Books - गायत्री महामंत्र की अद्भुत सामर्थ्य
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Language: HINDI
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कर्मकाण्ड के साथ तत्त्वज्ञान भी समझें
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गायत्री के दो अर्थ हैं, आप तो एक ही अर्थ समझ पाते है तो क्या समझ पाते हैं? आपको तो मात्र प्रयोग मालूम है। गायत्री प्रेक्टिस ही मालूम है। गायत्री का जप कैसे किया जाता है, यह क्या है? यह प्रेक्टिस है। ध्यान कैसे किया जा सकता है, यह प्रेक्टिस है। बेटे, प्रेक्टिस अपने आप में पूर्ण नहीं है। यह उत्तरार्द्ध है। तो पूर्वार्द्ध क्या है? पूर्वार्द्ध है फिलॉसफी- तत्त्वज्ञान। पहला अंश- तत्त्वज्ञान। गायत्री एक फिलॉसफी है फिलॉसफी से क्या मतलब? ऋतम्भरा- प्रज्ञा। ऋतम्भरा प्रज्ञा से क्या मतलब? ब्रह्मविद्या। ब्रह्मविद्या से क्या मतलब? ब्रह्मविद्या से यह मतलब है कि जो कुछ भी मानव- जीवन की श्रेष्ठता और गरिमा से सम्बन्धित है, वह सारे के सारे भारतीय तत्त्वज्ञान में आ जाता है।
गायत्री का पहला अंश वह है, जिसको आप समझने की कोशिश भी नहीं करते केवल प्रेक्टिस करना जानना चाहते हैं। थ्योरी जानना चाहते हैं? आप तो सिर्फ जप करना जानना चाहते हैं। होड़ करना जानना चाहते हैं। ध्यान करना जानना चाहते हैं। यह भी ठीक है, मैं मना नहीं करता, पर थ्योरी और प्रेक्टिस दोनों जुड़ी हुई हैं। नहीं, हम तो प्रैक्टिस करेंगे, थ्योरी से क्या फायदा? ऑपरेशन करेंगे हम तो। उसकी एनोटॉमी, फिजिओलॉजी सीखने से क्या फायदा? भाईसाहब, पहले उसकी एनोटॉमी, फिजिओलॉजी सीखिए। नहीं साहब, ये तो बेकार का टाइम हम नहीं गँवायेंगे। आप तो ऑपरेशन करना सिखा दीजिए। बेटे, आपको शरीर की संरचना मालूम नहीं है। टिशूज कैसे होते हैं? सेल कैसे होते हैं? अमुक चीज कैसी होती हैं? बिना इस जानकारी के आप ऐसे ही करेंगे आपरेशन, पेट को चीर डालेंगे, सुई- धागे से सी डालेंगे तो आप भी मरेंगे और वह भी मर जाएगा, जिसकी आप चीर- फाड़ करेंगे। पहले आप एनोटॉमी, फिजिओलॉजी वगैरह सीखिए।
इसी तरह गायत्री का तत्त्वज्ञान भी उतना ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है जितना कि उसका प्रयोग। जितना कि उसका व्यवहार। लोगों ने व्यवहार करना सीखा है। चौबीस हजार का जप करना चाहिए। ध्यान ऐसे, जप ऐसे करना चाहिए। बेटे, यह प्रयोग वाला हिस्सा है, फिलॉसफी वाला पक्ष और भी शानदार है। जो कुछ भी ज्ञान और विज्ञान की धाराएँ हैं, ये दोनों की दोनों धाराएँ गंगा- जमुना की तरीके से मिलती हैं। इसलिए गायत्री के दो नाम दिए गए हैं। एक का नाम गायत्री और एक का नाम सावित्री।
