Books - गायत्री और यज्ञ विज्ञान का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध
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Language: HINDI
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पूर्णाहुति
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स्रुचि में सुपारी या नारियल घृत समेत रखकर पूर्णाहुति दें।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णसदच्यते ।पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।1।।
ॐ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत ।वस्नेव विक्रीणा वहाऽइषमूर्ज शतक्रतो स्वाहा ।।3।।ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।
वसोधारा—
ॐ वसो पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्र धारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः स्वाहा ।
(20) आरती
तत्पश्चात् निम्न मन्त्रों को पढ़ते हुए आरती उतारें—
ॐ यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्ति,परमं प्रधानं पुरुषस्तथान्ये ।
विश्वोद्गते कारणमीश्वरं वा,तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ।।
ॐ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुवन्ति दिव्यैः स्तवैः ।वेदैः साङ्गपदकमोपनिषदेर्गायन्ति यं सामगाः ।ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो ।यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः देवाय तस्मै नमः ।।
(21) घृत अवघाण
प्रणीता में ‘इदं न मम’ के साथ टपकाकर घृत को हथेलियों में लगाकर अग्नि में सेंकें और उसे सूंघें तथा मुख, नेत्र, कर्ण आदि पर लगावें। मन्त्र—
ॐ तनूपाअग्नेऽसि तन्व मे पाहि ।ॐ आयुर्दाअग्नेऽस्यायुर्मे देहि ।ॐ वर्चोदाअग्नेसि वर्चो में देहि ।ॐ अग्ने यन्ने तन्वाऽऊनन्तन्म आपृण ।ॐ मेधां मे देव सविता आदधातु ।ॐ मेधां मे देवी सरस्वती आदधातु ।ॐ मेधां अश्विनौ देवां वाधतां पुष्कर स्रजौ ।
गायत्री मन्त्र बोलते हुए घृत मुखमण्डल पर लगाना और सूंघना चाहिए।
(22) भस्म धारण
स्रुवा से यज्ञ भस्म लेकर अनामिका उंगली से निम्न मन्त्रों द्वारा ललाट, ग्रीवा, दक्षिण बाहुमूल तथा हृदय पर लगावें।
ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेरिति ललाटे ।ॐ कश्चपस्य त्रायुषमिति ग्रीवायाम् ।ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति दक्षिण बाहुमूले ।ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदि ।
(23) क्षमा प्रार्थना
आवाहनं न जानामि नैव जानामि पूजनम् ।विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।1।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।2।।
यदक्षरं पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर ।।3।।
यस्य स्मृया च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ।।4।।
प्रमादात्कुर्वता कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णः स्यादितिश्रुतिः ।।5।।
(24) साष्टांग नमस्कार
तत्पश्चात् यज्ञ भगवान के प्रति घुटनों के बल झुककर साष्टांग प्रणाम करें तथा निम्न मन्त्र बोलें—
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटियुगधारिणे नमः ।।
नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च ।जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमोनमः ।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्द नम् ।देवकी परमानन्दम् कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।
(25) शुभ कामना
तत्पश्चात् समस्त प्राणियों के कल्याणार्थ यज्ञ भगवान् से हाथ जोड़कर शुभ-कामना करें—
स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां न्यायेन मार्गेण महीं महीशा ।गोब्राह्मणेभ्यो शुभमस्तु नित्यं, लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु ।।1।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ।।2।।
अपुत्राः पुत्रिणः सन्तु पुत्रिणः सन्तु पौत्रिणः ।निर्धनाः सधनाः सन्तु जीवन्तु शरदां शतम् ।।3।।
