Books - गायत्री साधना की सर्वसुलभ विधि
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Language: HINDI
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ब्रह्मवर्चस् आरण्यक अनुपम गायत्री तीर्थ
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ब्रह्मवर्चस आरण्यक हरिद्वार के सप्तऋषि मार्ग पर अवस्थित है। गंगा की गोद-हिमालय की छाया एवं सत्प्रवृत्तियों की इस परम पवित्र तपस्थली को सच्चे अर्थों में ‘तीर्थ’ विशेषता से सम्पन्न देखा जा सकता है। यह दर्शनीय इमारत तीन मंजिली है।
पहली मंजिल में भूमितल पर आद्य शक्ति गायत्री के अक्षरों में सन्निहित 24 शक्ति धाराओं की भव्य प्रतिमाएं स्थापित हैं। इनमें 12 दक्षिण मार्गी वैदिकी और 12 वाममार्गी तान्त्रिकी हैं। भगवान के 24 अवतार—24 देवता—24 ऋषि—24 योगाभ्यास—24 तप—साधन—दत्तात्रय के 24 गुरु—24 सिद्धियां और विभूतियां यह सब गायत्री के 24 अक्षरों का ही विस्तार विवरण हैं। प्रस्तुत 24 प्रतिमाओं में इन्हीं 24 दिव्य धाराओं के दर्शन होते हैं।
यह प्रथम मंजिल गायत्री शक्तिपीठ कहलाती है। दर्शकों को सभी प्रतिमाओं का परिचय कराने वाले मार्गदर्शक सदा सेवारत रहते हैं। प्रतिमाओं के सम्मुख पैसा चढ़ाने पर रोक है। कोई कुछ देना चाहे तो बदले में तत्काल उसी मूल्य का गायत्री साहित्य प्रसाद रूप में दे दिया जाता है।
दूसरी मंजिल में शोध संस्थान है। इसमें 12 कमरों में यज्ञ चिकित्सा, अध्यात्म के द्वारा शारीरिक—मानसिक रोगों से निवृत्ति के लिए वैज्ञानिक शोध करने वाली प्रयोगशाला है। जिसमें आधुनिकतम बहुमूल्य शोध यन्त्र लगे हैं। अन्यान्य अध्यात्म साधनाओं की प्रतिक्रिया जांचने के लिए-उतार-चढ़ावों का विश्लेषण करने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त शोधकर्ता निरन्तर अनुसन्धानरत रहते हैं। इन शोधों के फलस्वरूप अध्यात्म पक्ष की उन विस्मृत उपलब्धियों के पुनः प्रकाश में आने की पूरी सम्भावना है, जो मनुष्य को आत्मिक दृष्टि से समर्थ और समृद्ध बना सकें।
अध्यात्म तत्वज्ञान का वह स्वरूप खोज निकालने के लिए संसार भर के सभी महत्वपूर्ण प्रतिपादनों की नये सिरे से खोजबीन की जा रही है और आत्मविज्ञान का वह स्वरूप ढूंढ़ निकालने का प्रयत्न हो रहा है जिसे तर्क, तथ्य और प्रमाण की कसौटी पर कसा और सही एवं उपयोग पाया जा सके। शोध संस्थान में बौद्धिक अनुसंधान एवं वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षण की दोनों व्यवस्था साथ-साथ चलती हैं।
ब्रह्मवर्चस की तीसरी मंजिल में एक मास के उच्च स्तरीय गायत्री साधना सत्र चलते हैं। इसमें प्रातः वैदिकी और सायं तान्त्रिकी साधनाओं का अभ्यास कराया जाता है। हर साधक की स्थिति का विश्लेषण विवेचन करके उसके लिये तदनुरूप साधना कराई जाती है और प्रगति का निरन्तर परीक्षण होता रहता है। निष्कर्ष के आधार पर सुधार-परिवर्तन भी होते रहते हैं। साधना क्रम में प्रातःकाल पंचकोशों के अनावरण का और सायंकाल कुण्डलिनी जागरण का अभ्यास कराया जाता है। दूसरा पाठ्यक्रम ब्रह्मविद्या ऋतम्भरा प्रज्ञा की ज्ञान साधना का है। परामर्श, प्रवचन, स्वाध्याय, सत्संग, मनन चिन्तन के माध्यम से अन्तःकरण को विकसित करने की समग्र साधना का क्रम चलता है। तीसरा पाठ्यक्रम लोक साधना का है। धर्ममंच से लोक शिक्षण के विधि-विधानों का रचनात्मक सत्प्रवृत्तियों को व्यापक बनाने का, भाषण-सम्भाषण का अभ्यास कराया जाता है जिससे आत्म कल्याण और विश्व कल्याण के दोनों ही साधन समान रूप से सध सकें।
