Books - गायत्री महामंत्र की अद्भुत सामर्थ्य
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Language: HINDI
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स्वयं के जीवन की गवाही
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एक गवाही के रूप में हमको इसीलिए आना पड़ा आपके सामने। हम दूसरे कामों में लगे हुए थे, पर भगवान् ने गायत्री मंत्र प्रचार करने के लिए भेज दिया और साथ में उन सारी विशेषताओं लेकर के भेजा कि लोग ये पूछताछ करेंगे कि क्यों साहब, आप गायत्री मंत्र की जो विशेषता भौतिक और आध्यात्मिक लाभ के रूप में बताते हैं, वे कहाँ तक सही हो सकती है। आप साबित कीजिए। तो बेटे हम कैसे साबित करेंगे, हम कहाँ- कहाँ से सबूत लाते फिरेंगे, कहाँ- कहाँ से गवाही इकट्ठी करते फिरेंगे? इन गवाहियों और सबूतों के सामने हम अपने आपको पेश करते हैं आपके सामने। ये जो पाँचों, सातों बातें हैं यही ठीक ढंग से गायत्री की उपासना की जाए तो सहज ही उपलब्ध हो जाती हैं।
सही ढंग से गायत्री उपासना क्या होती है? आगे चलकर हम आपको बता देंगे, जो हमने की है। जिस ढंग से हमने गायत्री उपासना की है। हमारे ज्ञान और हमारे कर्म दोनों में ही गायत्री का समावेश हुआ है। परिणाम क्या हुआ? जो लाभ हम बता चुके हैं, अभी और उसे पूरा करते हैं कैसे?
१- लम्बी जिन्दगी, हमारी कितनी जिन्दगी है, बहुत लम्बी जिन्दगी है? उम्र के हिसाब से, जन्मपत्री के हिसाब से, डेट ऑफ बर्थ के हिसाब से हमारी सत्तर वर्ष उम्र होती है और वैसे कितनी होती है? वैसे जो अभी बता रहा था कि पाँच लाभ गायत्री के होते हैं। गायत्री के पाँच मुख और पंचकोश हैं- इस हिसाब से हमारी साढ़े तीन सौ वर्ष उम्र हो जाती है। जो हमने काम किए हैं जिन्दगी में, आप पता लगा सकते हैं और तलाश कर सकते हैं कि इतने काम कोई आदमी साढ़े तीन सौ वर्ष से कम में कर सकता है क्या?
हमने जितना साहित्य लिखा है ये सत्तर वर्ष से कम में नहीं लिखा जा सकता हैं। हमने जो संगठन किया है- इतना बड़ा संगठन करने के लिए कम से कम इतनी उम्र चाहिए जो कि ऊपर बताई है। दस लाख आदमी हमारे पास हैं, वे हमारे संघ में इस कदर जुड़े हुए हैं जैसे आप देखते हैं। अगले वर्ष हमारा निश्चय है कि हमारे साथ में चौबीस लाख के करीब आदमी जुड़े हुए होंगे (यह आँकड़ा सन् १९८१ का है)। इतना बड़ा संगठन है। तमाम संगठनों को अगर मिला देते हैं- राजनीतिक संगठनों को, धार्मिक संगठनों को सामाजिक संगठनों को तो भी सबसे ज्यादा हमारी तादाद जा पहुँचती है। हिन्दुस्तान से लेकर के सारे विश्व भर में इसकी शाखाएँ फैली हुई हैं। ये क्या बात है? कितना काम कर लिया?
