । जिन्हें मूर्ख कहा जाता है या मूर्ख समझा जाता है वास्तव में वे उतने अयोग्य नहीं जितना कि विचार किया जाता है । उनमें भी बहुत अंशों तक बुद्धिमत्ता होती है, परंतु जिस अभाव के कारण उन्हें अपमानित होना पड़ता है वह अभाव है- "बातचीत की कला से परिचित न होना ।''
मनोगत भावों को भले प्रकार, उचित रीति से प्रकट कर सकने की योग्यता एक ऐसा आवश्यकीय गुण है जिसके बिना जीवन विकास में भारी बाधा उपस्थित होती है । आपके मन में क्या विचार है, क्या इच्छा करते हैं, क्या सम्मति रखते हैं, जब तक यह प्रकट न हो तब तक किसी को क्या पता चलेगा ? मन ही मन कुड़कुडा़ने से दूसरों के संबंध में भली-बुरी कल्पनाएँ करने से कुछ फायदा नहीं । आपको जो कठिनाई है, जो शिकायत है, जो संदेह है उसे स्पष्ट रूप से कह दीजिए जो सुधार या परिवर्तन चाहते हैं उसे भी प्रकट कर दीजिए । इस प्रकार अपनी विचारधारा को जब दूसरों के सामने रखेंगे और अपने कथन का औचित्य साबित करेंगे तो मनोनुकूल सुधार हो जाने की बहुत आशा है ।
भ्रम का, गलतफहमी का सबसे बड़ा कारण यह है कि झूठे संकोच की झिझक के कारण लोग अपने भावों को प्रकट नहीं करते इसलिए दूसरा यह समझता है कि आपको कोई कठिनाई या असुविधा नहीं है जब तक कहा न जाए तब तक दूसरा व्यक्ति कैसे जान ले कि आप क्या सोचते हैं ? आप क्या चाहते हैं ? अप्रत्यक्ष रूप से सांकेतिक भाषा में विचारों को जाहिर करना केवल भावुक और संवेदनशील लोगों पर प्रभाव डालता है साधारण कोटि के हृदयों पर उसका बहुत ही क्रम असर होता है अपनी निजी गुत्थियों में उलझे रहने के कारण दूसरों की सांकेतिक भाषा को समझने में वे या तो समर्थ नहीं होते या फिर थोड़ा-बहुत जरूरी कामों की ओर पहले ध्यान दिया जाता है । संभव है आपकी कठिनाई या इच्छा को कम जरूरी समझकर पीछे डाला जाता हो फिर के लिए टाला जाता हो । यदि सांकेतिक भाषा में मनोभाव प्रकट करने से काम चलता न दिखाई पड़े तो अपनी बात को स्पष्ट रूप से नम्र भाषा में कह दीजिए, उसे भीतर ही भीतर दबाए रह कर अपने को अधिक कठिनाई में मत डालते जाइए ।
संकोच उन बातों के कहने में होता है जिनमें दूसरों की कुछ हानि की या अपने को किसी लाभ की, संभावना होती है । ऐसे प्रस्ताव को रखते हुए झिझक इसलिए होती है कि अपनी उदारता; सहनशीलता को धब्बा लगेगा, नेकनीयती पर आक्षेप किया जाएगा या क्रोध का भाजन बनना पड़ेगा । यदि आपका पक्ष उचित, सच्चा और न्यायपूर्ण है तो इन कारणों से झिझकने की कोई आवश्यकता नहीं है, हाँ अनीतियुक्त मांग कर रहे हों, तो बात दूसरी है । यदि अनुचित या अन्याय युक्त आपकी माँग नहीं है तो अधिकारों की रक्षा के लिए निर्भयता पूर्वक अपनी माँग को प्रकट करना चाहिए । हर मनुष्य का पुनीत कर्त्तव्य है कि मानवता के अधिकारों को प्राप्त करे और उनकी रक्षा करे । केवल व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं वरन इसलिए भी कि अपहरण और कायरता इन दोनों घातक तत्त्वों का अंत हो ।