Books - गायत्री महामंत्र की अद्भुत सामर्थ्य
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
स्वरूप की गरिमा समझें
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
यह दुर्भाग्य ही है कि लोगों ने गायत्री मंत्र का स्वरूप इतना छोटा- संकीर्ण बना लिया है। हम क्या कह सकते है? भूत भगाने के लिए जैसे सयाने- दीवाने झाड़- फूँक करते रहते हैं। पानी लिया छिड़क दिया, ये कर दिया, वो बाँध दिया। ये मंत्र बिच्छू का मंत्र है, ये साँप का मंत्र है, ये भूत का मंत्र है, ये अमुक का मंत्र है। इस तरह से अनेकों छोटे- छोटे मंत्र- तंत्र पाए जाते हैं। लोगों ने गायत्री मंत्र को भी इसी में शुमार कर लिया और ये मालूम कर लिया कि बुखार आता हो तो गायत्री का प्रयोग कर देंगे। कोई मुकदमा चल रहा होगा तो गायत्री का प्रयोग कर देंगे। गायत्री का छोटा- सा स्वरूप है। हो तो यह भी सकता है, यह तो मैं नहीं कहता कि इसका स्वरूप नहीं है, लेकिन ये बहुत छोटा स्वरूप है। समग्र स्वरूप नहीं है।
जैसे आप यह विचार करें कि आचार्य जी का कान, बेटे, कान भी हमारे शरीर के हिस्से का ही है, शरीर के बाहर तो नहीं है। यह तो हम नहीं कहते कि बाहर का है। इसी तरह भूत भगाना गायत्री में नहीं है, यह तो मैं नहीं कहता कि गायत्री में नहीं है, पर आप गायत्री मंत्र को इतना सीमित कर देंगे, इतना छोटा कर देंगे, तो इसकी तौहीन होगी। यह इसकी तौहीन है। आप यह मानकर चलें कि अमुक- अमुक कामना के लिए, बाल- बच्चे पैदा करने के लिए, अमुक लाभ उठाने के लिए, मुकदमे में जीत जाने के लिए, इम्तिहान में पास हो जाने के लिए अगर इतनी सीमा में गायत्री को रखेंगे तो मैं यह समझूँगा कि आप गायत्री का बहुत छोटा स्वरूप समझते हैं। उसकी पूँछ के बाल के बराबर समझते हैं, असली गायत्री को आप समझते भी नहीं हैं। असली गायत्री वह है, जो मानवीय गरिमा को बढ़ाती है। जो सारे संसार में सुव्यवस्था बनाए रखती है। जो मानवीय भविष्य को उज्ज्वल व शानदार बनाती है। इसका इतिहास हम प्राचीन काल के पन्ने पलटकर देख सकते हैं।
प्राचीनकाल का हमारा अतीत और इतिहास इतना शानदार था जिसको हम देव- इतिहास कह सकते हैं। भारत भूमि का ही नाम स्वर्ग भूमि था। स्वर्ग और भी कोई रहा होगा क्या? रहा होगा यह बहस तो आपसे मैं नहीं कर सकता कि स्वर्ग था या नहीं था, पर मैं यह कहता हूँ कि स्वर्ग की जो व्याख्या की गई है, सारी की सारी स्वर्ग की व्याख्याएँ ऋषियों ने जो की हैं, वह इसी भारत भूमि के लिए की हैं। यहाँ बार- बार रहा है स्वर्ग। यह भारत- भूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ थी किसी जमाने में। किसी जमाने में यहाँ के नागरिकों को देवमानव बताया गया है। यहाँ के नागरिक देवमानव थे, यहाँ स्वर्ग लोक में देवता रहते थे, तैंतीस करोड़ देवता रहते थे। बेटे ! यही तैंतीस करोड़ देवता किसी जमाने में इस देश के नागरिक थे। यही सारे संसार भर में फैले हुए थे बादलों की तरीके से। दुनिया को ऊँचा उठाने और समुन्नत बनाने में इनकी शानदार परम्परा थी। देवता थे देवता। वे दिया करते थे। यहाँ के निवासियों को दिया, सारे संसार को दिया।