बेटे, हमने अपनी उपासना भी कर ली, चौबीस लक्ष पुरश्चरण भी कर लिए, साहित्य का निर्माण भी कर लिया और ये संगठन भी कर लिया। लाखों आदमी अपनी मुसीबतों को लेकर के आते हैं, उनकी सहायता करने के लिए भी हमको कुछ करना पड़ता है। देना पड़ता है कुछ। आशीर्वाद जवाब से भी दिए जाते हैं, उसमें तप का एक हिस्सा भी देना पड़ता है। उसमें भी हमको काम करना पड़ता है। पाँच हिस्से में हम अपना काम करते हैं। एक समय में पाँच हिस्सों में हम अपना काम करते हैं। एक समय में पाँच कल- पुर्जे और पाँच मशीनें हमारी काम करती रहती हैं। एक मशीन हमारी लेखन का काम करती है, एक मशीन हमारी संगठन का काम करती है, एक मशीन हमारी तपस्वी का काम करती है, ताकि दूसरों को वरदान देने के काम आ सके ।। एक मशीन हमारे गुर्दे के पास रहती है और अपना जो मूल लक्ष्य है, जीवन का उसको पूरा करने के लिए हम तालमेल बिठाते रहते हैं। इस तरह हम पाँच हिस्से में एक साथ काम करते हैं।
आपकी उम्र कितनी हैं? उम्र को तो बेटे, काम से देखा जाता है। शंकराचार्य सोलह वर्ष की उम्र में पैदा हुए थे, बत्तीस वर्ष की उम्र में मर गए। सोलह वर्ष जिए। सोलह वर्ष नहीं जिए एक सौ साठ वर्ष जिए। समय को देखते हुए यह नहीं देखते है कि काम क्या किया है और कितना किया है? हम तो अस्सी वर्ष के हैं। अस्सी वर्ष के हैं तो काम क्या किया है बताइए? आप पच्चीस वर्ष जिए तो भी अच्छा है, यदि कुछ किया है तब । भगतसिंह के तरीके से तो पच्चीस साल भी आपके लिए काफी हैं। इसलिए काम क्या किया यह बताइए? ज्यादा जिन्दगी तो साँप की होती है ,, कछुए की होती है। क्या आप इसी को ज्यादा जिन्दगी कहते हैं। मित्रो ! आयु की दृष्टि से अभी हम सौभाग्यवान हैं। अभी आपकी कितनी आयु हो सकती है? बेटे, हमको मालूम नहीं है, कहीं ट्रांसफर हो गया तो अलग बात है।
बेटे शरीर का जहाँ तक ताल्लुक है, हमारे शरीर में अभी कहीं बुढ़ापा नहीं आया है। अभी कहीं भी ऐसी चीज नहीं आई है, जिसे देखकर हमें यह कहना पड़े कि जवानी में कमी आ गई। सत्तर साल के हैं हम। इस सत्तर साल में भी हम बिल्कुल जवान हैं। कितने जवान हैं? सत्तर और एक- अब इकहत्तरवाँ वर्ष शुरू होता है तो कितना हो सकता है? एक को इधर रख लीजिए और सात को इधर रख दीजिए, तो हो जाते हैं- सैवण्टीन अरे ये अक्षरों का खेल है बेटे, बोलने का फर्क है बात एक ही है और प्रोनाउन्सियेशन का फर्क है बात एक ही है। सत्रह और सत्तर में क्या फर्क होता है? बेटे कोई नहीं होता। फर्क होता है तो हमें देख लें। मित्रो ! इतना लम्बा आयुष्य कैसे हो सकता है? गायत्री मंत्र की उपासना, जिसका हम आपको शिक्षण करते हैं, जिसको हम आपके द्वारा सारे विश्व में फैलाना चाहते हैं। इसके द्वारा हम आयु के बारे में अपनी गवाही देते हैं।
२- हम आपको प्राण की साक्षी देते हैं। हम प्राणवान भी हैं। सारा समाज एक ओर और हम अकेले। सारे समाज को, युग को बदल देने के लिए, जमाने को बदल देने के लिए, फिजाँ को बदल देने के लिए हम हिम्मत रखते हैं। सारे पानी की धारा एक ओर और अकेली मछली एक ओर । जिस तरह पानी की धारा को उल्टी दिशा में चीरती हुई, छरछराती हुई निकल जाती है उसी तरह हिम्मत न हारने की हमारी हिम्मत है। हम सिद्धान्तों के लिए, आदर्शों के लिए संघर्ष करते हैं। जब हर आदमी घबराता हो तो समाज में अच्छे काम के लिए कौन मदद करेगा? बुराइयों को दूर कैसे कर पायेंगे? हम बुराइयों को दूर करने के लिए और अच्छाइयों का संवर्द्धन करने के लिए एकाकी