श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां पुष्टिं श्रियम् बलम् ।तेजआयुष्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन ।।4।।
(26) अभिषिचनम्
अभिषेक के समय सपरिवार यजमान के ऊपर आचार्य निम्न मन्त्र से, रुद्र कलश के जल से, पञ्च पल्लव तथा पुष्प द्वारा अभिषेक (जल सिंचन) करें—छिड़कें—
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शांतिः पृथिवी शांतिरापः शांतिरौषधयः शांतिः वनस्पतयः शांतिर्विश्वेदेवाः
शांतिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि ।।ॐ शांतिः । शांतिः । शांतिः ।। सर्वारिष्टा सुशांतिर्भवत् ।।
(27) ।। आरती गायत्री जी की ।।
जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग-पालन कर्त्री ।दुःख शोक, भय, क्लेश, कलह, दारिद्रय दैनय हर्त्री ।।ब्रह्मरूपिणी, प्रणति पालिनी, जगद्धातृ अम्बे ।भवभय हारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ।।भवहारिणी, भव तारिणि अनघे, अज आनन्द राशी ।अविकारी, अघहारी, अविचलित, अमले अविनाशी ।।कामधेनु सत चित्त अनन्दा जय गंगा गीता ।सविता की शाश्वती शक्ति तुम सावित्री सीता ।ऋगु, यजु, साम अथर्व प्रणविनी प्रणव महामहिमे ।कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे ।।स्वाहा, सुधा, शची ब्रह्माणी राधा, रुद्राणी ।जय सतरूपा वाणी विद्या कमला कल्याणी ।।जननी हम हैं दीन—हीन दुःख दारिद के घेरे ।यद्यपि कुटिल कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे ।।स्नेहसनी करुणामयि माता चरण-शरण दीजै ।विलख रहे हैं हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै ।काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये ।शुद्ध-बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ।।तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि, पुष्टि माता ।सत मारग पर हमें चलाओ, जो है सुख दाता ।।जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।
(28) यज्ञ की महिमा
यज्ञ रूप प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिये ।छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये ।।वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें ।हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें ।।अश्वमेधादिक रचाएं, यज्ञ पर उपकार को ।धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को ।।नित्य श्रद्धा-भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें ।कामना मिट जायं मन से, पाप अत्याचार की ।भावनाएं पूर्ण होवें, यज्ञ से नर-नारि की ।।लाभकारी को हवन, हर जीवधारी के लिए ।वायु जल सर्वत्र हो, शुभ गन्ध को धारण किए ।।स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो ।‘इदं न मम’ का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो ।।हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे ।नाथ करुणारूप करुणा आपकी सब पर रहे ।।
(29) अर्घ्य दान
पुरश्चरण से बचे हुए जल से सूर्य के सामने अर्घ्य देना चाहिए नीचे लिखे मन्त्र से सूर्य को अर्घ्य दें।
सूर्यं देव सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते ।अनुकम्पाय मां भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर ।।
(30) प्रदक्षिणा
यज्ञ के अन्त में सब लोग खड़े होकर बांये से दांये हाथ की ओर यज्ञ की चार परिक्रमा करें—
यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञातकृतानि च ।तानिणि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणायां पदे-पदे ।।
(31) विसर्जनम्
गच्छत्वं भगवनग्ने सर्वस्थाने कुण्ड मध्यतः ।हुतमादाय देवेभ्यः शीघ्रं देहि प्रसीद मे ।।1।।
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वरः ।यत्र ब्रह्मादयोः देवास्तत्र गच्छ हुताशन ।।2।।
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामदाय मामकीम् ।इष्ट काम समृद्धयर्थं पुनरागमनाय च ।।3।।
यज्ञ समाप्त होने के बाद देव प्रसाद के रूप में चिनौरियां, बतासे या सुविधानुसार जो भी कुछ उपलब्ध हो प्रसाद वितरण की भी परम्परा रहनी चाहिए। कुछ न मिलने पर दूध, चीनी तथा तुलसी पत्र मिला पंचामृत बनाकर वितरण किया जाना चाहिए। प्रसाद वितरण के पूर्व जय घोष भी किया जाये। जय घोष—
