Books - आध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाय
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Language: HINDI
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दो शब्द
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भारतीय संस्कृति का मूल आधार अध्यात्म है। इसी के कारण हमारा देश समस्त संसार में अति प्राचीन काल से प्रसिद्ध और माननीय रहा है और इस विज्ञान प्रधान युग में भी संसार के बहुसंख्यक ज्ञानी व्यक्ति उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते। यद्यपि हम अच्छी तरह जानते हैं कि वर्तमान समय में मनुष्य या तो अज्ञानग्रस्त हो जाने से अध्यात्म का अर्थ ही नहीं समझते अथवा पाश्चात्य भौतिकवाद से आकर्षित होकर अध्यात्म को अलाभकर और निकम्मा मान बैठे हैं। पर इस प्रकार के व्यक्तियों की भूल या अवहेलना के कारण अध्यात्म का महत्व नहीं घट सकता। मानव-जीवन की गाड़ी कभी एक पहिये पर, अर्थात् भौतिकवादी मान्यताओं पर सुचारु रूप से नहीं चल सकती। मनुष्य की अन्तरंग वृत्तियों का परिमार्जन और विकास बिना आध्यात्मिक प्रगति के नहीं हो सकता और अध्यात्म से रहित व्यक्ति ‘‘मानव’’ कहलाने का अधिकारी नहीं बन सकता।
इसी विषम परिस्थिति, अर्थात् आध्यात्मिक भावना का अधिकांश में अभाव हो जाने के कारण इन दिनों संसार की हालत बड़ी संकटपूर्ण हो उठी है। मनुष्यों ने धन को—भौतिक सम्पदा को ही सब कुछ मान लिया है और उसे प्राप्त करने के लिये ये भलाई-बुराई, नैतिकता-अनैतिकता, सदाचार-दुराचार की कुछ भी परवाह नहीं करते। परिणाम यह हुआ है कि मनुष्यों की पारस्परिक सद्भावनाओं का निरन्तर ह्रास होता जाता है और सर्वत्र एक हीन कोटि की स्वार्थपरता, एक प्रकार का आसुरी संघर्ष उत्पन्न हो गया है। सामान्य व्यक्तियों से लेकर बड़े बड़े राष्ट्रों में भयंकर आपाधापी चल रही है और कहीं प्रत्यक्ष तथा कहीं अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे का पराभव करने का प्रयत्न कर रहे हैं, जिसके फलस्वरूप निकट भविष्य में एक नाशकारी संसार-संकट उत्पन्न हो जाने की सम्भावना प्रतिदिन बढ़ती जाती है। इस अवस्था में अध्यात्म और भौतिकता में समन्वय का मार्गदर्शन करने वाली यह पुस्तिका कल्याणकारी सिद्ध होगी ऐसी आशा है।
इसी विषम परिस्थिति, अर्थात् आध्यात्मिक भावना का अधिकांश में अभाव हो जाने के कारण इन दिनों संसार की हालत बड़ी संकटपूर्ण हो उठी है। मनुष्यों ने धन को—भौतिक सम्पदा को ही सब कुछ मान लिया है और उसे प्राप्त करने के लिये ये भलाई-बुराई, नैतिकता-अनैतिकता, सदाचार-दुराचार की कुछ भी परवाह नहीं करते। परिणाम यह हुआ है कि मनुष्यों की पारस्परिक सद्भावनाओं का निरन्तर ह्रास होता जाता है और सर्वत्र एक हीन कोटि की स्वार्थपरता, एक प्रकार का आसुरी संघर्ष उत्पन्न हो गया है। सामान्य व्यक्तियों से लेकर बड़े बड़े राष्ट्रों में भयंकर आपाधापी चल रही है और कहीं प्रत्यक्ष तथा कहीं अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे का पराभव करने का प्रयत्न कर रहे हैं, जिसके फलस्वरूप निकट भविष्य में एक नाशकारी संसार-संकट उत्पन्न हो जाने की सम्भावना प्रतिदिन बढ़ती जाती है। इस अवस्था में अध्यात्म और भौतिकता में समन्वय का मार्गदर्शन करने वाली यह पुस्तिका कल्याणकारी सिद्ध होगी ऐसी आशा है।