काम करते हैं। ‘‘एकला चलो रे,’’ ‘‘ एकला चलो रे’’ रवीन्द्र नाथ टैगोर की इस कविता को गाते हुए और गुनगुनाते हुए हम चलते हैं। कौन- कौन चलता है? एक हम चलते हैं और एक हमारा प्राण चलता है, एक हमारा जीवट चलता है? और कोई नहीं चलता। एक हम और एक हमारी हिम्मत और कोई ! और कोई नहीं है, एक हमारा भगवान और एक हमारा ईमान और कोई? और कोई नहीं है हमारे साथ। दो ही हैं- एक हमारी आत्मा और एक हमारी जुर्रत और एक हमारी हिम्मत। इनको लेकर के हम बढ़ते चले जाते हैं। हमारी तरह से आप भी प्राणवान हो सकते हैं, शर्त केवल यही है कि गायत्री उपासना के सही रूप को और सही सिद्धान्त को आप समझ पाएँ और सही रूप में जीवन में प्रवेश करने के लिए हिम्मत इकट्ठी कर पाएँ।
३ - ‘प्रजाम्’ प्रजा के लिए क्या कहेंगे? अभी तो आपसे कह चुके हैं। कितनी प्रजा है हमारी? अभी हमारी बेटे दस लाख प्रजा है और इस रजत जयन्ती वर्ष पर हमने कसम खाई है कि अपनी प्रजा में से प्रत्येक के एक बच्चा पैदा करेंगे। दस लाख बच्चों में से प्रत्येक के एक पोता पैदा करेंगे। इस तरह का हम सबको आशीर्वाद देंगे कि एक पोता हर एक के होना चाहिए। क्यों साहब, हमारी उम्र तो बहुत हो गई, हम तो साठ साल के हैं , हमारे भी होगा क्या? बेटे, आपके भी होगा। कहाँ से होगा? आपकी दाढ़ी में से होगा, आपके पेट में से होगा। हमारी औरत तो है भी नहीं। तो क्या हुआ? औरत से क्या मतलब है?
ऋषियों के औरतें नहीं थी फिर भी उनकी अनेकों संतानें थीं। औरतें होना अलग बात है और बच्चे होना अलग बात आप से लाख आदमियों में से एक-एक पोता हमारे होगा तो अगले एक साल के भीतर हम दो गुुना हो जाएँगे। नौ महीने के भीतर बच्चे हो जाते हैं। ब्याह हो जाते हैं लड़कियों के और साल भर बाद वे गोदी में बच्चा ले आती हैं। एक साल में हम चौबीस लाख के करीब होंगे। ये हमारी प्रजा है। यह ऐसी प्रजा है जिस पर हमको फक्र है, गर्व है। आपको अपने बच्चों पर गर्व नहीं है, आप तो अपने बच्चों की शिकायतें लेकर आते हैं। हमारा बड़ा बच्चा नालायक है। हमारा कहना नहीं मानता। हमारा बच्चा ऐसा है। हमें किसी बच्चे से शिकायत नहीं है। हमारे पास ऐसे-ऐसे बच्चे निकलकर आते हैं कि क्या कहने, जब हम हुक्म देते हैं तो वे चले आते हैं ।
४ -मित्रो! ‘प्रजाम्’ के अतिरिक्त कीर्ति भी है हमारी। हिन्दुस्तान से लेकर संसार के कोने-कोने तक इस नाम को आप जानना चाहें जो हिन्दू-संस्कृति का आरंभ से अंत तक व्याख्यान करने वाला है। हिन्दू संस्कृति को आरंभ से अंत तक समझाने वाला एक भी आदमी ढूँढकर लाइए तो आपको दूसरा आदमी नही मिल सकता। जिसने भारतीय संस्कृति को गायत्री मंत्र से लेकर अठारह पुराणों तक का सारा का सारा सांगोपांग ढाँचा खड़ा कर दिया हो।
साइन्स के आधार पर विज्ञान और अध्यात्म का प्रतिपादन करना एक नयी शैली है। साइन्स अलग मानी जाती थी और अध्यात्म अलग माना जाता था। दोनों में कोई तालमेल नहीं खाता था। दोनों में आपस में लड़ाई थी। आप कहेंगे कि जहाँ साइन्स खत्म होती है, वहाँ से अध्यात्म शुरू होता है। नहीं बेटे, दोनों को हम मिलाकर चलते हैं। हमारा शरीर और हमारी आत्मा दोनों मिलकर चलते हैँ। शरीर खत्म हो जाता है तो आत्मा शुरू होती है। नहीं, ऐसा नहीं है। शरीर-आत्मा मिलकर चलते हैं। विज्ञान और अध्यात्म मिलकर चलता है। यह नयी बात है।
