Books - दीर्घ जीवन के रहस्य
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Language: HINDI
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दम्पत्ति द्वारा विवाह शताब्दी
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शताब्दियां मनाये जाने के अनेक समाचार समय-समय पर सुनने, पढ़ने को मिलते हैं। संस्थाओं, संगठनों तथा महापुरुषों की जन्म शताब्दियां बहुधा मनाई जाती हैं। दीर्घ जीवी स्वयं अपने जन्मदिवस के शताब्दी समारोहों में उपस्थित होकर, समाज को दीर्घ एवं क्रियाशील जीवन जीने की प्रेरणा दिया करते हैं किन्तु अभी कुछ समय पूर्व ही रूस में, ट्रांस काकेशस क्षेत्र के एक दम्पत्ति ने अपने विवाह के शताब्दी समारोह का स्वयं आयोजन करके एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया।
दीर्घ जीवन की कामना मनुष्य को सदा से रही है। ‘जीवेम शरदः शतम्’ कहकर ऋषियों ने सौ वर्ष जीवन की सम्भावना घोषित की है। भारतीय शास्त्र मनुष्य के लिये 100, 125 वर्ष का जीवन स्वाभाविक मानते हैं। यही निर्णय ट्रांस काकेशस में हुई वैज्ञानिकों की एक शोध गोष्ठी द्वारा लिया गया। वैज्ञानिकों की राय है कि मनुष्य सौ, सवा सौ ही नहीं बल्कि डेढ़ सौ वर्ष तक भी क्रियाशील रहते हुए जीवित रह सकता है। उसी क्षेत्र के श्री बाला-किशी उसजीवी तथा उनकी पत्नी अमीना ने अपने विवाह शताब्दी समारोह कर उत्साहपूर्ण आयोजन स्वयं करके उक्त मान्यताओं की सत्यता प्रभावित की।
शताब्दी समारोह में सम्मिलित व्यक्तियों ने पाया कि दोनों पति-पत्नी अभी भी बहुत चुस्त तथा स्वस्थ हैं। समारोह में आतिथ्य से लेकर व्यवस्था तक के कार्यों को वह स्वयं ही कर रहे थे। 114 वर्षीया हंसमुख अमीना में तो नवयुवती जैसी चंचलता तथा स्फूर्ति दिखाई पड़ती थी। अपने इस सफल दाम्पत्य निर्वाह पर उसे गर्व और प्रसन्नता दोनों ही पर्याप्त मात्रा में थे। उसने हास-परिहास के बीच कहा भी कि—‘‘यहां पुरुषों द्वारा कई पत्नियां रखने का चलन रहा है, किन्तु पिछले 100 वर्षों से मैं इनकी इकलौती पत्नी हूं।’’ जहां पतिव्रत तथा पत्नीव्रत को कोई सैद्धान्तिक अथवा धार्मिक स्थान प्राप्त नहीं हैं—ऐसे स्थान पर अपने व्यक्तिगत गुणों के आधार पर यह उपलब्धि विशेष रूप से सराहनीय है भी।
उनसे इस लम्बे सरस एवं सुखद जीवन का रहस्य पूछा गया हतो उन्होंने नपा तुला उत्तर दिया—‘‘हमने सही अर्थों में एक दूसरे के सहयोगी बनने का प्रयास पूरी ईमानदारी से किया तथा भगवान की कृपा से यह सम्भव हो सका।’’ ठीक भी है। सहयोगी सबको प्रिय होता है। जब पति-पत्नी एक दूसरे पर अपनी विशेषताओं के प्रदर्शन द्वारा अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने लगते हैं तो परस्पर ईर्ष्या पैदा होकर विग्रह की स्थिति पैदा हो जाती है।
स्वास्थ्य देने वाले आहार के बारे में उनसे पूछने पर उन्होंने बतलाया कि शाकाहार ही उन्हें प्रिय है तथा इसे वे अपने दीर्घ और नीरोग जीवन का एक कारण मानते हैं।
दीर्घ जीवन के विषय में और पूछे जाने पर शतायुष्य प्राप्त दम्पत्ति ने बतलाया कि कारण अनेक हो सकते हैं—किन्तु उनकी दृष्टि में विशेष महत्व निम्नलिखित नियमों का है—सादा एवं सन्तुलित आहार, प्रसन्न रहना, नियमित शारीरिक श्रम तथा स्वच्छ वायु का सेवन। अमीना ने बतलाया कि उसने कभी पति के श्रम पर आश्रित रहने का प्रयास नहीं किया। घर पर तथा खेत में पति के साथ बराबरी से कार्य करने का प्रयास किया। सवेरे पति के घूमने जाने पर वह अपने बगीचे की देखभाल तथा पौधों में पानी आदि देने का कार्य किया करती थी। पति-पत्नी को श्रम में विशेष आनन्द आता रहा है। दिन में भरपूर मेहनत करके रात को गहरी नींद सोने का सुख जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्होंने बतलाया कि उनकी पत्नी उन्हें समय पर उनकी रुचि का भाजन तैयार करके देने में बहुत मुस्तैद रही है। बीच-बीच में चुटकुलों से हंसाते रहना उसकी अपनी विशेषता है।