सावित्री किस हिस्से को कहते हैं? सावित्री उसे कहते हैं जो विज्ञान वाला भाग है। वैज्ञानिक प्रयोग के लिए सावित्री का महत्त्व है। जब भी आपको जप करना पड़ेगा, ध्यान करना पड़ेगा, उपासना करनी पड़ेगी, अनुष्ठान करना पड़ेगा तो आप मनुस्मृति में पढ़ डालिए इसके प्रयोग के पक्ष में, जहाँ कहीं भी गायत्री के प्रयोग हुए हैं, उस सारे के सारे प्रयोग को सावित्री के नाम से पुकारा गया है। मनुस्मृति में हर जगह जहाँ कहीं भी सावित्री का जिक्र आया है। गायत्री का जिक्र नहीं है। प्रयोग में केवल सावित्री काम आती है और गायत्री? गायत्री किस काम आती है? गायत्री ब्रह्मविद्या है। चिंतन जिसको कहते हैं, फिलॉसफी जिसको कहते हैं, विचारणा जिसको हम कहते हैं। ये सारे का सारा पक्ष गायत्री है।
इसके ज्ञान और विज्ञान पक्ष दोनों हैं, जिनको हम समझ पाएँ तो गंगा और जमुना दोनों की धारा की तरीके से मजा आ जाए। इनके मिलने से जिस तरह से त्रिवेणी बन जाती हैं, उसी तरीके से दोनों के मिलने से त्रिवेणी बन जाती है। दो चीजों के मिलाने से तीसरा रंग बन जाता है। दोनों चीजों, दोनों तारों को जब हम मिला देते हैं तो एक नई चीज, एक नई धारा पैदा हो जाती है। बिजली के दोनों तार अलग- अलग हैं। एक का नाम निगेटिव है और एक का पाजिटिव है। दोनों अलग- अलग हैं, पर दोनों को जब मिला देते हैं, तब एक तीसरी चीज बन जाती है, उसका नाम है करेण्ट और वह बराबर दौड़ने लगती है। तत्त्वज्ञान दौड़ता नहीं है। तत्त्वज्ञान और उसका प्रयोग दोनों का उपयोग अगर हम करेंगे तो गायत्री की जो महत्ता और गरिमा है उसका हम लाभ उठा पाएँगे। तत्त्वज्ञान को नहीं समझेंगे, केवल प्रयोग करते रहेंगे, तो परिणाम यह रहेगा कि जो लाभ होना चाहिए वह काफी नहीं होगा। इसकी फिलॉसफी को समझते रहेंगे, तो परिणाम यह रहेगा कि जो लाभ होना चाहिए वह काफी नहीं होगा। इसकी फिलॉसफी को समझते रहेंगे लेकिन उसको जीवन में प्रयोग न कर सकेंगे तो भी थोड़ा ही मुनाफा मिल पाएगा।
मित्रो ! थ्योरी भी अधूरी है और प्रेक्टिस भी अधूरी है। इसको जब हम मिला देते हैं- दोनों को, तो बात पूरी हो जाती है। दवा भी अधूरी है और उसका परहेज भी अधूरा है। परहेज हम करेंगे नहीं, नहाएँगे नहीं, कुल्ला नहीं करेंगे। हकीम जी ने दवा बतायी है, पर दवा नहीं खाएँगे, तो भी गलत है। दोनों चीजों का समन्वय हो जाने से बीमारी से उद्धार मिलता है। गायत्री मंत्र की जो सामर्थ्य और शक्ति ऋषियों और शास्त्रकारों ने बताई है, वह इस बात पर टिकी हुई है कि आप उसकी फिलॉसफी को भी समझें और प्रैक्टिस को भी समझें। दोनों को मिला देने से गायत्री मंत्र समर्थ हो सकता है और उसके बारे में जो महिमा और गरिमा बताई गई हैं, उनका साक्षात्कार करने में हम और आप समर्थ हो सकते हैं।