रूसो ने कहा था- आप जनता पर राज कर सकते है। लोगों ने कहा- गलत है। जनता पर राज तो राजा करता है। प्रजा राज नहीं कर सकती है। प्रजा राज कर सकती है, रूसों ने कहा था। कार्ल मार्क्स ने कहा था- धन का वितरण होना चाहिए, धन पर सबका समान अधिकार होना चाहिए और हमने कहा है कि भौतिक विज्ञान और अध्यात्म दोनों ही जो तत्त्व हैं, ये आपस में मिलकर चलने चाहिए, आपस में दोनों को समन्वित होना चाहिए और वे समन्वित हैं भी। यह प्रतिपादन अब तक हम करते रहे हैं। अखण्ड ज्योति के द्वारा आपने पढ़ा भी है। अब हम और भी बड़े कदम उठाते हैं। आप देखेंगे कि थोड़े दिनों के बाद, हमारे मरने के बाद या हमारी जिन्दगी में लोग ये कहेंगे कि ऐसी शुरुआत एक आदमी ने की विज्ञान के आधार पर, जिसको कि आध्यात्मिकता के प्रतिपादन के लिए आवश्यक नहीं माना जाता था। इसको फिलॉसफी कहते हैं। लॉजिक भी कह सकते हैं। यह भी विज्ञान का एक अंश है। इसके आधार पर अध्यात्म का प्रतिपादन करने के लिए कीर्ति के हिसाब से शायद दुनिया हमारा ख्याल करती रहे।
५ -पैसे के हिसाब से भी आपको मालूम ही है। आप देखते ही हैं। आप लोग चौके में भोजन करने जाते हैं- हजारों आदमी नित्य भोजन करते हैं। फिर दूसरा दिन आता है। जब आप लोग चाय पीते है। हजारों आदमी दोनों टाइम भोजन करते हैं। ये कहाँ से आ जाता है, बेटे हम नहीं जानते हैं। नहीं, आपको तो कोई पैसा देता है, कोई सेठ साहूकार देते हैं? एकाध तो बताओ हम सेठ साहूकार हैं, हम आपको दे जाते हैं। खाने के पैसे भी तीन- चौथाई मुश्किल से आ पाते है। कहाँ से आ जाता है? हम नहीं जानते कहाँ से गायत्री तपोभूमि बनाई, इसमें दस लाख रुपया लग गया। शांतिकुंज बनाया इसमें और भी अधिक रुपया लग गया। ब्रह्मवर्चस बनाया, दस लाख रुपया लग गया। गायत्री भवन बनाने वाले हैं। कितना रुपया लगेगा मालूम नहीं, बेटे कितना रुपया लगेगा। हिसाब मत फैलाइये। कहाँ से आता है- ‘द्रविणम्’। ‘द्रविणम्’। भी आता है।
गाँधी जी के पास भी करोड़ों रुपये आते थे। हमारे पास भी आएगा। कहाँ से आएगा, हम नहीं जानते। कहीं से आएगा, पर आएगा जरूर। आपका कमाया हुआ नहीं है। नहीं, हमारा कमाया हुआ नहीं है। लोगों का दिया हुआ है। लोगों का दिया भी हो सकता है। फिर कहाँ से आता है? हम नहीं जानते बेटा, कहाँ से आता है। इसी को तो मैं आपसे कहता हूँ- ‘द्रविणम्’। अर्थात् भगवान का दिया हुआ धन।
६- ७ -‘ब्रह्मवर्चसम्’ ब्रह्मवर्चस कैसे होता है? वैसे ही जैसे इमारत आपने देखी है, जब आप जाते हैं टहलने। यही ब्रह्मवर्चस है। नहीं ,, बेटे यह ब्रह्मवर्चस तो इमारत है। ब्रह्मवर्चस और होता है। कैसा होता है? हमारी मुँह से सुनने की अपेक्षा आप अंदाज लगाइए कि ब्रह्मवर्चस कैसा हो सकता है? ब्रह्मतेज कैसा हो सकता है? ब्राह्मण कैसा हो सकता है? ब्राह्मण का व्यक्तित्व कैसा हो सकता है? ये आप अंदाज लगाइए। हम इस अंदाज को खत्म करते हैं और यह कहते हैं कि आप हमें देख लें। गायत्री मंत्र जिसका हम आपको शिक्षण करते हैं। गायत्री मंत्र जिसकी हमने जीवन भर उपासना की है। गायत्री मंत्र जिसका विस्तार हम सारे संसार में करना चाहते है। वह उन सारे के सारे सामर्थ्यों से भरा हुआ है, जो व्यक्ति की भौतिक और आत्मिक दोनों सफलताओं के द्वार को खोलने में समर्थ है। यह है गायत्री मंत्र की सामर्थ्य। आज इतना ही।
सही ढंग से गायत्री उपासना क्या होती है? आगे चलकर हम आपको बता देंगे, जो हमने की है। जिस ढंग से हमने गायत्री उपासना की है। हमारे ज्ञान और हमारे कर्म दोनों में ही गायत्री का समावेश हुआ है। परिणाम क्या हुआ? जो लाभ हम बता चुके हैं, अभी और उसे पूरा करते हैं कैसे?
