Books - दीर्घ जीवन के रहस्य
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Language: HINDI
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दीर्घायु के पांच सूत्र
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प्रत्येक व्यक्ति दीर्घायु होना चाहता है, पर यह विश्वास करने वाले कदाचित कुछ ही हैं कि वे 100 वर्ष व इससे अधिक भी जीवित रह सकते हैं। कारण प्रायः लोग समझते हैं कि जीवन और मृत्यु का प्रश्न मनुष्य के हाथ से बाहर है और वह केवल ईश्वर के हाथ में है, यद्यपि वे सर्दी, गर्मी तथा अन्य रोगोत्पादक प्रभावों से बचने के उपाय प्रतिदिन काम में लाते हैं। जब वे रोगी हो जाते हैं, तो दवाई लेते हैं और यह विश्वास करते हैं कि यदि औषधि न लेंगे तो मर जायेंगे, फिर भी अपनी उपेक्षा और अनियमितता के कारण दीर्घजीवी होने की बात अपने काबू के बाहर मानते हैं।
हमारे स्वास्थ्य का निर्देशक ईश्वर नहीं है, हम स्वयं हैं। वास्तविक हमारा स्वास्थ्य प्रकृति पर निर्भर करता है। वह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कहां तक प्रकृति के साथ सहयोग करते हैं और कहां तक उसके मार्ग में बाधा डालते हैं। विश्व के काम के इस अंश को ईश्वर ने प्रकृति के सुपुर्द कर दिया है और वह इसके काम में दखल देना नहीं चाहता। एक समय था जब मनुष्य रोग के स्वरूप, उसके कारण और उपचार के बारे में एक दम अनजान था। वह यह समझता था कि रोग देव-देवियों द्वारा मनुष्यों से किये गये पापों और अपराधों का दण्ड है पर आज समय बदल गया है। आज शीतला देवी (चेचक) पूजा से नहीं, इलाज से शांत हो जाती है। हैजा, प्लेग, इन्फ्लुएंजा, तथा इसी प्रकार की अन्य भयानक एवं संक्रामक बीमारियां संसार के कई उन्नत देशों से समाप्त हो चुकी हैं। अतः स्वास्थ्य के कुछ ऐसे सरल नियम हैं, जिनका पालन करने से मनुष्य की औसतन आयु 100 व इससे अधिक वर्ष तक भी जा सकती है। खास-खास नियम ये हैं—
(1) जीवन को निरन्तर पोषक तत्त्व मिलने चाहिए। हमारा भोजन पुष्टिकारक व शुद्ध हो। केवल स्वाद के लिये मिर्च-मसाले, तली हुई चीजें, चाय, काफी, तम्बाकू और विशेषतः शराब से बचना चाहिए। सादी रोटी, शाक-सब्जी, दाल दूध ये पदार्थ है, जिनकी आवश्यकता मनुष्य को शरीर-स्वास्थ्य के लिये है। हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम उतना ही खावें, जितना हम आसानी से हजम कर सकते हैं।
(2) दूसरी चीज आवश्यक है नियमित व्यायाम। शहर से बाहर विशेषतः खुली हवा में प्रतिदिन 2-3 मील टहलना चाहिए। यह सम्भव न हो तो घर के भीतर व्यायाम किया जाये। व्यायाम न तो बहुत हलका ही हो और न बहुत भारी। कमजोर व्यक्तियों और दिल की धड़कन के रोगियों के लिये टहलने का व्यायाम लाभदायक है।
(3) खाने, पीने, सोने और काम करने की हमारी आदतें नियमित होनी चाहिए। अधिक बोलने से भी बचना चाहिए। हंसी-मजाक व आमोद-प्रमोद जीवन के लिये उपयोगी हैं पर परिमित मात्रा में ही। हमें सदा सक्रिय रहना चाहिए। सुस्ती और काहिली का शिकार नहीं होना चाहिए। किसी अच्छे काम में जुटे रहना चाहिए। इसमें शरीर-श्रम सभी शामिल हों। बिना कुछ न कुछ शरीर-श्रम किये हमें भोजन भी न करना चाहिए।