उक्त दम्पत्ति के प्रत्यक्ष उदाहरण से सीख लेकर आज के अगणित अस्त-व्यस्त परिवार तथा रुग्ण व्यक्ति अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
दीर्घ जीवन की कामना मनुष्य को सदा से रही है। ‘जीवेम शरदः शतम्’ कहकर ऋषियों ने सौ वर्ष जीवन की सम्भावना घोषित की है। भारतीय शास्त्र मनुष्य के लिये 100, 125 वर्ष का जीवन स्वाभाविक मानते हैं। यही निर्णय ट्रांस काकेशस में हुई वैज्ञानिकों की एक शोध गोष्ठी द्वारा लिया गया। वैज्ञानिकों की राय है कि मनुष्य सौ, सवा सौ ही नहीं बल्कि डेढ़ सौ वर्ष तक भी क्रियाशील रहते हुए जीवित रह सकता है। उसी क्षेत्र के श्री बाला-किशी उसजीवी तथा उनकी पत्नी अमीना ने अपने विवाह शताब्दी समारोह कर उत्साहपूर्ण आयोजन स्वयं करके उक्त मान्यताओं की सत्यता प्रभावित की।
शताब्दी समारोह में सम्मिलित व्यक्तियों ने पाया कि दोनों पति-पत्नी अभी भी बहुत चुस्त तथा स्वस्थ हैं। समारोह में आतिथ्य से लेकर व्यवस्था तक के कार्यों को वह स्वयं ही कर रहे थे। 114 वर्षीया हंसमुख अमीना में तो नवयुवती जैसी चंचलता तथा स्फूर्ति दिखाई पड़ती थी। अपने इस सफल दाम्पत्य निर्वाह पर उसे गर्व और प्रसन्नता दोनों ही पर्याप्त मात्रा में थे। उसने हास-परिहास के बीच कहा भी कि—‘‘यहां पुरुषों द्वारा कई पत्नियां रखने का चलन रहा है, किन्तु पिछले 100 वर्षों से मैं इनकी इकलौती पत्नी हूं।’’ जहां पतिव्रत तथा पत्नीव्रत को कोई सैद्धान्तिक अथवा धार्मिक स्थान प्राप्त नहीं हैं—ऐसे स्थान पर अपने व्यक्तिगत गुणों के आधार पर यह उपलब्धि विशेष रूप से सराहनीय है भी।
उनसे इस लम्बे सरस एवं सुखद जीवन का रहस्य पूछा गया हतो उन्होंने नपा तुला उत्तर दिया—‘‘हमने सही अर्थों में एक दूसरे के सहयोगी बनने का प्रयास पूरी ईमानदारी से किया तथा भगवान की कृपा से यह सम्भव हो सका।’’ ठीक भी है। सहयोगी सबको प्रिय होता है। जब पति-पत्नी एक दूसरे पर अपनी विशेषताओं के प्रदर्शन द्वारा अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने लगते हैं तो परस्पर ईर्ष्या पैदा होकर विग्रह की स्थिति पैदा हो जाती है।
स्वास्थ्य देने वाले आहार के बारे में उनसे पूछने पर उन्होंने बतलाया कि शाकाहार ही उन्हें प्रिय है तथा इसे वे अपने दीर्घ और नीरोग जीवन का एक कारण मानते हैं।
दीर्घ जीवन के विषय में और पूछे जाने पर शतायुष्य प्राप्त दम्पत्ति ने बतलाया कि कारण अनेक हो सकते हैं—किन्तु उनकी दृष्टि में विशेष महत्व निम्नलिखित नियमों का है—सादा एवं सन्तुलित आहार, प्रसन्न रहना, नियमित शारीरिक श्रम तथा स्वच्छ वायु का सेवन। अमीना ने बतलाया कि उसने कभी पति के श्रम पर आश्रित रहने का प्रयास नहीं किया। घर पर तथा खेत में पति के साथ बराबरी से कार्य करने का प्रयास किया। सवेरे पति के घूमने जाने पर वह अपने बगीचे की देखभाल तथा पौधों में पानी आदि देने का कार्य किया करती थी। पति-पत्नी को श्रम में विशेष आनन्द आता रहा है। दिन में भरपूर मेहनत करके रात को गहरी नींद सोने का सुख जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्होंने बतलाया कि उनकी पत्नी उन्हें समय पर उनकी रुचि का भाजन तैयार करके देने में बहुत मुस्तैद रही है। बीच-बीच में चुटकुलों से हंसाते रहना उसकी अपनी विशेषता है।
उक्त दम्पत्ति के प्रत्यक्ष उदाहरण से सीख लेकर आज के अगणित अस्त-व्यस्त परिवार तथा रुग्ण व्यक्ति अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।