१- लम्बी जिन्दगी, हमारी कितनी जिन्दगी है, बहुत लम्बी जिन्दगी है? उम्र के हिसाब से, जन्मपत्री के हिसाब से, डेट ऑफ बर्थ के हिसाब से हमारी सत्तर वर्ष उम्र होती है और वैसे कितनी होती है? वैसे जो अभी बता रहा था कि पाँच लाभ गायत्री के होते हैं। गायत्री के पाँच मुख और पंचकोश हैं- इस हिसाब से हमारी साढ़े तीन सौ वर्ष उम्र हो जाती है। जो हमने काम किए हैं जिन्दगी में, आप पता लगा सकते हैं और तलाश कर सकते हैं कि इतने काम कोई आदमी साढ़े तीन सौ वर्ष से कम में कर सकता है क्या?
हमने जितना साहित्य लिखा है ये सत्तर वर्ष से कम में नहीं लिखा जा सकता हैं। हमने जो संगठन किया है- इतना बड़ा संगठन करने के लिए कम से कम इतनी उम्र चाहिए जो कि ऊपर बताई है। दस लाख आदमी हमारे पास हैं, वे हमारे संघ में इस कदर जुड़े हुए हैं जैसे आप देखते हैं। अगले वर्ष हमारा निश्चय है कि हमारे साथ में चौबीस लाख के करीब आदमी जुड़े हुए होंगे (यह आँकड़ा सन् १९८१ का है)। इतना बड़ा संगठन है। तमाम संगठनों को अगर मिला देते हैं- राजनीतिक संगठनों को, धार्मिक संगठनों को सामाजिक संगठनों को तो भी सबसे ज्यादा हमारी तादाद जा पहुँचती है। हिन्दुस्तान से लेकर के सारे विश्व भर में इसकी शाखाएँ फैली हुई हैं। ये क्या बात है? कितना काम कर लिया?
बेटे, हमने अपनी उपासना भी कर ली, चौबीस लक्ष पुरश्चरण भी कर लिए, साहित्य का निर्माण भी कर लिया और ये संगठन भी कर लिया। लाखों आदमी अपनी मुसीबतों को लेकर के आते हैं, उनकी सहायता करने के लिए भी हमको कुछ करना पड़ता है। देना पड़ता है कुछ। आशीर्वाद जवाब से भी दिए जाते हैं, उसमें तप का एक हिस्सा भी देना पड़ता है। उसमें भी हमको काम करना पड़ता है। पाँच हिस्से में हम अपना काम करते हैं। एक समय में पाँच हिस्सों में हम अपना काम करते हैं। एक समय में पाँच कल- पुर्जे और पाँच मशीनें हमारी काम करती रहती हैं। एक मशीन हमारी लेखन का काम करती है, एक मशीन हमारी संगठन का काम करती है, एक मशीन हमारी तपस्वी का काम करती है, ताकि दूसरों को वरदान देने के काम आ सके ।। एक मशीन हमारे गुर्दे के पास रहती है और अपना जो मूल लक्ष्य है, जीवन का उसको पूरा करने के लिए हम तालमेल बिठाते रहते हैं। इस तरह हम पाँच हिस्से में एक साथ काम करते हैं।
आपकी उम्र कितनी हैं? उम्र को तो बेटे, काम से देखा जाता है। शंकराचार्य सोलह वर्ष की उम्र में पैदा हुए थे, बत्तीस वर्ष की उम्र में मर गए। सोलह वर्ष जिए। सोलह वर्ष नहीं जिए एक सौ साठ वर्ष जिए। समय को देखते हुए यह नहीं देखते है कि काम क्या किया है और कितना किया है? हम तो अस्सी वर्ष के हैं। अस्सी वर्ष के हैं तो काम क्या किया है बताइए? आप पच्चीस वर्ष जिए तो भी अच्छा है, यदि कुछ किया है तब । भगतसिंह के तरीके से तो पच्चीस साल भी आपके लिए काफी हैं। इसलिए काम क्या किया यह बताइए? ज्यादा जिन्दगी तो साँप की होती है ,, कछुए की होती है। क्या आप इसी को ज्यादा जिन्दगी कहते हैं। मित्रो ! आयु की दृष्टि से अभी हम सौभाग्यवान हैं। अभी आपकी कितनी आयु हो सकती है? बेटे, हमको मालूम नहीं है, कहीं ट्रांसफर हो गया तो अलग बात है।
