Books - गायत्री महामंत्र की अद्भुत सामर्थ्य
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Language: HINDI
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जीवन के मूल सूत्रों का आधार
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अच्छा हम और बताते हैं कि किस तरीके से यह मूल है? शिखा और सूत्र ये हिन्दू धर्म की दो निशानियाँ हैं। शिखा क्या है? बेटे, गायत्री मंत्र है। हमारे किले के ऊपर झण्डा फहरा रहा है। लाल किले के ऊपर झण्डा फहराता है। राष्ट्रीय ध्वज फहराता है। इसी तरह से हमारे मस्तिष्क के ऊपर ज्ञान की देवी ऋतम्भरा- प्रज्ञा का झण्डा फहराता है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस झण्डे को फहराते रहना चाहिए। हमारे इस किले के ऊपर ऋतम्भरा- प्रज्ञा अर्थात् गायत्री की ज्ञान शक्ति का, प्रज्ञा की शक्ति का इसके ऊपर बोलबाला है और ये मालकिन हैं इसकी। इसलिए हम शिखा रखाते हैं। शिखा क्या है? गायत्री का रूप। गायत्री का रूप ! गायत्री का रूप कैसे?
मूर्तियाँ तरह- तरह से बनाई जाती हैं। कुछ संगमरमर की बनाई जाती है, कुछ अष्टधातु से बनाई जाती हैं, कुछ किसी की बनाई जाती हैं, लेकिन ये गायत्री की मूर्ति बालों की बना दी गई हैं, अन्यथा तरह- तरह की मूर्तियाँ इसमें कैसे टिकाई जाएँगी, कैसे रखी जाएँगी? ये गिर पड़ेंगी और उखड़ जाएँगी। इसलिए ऋषियों ने जहाँ जो चीज पैदा होती थी, उसी को बनाकर वहाँ उसकी स्थापना कर दी। पहाड़ों पर शंकर जी पैदा होते थे। पहाड़ों के पत्थर से शंकर जी गोल- मटोल वहीं बना दिए हैं और बालों से! सिर पर बाल पैदा होते हैं, अतः बालों से ही सिर पर गायत्री माता की मूर्ति बनाकर शिखा के रूप में स्थापित कर दी गई। ये झण्डा है, गायत्री मंत्र का झण्डा है।
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ॥
यह गायत्री मंत्र की व्याख्या है- शिखा के रूप में।
सूत्र क्या है? -यज्ञोपवीत। यज्ञोपवीत क्या है? गायत्री मंत्र है। गायत्री मंत्र को शरीर रूपी देवालय में स्थापित करते हैं। शरीर के प्रत्येक अंग- अवयव को देवालय माने तो इसमें गायत्री की मूर्ति स्थापित करते हैं। सूत्र की स्थापना क्यों करते हैं? सूत्र की स्थापना हम इसलिए करते करते हैं कि जो किसी अन्य चीज की बनाई गई होती तो उसका ठहरना मुश्किल होता। अगर ये मूर्ति लोहे की बना देते और जब हम रात को सोते तो मुश्किल पड़ जाती। पत्थर की बनाते तो चौबीस घण्टे कहाँ लिए फिरते? सूत की इसलिए बना दी गई है कि चौबीस घण्टे इसे शरीर के साथ में लपेटा जा सके।
गायत्री मंत्र का ही यह स्वरूप है। इसमें नौ शब्द है। गायत्री मंत्र में नौ शब्द हैं और जनेऊ में नौ धागे है। गायत्री मंत्र में तीन व्याहृतियाँ हैं और जनेऊ में तीन गाँठें लगी हुई हैं। गायत्री में एक ओम है और यज्ञोपवीत में एक बड़ी गाँठ ब्रह्मगाँठ लगी हुई है। इस गायत्री मंत्र को कहाँ रखना चाहिए? सारे के सारे महत्त्वपूर्ण अंश, अंग जो हमारे पास हैं, उन सबको गायत्री मंत्र में लपेट दिया है। कंधों पर लपेट दिया है। कंधा हमारे जिम्मेदारी की निशानी है। यह वजन हमारे कंधे पर रखा हुआ है। हमको जिम्मेदारी का निर्वाह करना है। गायत्री मंत्र में जो ज्ञान और विज्ञान है, उसको हम जीवन में धारण करेंगे, उसका हम प्रयोग करेंगे। उसके लिए इसकी जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व कंधे पर निबाहते हैं।