1—गायत्री माता की जय2—यज्ञ भगवान की जय
की तरह के होने चाहिए उनमें बौद्धिकता का समावेश बना रहना चाहिए।स्रुचि में सुपारी या नारियल घृत समेत रखकर पूर्णाहुति दें।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णसदच्यते ।पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।1।।
ॐ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत ।वस्नेव विक्रीणा वहाऽइषमूर्ज शतक्रतो स्वाहा ।।3।।ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।
वसोधारा—
ॐ वसो पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्र धारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः स्वाहा ।
(20) आरती
तत्पश्चात् निम्न मन्त्रों को पढ़ते हुए आरती उतारें—
ॐ यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्ति,परमं प्रधानं पुरुषस्तथान्ये ।विश्वोद्गते कारणमीश्वरं वा,तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ।।
ॐ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुवन्ति दिव्यैः स्तवैः ।वेदैः साङ्गपदकमोपनिषदेर्गायन्ति यं सामगाः ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो ।यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः देवाय तस्मै नमः ।।
(21) घृत अवघाण
प्रणीता में ‘इदं न मम’ के साथ टपकाकर घृत को हथेलियों में लगाकर अग्नि में सेंकें और उसे सूंघें तथा मुख, नेत्र, कर्ण आदि पर लगावें। मन्त्र—
ॐ तनूपाअग्नेऽसि तन्व मे पाहि ।ॐ आयुर्दाअग्नेऽस्यायुर्मे देहि ।ॐ वर्चोदाअग्नेसि वर्चो में देहि ।ॐ अग्ने यन्ने तन्वाऽऊनन्तन्म आपृण ।ॐ मेधां मे देव सविता आदधातु ।ॐ मेधां मे देवी सरस्वती आदधातु ।ॐ मेधां अश्विनौ देवां वाधतां पुष्कर स्रजौ ।
गायत्री मन्त्र बोलते हुए घृत मुखमण्डल पर लगाना और सूंघना चाहिए।
(22) भस्म धारण
स्रुवा से यज्ञ भस्म लेकर अनामिका उंगली से निम्न मन्त्रों द्वारा ललाट, ग्रीवा, दक्षिण बाहुमूल तथा हृदय पर लगावें।
ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेरिति ललाटे ।ॐ कश्चपस्य त्रायुषमिति ग्रीवायाम् ।ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति दक्षिण बाहुमूले ।ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदि ।
(23) क्षमा प्रार्थना
आवाहनं न जानामि नैव जानामि पूजनम् ।विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।1।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।2।।
यदक्षरं पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर ।।3।।
यस्य स्मृया च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ।।4।।
प्रमादात्कुर्वता कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णः स्यादितिश्रुतिः ।।5।।
(24) साष्टांग नमस्कार
तत्पश्चात् यज्ञ भगवान के प्रति घुटनों के बल झुककर साष्टांग प्रणाम करें तथा निम्न मन्त्र बोलें—
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटियुगधारिणे नमः ।।
नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च ।जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमोनमः ।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्द नम् ।देवकी परमानन्दम् कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।
(25) शुभ कामना
तत्पश्चात् समस्त प्राणियों के कल्याणार्थ यज्ञ भगवान् से हाथ जोड़कर शुभ-कामना करें—
स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां न्यायेन मार्गेण महीं महीशा ।गोब्राह्मणेभ्यो शुभमस्तु नित्यं, लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु ।।1।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ।।2।।
अपुत्राः पुत्रिणः सन्तु पुत्रिणः सन्तु पौत्रिणः ।निर्धनाः सधनाः सन्तु जीवन्तु शरदां शतम् ।।3।।
श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां पुष्टिं श्रियम् बलम् ।तेजआयुष्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन ।।4।।