बेटे शरीर का जहाँ तक ताल्लुक है, हमारे शरीर में अभी कहीं बुढ़ापा नहीं आया है। अभी कहीं भी ऐसी चीज नहीं आई है, जिसे देखकर हमें यह कहना पड़े कि जवानी में कमी आ गई। सत्तर साल के हैं हम। इस सत्तर साल में भी हम बिल्कुल जवान हैं। कितने जवान हैं? सत्तर और एक- अब इकहत्तरवाँ वर्ष शुरू होता है तो कितना हो सकता है? एक को इधर रख लीजिए और सात को इधर रख दीजिए, तो हो जाते हैं- सैवण्टीन अरे ये अक्षरों का खेल है बेटे, बोलने का फर्क है बात एक ही है और प्रोनाउन्सियेशन का फर्क है बात एक ही है। सत्रह और सत्तर में क्या फर्क होता है? बेटे कोई नहीं होता। फर्क होता है तो हमें देख लें। मित्रो ! इतना लम्बा आयुष्य कैसे हो सकता है? गायत्री मंत्र की उपासना, जिसका हम आपको शिक्षण करते हैं, जिसको हम आपके द्वारा सारे विश्व में फैलाना चाहते हैं। इसके द्वारा हम आयु के बारे में अपनी गवाही देते हैं।
२- हम आपको प्राण की साक्षी देते हैं। हम प्राणवान भी हैं। सारा समाज एक ओर और हम अकेले। सारे समाज को, युग को बदल देने के लिए, जमाने को बदल देने के लिए, फिजाँ को बदल देने के लिए हम हिम्मत रखते हैं। सारे पानी की धारा एक ओर और अकेली मछली एक ओर । जिस तरह पानी की धारा को उल्टी दिशा में चीरती हुई, छरछराती हुई निकल जाती है उसी तरह हिम्मत न हारने की हमारी हिम्मत है। हम सिद्धान्तों के लिए, आदर्शों के लिए संघर्ष करते हैं। जब हर आदमी घबराता हो तो समाज में अच्छे काम के लिए कौन मदद करेगा? बुराइयों को दूर कैसे कर पायेंगे? हम बुराइयों को दूर करने के लिए और अच्छाइयों का संवर्द्धन करने के लिए एकाकी काम करते हैं। ‘‘एकला चलो रे,’’ ‘‘ एकला चलो रे’’ रवीन्द्र नाथ टैगोर की इस कविता को गाते हुए और गुनगुनाते हुए हम चलते हैं। कौन- कौन चलता है? एक हम चलते हैं और एक हमारा प्राण चलता है, एक हमारा जीवट चलता है? और कोई नहीं चलता। एक हम और एक हमारी हिम्मत और कोई ! और कोई नहीं है, एक हमारा भगवान और एक हमारा ईमान और कोई? और कोई नहीं है हमारे साथ। दो ही हैं- एक हमारी आत्मा और एक हमारी जुर्रत और एक हमारी हिम्मत। इनको लेकर के हम बढ़ते चले जाते हैं। हमारी तरह से आप भी प्राणवान हो सकते हैं, शर्त केवल यही है कि गायत्री उपासना के सही रूप को और सही सिद्धान्त को आप समझ पाएँ और सही रूप में जीवन में प्रवेश करने के लिए हिम्मत इकट्ठी कर पाएँ।
३ - ‘प्रजाम्’ प्रजा के लिए क्या कहेंगे? अभी तो आपसे कह चुके हैं। कितनी प्रजा है हमारी? अभी हमारी बेटे दस लाख प्रजा है और इस रजत जयन्ती वर्ष पर हमने कसम खाई है कि अपनी प्रजा में से प्रत्येक के एक बच्चा पैदा करेंगे। दस लाख बच्चों में से प्रत्येक के एक पोता पैदा करेंगे। इस तरह का हम सबको आशीर्वाद देंगे कि एक पोता हर एक के होना चाहिए। क्यों साहब, हमारी उम्र तो बहुत हो गई, हम तो साठ साल के हैं , हमारे भी होगा क्या? बेटे, आपके भी होगा। कहाँ से होगा? आपकी दाढ़ी में से होगा, आपके पेट में से होगा। हमारी औरत तो है भी नहीं। तो क्या हुआ? औरत से क्या मतलब है?