भारतवासियों के अनुदान की कथा आप सुनिए जरा। भारतवासियों ने संसार को क्या अनुदान दिया है? हमारी एक पुस्तक है, आप लोगों में से किसी ने पढ़ी होगी, उसका नाम है ‘ समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान ’। सारे विश्व को जब से यह जमीन बनी है, तब से लेकर के भारतवासी लोगों को क्या- क्या सिखाते रहे हैं, क्या- क्या देते रहे हैं? हिन्दुस्तान की पौराणिक पुस्तकों से ही नहीं वरन् सारे संसार के शिलालेखों से लेकर अन्यान्य पुस्तकों से जिसमें दो हजार के करीब जानकारियों के रिफरेन्स दिए हुए हैं। हमारी उस पुस्तक में सारा विवरण मौजूद है कि सारे के सारे विश्व को वे देते रहे हैं।
क्या- क्या दिया विश्व को भारतवासियों ने? शिक्षा दी, संस्कृति दी, स्वास्थ्य दिया, चिकित्सा दी, समाज विज्ञान दिया, कृषि दी, पशुपालन दिया। जो कुछ भी भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान हो सकता था, मानवीय वे सारी की सारी चीजें न केवल हिन्दुस्तान ने हिन्दुस्तानियों को दीं, बल्कि सारे विश्व को दीं। इसलिए ये देवता कहलाते थे। जगद्गुरु कहलाते थे? ये सारी की सारी विशेषताएँ जो भारतीय गरिमा के साथ जुड़ी हुई हैं, असल में अगर हम इनका प्राण ढूँढ़ना चाहें तो बात घूम- फिर करके भारतीय संस्कृति पर आ जाएगी। और एक शब्द में अगर आप यह जानना चाहें कि भारतीय संस्कृति क्या हो सकती है तो मैं गायत्री मंत्र का नाम लूँगा। आप गायत्री को समझ लीजिए तो फिर आप भारतीय संस्कृति के सारे के सारे आधार समझ जायेंगे। ज्ञान को भी समझ जायेंगे और विज्ञान को भी समझ जायेंगे। ऐसी है गायत्री जिसको कि हम और आप अपने जीवन में धारण करने की कोशिश करते हैं। जिसकी हम उपासना करते हैं, जिसका हम ब्रह्मविद्या के रूप में तत्त्वज्ञान जानने की कोशिश करते हैं।
जैसे आप यह विचार करें कि आचार्य जी का कान, बेटे, कान भी हमारे शरीर के हिस्से का ही है, शरीर के बाहर तो नहीं है। यह तो हम नहीं कहते कि बाहर का है। इसी तरह भूत भगाना गायत्री में नहीं है, यह तो मैं नहीं कहता कि गायत्री में नहीं है, पर आप गायत्री मंत्र को इतना सीमित कर देंगे, इतना छोटा कर देंगे, तो इसकी तौहीन होगी। यह इसकी तौहीन है। आप यह मानकर चलें कि अमुक- अमुक कामना के लिए, बाल- बच्चे पैदा करने के लिए, अमुक लाभ उठाने के लिए, मुकदमे में जीत जाने के लिए, इम्तिहान में पास हो जाने के लिए अगर इतनी सीमा में गायत्री को रखेंगे तो मैं यह समझूँगा कि आप गायत्री का बहुत छोटा स्वरूप समझते हैं। उसकी पूँछ के बाल के बराबर समझते हैं, असली गायत्री को आप समझते भी नहीं हैं। असली गायत्री वह है, जो मानवीय गरिमा को बढ़ाती है। जो सारे संसार में सुव्यवस्था बनाए रखती है। जो मानवीय भविष्य को उज्ज्वल व शानदार बनाती है। इसका इतिहास हम प्राचीन काल के पन्ने पलटकर देख सकते हैं।