कंधे पर निभाने के बाद में कहाँ ले जाते हैं- हृदय पर ले जाते हैं। क्यों? इसलिए कि ये बात हमारे हृदय पर बसी हुई है अर्थात् हमारी भावनाओं में आ गई है। ये चीजें हृदय से ताल्लुक रखती हैं। जनेऊ कंधे पर से निकलने के बाद में कलेजे पर आता है। कलेजे के बारे में भी यह कहा जाता है। कलेजा हिम्मत, अपनत्व पैदा करने की एक थैली है। जहाँ तक साथी का सवाल है, कहते है- आइए आपको कलेजे से लगा लें। ये हमारे कलेजे का टुकड़ा है। यहाँ पित्त की थैली का सवाल नहीं है यह साहित्यिक भाषा है। इसमें ये कह देते हैं कि मनुष्य के भीतर वाले हिस्से को गायत्री मंत्र के साथ में चिपका देते हैं। ये कलेजा कहलाता है। हमारी पीठ पर वजन रखा हुआ है और हम इस वजन को लेकर चलेंगे। हमारी पीठ भारी है इत्यादि ये साहित्यिक शब्द है और यह प्रतीक के रूप में हैं।
इस तरह जनेऊ को पीठ पर रखा जाता है। कंधे पर रखा जाता है, हृदय पर रखा जाता है और कलेजे पर रखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि गायत्री मंत्र के भीतर जो सिद्धान्त और जो शिक्षण और जो आदर्श दिए गए हैं, वे हमको इतने प्यारे होने चाहिए, जिससे हर क्षण हम यह समझते रहें कि मनुष्य जीवन के साथ में ये जिम्मेदारियाँ भी हमारे कलेजे पर हैं। हमारे हृदय में स्थान इनको भी प्राप्त होना चाहिए। इनको भी हृदय में ग्रहण करना चाहिए और अपनी पीठ के ऊपर इस वजन को लेकर चलना चाहिए। जीवन का इतना भार जब हम लेकर चलते हैं तो इन सिद्धान्तों का और इन आदर्शों का, जो भगवान ने मनुष्य के जीवन के साथ- साथ हमारे सुपुर्द किए हैं, उनको भी लेकर चलते हैं। यही बात है कि सारी की सारी शिक्षाएँ गायत्री मंत्र के साथ जुड़ी हुई हैं अर्थात् जनेऊ के साथ जुड़ी हुई हैं।
शिखा- सूत्र क्या हैं? अरे, कुछ भी नहीं हैं- गायत्री मंत्र हैं। एक को हमने शरीर के ऊपर अर्थात् दिमाग के ऊपर अर्थात् चेतना के ऊपर स्थापित किया हुआ है ज्ञान के रूप मे और दूसरा हमारा शरीर है। शरीर अर्थात् कृत्य या कर्म। शरीर अर्थात् पदार्थ, भौतिक जीवन। भौतिक जीवन के ऊपर भी हमने यज्ञोपवीत स्थापित किया हुआ है। अर्थात् गायत्री की सत्ता हमने स्थापित की हुई है। विचारणा, चेतना जीवन इसके ऊपर भी हमने इसे स्थापित की हुई है। दोनों के ऊपर गायत्री मंत्र की स्थापना करने का भारतीय समाज में नियम है।
संध्या- वंदन हमारा नित्य कर्म है। संध्या- वंदन माने- प्रातःकाल भगवान का भजन करना चाहिए, सायंकाल को भजन करना चाहिए। दोनों समय भगवान की उपासना को संध्या- वंदन के नाम से पुकारा गया है। संधि- संध्या को कहते हैं। दिन और रात जब मिलते है तो संधि कहलाती है। प्रातः और सायंकाल जो गायत्री उपासना की जाती हैं वो संध्या है। संध्या क्या है? संध्या कुछ भी नहीं है, गायत्री मंत्र है और क्या है? आप गहराई से देखें तो आदमी क्या है, यह पता लग जाएगा।