(26) अभिषिचनम्
अभिषेक के समय सपरिवार यजमान के ऊपर आचार्य निम्न मन्त्र से, रुद्र कलश के जल से, पञ्च पल्लव तथा पुष्प द्वारा अभिषेक (जल सिंचन) करें—छिड़कें—
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शांतिः पृथिवी शांतिरापः शांतिरौषधयः शांतिः वनस्पतयः शांतिर्विश्वेदेवाः
शांतिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि ।।ॐ शांतिः । शांतिः । शांतिः ।। सर्वारिष्टा सुशांतिर्भवत् ।।
(27) ।। आरती गायत्री जी की ।।
जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग-पालन कर्त्री ।दुःख शोक, भय, क्लेश, कलह, दारिद्रय दैनय हर्त्री ।।ब्रह्मरूपिणी, प्रणति पालिनी, जगद्धातृ अम्बे ।भवभय हारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ।।भवहारिणी, भव तारिणि अनघे, अज आनन्द राशी ।अविकारी, अघहारी, अविचलित, अमले अविनाशी ।।कामधेनु सत चित्त अनन्दा जय गंगा गीता ।सविता की शाश्वती शक्ति तुम सावित्री सीता ।ऋगु, यजु, साम अथर्व प्रणविनी प्रणव महामहिमे ।कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे ।।स्वाहा, सुधा, शची ब्रह्माणी राधा, रुद्राणी ।जय सतरूपा वाणी विद्या कमला कल्याणी ।।जननी हम हैं दीन—हीन दुःख दारिद के घेरे ।यद्यपि कुटिल कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे ।।स्नेहसनी करुणामयि माता चरण-शरण दीजै ।विलख रहे हैं हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै ।काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये ।शुद्ध-बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ।।तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि, पुष्टि माता ।सत मारग पर हमें चलाओ, जो है सुख दाता ।।जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।
(28) यज्ञ की महिमा
यज्ञ रूप प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिये ।छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये ।।वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें ।हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें ।।अश्वमेधादिक रचाएं, यज्ञ पर उपकार को ।धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को ।।नित्य श्रद्धा-भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें ।कामना मिट जायं मन से, पाप अत्याचार की ।भावनाएं पूर्ण होवें, यज्ञ से नर-नारि की ।।लाभकारी को हवन, हर जीवधारी के लिए ।वायु जल सर्वत्र हो, शुभ गन्ध को धारण किए ।।स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो ।‘इदं न मम’ का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो ।।हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे ।नाथ करुणारूप करुणा आपकी सब पर रहे ।।
(29) अर्घ्य दान
पुरश्चरण से बचे हुए जल से सूर्य के सामने अर्घ्य देना चाहिए नीचे लिखे मन्त्र से सूर्य को अर्घ्य दें।सूर्यं देव सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते ।अनुकम्पाय मां भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर ।।
(30) प्रदक्षिणा
यज्ञ के अन्त में सब लोग खड़े होकर बांये से दांये हाथ की ओर यज्ञ की चार परिक्रमा करें—
यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञातकृतानि च ।तानिणि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणायां पदे-पदे ।।
(31) विसर्जनम्
गच्छत्वं भगवनग्ने सर्वस्थाने कुण्ड मध्यतः ।हुतमादाय देवेभ्यः शीघ्रं देहि प्रसीद मे ।।1।।
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वरः ।यत्र ब्रह्मादयोः देवास्तत्र गच्छ हुताशन ।।2।।
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामदाय मामकीम् ।इष्ट काम समृद्धयर्थं पुनरागमनाय च ।।3।।
यज्ञ समाप्त होने के बाद देव प्रसाद के रूप में चिनौरियां, बतासे या सुविधानुसार जो भी कुछ उपलब्ध हो प्रसाद वितरण की भी परम्परा रहनी चाहिए। कुछ न मिलने पर दूध, चीनी तथा तुलसी पत्र मिला पंचामृत बनाकर वितरण किया जाना चाहिए। प्रसाद वितरण के पूर्व जय घोष भी किया जाये। जय घोष—