प्राचीनकाल का हमारा अतीत और इतिहास इतना शानदार था जिसको हम देव- इतिहास कह सकते हैं। भारत भूमि का ही नाम स्वर्ग भूमि था। स्वर्ग और भी कोई रहा होगा क्या? रहा होगा यह बहस तो आपसे मैं नहीं कर सकता कि स्वर्ग था या नहीं था, पर मैं यह कहता हूँ कि स्वर्ग की जो व्याख्या की गई है, सारी की सारी स्वर्ग की व्याख्याएँ ऋषियों ने जो की हैं, वह इसी भारत भूमि के लिए की हैं। यहाँ बार- बार रहा है स्वर्ग। यह भारत- भूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ थी किसी जमाने में। किसी जमाने में यहाँ के नागरिकों को देवमानव बताया गया है। यहाँ के नागरिक देवमानव थे, यहाँ स्वर्ग लोक में देवता रहते थे, तैंतीस करोड़ देवता रहते थे। बेटे ! यही तैंतीस करोड़ देवता किसी जमाने में इस देश के नागरिक थे। यही सारे संसार भर में फैले हुए थे बादलों की तरीके से। दुनिया को ऊँचा उठाने और समुन्नत बनाने में इनकी शानदार परम्परा थी। देवता थे देवता। वे दिया करते थे। यहाँ के निवासियों को दिया, सारे संसार को दिया।
भारतवासियों के अनुदान की कथा आप सुनिए जरा। भारतवासियों ने संसार को क्या अनुदान दिया है? हमारी एक पुस्तक है, आप लोगों में से किसी ने पढ़ी होगी, उसका नाम है ‘ समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान ’। सारे विश्व को जब से यह जमीन बनी है, तब से लेकर के भारतवासी लोगों को क्या- क्या सिखाते रहे हैं, क्या- क्या देते रहे हैं? हिन्दुस्तान की पौराणिक पुस्तकों से ही नहीं वरन् सारे संसार के शिलालेखों से लेकर अन्यान्य पुस्तकों से जिसमें दो हजार के करीब जानकारियों के रिफरेन्स दिए हुए हैं। हमारी उस पुस्तक में सारा विवरण मौजूद है कि सारे के सारे विश्व को वे देते रहे हैं।
क्या- क्या दिया विश्व को भारतवासियों ने? शिक्षा दी, संस्कृति दी, स्वास्थ्य दिया, चिकित्सा दी, समाज विज्ञान दिया, कृषि दी, पशुपालन दिया। जो कुछ भी भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान हो सकता था, मानवीय वे सारी की सारी चीजें न केवल हिन्दुस्तान ने हिन्दुस्तानियों को दीं, बल्कि सारे विश्व को दीं। इसलिए ये देवता कहलाते थे। जगद्गुरु कहलाते थे? ये सारी की सारी विशेषताएँ जो भारतीय गरिमा के साथ जुड़ी हुई हैं, असल में अगर हम इनका प्राण ढूँढ़ना चाहें तो बात घूम- फिर करके भारतीय संस्कृति पर आ जाएगी। और एक शब्द में अगर आप यह जानना चाहें कि भारतीय संस्कृति क्या हो सकती है तो मैं गायत्री मंत्र का नाम लूँगा। आप गायत्री को समझ लीजिए तो फिर आप भारतीय संस्कृति के सारे के सारे आधार समझ जायेंगे। ज्ञान को भी समझ जायेंगे और विज्ञान को भी समझ जायेंगे। ऐसी है गायत्री जिसको कि हम और आप अपने जीवन में धारण करने की कोशिश करते हैं। जिसकी हम उपासना करते हैं, जिसका हम ब्रह्मविद्या के रूप में तत्त्वज्ञान जानने की कोशिश करते हैं।