आदमी एक साँप है। साँप कैसा है? यह मस्तिष्क से चलता है और रीढ़ की हड्डी में आ करके नीचे खत्म हो जाता है। बाकी क्या है? इसके पंख हैं, ये हाथ- पाँव क्या हैं? ये तो पंख हैं तो फिर असली आदमी कहाँ है? असली आदमी की शक्ति कहाँ है? ये बेटे मेरुदण्ड में रीढ़ की हड्डी में हैं। रीढ़ की हड्डी में आदमी के विचार से ले करके सारे शरीर में जो बल पैदा होता है, शक्ति पैदा होती है, इलेक्ट्रीसिटी पैदा होती है, जो कुछ भी हमारे भीतर काम हो रहा है। असल में सारे का सारा जो इसका ढाँचा है, रीढ़ की हड्डी में है। बाकी जितने भी कल- पुर्जे हैं, जितनी भी अन्य सब चीजें हैं, ये इसके बाहर के हिस्से हैं, मूल चीज नहीं है। इसकी रीढ़ हमारे प्राण हैं। इसी तरह से गायत्री महामंत्र मानव जीवन का प्राण है, भारतीय संस्कृति का प्राण है, मानवीय गरिमा का प्राण है और मानवीय आदर्श और मानवीय उत्कर्ष का सारे का सारा आधार है। यह गायत्री मंत्र है। इसकी महिमा- गरिमा आपको समझनी चाहिए।
मूर्तियाँ तरह- तरह से बनाई जाती हैं। कुछ संगमरमर की बनाई जाती है, कुछ अष्टधातु से बनाई जाती हैं, कुछ किसी की बनाई जाती हैं, लेकिन ये गायत्री की मूर्ति बालों की बना दी गई हैं, अन्यथा तरह- तरह की मूर्तियाँ इसमें कैसे टिकाई जाएँगी, कैसे रखी जाएँगी? ये गिर पड़ेंगी और उखड़ जाएँगी। इसलिए ऋषियों ने जहाँ जो चीज पैदा होती थी, उसी को बनाकर वहाँ उसकी स्थापना कर दी। पहाड़ों पर शंकर जी पैदा होते थे। पहाड़ों के पत्थर से शंकर जी गोल- मटोल वहीं बना दिए हैं और बालों से! सिर पर बाल पैदा होते हैं, अतः बालों से ही सिर पर गायत्री माता की मूर्ति बनाकर शिखा के रूप में स्थापित कर दी गई। ये झण्डा है, गायत्री मंत्र का झण्डा है।
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ॥
यह गायत्री मंत्र की व्याख्या है- शिखा के रूप में।
सूत्र क्या है? -यज्ञोपवीत। यज्ञोपवीत क्या है? गायत्री मंत्र है। गायत्री मंत्र को शरीर रूपी देवालय में स्थापित करते हैं। शरीर के प्रत्येक अंग- अवयव को देवालय माने तो इसमें गायत्री की मूर्ति स्थापित करते हैं। सूत्र की स्थापना क्यों करते हैं? सूत्र की स्थापना हम इसलिए करते करते हैं कि जो किसी अन्य चीज की बनाई गई होती तो उसका ठहरना मुश्किल होता। अगर ये मूर्ति लोहे की बना देते और जब हम रात को सोते तो मुश्किल पड़ जाती। पत्थर की बनाते तो चौबीस घण्टे कहाँ लिए फिरते? सूत की इसलिए बना दी गई है कि चौबीस घण्टे इसे शरीर के साथ में लपेटा जा सके।
गायत्री मंत्र का ही यह स्वरूप है। इसमें नौ शब्द है। गायत्री मंत्र में नौ शब्द हैं और जनेऊ में नौ धागे है। गायत्री मंत्र में तीन व्याहृतियाँ हैं और जनेऊ में तीन गाँठें लगी हुई हैं। गायत्री में एक ओम है और यज्ञोपवीत में एक बड़ी गाँठ ब्रह्मगाँठ लगी हुई है। इस गायत्री मंत्र को कहाँ रखना चाहिए? सारे के सारे महत्त्वपूर्ण अंश, अंग जो हमारे पास हैं, उन सबको गायत्री मंत्र में लपेट दिया है। कंधों पर लपेट दिया है। कंधा हमारे जिम्मेदारी की निशानी है। यह वजन हमारे कंधे पर रखा हुआ है। हमको जिम्मेदारी का निर्वाह करना है। गायत्री मंत्र में जो ज्ञान और विज्ञान है, उसको हम जीवन में धारण करेंगे, उसका हम प्रयोग करेंगे। उसके लिए इसकी जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व कंधे पर निबाहते हैं।
कंधे पर निभाने के बाद में कहाँ ले जाते हैं- हृदय पर ले जाते हैं। क्यों? इसलिए कि ये बात हमारे हृदय पर बसी हुई है अर्थात् हमारी भावनाओं में आ गई है। ये चीजें हृदय से ताल्लुक रखती हैं। जनेऊ कंधे पर से निकलने के बाद में कलेजे पर आता है। कलेजे के बारे में भी यह कहा जाता है। कलेजा हिम्मत, अपनत्व पैदा करने की एक थैली है। जहाँ तक साथी का सवाल है, कहते है- आइए आपको कलेजे से लगा लें। ये हमारे कलेजे का टुकड़ा है। यहाँ पित्त की थैली का सवाल नहीं है यह साहित्यिक भाषा है। इसमें ये कह देते हैं कि मनुष्य के भीतर वाले हिस्से को गायत्री मंत्र के साथ में चिपका देते हैं। ये कलेजा कहलाता है। हमारी पीठ पर वजन रखा हुआ है और हम इस वजन को लेकर चलेंगे। हमारी पीठ भारी है इत्यादि ये साहित्यिक शब्द है और यह प्रतीक के रूप में हैं।