विश्व के नव निर्माण के लिए नितान्त आवश्यक उपरोक्त तीन महान प्रवृत्तियों का सूत्र संचालन करने वाला ब्रह्म वर्चस गायत्री तीर्थ देखने ही योग्य है। हरिद्वार जाने पर इस गायत्री तीर्थ को देखने और तीर्थों की ऋषि परम्परा का प्रत्यक्ष दर्शन का अवसर चूका न जाय।
पहली मंजिल में भूमितल पर आद्य शक्ति गायत्री के अक्षरों में सन्निहित 24 शक्ति धाराओं की भव्य प्रतिमाएं स्थापित हैं। इनमें 12 दक्षिण मार्गी वैदिकी और 12 वाममार्गी तान्त्रिकी हैं। भगवान के 24 अवतार—24 देवता—24 ऋषि—24 योगाभ्यास—24 तप—साधन—दत्तात्रय के 24 गुरु—24 सिद्धियां और विभूतियां यह सब गायत्री के 24 अक्षरों का ही विस्तार विवरण हैं। प्रस्तुत 24 प्रतिमाओं में इन्हीं 24 दिव्य धाराओं के दर्शन होते हैं।
यह प्रथम मंजिल गायत्री शक्तिपीठ कहलाती है। दर्शकों को सभी प्रतिमाओं का परिचय कराने वाले मार्गदर्शक सदा सेवारत रहते हैं। प्रतिमाओं के सम्मुख पैसा चढ़ाने पर रोक है। कोई कुछ देना चाहे तो बदले में तत्काल उसी मूल्य का गायत्री साहित्य प्रसाद रूप में दे दिया जाता है।
दूसरी मंजिल में शोध संस्थान है। इसमें 12 कमरों में यज्ञ चिकित्सा, अध्यात्म के द्वारा शारीरिक—मानसिक रोगों से निवृत्ति के लिए वैज्ञानिक शोध करने वाली प्रयोगशाला है। जिसमें आधुनिकतम बहुमूल्य शोध यन्त्र लगे हैं। अन्यान्य अध्यात्म साधनाओं की प्रतिक्रिया जांचने के लिए-उतार-चढ़ावों का विश्लेषण करने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त शोधकर्ता निरन्तर अनुसन्धानरत रहते हैं। इन शोधों के फलस्वरूप अध्यात्म पक्ष की उन विस्मृत उपलब्धियों के पुनः प्रकाश में आने की पूरी सम्भावना है, जो मनुष्य को आत्मिक दृष्टि से समर्थ और समृद्ध बना सकें।
अध्यात्म तत्वज्ञान का वह स्वरूप खोज निकालने के लिए संसार भर के सभी महत्वपूर्ण प्रतिपादनों की नये सिरे से खोजबीन की जा रही है और आत्मविज्ञान का वह स्वरूप ढूंढ़ निकालने का प्रयत्न हो रहा है जिसे तर्क, तथ्य और प्रमाण की कसौटी पर कसा और सही एवं उपयोग पाया जा सके। शोध संस्थान में बौद्धिक अनुसंधान एवं वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षण की दोनों व्यवस्था साथ-साथ चलती हैं।
ब्रह्मवर्चस की तीसरी मंजिल में एक मास के उच्च स्तरीय गायत्री साधना सत्र चलते हैं। इसमें प्रातः वैदिकी और सायं तान्त्रिकी साधनाओं का अभ्यास कराया जाता है। हर साधक की स्थिति का विश्लेषण विवेचन करके उसके लिये तदनुरूप साधना कराई जाती है और प्रगति का निरन्तर परीक्षण होता रहता है। निष्कर्ष के आधार पर सुधार-परिवर्तन भी होते रहते हैं। साधना क्रम में प्रातःकाल पंचकोशों के अनावरण का और सायंकाल कुण्डलिनी जागरण का अभ्यास कराया जाता है। दूसरा पाठ्यक्रम ब्रह्मविद्या ऋतम्भरा प्रज्ञा की ज्ञान साधना का है। परामर्श, प्रवचन, स्वाध्याय, सत्संग, मनन चिन्तन के माध्यम से अन्तःकरण को विकसित करने की समग्र साधना का क्रम चलता है। तीसरा पाठ्यक्रम लोक साधना का है। धर्ममंच से लोक शिक्षण के विधि-विधानों का रचनात्मक सत्प्रवृत्तियों को व्यापक बनाने का, भाषण-सम्भाषण का अभ्यास कराया जाता है जिससे आत्म कल्याण और विश्व कल्याण के दोनों ही साधन समान रूप से सध सकें।
विश्व के नव निर्माण के लिए नितान्त आवश्यक उपरोक्त तीन महान प्रवृत्तियों का सूत्र संचालन करने वाला ब्रह्म वर्चस गायत्री तीर्थ देखने ही योग्य है। हरिद्वार जाने पर इस गायत्री तीर्थ को देखने और तीर्थों की ऋषि परम्परा का प्रत्यक्ष दर्शन का अवसर चूका न जाय।