1—गायत्री माता की जय2—यज्ञ भगवान की जय
की तरह के होने चाहिए उनमें बौद्धिकता का समावेश बना रहना चाहिए।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णसदच्यते ।पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।1।।
ॐ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत ।वस्नेव विक्रीणा वहाऽइषमूर्ज शतक्रतो स्वाहा ।।3।।ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।
वसोधारा—
ॐ वसो पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्र धारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः स्वाहा ।
(20) आरती
तत्पश्चात् निम्न मन्त्रों को पढ़ते हुए आरती उतारें—
ॐ यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्ति,परमं प्रधानं पुरुषस्तथान्ये ।
विश्वोद्गते कारणमीश्वरं वा,तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ।।
ॐ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुवन्ति दिव्यैः स्तवैः ।वेदैः साङ्गपदकमोपनिषदेर्गायन्ति यं सामगाः ।ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो ।यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः देवाय तस्मै नमः ।।
(21) घृत अवघाण
प्रणीता में ‘इदं न मम’ के साथ टपकाकर घृत को हथेलियों में लगाकर अग्नि में सेंकें और उसे सूंघें तथा मुख, नेत्र, कर्ण आदि पर लगावें। मन्त्र—
ॐ तनूपाअग्नेऽसि तन्व मे पाहि ।ॐ आयुर्दाअग्नेऽस्यायुर्मे देहि ।ॐ वर्चोदाअग्नेसि वर्चो में देहि ।ॐ अग्ने यन्ने तन्वाऽऊनन्तन्म आपृण ।ॐ मेधां मे देव सविता आदधातु ।ॐ मेधां मे देवी सरस्वती आदधातु ।ॐ मेधां अश्विनौ देवां वाधतां पुष्कर स्रजौ ।
गायत्री मन्त्र बोलते हुए घृत मुखमण्डल पर लगाना और सूंघना चाहिए।
(22) भस्म धारण
स्रुवा से यज्ञ भस्म लेकर अनामिका उंगली से निम्न मन्त्रों द्वारा ललाट, ग्रीवा, दक्षिण बाहुमूल तथा हृदय पर लगावें।
ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेरिति ललाटे ।ॐ कश्चपस्य त्रायुषमिति ग्रीवायाम् ।ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति दक्षिण बाहुमूले ।ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदि ।
(23) क्षमा प्रार्थना
आवाहनं न जानामि नैव जानामि पूजनम् ।विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।1।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।2।।
यदक्षरं पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर ।।3।।
यस्य स्मृया च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ।।4।।
प्रमादात्कुर्वता कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णः स्यादितिश्रुतिः ।।5।।
(24) साष्टांग नमस्कार
तत्पश्चात् यज्ञ भगवान के प्रति घुटनों के बल झुककर साष्टांग प्रणाम करें तथा निम्न मन्त्र बोलें—
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटियुगधारिणे नमः ।।
नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च ।जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमोनमः ।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्द नम् ।देवकी परमानन्दम् कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।
(25) शुभ कामना
तत्पश्चात् समस्त प्राणियों के कल्याणार्थ यज्ञ भगवान् से हाथ जोड़कर शुभ-कामना करें—
स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां न्यायेन मार्गेण महीं महीशा ।गोब्राह्मणेभ्यो शुभमस्तु नित्यं, लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु ।।1।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ।।2।।
अपुत्राः पुत्रिणः सन्तु पुत्रिणः सन्तु पौत्रिणः ।निर्धनाः सधनाः सन्तु जीवन्तु शरदां शतम् ।।3।।
श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां पुष्टिं श्रियम् बलम् ।तेजआयुष्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन ।।4।।
(26) अभिषिचनम्
