Books - अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
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Language: HINDI
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अन्तर्चक्षु खोल देगा निद्रा का मर्म
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अन्तर्यात्रा का विज्ञान उन समर्पित पथिकों के लिए है, जिन्हें सदा इस बात का बोध रहता है कि उनकी यह अनूठी यात्रा नींद के समय भी चलती रहती है। बल्कि कई बार तो नींद में इस यात्रा की तीव्रता और भी बढ़ जाती है। हालाँकि साधारण तौर पर लोग निद्रा के महत्त्व से अपरिचित ही रहते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि इन्सान अपनी जिन्दगी का तकरीबन एक तिहाई भाग नींद में ही बिताता है। फिर भी आमतौर पर कोई इसके बारे में न तो सोचता है और न ही ध्यान देता है। ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि मनुष्य ने चेतन मन की ओर, जाग्रत् दशा की ओर ज्यादा ध्यान लगाया है। जबकि भौतिक पदार्थ की भाँति मन भी त्रिआयामी है। इसका एक आयाम चेतन है, दूसरा अचेतन है और तीसरा अतिचेतन है।
महर्षि पतंजलि कहते हैं कि व्यक्तित्व की पहेली को सुलझाने के लिए, जीवन के महाप्रश्र को हल करने के लिए व्यक्ति को अपनी सम्पूर्णता में प्रतिबद्ध होना होगा। ध्यान सधे, समाधि सिद्ध हो इसके लिए व्यक्ति की समग्र ऊर्जा आवश्यक है। व्यक्ति जब अपने जीवन के सभी आयामों में सम्पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध होगा, केवल तभी अतिचेतन की बादल सदृश घटना में ऊर्ध्वगामी गति सम्भव है। चेतन मन तो सहज क्रियाशील है। इस क्रियाशीलता का अनुभव सभी को सदा किसी न किसी रूप में होता रहता है। अचेतन की अनुभूति गहन भावदशाओं में ही हो पाती है। गहन भावनाओं में जब चेतन नीरव निस्पन्द होता है, तब जो कुछ ग्रहण किया जाता है, वह सीधे व्यक्तित्व की जड़ों में पहुँचता है। एक तीसरी सम्भावना अतिचेतन की है, जिसके द्वार शून्यता में खुलते हैं। और इसकी अनुभूति बड़ी विरल दशाओं में विरलों को होती है।
महर्षि अगला सूत्र कहते हैं, अबकी बार की यह राह विचित्र है और अद्भुत भी। परन्तु इस पर चलना नामुमकिन नहीं है।
इस राह के रहस्य को खोलने वाला महर्षि का सूत्र है-
स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा॥ १/३८॥
शब्दार्थ- स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनम्= स्वप्न और निद्रा के ज्ञान का अवलम्बन करने वाला (चित्त); वा= भी (स्थिर हो सकता हैं)।
अर्थात् उस बोध पर भी ध्यान करो, जो स्वप्न और निद्रा के समय उतर आता है।
महर्षि पतंजलि का यह सूत्र उनकी योगजन्य रहस्यमयता का बड़ा सुस्पष्ट प्रमाण है। इसमें स्वप्न और निद्रा की भारी आध्यात्मिक उपयोगिता के संकेत हैं। इन संकेतों को जिसने समझ लिया, वह अपने व्यक्तित्व की बिखरी कड़ियों को एक सूत्र में पिरो सकता है। उन्हें सूत्रबद्ध, संगठित एवं सशक्त बना सकता है। युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव कहते थे कि साधक की निद्रा सामान्य जनों की नींद से अलग होती है। उसके स्वप्न भी साधारण लोगों से अलग होते हैं। इन पर ध्यान दिया जाय, तो बोध की अनूठी सम्पदा हासिल की जा सकती है।