ये दोनों पक्ष काम नहीं करेंगे तो आपको शिकायत हो सकती है कि हमको लाभ नहीं मिला। लाभ नहीं मिलने की शिकायत बराबर बनी रहेगी। दोनों तारों को आप मिलाएँगे नहीं, तो आपको शिकायत रहेगी। साहब बेकार है, आपकी बिजली से कोई काम नहीं होता, बिजली हमारा पंखा भी नहीं हिलाती और हमारी बत्ती भी नहीं जलाती। ठीक है, आपने दोनों तारों को क्यों नहीं मिला दिया? आप उसकी फिलॉसफी को भी समझिए, उसकी शिक्षा और प्रेरणा को भी समझिए। जीवन में हमारे किस तरह से उसके आदर्श और सिद्धान्तों का समन्वय होना चाहिए? यह भी आप समझिए। नहीं ये तो बेकार है, इसे समझने से कोई लाभ नहीं है। हम तो चौबीस हजार जप करेंगे और सबेरे 11 माला जप करेंगे। बेटे ये तो प्रयोग हैं। प्रयोग को और तत्त्वज्ञान को मिला देने से ही पूरा लाभ मिलता है।
गायत्री का पहला अंश वह है, जिसको आप समझने की कोशिश भी नहीं करते केवल प्रेक्टिस करना जानना चाहते हैं। थ्योरी जानना चाहते हैं? आप तो सिर्फ जप करना जानना चाहते हैं। होड़ करना जानना चाहते हैं। ध्यान करना जानना चाहते हैं। यह भी ठीक है, मैं मना नहीं करता, पर थ्योरी और प्रेक्टिस दोनों जुड़ी हुई हैं। नहीं, हम तो प्रैक्टिस करेंगे, थ्योरी से क्या फायदा? ऑपरेशन करेंगे हम तो। उसकी एनोटॉमी, फिजिओलॉजी सीखने से क्या फायदा? भाईसाहब, पहले उसकी एनोटॉमी, फिजिओलॉजी सीखिए। नहीं साहब, ये तो बेकार का टाइम हम नहीं गँवायेंगे। आप तो ऑपरेशन करना सिखा दीजिए। बेटे, आपको शरीर की संरचना मालूम नहीं है। टिशूज कैसे होते हैं? सेल कैसे होते हैं? अमुक चीज कैसी होती हैं? बिना इस जानकारी के आप ऐसे ही करेंगे आपरेशन, पेट को चीर डालेंगे, सुई- धागे से सी डालेंगे तो आप भी मरेंगे और वह भी मर जाएगा, जिसकी आप चीर- फाड़ करेंगे। पहले आप एनोटॉमी, फिजिओलॉजी वगैरह सीखिए।
इसी तरह गायत्री का तत्त्वज्ञान भी उतना ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है जितना कि उसका प्रयोग। जितना कि उसका व्यवहार। लोगों ने व्यवहार करना सीखा है। चौबीस हजार का जप करना चाहिए। ध्यान ऐसे, जप ऐसे करना चाहिए। बेटे, यह प्रयोग वाला हिस्सा है, फिलॉसफी वाला पक्ष और भी शानदार है। जो कुछ भी ज्ञान और विज्ञान की धाराएँ हैं, ये दोनों की दोनों धाराएँ गंगा- जमुना की तरीके से मिलती हैं। इसलिए गायत्री के दो नाम दिए गए हैं। एक का नाम गायत्री और एक का नाम सावित्री।
सावित्री किस हिस्से को कहते हैं? सावित्री उसे कहते हैं जो विज्ञान वाला भाग है। वैज्ञानिक प्रयोग के लिए सावित्री का महत्त्व है। जब भी आपको जप करना पड़ेगा, ध्यान करना पड़ेगा, उपासना करनी पड़ेगी, अनुष्ठान करना पड़ेगा तो आप मनुस्मृति में पढ़ डालिए इसके प्रयोग के पक्ष में, जहाँ कहीं भी गायत्री के प्रयोग हुए हैं, उस सारे के सारे प्रयोग को सावित्री के नाम से पुकारा गया है। मनुस्मृति में हर जगह जहाँ कहीं भी सावित्री का जिक्र आया है। गायत्री का जिक्र नहीं है। प्रयोग में केवल सावित्री काम आती है और गायत्री? गायत्री किस काम आती है? गायत्री ब्रह्मविद्या है। चिंतन जिसको कहते हैं, फिलॉसफी जिसको कहते हैं, विचारणा जिसको हम कहते हैं। ये सारे का सारा पक्ष गायत्री है।