इस तरह जनेऊ को पीठ पर रखा जाता है। कंधे पर रखा जाता है, हृदय पर रखा जाता है और कलेजे पर रखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि गायत्री मंत्र के भीतर जो सिद्धान्त और जो शिक्षण और जो आदर्श दिए गए हैं, वे हमको इतने प्यारे होने चाहिए, जिससे हर क्षण हम यह समझते रहें कि मनुष्य जीवन के साथ में ये जिम्मेदारियाँ भी हमारे कलेजे पर हैं। हमारे हृदय में स्थान इनको भी प्राप्त होना चाहिए। इनको भी हृदय में ग्रहण करना चाहिए और अपनी पीठ के ऊपर इस वजन को लेकर चलना चाहिए। जीवन का इतना भार जब हम लेकर चलते हैं तो इन सिद्धान्तों का और इन आदर्शों का, जो भगवान ने मनुष्य के जीवन के साथ- साथ हमारे सुपुर्द किए हैं, उनको भी लेकर चलते हैं। यही बात है कि सारी की सारी शिक्षाएँ गायत्री मंत्र के साथ जुड़ी हुई हैं अर्थात् जनेऊ के साथ जुड़ी हुई हैं।
शिखा- सूत्र क्या हैं? अरे, कुछ भी नहीं हैं- गायत्री मंत्र हैं। एक को हमने शरीर के ऊपर अर्थात् दिमाग के ऊपर अर्थात् चेतना के ऊपर स्थापित किया हुआ है ज्ञान के रूप मे और दूसरा हमारा शरीर है। शरीर अर्थात् कृत्य या कर्म। शरीर अर्थात् पदार्थ, भौतिक जीवन। भौतिक जीवन के ऊपर भी हमने यज्ञोपवीत स्थापित किया हुआ है। अर्थात् गायत्री की सत्ता हमने स्थापित की हुई है। विचारणा, चेतना जीवन इसके ऊपर भी हमने इसे स्थापित की हुई है। दोनों के ऊपर गायत्री मंत्र की स्थापना करने का भारतीय समाज में नियम है।
संध्या- वंदन हमारा नित्य कर्म है। संध्या- वंदन माने- प्रातःकाल भगवान का भजन करना चाहिए, सायंकाल को भजन करना चाहिए। दोनों समय भगवान की उपासना को संध्या- वंदन के नाम से पुकारा गया है। संधि- संध्या को कहते हैं। दिन और रात जब मिलते है तो संधि कहलाती है। प्रातः और सायंकाल जो गायत्री उपासना की जाती हैं वो संध्या है। संध्या क्या है? संध्या कुछ भी नहीं है, गायत्री मंत्र है और क्या है? आप गहराई से देखें तो आदमी क्या है, यह पता लग जाएगा।
आदमी एक साँप है। साँप कैसा है? यह मस्तिष्क से चलता है और रीढ़ की हड्डी में आ करके नीचे खत्म हो जाता है। बाकी क्या है? इसके पंख हैं, ये हाथ- पाँव क्या हैं? ये तो पंख हैं तो फिर असली आदमी कहाँ है? असली आदमी की शक्ति कहाँ है? ये बेटे मेरुदण्ड में रीढ़ की हड्डी में हैं। रीढ़ की हड्डी में आदमी के विचार से ले करके सारे शरीर में जो बल पैदा होता है, शक्ति पैदा होती है, इलेक्ट्रीसिटी पैदा होती है, जो कुछ भी हमारे भीतर काम हो रहा है। असल में सारे का सारा जो इसका ढाँचा है, रीढ़ की हड्डी में है। बाकी जितने भी कल- पुर्जे हैं, जितनी भी अन्य सब चीजें हैं, ये इसके बाहर के हिस्से हैं, मूल चीज नहीं है। इसकी रीढ़ हमारे प्राण हैं। इसी तरह से गायत्री महामंत्र मानव जीवन का प्राण है, भारतीय संस्कृति का प्राण है, मानवीय गरिमा का प्राण है और मानवीय आदर्श और मानवीय उत्कर्ष का सारे का सारा आधार है। यह गायत्री मंत्र है। इसकी महिमा- गरिमा आपको समझनी चाहिए।