सामान्य जनों के लिए सपने एक कौतूहल की भाँति होते हैं। परम्परावादी मनोवैज्ञानिक इनमें इच्छाओं के दमन को ढूँढ़ते हैं। जबकि योग विज्ञानी इन्हें अन्तर्चेतना के नवीन आयामों के प्रवेश द्वार के रूप में देखते हैं। सच यही है कि सपना एक जबरदस्त क्रिया है- यह अधिक शक्तिशाली है और सामान्य क्रम में सोचने की तुलना में अधिक अर्थपूर्ण भी। क्योंकि सपनों का सम्बन्ध सामान्य ढंग से सोचने- विचारने वाले मन की तुलना में अधिक गहरे अंश से सम्बन्धित है। जब कोई नींद में जाता है, तब मन का वह हिस्सा जो दिन भर काम कर रहा था, थका होता है, निढाल होता है। यह मन का बहुत छोटा हिस्सा होता है, अचेतन की तुलना में प्रायः दशांश। अचेतन नौ गुना ज्यादा बड़ा और ज्यादा शक्तिशाली है। हाँ, इसकी शक्तिमत्ता अतिचेतन की तुलना में जरूर कम है। परन्तु सामान्य चेतन मन की तुलना में इसकी शक्ति बहुत ज्यादा है।
यही वजह है कि जो समस्याएँ चेतन मन द्वारा हल नहीं होती, वे अचेतन द्वारा हल कर ली जाती हैं। जो समाधान जाग्रत् अवस्था में नहीं मिलते, वे प्रायः स्वप्न में मिल जाते हैं। बेन्जीन के अन्वेषक विज्ञानी काकुले की खोज कथा को सभी जानते हैं। वे बेन्जीन की रासायनिक संरचना को लेकर जिन दिनों काम कर रहे थे, उन दिनों उन्हें अनेकों प्रयासों के बाद भी कामयाबी नहीं मिली। अन्ततः एक दिन उन्हें स्वप्न में बेंजीन की संरचना का रहस्य मिला। कारण इतना भर है कि अचेतन की गहरी परतों में समाधान के गहरे सूत्र छिपे हैं। पर ये मिलते उन्हीं को हैं, जो अपनी समस्या को, प्रश्र को इन परतों तक पहुँचा सकें।
इसी तरह से निद्रा भी बहुत ज्ञान दे सकती है। क्योंकि वहाँ अनंत सम्पत्ति का भण्डार है। बहुत से जन्मों का भण्डार। क्योंकि बहुत सी चीजों को हमने वहाँ संचित किया है। योग साधक के जीवन में इसका महत्त्व बढ़ जाता है। क्योंकि साधना की गहनता में चेतना की गहरी परतें आन्दोलित- आलोकित होती है। जप एवं ध्यान के सूक्ष्म स्पन्दन इन्हें लगातार स्पन्दित करते हैं। इन स्पन्दनों से जहाँ जन्म- जन्मान्तर के संचित संस्कार उद्घाटित होते हैं, वहीं विराट् चेतना की झलकें भी झलकती हैं। कभी- कभी तो विशिष्ट जनों से, सिद्ध योगियों से सान्निध्य भी बनता है।
साधकों के संसार में यह बड़ा सुपरिचित रहस्य है कि सूक्ष्म जगत् में विचरण करने वाले सिद्ध योगी साधकों तक अपने सन्देश, अपनी सहायताएँ पहुँचाने के लिए स्वप्न एवं निद्रा का ही सहारा लेते हैं। ऐसा करने के लिए वे साधक के मन को अपनी संकल्प ऊर्जा से निस्पन्द एवं एकाग्र कर देते हैं। और फिर संवाद की सहज स्थिति बन जाती है। इस स्थिति में वे साधक के लिए उपयुक्त मार्गदर्शन और आने वाली परेशानियों के प्रति जागरूकता, अपेक्षित सावधानियाँ सभी कुछ बता देते हैं। यह कहना, सुनना इतना स्पष्ट होता है, जैसे कि सब कुछ जगते में ही कहा- सुना जाता है। यहाँ तक कि जगने पर भी इसकी स्मृति धुँधली एवं धूमिल नहीं पड़ती।
