
जीवन के देवता का अपमान
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
जीवन के देवता का अपमान
जीवन के देवता का अपमान हो रहा है।
भगवान का अमर सुत इन्सान रो रहा है॥
पूजा बहुत हुई रे, भगवान के पुजारी।
नित भीख माँगते ही, सब जिन्दगी गुजारी॥
सुख याचना में कैसा दुःख गान हो रहा है॥
है आत्मतोष रोता है तृप्ति दीन प्यासी।
सुख शान्ति देवता को घेरे हुए उदासी॥
संताप शाप बनकर, वरदान हो रहा है॥
माथा रगड़ रगड़कर नर स्वाभिमान रोया।
पायी विभूतियों का वरदान कोष खोया॥
प्रज्ञा कुबेर का सुत अज्ञान ढो रहा है॥
पीड़ा पतन के फंदे डाले हुए गले में।
जिन्दा न साँस कोई मुर्दार होसले में॥
जीवन का बाग कैसा वीरान हो रहा है॥
सत् की रटन लगाये चलता असत् दिशा में।
आलोक का पुजारी खोया है तम निशा में॥
अमृत पथिक मरण का मेहमान हो रहा है॥
जीवन के देवता का अपमान हो रहा है।
भगवान का अमर सुत इन्सान रो रहा है॥
पूजा बहुत हुई रे, भगवान के पुजारी।
नित भीख माँगते ही, सब जिन्दगी गुजारी॥
सुख याचना में कैसा दुःख गान हो रहा है॥
है आत्मतोष रोता है तृप्ति दीन प्यासी।
सुख शान्ति देवता को घेरे हुए उदासी॥
संताप शाप बनकर, वरदान हो रहा है॥
माथा रगड़ रगड़कर नर स्वाभिमान रोया।
पायी विभूतियों का वरदान कोष खोया॥
प्रज्ञा कुबेर का सुत अज्ञान ढो रहा है॥
पीड़ा पतन के फंदे डाले हुए गले में।
जिन्दा न साँस कोई मुर्दार होसले में॥
जीवन का बाग कैसा वीरान हो रहा है॥
सत् की रटन लगाये चलता असत् दिशा में।
आलोक का पुजारी खोया है तम निशा में॥
अमृत पथिक मरण का मेहमान हो रहा है॥