इसके ज्ञान और विज्ञान पक्ष दोनों हैं, जिनको हम समझ पाएँ तो गंगा और जमुना दोनों की धारा की तरीके से मजा आ जाए। इनके मिलने से जिस तरह से त्रिवेणी बन जाती हैं, उसी तरीके से दोनों के मिलने से त्रिवेणी बन जाती है। दो चीजों के मिलाने से तीसरा रंग बन जाता है। दोनों चीजों, दोनों तारों को जब हम मिला देते हैं तो एक नई चीज, एक नई धारा पैदा हो जाती है। बिजली के दोनों तार अलग- अलग हैं। एक का नाम निगेटिव है और एक का पाजिटिव है। दोनों अलग- अलग हैं, पर दोनों को जब मिला देते हैं, तब एक तीसरी चीज बन जाती है, उसका नाम है करेण्ट और वह बराबर दौड़ने लगती है। तत्त्वज्ञान दौड़ता नहीं है। तत्त्वज्ञान और उसका प्रयोग दोनों का उपयोग अगर हम करेंगे तो गायत्री की जो महत्ता और गरिमा है उसका हम लाभ उठा पाएँगे। तत्त्वज्ञान को नहीं समझेंगे, केवल प्रयोग करते रहेंगे, तो परिणाम यह रहेगा कि जो लाभ होना चाहिए वह काफी नहीं होगा। इसकी फिलॉसफी को समझते रहेंगे, तो परिणाम यह रहेगा कि जो लाभ होना चाहिए वह काफी नहीं होगा। इसकी फिलॉसफी को समझते रहेंगे लेकिन उसको जीवन में प्रयोग न कर सकेंगे तो भी थोड़ा ही मुनाफा मिल पाएगा।
मित्रो ! थ्योरी भी अधूरी है और प्रेक्टिस भी अधूरी है। इसको जब हम मिला देते हैं- दोनों को, तो बात पूरी हो जाती है। दवा भी अधूरी है और उसका परहेज भी अधूरा है। परहेज हम करेंगे नहीं, नहाएँगे नहीं, कुल्ला नहीं करेंगे। हकीम जी ने दवा बतायी है, पर दवा नहीं खाएँगे, तो भी गलत है। दोनों चीजों का समन्वय हो जाने से बीमारी से उद्धार मिलता है। गायत्री मंत्र की जो सामर्थ्य और शक्ति ऋषियों और शास्त्रकारों ने बताई है, वह इस बात पर टिकी हुई है कि आप उसकी फिलॉसफी को भी समझें और प्रैक्टिस को भी समझें। दोनों को मिला देने से गायत्री मंत्र समर्थ हो सकता है और उसके बारे में जो महिमा और गरिमा बताई गई हैं, उनका साक्षात्कार करने में हम और आप समर्थ हो सकते हैं।
ये दोनों पक्ष काम नहीं करेंगे तो आपको शिकायत हो सकती है कि हमको लाभ नहीं मिला। लाभ नहीं मिलने की शिकायत बराबर बनी रहेगी। दोनों तारों को आप मिलाएँगे नहीं, तो आपको शिकायत रहेगी। साहब बेकार है, आपकी बिजली से कोई काम नहीं होता, बिजली हमारा पंखा भी नहीं हिलाती और हमारी बत्ती भी नहीं जलाती। ठीक है, आपने दोनों तारों को क्यों नहीं मिला दिया? आप उसकी फिलॉसफी को भी समझिए, उसकी शिक्षा और प्रेरणा को भी समझिए। जीवन में हमारे किस तरह से उसके आदर्श और सिद्धान्तों का समन्वय होना चाहिए? यह भी आप समझिए। नहीं ये तो बेकार है, इसे समझने से कोई लाभ नहीं है। हम तो चौबीस हजार जप करेंगे और सबेरे 11 माला जप करेंगे। बेटे ये तो प्रयोग हैं। प्रयोग को और तत्त्वज्ञान को मिला देने से ही पूरा लाभ मिलता है।