
गायत्री गुरु मंत्र सनातन
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
गायत्री गुरु मंत्र सनातन
गायत्री गुरु मंत्र सनातन, गुरु गायत्री रूप है।
युगऋषि की माँ गायत्री की, महिमा अकथ अनूप है॥
प्राण और काया का संगम, ही जीवन कहलाता है।
प्राण भटक जाए तो जीवन, भार रूप हो जाता है॥
है गायत्री विद्या जो प्राणों का त्राण कराती है।
भटके अनगढ़ जीवन को भी, देवो तुल्य बनाती है॥
जो जीवन का मर्म न समझे, वही कूप मण्डूक है।
गुरु सत्ता भी साधक को, जीवन लक्ष्य दिखाती है।
जो मानें अनुशासन उसका, मंजिल तक पहुँचाती है॥
दोनों का है कार्य अनूठा, प्राणों को सद्गति देना।
जो बाधा बनकर आते हैं, उन दोषों को हर लेना॥
जो साधें इनका अनुशासन, सच्चा वही सपूत है॥
गुरुवर ने जीवन भर सबको, गायत्री से जोड़ा है।
साधक पथ की बाधाओं को, निज तपबल से तोड़ा है॥
गायत्री विद्या को पाया, साधा और पचाया है।
जो जीवन रस निकला उसको,जन- जन तक पहुँचाया है॥
भवरोगों की औषधि दी जो, रोचक और अचूक है॥
जीवन को मथ दिया इष्ट में, जैसे चन्दन में पानी।
खुद तप कर जग का हित साधा, जीवन नीति यही मानी॥
माँ के चरणों तक सब पहुँचें, मार्ग अनूठा बना गए।
माता के अवतरण दिवस पर, खुद भी उनमें समा गए॥
ज्यों सविता का तेज सुपावन, उनका वही स्वरूप है॥
गायत्री गुरु मंत्र सनातन, गुरु गायत्री रूप है।
युगऋषि की माँ गायत्री की, महिमा अकथ अनूप है॥
प्राण और काया का संगम, ही जीवन कहलाता है।
प्राण भटक जाए तो जीवन, भार रूप हो जाता है॥
है गायत्री विद्या जो प्राणों का त्राण कराती है।
भटके अनगढ़ जीवन को भी, देवो तुल्य बनाती है॥
जो जीवन का मर्म न समझे, वही कूप मण्डूक है।
गुरु सत्ता भी साधक को, जीवन लक्ष्य दिखाती है।
जो मानें अनुशासन उसका, मंजिल तक पहुँचाती है॥
दोनों का है कार्य अनूठा, प्राणों को सद्गति देना।
जो बाधा बनकर आते हैं, उन दोषों को हर लेना॥
जो साधें इनका अनुशासन, सच्चा वही सपूत है॥
गुरुवर ने जीवन भर सबको, गायत्री से जोड़ा है।
साधक पथ की बाधाओं को, निज तपबल से तोड़ा है॥
गायत्री विद्या को पाया, साधा और पचाया है।
जो जीवन रस निकला उसको,जन- जन तक पहुँचाया है॥
भवरोगों की औषधि दी जो, रोचक और अचूक है॥
जीवन को मथ दिया इष्ट में, जैसे चन्दन में पानी।
खुद तप कर जग का हित साधा, जीवन नीति यही मानी॥
माँ के चरणों तक सब पहुँचें, मार्ग अनूठा बना गए।
माता के अवतरण दिवस पर, खुद भी उनमें समा गए॥
ज्यों सविता का तेज सुपावन, उनका वही स्वरूप है॥