Books - दीर्घ जीवन के रहस्य
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Language: HINDI
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स्वास्थ्य-निर्माण में मालिश का प्रयोग
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स्वास्थ्य-निर्माण में मालिश एक अत्यन्त उपयोगी व्यायाम है। इससे स्वस्थ जीवन जीने के लिए ऐसी ही मदद मिलती है। जैसी आहार, विश्राम, उपवास व टहलने आदि से मिलती है। आयुर्वेद में कहा गया है—
वातव्याधि हरति कुरुते सर्व गात्रेषु पुष्ठिं ।
दृष्टि मन्दामीप वितानुतेवैवतेयोयां च ।।
निद्रां सौख्यं जनपति जरां हंति शक्ति विधतै ।
धत्तेकान्ति कनक सदृशीं नित्यमभ्यंग योगात् ।।
अर्थात्—‘‘नियमित रूप से तेल मालिश करने से वात रोग दूर होता है। अंग पुष्ट होते हैं, दृष्टि तेज होती है, निद्रा और सुख उत्पन्न होता है, वृद्धावस्था दूर होती है, शरीर में शक्ति उत्पन्न होती है और शरीर का वर्ण सोने के समान हो जाता है।’’
मालिश का प्रमुख कार्य है रक्त संचार में तेजी लाना। शरीर में रुधिर संचार का कार्य हृदय से सम्पन्न होता है। स्वच्छ खून धमनियों द्वारा सारे शरीर में दौड़ता है और अशुद्ध-रक्त-वाहिनी शिराओं द्वारा अस्वच्छ रुधिर हृदय में एकत्रित होता है। यहां उसकी सफाई होती है। खून जब पर्याप्त मात्रा में हृदय में नहीं पहुंचता तब तब सफाई की प्रक्रिया तेज नहीं होती। अशुद्ध रक्त से सफाई की प्रक्रिया तेज नहीं होती। शिरायें शिथिल बनी रहती हैं। किन्तु मालिश से इन शिराओं में गर्मी उत्पन्न होती है और तेजी से रक्त संचार होने लगता है। हृदय की गति भी उसी अनुपात से बढ़ जाती है और सारे शरीर में स्वच्छ रुधिर लहलहाने लगता है। मालिश करने का अर्थ है रक्त-शुद्धि के कार्य में नाड़ियों की मदद करना।
मालिश एक ऐसी कला है जिससे शरीर के सम्पूर्ण अवयवों में रक्ताभिषरण की क्रिया तेजी से सम्पन्न होती है। जिन स्थानों में रक्त जमा हुआ होता है या हल्की गुत्थियां पड़ जाती हैं उसे पिघला कर पतला बनाने का काम मालिश से आसानी से पूरा हो जाता है। इससे रक्तवाहिनी नाड़ियों को विवश होकर कार्य में तेजी से जुट जाना पड़ता है। रक्त पतला हो जाने से फेफड़े भी आसानी से दूषित रक्त-विकार दूर कर देते हैं। यह गन्दगी मल-मूत्र और पसीने द्वारा स्वतः बाहर निकल जाती है। साथ ही शरीर का हल्का व्यायाम हो जाने से हलकापन चैतन्यता एवं स्फूर्ति बढ़ जाती है। इससे फेफड़े, जिगर, तिल्ली, छोटी व बड़ी आंतें, गले की ग्रन्थियां, रीढ़ के चक्रों की बीमारी खराबी व कमजोरी दूर हो जाती है।
शारीरिक अंगों में क्रियाशीलता पाचनशक्ति, रसनिःसरण पचे हुए रस का शरीर में शोषण तथा सफाई के कार्यों में तेजी लाने का सर्वोत्तम उपाय मालिश है। धमनी और शिराओं की आकुंचन क्रिया में तेजी आने से रक्त चाप बढ़ जाता है। इससे रक्त के श्वेत जीवाणु सशक्त होते हैं जो किसी भी रोग के कीटाणुओं का मुकाबला करने में सफल होते हैं। रोग-निरोधक शक्ति बढ़ती है। और सम्पूर्ण रुधिर विकार दूर हो जाते हैं।