प्रगाढ़ निद्रा की साधना में भारी उपयोगिता है। इस अवस्था में योग साधक का ज्योति शरीर चेतना के विभिन्न आयामों की यात्रा कर लेता है। सद्गुरु के सान्निध्य में उसके सामने बोध के नवीन आयाम खुलते हैं। जब कभी साधक के जीवन में इस तरह की सूक्ष्म यात्राएँ होती हैं, तो इनके अनुभव बड़े अलौकिक होते हैं। उदाहरण के लिए हिमालय के दिव्य प्रदेशों में गमन, देवलोकों में गमन जैसी अनुभूतियाँ साधकों को अपनी निद्रा में सहज मिलती है। सच तो यह है कि उनके लिए निद्रा जागरण की तुलना में ज्यादा उपयोगी होती है। युगऋषि गुरुदेव कहते थे कि इन अनुभवों को अपने ध्यान का माध्यम बनाकर समाधि को सिद्ध किया जा सकता है।
महर्षि पतंजलि कहते हैं कि व्यक्तित्व की पहेली को सुलझाने के लिए, जीवन के महाप्रश्र को हल करने के लिए व्यक्ति को अपनी सम्पूर्णता में प्रतिबद्ध होना होगा। ध्यान सधे, समाधि सिद्ध हो इसके लिए व्यक्ति की समग्र ऊर्जा आवश्यक है। व्यक्ति जब अपने जीवन के सभी आयामों में सम्पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध होगा, केवल तभी अतिचेतन की बादल सदृश घटना में ऊर्ध्वगामी गति सम्भव है। चेतन मन तो सहज क्रियाशील है। इस क्रियाशीलता का अनुभव सभी को सदा किसी न किसी रूप में होता रहता है। अचेतन की अनुभूति गहन भावदशाओं में ही हो पाती है। गहन भावनाओं में जब चेतन नीरव निस्पन्द होता है, तब जो कुछ ग्रहण किया जाता है, वह सीधे व्यक्तित्व की जड़ों में पहुँचता है। एक तीसरी सम्भावना अतिचेतन की है, जिसके द्वार शून्यता में खुलते हैं। और इसकी अनुभूति बड़ी विरल दशाओं में विरलों को होती है।
महर्षि अगला सूत्र कहते हैं, अबकी बार की यह राह विचित्र है और अद्भुत भी। परन्तु इस पर चलना नामुमकिन नहीं है।
इस राह के रहस्य को खोलने वाला महर्षि का सूत्र है-
स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा॥ १/३८॥
शब्दार्थ- स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनम्= स्वप्न और निद्रा के ज्ञान का अवलम्बन करने वाला (चित्त); वा= भी (स्थिर हो सकता हैं)।
अर्थात् उस बोध पर भी ध्यान करो, जो स्वप्न और निद्रा के समय उतर आता है।
महर्षि पतंजलि का यह सूत्र उनकी योगजन्य रहस्यमयता का बड़ा सुस्पष्ट प्रमाण है। इसमें स्वप्न और निद्रा की भारी आध्यात्मिक उपयोगिता के संकेत हैं। इन संकेतों को जिसने समझ लिया, वह अपने व्यक्तित्व की बिखरी कड़ियों को एक सूत्र में पिरो सकता है। उन्हें सूत्रबद्ध, संगठित एवं सशक्त बना सकता है। युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव कहते थे कि साधक की निद्रा सामान्य जनों की नींद से अलग होती है। उसके स्वप्न भी साधारण लोगों से अलग होते हैं। इन पर ध्यान दिया जाय, तो बोध की अनूठी सम्पदा हासिल की जा सकती है।
सामान्य जनों के लिए सपने एक कौतूहल की भाँति होते हैं। परम्परावादी मनोवैज्ञानिक इनमें इच्छाओं के दमन को ढूँढ़ते हैं। जबकि योग विज्ञानी इन्हें अन्तर्चेतना के नवीन आयामों के प्रवेश द्वार के रूप में देखते हैं। सच यही है कि सपना एक जबरदस्त क्रिया है- यह अधिक शक्तिशाली है और सामान्य क्रम में सोचने की तुलना में अधिक अर्थपूर्ण भी। क्योंकि सपनों का सम्बन्ध सामान्य ढंग से सोचने- विचारने वाले मन की तुलना में अधिक गहरे अंश से सम्बन्धित है। जब कोई नींद में जाता है, तब मन का वह हिस्सा जो दिन भर काम कर रहा था, थका होता है, निढाल होता है। यह मन का बहुत छोटा हिस्सा होता है, अचेतन की तुलना में प्रायः दशांश। अचेतन नौ गुना ज्यादा बड़ा और ज्यादा शक्तिशाली है। हाँ, इसकी शक्तिमत्ता अतिचेतन की तुलना में जरूर कम है। परन्तु सामान्य चेतन मन की तुलना में इसकी शक्ति बहुत ज्यादा है।