(4) बीमारी की हालत में आराम करना चाहिए तथा चिन्ताओं और बहुत अधिक सोच-विचार से बचना चाहिए। हमें केवल रोग नाशक ही नहीं बल्कि कुछ ऐसी औषधियों का सेवन करना चाहिए जो शमन करने वाली हों और केवल प्रकृति के स्वाभाविक कार्य में सहायता करती हों। इस दृष्टि से प्राकृतिक या होम्योपैथी चिकित्सा सर्वाधिक लाभप्रद हो सकती है।
(5) सबसे अधिक महत्वपूर्ण और जरूरी बात मन को सब परिस्थितियों में स्थिर और शान्त रखना है। ऐसे कार्यों और साधनों की खोज करते रहिये जिनसे मन शान्त और प्रसन्न रह सके। प्रसन्नता और शांति का वातावरण दीर्घायु का परम-साधन है।
हमारे स्वास्थ्य का निर्देशक ईश्वर नहीं है, हम स्वयं हैं। वास्तविक हमारा स्वास्थ्य प्रकृति पर निर्भर करता है। वह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कहां तक प्रकृति के साथ सहयोग करते हैं और कहां तक उसके मार्ग में बाधा डालते हैं। विश्व के काम के इस अंश को ईश्वर ने प्रकृति के सुपुर्द कर दिया है और वह इसके काम में दखल देना नहीं चाहता। एक समय था जब मनुष्य रोग के स्वरूप, उसके कारण और उपचार के बारे में एक दम अनजान था। वह यह समझता था कि रोग देव-देवियों द्वारा मनुष्यों से किये गये पापों और अपराधों का दण्ड है पर आज समय बदल गया है। आज शीतला देवी (चेचक) पूजा से नहीं, इलाज से शांत हो जाती है। हैजा, प्लेग, इन्फ्लुएंजा, तथा इसी प्रकार की अन्य भयानक एवं संक्रामक बीमारियां संसार के कई उन्नत देशों से समाप्त हो चुकी हैं। अतः स्वास्थ्य के कुछ ऐसे सरल नियम हैं, जिनका पालन करने से मनुष्य की औसतन आयु 100 व इससे अधिक वर्ष तक भी जा सकती है। खास-खास नियम ये हैं—
(1) जीवन को निरन्तर पोषक तत्त्व मिलने चाहिए। हमारा भोजन पुष्टिकारक व शुद्ध हो। केवल स्वाद के लिये मिर्च-मसाले, तली हुई चीजें, चाय, काफी, तम्बाकू और विशेषतः शराब से बचना चाहिए। सादी रोटी, शाक-सब्जी, दाल दूध ये पदार्थ है, जिनकी आवश्यकता मनुष्य को शरीर-स्वास्थ्य के लिये है। हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम उतना ही खावें, जितना हम आसानी से हजम कर सकते हैं।
(2) दूसरी चीज आवश्यक है नियमित व्यायाम। शहर से बाहर विशेषतः खुली हवा में प्रतिदिन 2-3 मील टहलना चाहिए। यह सम्भव न हो तो घर के भीतर व्यायाम किया जाये। व्यायाम न तो बहुत हलका ही हो और न बहुत भारी। कमजोर व्यक्तियों और दिल की धड़कन के रोगियों के लिये टहलने का व्यायाम लाभदायक है।
(3) खाने, पीने, सोने और काम करने की हमारी आदतें नियमित होनी चाहिए। अधिक बोलने से भी बचना चाहिए। हंसी-मजाक व आमोद-प्रमोद जीवन के लिये उपयोगी हैं पर परिमित मात्रा में ही। हमें सदा सक्रिय रहना चाहिए। सुस्ती और काहिली का शिकार नहीं होना चाहिए। किसी अच्छे काम में जुटे रहना चाहिए। इसमें शरीर-श्रम सभी शामिल हों। बिना कुछ न कुछ शरीर-श्रम किये हमें भोजन भी न करना चाहिए।
(4) बीमारी की हालत में आराम करना चाहिए तथा चिन्ताओं और बहुत अधिक सोच-विचार से बचना चाहिए। हमें केवल रोग नाशक ही नहीं बल्कि कुछ ऐसी औषधियों का सेवन करना चाहिए जो शमन करने वाली हों और केवल प्रकृति के स्वाभाविक कार्य में सहायता करती हों। इस दृष्टि से प्राकृतिक या होम्योपैथी चिकित्सा सर्वाधिक लाभप्रद हो सकती है।
(5) सबसे अधिक महत्वपूर्ण और जरूरी बात मन को सब परिस्थितियों में स्थिर और शान्त रखना है। ऐसे कार्यों और साधनों की खोज करते रहिये जिनसे मन शान्त और प्रसन्न रह सके। प्रसन्नता और शांति का वातावरण दीर्घायु का परम-साधन है।