मनुष्य के सारे शरीर में लगभग 347 पेशियां होती हैं। इसमें से ऊपरी सतह वाली लगभग 44 पेशियां होती हैं। दूसरे व्यायामों से ऊपरी सतह की मांस पेशियों में तो हलचल हो जाती है किन्तु आन्तरिक मांस पेशियों को लाभ और स्नेह सिंचन पहुंचाने के लिए गहरी मालिश की आवश्यकता होती है। इससे निष्क्रिय पड़े अंगों में क्रियाशीलता उत्पन्न होती हैं और ये मांस पेशियां बढ़ने लगती हैं। जिनमें अधिक मोटापा या भद्दापन आ जाता है। वे सुडौल बनने लगती हैं।
मांसपेशियों की मालिश से उनमें शक्ति आती है। थकान दूर होती है। मानसिक या शारीरिक श्रम से उत्पन्न थकावट पैदा करने वाला दूषित तत्व जो इनमें जमा हो जाता है वह दूर हो जाता है और स्फूर्ति बढ़ जाती है। इनमें वृद्धि व विकास के साथ-साथ ही बोझा उठाने व कार्य करने की शक्ति जागृत होती है।
शरीर की स्नायु प्रणाली पर मालिश का बड़ा महत्व पूर्ण असर पड़ता है। इनमें मालिश से उत्तेजना पैदा होती है जिससे थकावट दूर होकर आराम की स्थिति आती है। जिन स्नायुओं में किसी प्रकार का दर्द हो उनकी मालिश करने से दर्द कम हो जाता है।
सरसों का तेल इस क्रिया के लिए अधिक उपयुक्त होता है। रोग नाशक शक्ति होने के साथ ही इससे शरीर को शीतलता व चिकनाई मिलती है। गांठें परिपुष्ट होती हैं और चर्म विकार दूर होते हैं। शुद्ध धानी का तेल मिल के तेल की अपेक्षा अधिक लाभदायक होता है। जिन्हें महंगा न पड़े उन्हें नारियल का तेल इस्तेमाल करना चाहिये। नारियल का वृक्ष प्रायः सभी पेड़ों से ऊंचा होता है अतः वह सूर्य किरणों से व्यापक शक्ति खींच लेता है। इसमें एक रेडियम नामक विशेष प्रकार का तत्व होता है। जो शारीरिक धातु को पुष्ट करने में लवण का कार्य करता है। स्नायु मण्डल रक्त-वाहिनी नाड़ियों, अन्तड़ियों तथा दूसरे शारीरिक अवयवों की उष्णता को हटाकर शीतलता पैदा करता है। नैसर्गिक विटामिन प्राप्त होता है। कुछ बीमारियों में जैसे लकवा वात आदि में राई या तिल का तेल भी इस्तेमाल करते हैं। रंगीन कांच की बोतलों में नारियल का तेल भर कर कुछ दिन धूप में रखने से वह भी इन इन रोगों में इस्तेमाल करने योग्य हो जाता है।
मालिश के प्रमुख तरीके ये हैं—(1) घर्षण (2) दण्डन (3) थपकी (4) कम्पन और (5) सन्धि प्रसारण। इनका प्रयोग अवस्था स्थिति और आवश्यकता के मुताबिक किया जाता है। शरीर के ऊपरी सतह पर समान दबाव से गदेलियों की सहायता से रगड़ने या मालिश करने को घर्षण कहते हैं। इससे रक्त में गर्मी पैदा करने के लिये तेजी से हाथ चलाना पड़ता है। यह गति प्रति मिनट तीस से लेकर 180 तक होनी चाहिये और तब तक किया जाना चाहिये जब तक रोम-कूपों से सारे तेल का शोषण नहीं हो जाता। केवल तेल चुपड़ लेना या उसे ऊपर-ऊपर ही रगड़ते रहना लाभदायक नहीं होता। इस क्रिया में यह ध्यान रखना चाहिये कि हाथों की गति हर बार हृदय की ओर हो जैसे यदि पांव का घर्षण कर रहे हैं तो पिण्डुली से मोटी जंघाओं की ओर हाथ ले जाना चाहिये। इसी प्रकार बारी-बारी से हर अंग की मालिश करने से चर्म विकार दूर होते हैं, त्वचा स्वच्छ कोमल व स्निग्ध हो जाती है और दूसरे अवयवों के भी दूषित पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