अभिषेक के समय सपरिवार यजमान के ऊपर आचार्य निम्न मन्त्र से, रुद्र कलश के जल से, पञ्च पल्लव तथा पुष्प द्वारा अभिषेक (जल सिंचन) करें—छिड़कें—
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शांतिः पृथिवी शांतिरापः शांतिरौषधयः शांतिः वनस्पतयः शांतिर्विश्वेदेवाः
शांतिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि ।।ॐ शांतिः । शांतिः । शांतिः ।। सर्वारिष्टा सुशांतिर्भवत् ।।
(27) ।। आरती गायत्री जी की ।।
जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग-पालन कर्त्री ।दुःख शोक, भय, क्लेश, कलह, दारिद्रय दैनय हर्त्री ।।ब्रह्मरूपिणी, प्रणति पालिनी, जगद्धातृ अम्बे ।भवभय हारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ।।भवहारिणी, भव तारिणि अनघे, अज आनन्द राशी ।अविकारी, अघहारी, अविचलित, अमले अविनाशी ।।कामधेनु सत चित्त अनन्दा जय गंगा गीता ।सविता की शाश्वती शक्ति तुम सावित्री सीता ।ऋगु, यजु, साम अथर्व प्रणविनी प्रणव महामहिमे ।कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे ।।स्वाहा, सुधा, शची ब्रह्माणी राधा, रुद्राणी ।जय सतरूपा वाणी विद्या कमला कल्याणी ।।जननी हम हैं दीन—हीन दुःख दारिद के घेरे ।यद्यपि कुटिल कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे ।।स्नेहसनी करुणामयि माता चरण-शरण दीजै ।विलख रहे हैं हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै ।काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये ।शुद्ध-बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ।।तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि, पुष्टि माता ।सत मारग पर हमें चलाओ, जो है सुख दाता ।।जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।
(28) यज्ञ की महिमा
यज्ञ रूप प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिये ।छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये ।।वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें ।हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें ।।अश्वमेधादिक रचाएं, यज्ञ पर उपकार को ।धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को ।।नित्य श्रद्धा-भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें ।कामना मिट जायं मन से, पाप अत्याचार की ।भावनाएं पूर्ण होवें, यज्ञ से नर-नारि की ।।लाभकारी को हवन, हर जीवधारी के लिए ।वायु जल सर्वत्र हो, शुभ गन्ध को धारण किए ।।स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो ।‘इदं न मम’ का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो ।।हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे ।नाथ करुणारूप करुणा आपकी सब पर रहे ।।
(29) अर्घ्य दान
पुरश्चरण से बचे हुए जल से सूर्य के सामने अर्घ्य देना चाहिए नीचे लिखे मन्त्र से सूर्य को अर्घ्य दें।
सूर्यं देव सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते ।अनुकम्पाय मां भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर ।।
(30) प्रदक्षिणा
यज्ञ के अन्त में सब लोग खड़े होकर बांये से दांये हाथ की ओर यज्ञ की चार परिक्रमा करें—
यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञातकृतानि च ।तानिणि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणायां पदे-पदे ।।
(31) विसर्जनम्
गच्छत्वं भगवनग्ने सर्वस्थाने कुण्ड मध्यतः ।हुतमादाय देवेभ्यः शीघ्रं देहि प्रसीद मे ।।1।।
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वरः ।यत्र ब्रह्मादयोः देवास्तत्र गच्छ हुताशन ।।2।।
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामदाय मामकीम् ।इष्ट काम समृद्धयर्थं पुनरागमनाय च ।।3।।
यज्ञ समाप्त होने के बाद देव प्रसाद के रूप में चिनौरियां, बतासे या सुविधानुसार जो भी कुछ उपलब्ध हो प्रसाद वितरण की भी परम्परा रहनी चाहिए। कुछ न मिलने पर दूध, चीनी तथा तुलसी पत्र मिला पंचामृत बनाकर वितरण किया जाना चाहिए। प्रसाद वितरण के पूर्व जय घोष भी किया जाये। जय घोष—
1—गायत्री माता की जय2—यज्ञ भगवान की जय