यही वजह है कि जो समस्याएँ चेतन मन द्वारा हल नहीं होती, वे अचेतन द्वारा हल कर ली जाती हैं। जो समाधान जाग्रत् अवस्था में नहीं मिलते, वे प्रायः स्वप्न में मिल जाते हैं। बेन्जीन के अन्वेषक विज्ञानी काकुले की खोज कथा को सभी जानते हैं। वे बेन्जीन की रासायनिक संरचना को लेकर जिन दिनों काम कर रहे थे, उन दिनों उन्हें अनेकों प्रयासों के बाद भी कामयाबी नहीं मिली। अन्ततः एक दिन उन्हें स्वप्न में बेंजीन की संरचना का रहस्य मिला। कारण इतना भर है कि अचेतन की गहरी परतों में समाधान के गहरे सूत्र छिपे हैं। पर ये मिलते उन्हीं को हैं, जो अपनी समस्या को, प्रश्र को इन परतों तक पहुँचा सकें।
इसी तरह से निद्रा भी बहुत ज्ञान दे सकती है। क्योंकि वहाँ अनंत सम्पत्ति का भण्डार है। बहुत से जन्मों का भण्डार। क्योंकि बहुत सी चीजों को हमने वहाँ संचित किया है। योग साधक के जीवन में इसका महत्त्व बढ़ जाता है। क्योंकि साधना की गहनता में चेतना की गहरी परतें आन्दोलित- आलोकित होती है। जप एवं ध्यान के सूक्ष्म स्पन्दन इन्हें लगातार स्पन्दित करते हैं। इन स्पन्दनों से जहाँ जन्म- जन्मान्तर के संचित संस्कार उद्घाटित होते हैं, वहीं विराट् चेतना की झलकें भी झलकती हैं। कभी- कभी तो विशिष्ट जनों से, सिद्ध योगियों से सान्निध्य भी बनता है।
साधकों के संसार में यह बड़ा सुपरिचित रहस्य है कि सूक्ष्म जगत् में विचरण करने वाले सिद्ध योगी साधकों तक अपने सन्देश, अपनी सहायताएँ पहुँचाने के लिए स्वप्न एवं निद्रा का ही सहारा लेते हैं। ऐसा करने के लिए वे साधक के मन को अपनी संकल्प ऊर्जा से निस्पन्द एवं एकाग्र कर देते हैं। और फिर संवाद की सहज स्थिति बन जाती है। इस स्थिति में वे साधक के लिए उपयुक्त मार्गदर्शन और आने वाली परेशानियों के प्रति जागरूकता, अपेक्षित सावधानियाँ सभी कुछ बता देते हैं। यह कहना, सुनना इतना स्पष्ट होता है, जैसे कि सब कुछ जगते में ही कहा- सुना जाता है। यहाँ तक कि जगने पर भी इसकी स्मृति धुँधली एवं धूमिल नहीं पड़ती।
प्रगाढ़ निद्रा की साधना में भारी उपयोगिता है। इस अवस्था में योग साधक का ज्योति शरीर चेतना के विभिन्न आयामों की यात्रा कर लेता है। सद्गुरु के सान्निध्य में उसके सामने बोध के नवीन आयाम खुलते हैं। जब कभी साधक के जीवन में इस तरह की सूक्ष्म यात्राएँ होती हैं, तो इनके अनुभव बड़े अलौकिक होते हैं। उदाहरण के लिए हिमालय के दिव्य प्रदेशों में गमन, देवलोकों में गमन जैसी अनुभूतियाँ साधकों को अपनी निद्रा में सहज मिलती है। सच तो यह है कि उनके लिए निद्रा जागरण की तुलना में ज्यादा उपयोगी होती है। युगऋषि गुरुदेव कहते थे कि इन अनुभवों को अपने ध्यान का माध्यम बनाकर समाधि को सिद्ध किया जा सकता है।