शरीर के विभिन्न स्थानों की मालिश करने से कई प्रकार के लाभ होते हैं। पेड़ू की मालिश करने से कब्ज की शिकायत दूर होती है। सन्धि बात में जोड़ों की मालिश करते हैं। चर्बी इकट्ठा हुए स्थान की मालिश करने से मोटापा दूर होता है और शरीर सुडौल बनता है। सिर की मालिश अनिद्रा को भगाती है। मसूड़ों की घर्षण क्रिया भी एक प्रकार की मालिश ही है इससे दांत मजबूत होते हैं। मधुमेह के रोगियों को मालिश कराने से बेकार शर्करा जल जाती है और उसका पेशाब से निकलना बन्द हो जाता है। पक्षाघात, अपच, सायटिका, पथरी, लीवर की दुर्बलता, डिम्बाशय, प्लूरिस, तथा हृदय की दुर्बलता के लिए शरीर की नियमित मालिश करनी चाहिये, इससे तात्कालिक लाभ मिलता है।
मालिश करने के लिये जिन्हें साधन व समय न मिले उन्हें स्नान करते समय शरीर के सभी अंगों को खूब मल कर धोना चाहिये। रगड़ने की क्रिया मालिश जैसी हो—छोरों से हृदय की ओर को हो तो स्नान से भी वही लाभ मिलता है जो किसी तेल या उबटन से प्राप्त होता है। स्नान करने के उपरान्त किसी मोटे तौलिये से सारे शरीर को रगड़ कर पोंछ डालना चाहिये इससे रक्त के संचार में तेजी तथा सजीवता उत्पन्न होती है।
मालिश करने के बाद थोड़ी देर तक हलकी धूप में बैठना स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होता है। दर्द या चोट की मालिश में तो सेंकने की क्रिया भी साथ चलाते हैं। इससे खून में गर्मी पैदा होती है और दूषित पदार्थ निकल जाते हैं। मालिश से उत्पन्न पसीना व तेल आदि के सम्मिश्रण से उत्पन्न गन्दगी तथा रोमकूपों की सफाई के लिये साबुन या मुल्तानी मिट्टी से स्नान कर लेना बड़ा लाभदायक होता है। इससे शरीर को शीतलता प्राप्त होती है।
धनी-निर्धन, रोगी या स्वस्थ, बालक, वृद्ध या नवयुवक सभी मालिश से अपना स्वास्थ्य सुधार सकते या स्थिर बनाये रख सकते हैं। इसमें किसी प्रकार हानि की आशंका नहीं है। नियमित रूप से प्रतिदिन तेल मालिश करना स्वास्थ्य के लिए अतीव हितकारी होता है।
वातव्याधि हरति कुरुते सर्व गात्रेषु पुष्ठिं ।
दृष्टि मन्दामीप वितानुतेवैवतेयोयां च ।।
निद्रां सौख्यं जनपति जरां हंति शक्ति विधतै ।
धत्तेकान्ति कनक सदृशीं नित्यमभ्यंग योगात् ।।
अर्थात्—‘‘नियमित रूप से तेल मालिश करने से वात रोग दूर होता है। अंग पुष्ट होते हैं, दृष्टि तेज होती है, निद्रा और सुख उत्पन्न होता है, वृद्धावस्था दूर होती है, शरीर में शक्ति उत्पन्न होती है और शरीर का वर्ण सोने के समान हो जाता है।’’
मालिश का प्रमुख कार्य है रक्त संचार में तेजी लाना। शरीर में रुधिर संचार का कार्य हृदय से सम्पन्न होता है। स्वच्छ खून धमनियों द्वारा सारे शरीर में दौड़ता है और अशुद्ध-रक्त-वाहिनी शिराओं द्वारा अस्वच्छ रुधिर हृदय में एकत्रित होता है। यहां उसकी सफाई होती है। खून जब पर्याप्त मात्रा में हृदय में नहीं पहुंचता तब तब सफाई की प्रक्रिया तेज नहीं होती। अशुद्ध रक्त से सफाई की प्रक्रिया तेज नहीं होती। शिरायें शिथिल बनी रहती हैं। किन्तु मालिश से इन शिराओं में गर्मी उत्पन्न होती है और तेजी से रक्त संचार होने लगता है। हृदय की गति भी उसी अनुपात से बढ़ जाती है और सारे शरीर में स्वच्छ रुधिर लहलहाने लगता है। मालिश करने का अर्थ है रक्त-शुद्धि के कार्य में नाड़ियों की मदद करना।