ऋषियों के औरतें नहीं थी फिर भी उनकी अनेकों संतानें थीं। औरतें होना अलग बात है और बच्चे होना अलग बात आप से लाख आदमियों में से एक-एक पोता हमारे होगा तो अगले एक साल के भीतर हम दो गुुना हो जाएँगे। नौ महीने के भीतर बच्चे हो जाते हैं। ब्याह हो जाते हैं लड़कियों के और साल भर बाद वे गोदी में बच्चा ले आती हैं। एक साल में हम चौबीस लाख के करीब होंगे। ये हमारी प्रजा है। यह ऐसी प्रजा है जिस पर हमको फक्र है, गर्व है। आपको अपने बच्चों पर गर्व नहीं है, आप तो अपने बच्चों की शिकायतें लेकर आते हैं। हमारा बड़ा बच्चा नालायक है। हमारा कहना नहीं मानता। हमारा बच्चा ऐसा है। हमें किसी बच्चे से शिकायत नहीं है। हमारे पास ऐसे-ऐसे बच्चे निकलकर आते हैं कि क्या कहने, जब हम हुक्म देते हैं तो वे चले आते हैं ।
४ -मित्रो! ‘प्रजाम्’ के अतिरिक्त कीर्ति भी है हमारी। हिन्दुस्तान से लेकर संसार के कोने-कोने तक इस नाम को आप जानना चाहें जो हिन्दू-संस्कृति का आरंभ से अंत तक व्याख्यान करने वाला है। हिन्दू संस्कृति को आरंभ से अंत तक समझाने वाला एक भी आदमी ढूँढकर लाइए तो आपको दूसरा आदमी नही मिल सकता। जिसने भारतीय संस्कृति को गायत्री मंत्र से लेकर अठारह पुराणों तक का सारा का सारा सांगोपांग ढाँचा खड़ा कर दिया हो।
साइन्स के आधार पर विज्ञान और अध्यात्म का प्रतिपादन करना एक नयी शैली है। साइन्स अलग मानी जाती थी और अध्यात्म अलग माना जाता था। दोनों में कोई तालमेल नहीं खाता था। दोनों में आपस में लड़ाई थी। आप कहेंगे कि जहाँ साइन्स खत्म होती है, वहाँ से अध्यात्म शुरू होता है। नहीं बेटे, दोनों को हम मिलाकर चलते हैं। हमारा शरीर और हमारी आत्मा दोनों मिलकर चलते हैँ। शरीर खत्म हो जाता है तो आत्मा शुरू होती है। नहीं, ऐसा नहीं है। शरीर-आत्मा मिलकर चलते हैं। विज्ञान और अध्यात्म मिलकर चलता है। यह नयी बात है।
रूसो ने कहा था- आप जनता पर राज कर सकते है। लोगों ने कहा- गलत है। जनता पर राज तो राजा करता है। प्रजा राज नहीं कर सकती है। प्रजा राज कर सकती है, रूसों ने कहा था। कार्ल मार्क्स ने कहा था- धन का वितरण होना चाहिए, धन पर सबका समान अधिकार होना चाहिए और हमने कहा है कि भौतिक विज्ञान और अध्यात्म दोनों ही जो तत्त्व हैं, ये आपस में मिलकर चलने चाहिए, आपस में दोनों को समन्वित होना चाहिए और वे समन्वित हैं भी। यह प्रतिपादन अब तक हम करते रहे हैं। अखण्ड ज्योति के द्वारा आपने पढ़ा भी है। अब हम और भी बड़े कदम उठाते हैं। आप देखेंगे कि थोड़े दिनों के बाद, हमारे मरने के बाद या हमारी जिन्दगी में लोग ये कहेंगे कि ऐसी शुरुआत एक आदमी ने की विज्ञान के आधार पर, जिसको कि आध्यात्मिकता के प्रतिपादन के लिए आवश्यक नहीं माना जाता था। इसको फिलॉसफी कहते हैं। लॉजिक भी कह सकते हैं। यह भी विज्ञान का एक अंश है। इसके आधार पर अध्यात्म का प्रतिपादन करने के लिए कीर्ति के हिसाब से शायद दुनिया हमारा ख्याल करती रहे।