की तरह के होने चाहिए उनमें बौद्धिकता का समावेश बना रहना चाहिए।स्रुचि में सुपारी या नारियल घृत समेत रखकर पूर्णाहुति दें।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णसदच्यते ।पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।1।।
ॐ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत ।वस्नेव विक्रीणा वहाऽइषमूर्ज शतक्रतो स्वाहा ।।3।।ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।
वसोधारा—
ॐ वसो पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्र धारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः स्वाहा ।
(20) आरती
तत्पश्चात् निम्न मन्त्रों को पढ़ते हुए आरती उतारें—
ॐ यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्ति,परमं प्रधानं पुरुषस्तथान्ये ।विश्वोद्गते कारणमीश्वरं वा,तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ।।
ॐ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुवन्ति दिव्यैः स्तवैः ।वेदैः साङ्गपदकमोपनिषदेर्गायन्ति यं सामगाः ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो ।यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः देवाय तस्मै नमः ।।
(21) घृत अवघाण
प्रणीता में ‘इदं न मम’ के साथ टपकाकर घृत को हथेलियों में लगाकर अग्नि में सेंकें और उसे सूंघें तथा मुख, नेत्र, कर्ण आदि पर लगावें। मन्त्र—
ॐ तनूपाअग्नेऽसि तन्व मे पाहि ।ॐ आयुर्दाअग्नेऽस्यायुर्मे देहि ।ॐ वर्चोदाअग्नेसि वर्चो में देहि ।ॐ अग्ने यन्ने तन्वाऽऊनन्तन्म आपृण ।ॐ मेधां मे देव सविता आदधातु ।ॐ मेधां मे देवी सरस्वती आदधातु ।ॐ मेधां अश्विनौ देवां वाधतां पुष्कर स्रजौ ।
गायत्री मन्त्र बोलते हुए घृत मुखमण्डल पर लगाना और सूंघना चाहिए।
(22) भस्म धारण
स्रुवा से यज्ञ भस्म लेकर अनामिका उंगली से निम्न मन्त्रों द्वारा ललाट, ग्रीवा, दक्षिण बाहुमूल तथा हृदय पर लगावें।
ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेरिति ललाटे ।ॐ कश्चपस्य त्रायुषमिति ग्रीवायाम् ।ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति दक्षिण बाहुमूले ।ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदि ।
(23) क्षमा प्रार्थना
आवाहनं न जानामि नैव जानामि पूजनम् ।विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।1।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।2।।
यदक्षरं पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर ।।3।।
यस्य स्मृया च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ।।4।।
प्रमादात्कुर्वता कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णः स्यादितिश्रुतिः ।।5।।
(24) साष्टांग नमस्कार
तत्पश्चात् यज्ञ भगवान के प्रति घुटनों के बल झुककर साष्टांग प्रणाम करें तथा निम्न मन्त्र बोलें—
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटियुगधारिणे नमः ।।
नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च ।जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमोनमः ।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्द नम् ।देवकी परमानन्दम् कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।
(25) शुभ कामना
तत्पश्चात् समस्त प्राणियों के कल्याणार्थ यज्ञ भगवान् से हाथ जोड़कर शुभ-कामना करें—
स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां न्यायेन मार्गेण महीं महीशा ।गोब्राह्मणेभ्यो शुभमस्तु नित्यं, लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु ।।1।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ।।2।।
अपुत्राः पुत्रिणः सन्तु पुत्रिणः सन्तु पौत्रिणः ।निर्धनाः सधनाः सन्तु जीवन्तु शरदां शतम् ।।3।।
श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां पुष्टिं श्रियम् बलम् ।तेजआयुष्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन ।।4।।
(26) अभिषिचनम्
अभिषेक के समय सपरिवार यजमान के ऊपर आचार्य निम्न मन्त्र से, रुद्र कलश के जल से, पञ्च पल्लव तथा पुष्प द्वारा अभिषेक (जल सिंचन) करें—छिड़कें—