मालिश एक ऐसी कला है जिससे शरीर के सम्पूर्ण अवयवों में रक्ताभिषरण की क्रिया तेजी से सम्पन्न होती है। जिन स्थानों में रक्त जमा हुआ होता है या हल्की गुत्थियां पड़ जाती हैं उसे पिघला कर पतला बनाने का काम मालिश से आसानी से पूरा हो जाता है। इससे रक्तवाहिनी नाड़ियों को विवश होकर कार्य में तेजी से जुट जाना पड़ता है। रक्त पतला हो जाने से फेफड़े भी आसानी से दूषित रक्त-विकार दूर कर देते हैं। यह गन्दगी मल-मूत्र और पसीने द्वारा स्वतः बाहर निकल जाती है। साथ ही शरीर का हल्का व्यायाम हो जाने से हलकापन चैतन्यता एवं स्फूर्ति बढ़ जाती है। इससे फेफड़े, जिगर, तिल्ली, छोटी व बड़ी आंतें, गले की ग्रन्थियां, रीढ़ के चक्रों की बीमारी खराबी व कमजोरी दूर हो जाती है।
शारीरिक अंगों में क्रियाशीलता पाचनशक्ति, रसनिःसरण पचे हुए रस का शरीर में शोषण तथा सफाई के कार्यों में तेजी लाने का सर्वोत्तम उपाय मालिश है। धमनी और शिराओं की आकुंचन क्रिया में तेजी आने से रक्त चाप बढ़ जाता है। इससे रक्त के श्वेत जीवाणु सशक्त होते हैं जो किसी भी रोग के कीटाणुओं का मुकाबला करने में सफल होते हैं। रोग-निरोधक शक्ति बढ़ती है। और सम्पूर्ण रुधिर विकार दूर हो जाते हैं।
मनुष्य के सारे शरीर में लगभग 347 पेशियां होती हैं। इसमें से ऊपरी सतह वाली लगभग 44 पेशियां होती हैं। दूसरे व्यायामों से ऊपरी सतह की मांस पेशियों में तो हलचल हो जाती है किन्तु आन्तरिक मांस पेशियों को लाभ और स्नेह सिंचन पहुंचाने के लिए गहरी मालिश की आवश्यकता होती है। इससे निष्क्रिय पड़े अंगों में क्रियाशीलता उत्पन्न होती हैं और ये मांस पेशियां बढ़ने लगती हैं। जिनमें अधिक मोटापा या भद्दापन आ जाता है। वे सुडौल बनने लगती हैं।
मांसपेशियों की मालिश से उनमें शक्ति आती है। थकान दूर होती है। मानसिक या शारीरिक श्रम से उत्पन्न थकावट पैदा करने वाला दूषित तत्व जो इनमें जमा हो जाता है वह दूर हो जाता है और स्फूर्ति बढ़ जाती है। इनमें वृद्धि व विकास के साथ-साथ ही बोझा उठाने व कार्य करने की शक्ति जागृत होती है।
शरीर की स्नायु प्रणाली पर मालिश का बड़ा महत्व पूर्ण असर पड़ता है। इनमें मालिश से उत्तेजना पैदा होती है जिससे थकावट दूर होकर आराम की स्थिति आती है। जिन स्नायुओं में किसी प्रकार का दर्द हो उनकी मालिश करने से दर्द कम हो जाता है।
सरसों का तेल इस क्रिया के लिए अधिक उपयुक्त होता है। रोग नाशक शक्ति होने के साथ ही इससे शरीर को शीतलता व चिकनाई मिलती है। गांठें परिपुष्ट होती हैं और चर्म विकार दूर होते हैं। शुद्ध धानी का तेल मिल के तेल की अपेक्षा अधिक लाभदायक होता है। जिन्हें महंगा न पड़े उन्हें नारियल का तेल इस्तेमाल करना चाहिये। नारियल का वृक्ष प्रायः सभी पेड़ों से ऊंचा होता है अतः वह सूर्य किरणों से व्यापक शक्ति खींच लेता है। इसमें एक रेडियम नामक विशेष प्रकार का तत्व होता है। जो शारीरिक धातु को पुष्ट करने में लवण का कार्य करता है। स्नायु मण्डल रक्त-वाहिनी नाड़ियों, अन्तड़ियों तथा दूसरे शारीरिक अवयवों की उष्णता को हटाकर शीतलता पैदा करता है। नैसर्गिक विटामिन प्राप्त होता है। कुछ बीमारियों में जैसे लकवा वात आदि में राई या तिल का तेल भी इस्तेमाल करते हैं। रंगीन कांच की बोतलों में नारियल का तेल भर कर कुछ दिन धूप में रखने से वह भी इन इन रोगों में इस्तेमाल करने योग्य हो जाता है।