५ -पैसे के हिसाब से भी आपको मालूम ही है। आप देखते ही हैं। आप लोग चौके में भोजन करने जाते हैं- हजारों आदमी नित्य भोजन करते हैं। फिर दूसरा दिन आता है। जब आप लोग चाय पीते है। हजारों आदमी दोनों टाइम भोजन करते हैं। ये कहाँ से आ जाता है, बेटे हम नहीं जानते हैं। नहीं, आपको तो कोई पैसा देता है, कोई सेठ साहूकार देते हैं? एकाध तो बताओ हम सेठ साहूकार हैं, हम आपको दे जाते हैं। खाने के पैसे भी तीन- चौथाई मुश्किल से आ पाते है। कहाँ से आ जाता है? हम नहीं जानते कहाँ से गायत्री तपोभूमि बनाई, इसमें दस लाख रुपया लग गया। शांतिकुंज बनाया इसमें और भी अधिक रुपया लग गया। ब्रह्मवर्चस बनाया, दस लाख रुपया लग गया। गायत्री भवन बनाने वाले हैं। कितना रुपया लगेगा मालूम नहीं, बेटे कितना रुपया लगेगा। हिसाब मत फैलाइये। कहाँ से आता है- ‘द्रविणम्’। ‘द्रविणम्’। भी आता है।
गाँधी जी के पास भी करोड़ों रुपये आते थे। हमारे पास भी आएगा। कहाँ से आएगा, हम नहीं जानते। कहीं से आएगा, पर आएगा जरूर। आपका कमाया हुआ नहीं है। नहीं, हमारा कमाया हुआ नहीं है। लोगों का दिया हुआ है। लोगों का दिया भी हो सकता है। फिर कहाँ से आता है? हम नहीं जानते बेटा, कहाँ से आता है। इसी को तो मैं आपसे कहता हूँ- ‘द्रविणम्’। अर्थात् भगवान का दिया हुआ धन।
६- ७ -‘ब्रह्मवर्चसम्’ ब्रह्मवर्चस कैसे होता है? वैसे ही जैसे इमारत आपने देखी है, जब आप जाते हैं टहलने। यही ब्रह्मवर्चस है। नहीं ,, बेटे यह ब्रह्मवर्चस तो इमारत है। ब्रह्मवर्चस और होता है। कैसा होता है? हमारी मुँह से सुनने की अपेक्षा आप अंदाज लगाइए कि ब्रह्मवर्चस कैसा हो सकता है? ब्रह्मतेज कैसा हो सकता है? ब्राह्मण कैसा हो सकता है? ब्राह्मण का व्यक्तित्व कैसा हो सकता है? ये आप अंदाज लगाइए। हम इस अंदाज को खत्म करते हैं और यह कहते हैं कि आप हमें देख लें। गायत्री मंत्र जिसका हम आपको शिक्षण करते हैं। गायत्री मंत्र जिसकी हमने जीवन भर उपासना की है। गायत्री मंत्र जिसका विस्तार हम सारे संसार में करना चाहते है। वह उन सारे के सारे सामर्थ्यों से भरा हुआ है, जो व्यक्ति की भौतिक और आत्मिक दोनों सफलताओं के द्वार को खोलने में समर्थ है। यह है गायत्री मंत्र की सामर्थ्य। आज इतना ही।