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शांतिः पृथिवी शांतिरापः शांतिरौषधयः शांतिः वनस्पतयः शांतिर्विश्वेदेवाः
शांतिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि ।।ॐ शांतिः । शांतिः । शांतिः ।। सर्वारिष्टा सुशांतिर्भवत् ।।
(27) ।। आरती गायत्री जी की ।।
जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग-पालन कर्त्री ।दुःख शोक, भय, क्लेश, कलह, दारिद्रय दैनय हर्त्री ।।ब्रह्मरूपिणी, प्रणति पालिनी, जगद्धातृ अम्बे ।भवभय हारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ।।भवहारिणी, भव तारिणि अनघे, अज आनन्द राशी ।अविकारी, अघहारी, अविचलित, अमले अविनाशी ।।कामधेनु सत चित्त अनन्दा जय गंगा गीता ।सविता की शाश्वती शक्ति तुम सावित्री सीता ।ऋगु, यजु, साम अथर्व प्रणविनी प्रणव महामहिमे ।कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे ।।स्वाहा, सुधा, शची ब्रह्माणी राधा, रुद्राणी ।जय सतरूपा वाणी विद्या कमला कल्याणी ।।जननी हम हैं दीन—हीन दुःख दारिद के घेरे ।यद्यपि कुटिल कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे ।।स्नेहसनी करुणामयि माता चरण-शरण दीजै ।विलख रहे हैं हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै ।काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये ।शुद्ध-बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ।।तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि, पुष्टि माता ।सत मारग पर हमें चलाओ, जो है सुख दाता ।।जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।
(28) यज्ञ की महिमा
यज्ञ रूप प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिये ।छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये ।।वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें ।हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें ।।अश्वमेधादिक रचाएं, यज्ञ पर उपकार को ।धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को ।।नित्य श्रद्धा-भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें ।कामना मिट जायं मन से, पाप अत्याचार की ।भावनाएं पूर्ण होवें, यज्ञ से नर-नारि की ।।लाभकारी को हवन, हर जीवधारी के लिए ।वायु जल सर्वत्र हो, शुभ गन्ध को धारण किए ।।स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो ।‘इदं न मम’ का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो ।।हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे ।नाथ करुणारूप करुणा आपकी सब पर रहे ।।
(29) अर्घ्य दान
पुरश्चरण से बचे हुए जल से सूर्य के सामने अर्घ्य देना चाहिए नीचे लिखे मन्त्र से सूर्य को अर्घ्य दें।सूर्यं देव सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते ।अनुकम्पाय मां भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर ।।
(30) प्रदक्षिणा
यज्ञ के अन्त में सब लोग खड़े होकर बांये से दांये हाथ की ओर यज्ञ की चार परिक्रमा करें—
यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञातकृतानि च ।तानिणि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणायां पदे-पदे ।।
(31) विसर्जनम्
गच्छत्वं भगवनग्ने सर्वस्थाने कुण्ड मध्यतः ।हुतमादाय देवेभ्यः शीघ्रं देहि प्रसीद मे ।।1।।
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वरः ।यत्र ब्रह्मादयोः देवास्तत्र गच्छ हुताशन ।।2।।
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामदाय मामकीम् ।इष्ट काम समृद्धयर्थं पुनरागमनाय च ।।3।।
यज्ञ समाप्त होने के बाद देव प्रसाद के रूप में चिनौरियां, बतासे या सुविधानुसार जो भी कुछ उपलब्ध हो प्रसाद वितरण की भी परम्परा रहनी चाहिए। कुछ न मिलने पर दूध, चीनी तथा तुलसी पत्र मिला पंचामृत बनाकर वितरण किया जाना चाहिए। प्रसाद वितरण के पूर्व जय घोष भी किया जाये। जय घोष—
1—गायत्री माता की जय2—यज्ञ भगवान की जय
की तरह के होने चाहिए उनमें बौद्धिकता का समावेश बना रहना चाहिए।