मालिश के प्रमुख तरीके ये हैं—(1) घर्षण (2) दण्डन (3) थपकी (4) कम्पन और (5) सन्धि प्रसारण। इनका प्रयोग अवस्था स्थिति और आवश्यकता के मुताबिक किया जाता है। शरीर के ऊपरी सतह पर समान दबाव से गदेलियों की सहायता से रगड़ने या मालिश करने को घर्षण कहते हैं। इससे रक्त में गर्मी पैदा करने के लिये तेजी से हाथ चलाना पड़ता है। यह गति प्रति मिनट तीस से लेकर 180 तक होनी चाहिये और तब तक किया जाना चाहिये जब तक रोम-कूपों से सारे तेल का शोषण नहीं हो जाता। केवल तेल चुपड़ लेना या उसे ऊपर-ऊपर ही रगड़ते रहना लाभदायक नहीं होता। इस क्रिया में यह ध्यान रखना चाहिये कि हाथों की गति हर बार हृदय की ओर हो जैसे यदि पांव का घर्षण कर रहे हैं तो पिण्डुली से मोटी जंघाओं की ओर हाथ ले जाना चाहिये। इसी प्रकार बारी-बारी से हर अंग की मालिश करने से चर्म विकार दूर होते हैं, त्वचा स्वच्छ कोमल व स्निग्ध हो जाती है और दूसरे अवयवों के भी दूषित पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
शरीर के विभिन्न स्थानों की मालिश करने से कई प्रकार के लाभ होते हैं। पेड़ू की मालिश करने से कब्ज की शिकायत दूर होती है। सन्धि बात में जोड़ों की मालिश करते हैं। चर्बी इकट्ठा हुए स्थान की मालिश करने से मोटापा दूर होता है और शरीर सुडौल बनता है। सिर की मालिश अनिद्रा को भगाती है। मसूड़ों की घर्षण क्रिया भी एक प्रकार की मालिश ही है इससे दांत मजबूत होते हैं। मधुमेह के रोगियों को मालिश कराने से बेकार शर्करा जल जाती है और उसका पेशाब से निकलना बन्द हो जाता है। पक्षाघात, अपच, सायटिका, पथरी, लीवर की दुर्बलता, डिम्बाशय, प्लूरिस, तथा हृदय की दुर्बलता के लिए शरीर की नियमित मालिश करनी चाहिये, इससे तात्कालिक लाभ मिलता है।
मालिश करने के लिये जिन्हें साधन व समय न मिले उन्हें स्नान करते समय शरीर के सभी अंगों को खूब मल कर धोना चाहिये। रगड़ने की क्रिया मालिश जैसी हो—छोरों से हृदय की ओर को हो तो स्नान से भी वही लाभ मिलता है जो किसी तेल या उबटन से प्राप्त होता है। स्नान करने के उपरान्त किसी मोटे तौलिये से सारे शरीर को रगड़ कर पोंछ डालना चाहिये इससे रक्त के संचार में तेजी तथा सजीवता उत्पन्न होती है।
मालिश करने के बाद थोड़ी देर तक हलकी धूप में बैठना स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होता है। दर्द या चोट की मालिश में तो सेंकने की क्रिया भी साथ चलाते हैं। इससे खून में गर्मी पैदा होती है और दूषित पदार्थ निकल जाते हैं। मालिश से उत्पन्न पसीना व तेल आदि के सम्मिश्रण से उत्पन्न गन्दगी तथा रोमकूपों की सफाई के लिये साबुन या मुल्तानी मिट्टी से स्नान कर लेना बड़ा लाभदायक होता है। इससे शरीर को शीतलता प्राप्त होती है।
धनी-निर्धन, रोगी या स्वस्थ, बालक, वृद्ध या नवयुवक सभी मालिश से अपना स्वास्थ्य सुधार सकते या स्थिर बनाये रख सकते हैं। इसमें किसी प्रकार हानि की आशंका नहीं है। नियमित रूप से प्रतिदिन तेल मालिश करना स्वास्थ्य के लिए अतीव हितकारी होता है।