Books - इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण
Media: TEXT
Language: EN
Language: EN
अपने समय का महान आन्दोलन-नारी जागरण
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
युग सन्धि के इन्हीं बारह वर्षों में एक और बड़ा आन्दोलन उभरने जा रहा है, वह है-महिला जागरण। इस हेतु, चिरकाल से छिटपुट प्रयत्न होते रहे हैं। न्यायशीलता सदा से यह प्रतिपादन करती रही है कि ‘नर और नारी एक समान’ का तथ्य ही सनातन है। गाड़ी के दोनों पहियों को समान महत्त्व मिलना चाहिए। मनुष्य जाति के नर और नारी पक्षों को समान श्रेय-सम्मान, महत्त्व और अधिकार मिलना चाहिए। इस प्रतिपादन के बावजूद बलिष्ठता के अहंकार ने, पुरुष द्वारा नारी को पालतू पशु जैसी मान्यता दिलाई और उसके शोषण में किसी प्रकार की कमी न रखी। सुधारकों के प्रयत्न भी जहाँ-तहाँ एक सीमा तक ही सफल होते रहे समग्र परिवर्तन का माहौल बन ही नहीं पाया, किन्तु यह अनोखा समय है, जिसमें सहस्राब्दियों से प्रचलित कुरीतियों की जंजीरें कच्चे धागे की तरह टूटकर गिरने जा रही हैं। युग सन्धि के इन वर्षों में भारत की महिलाओं को तीस प्रतिशत शासकीय व्यवस्था में प्रतिनिधित्व मिलने जा रहा है। अगले दिनों हर क्षेत्र में उनका अनुपात और गौरव भारत में ही नहीं विश्व के कोने-कोने में भी निरन्तर बढ़ता ही जाएगा।
इसी प्रकार अन्य सम्पन्न देशों में नारी की स्थिति लगभग पुरुष के समान ही जा पहुँची है और वे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में बढ़ चढ़ कर ऐसा परिचय दे रही हैं, जिसे देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि वे पुरुषों से किसी प्रकार पीछे हैं। ‘इस्लाम धर्म में नारी पर अधिक प्रतिबन्ध है; शासन सत्ता उन्हें सौंपने का विधान नहीं है। फिर भी पाकिस्तान की बेनजीर भुट्टो ने प्रधानमन्त्री का पद हथिया लिया और एक नई परम्परा को जन्म दिया था।’
भारत का नारी जागरण अपने ढंग का अनोखा हुआ। उनका आत्मविश्वास जागेगा। प्रगति पथ पर चलने का मनोरथ अदम्य रूप से उभरेगा। इस बार पुरुषों का रुख बाधा पहुँचाने का नहीं, वरन् उदारतापूर्ण सहयोग देने का होगा।
शान्तिकुञ्ज ने निश्चय किया है कि भारत के हर गाँव-नगर में पहुँचकर महिलाओं को भावी सम्भावनाओं से अवगत कराया जाएगा और उन्हें प्रगतिशील बनाने के लिए उनमें अदम्य उत्साह जगाया जाएगा। इसके लिए प्रथम कार्यक्रम यह हाथ में लिया गया है कि २४ हजार महिला दीपयज्ञ इस प्रकार सम्पन्न किए जाएँगे कि उनमें देश की अधिकांश महिलाओं को एकत्रित और संगठित किया जा सके। इसके लिए शिक्षित महिलाओं को कमान सँभालने के लिए विशेष रूप से आमन्त्रित किया गया है, जो अपने-अपने समीपवर्ती क्षेत्र में इस आन्दोलन को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाने में निरत होंगी।
दीपयज्ञ नितान्त सुगम, खर्च रहित और अतीव प्रेरणाप्रद सिद्ध हुए हैं। उनमें परमार्थ श्रद्धा जगाने की प्रक्रिया का भी समुचित समावेश सिद्ध हो चुका है। पिछले दिनों पुरुष प्रधान दीपयज्ञ आशा से अधिक सफल हुए हैं। इस माध्यम से लोगों द्वारा आत्मपरिष्कार एवं लोककल्याण के लिए बढ़-चढ़कर व्रत धारण किए और संकल्प लिए गए हैं। इस वर्ष महिला प्रधान यज्ञों की बारी रहेगी। पुरुष उसमें सहयोगी की तरह सम्मिलित रहेंगे और सफल बनाने में योगदान देंगे। केंद्र से भेजी गई गाडिय़ों की अपेक्षा स्थानीय नर-नारियों को यह मोर्चा सँभालने के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित और प्रशिक्षित किया जा रहा है। इन आयोजनों के साथ-साथ ही महिला मण्डलों का संगठन आरम्भ कर दिया जाएगा। एक से पाँच, पाँच से पच्चीस बनने का उपक्रम नव सृजन का आधारभूत सिद्धान्त है। इस आधार पर जीवन्त-जाग्रत महिलाओं की सुसंगठित टोलियाँ हर क्षेत्र में खड़ी होती दिखाई पड़ेंगी।
महिला आन्दोलन अगले ही दिनों दो कार्य हाथ में लेगा। एक शिक्षा और स्वावलम्बन की विधा को प्रोत्साहन; दूसरा धूम-धाम वाली खर्चीली शादियों में महिला समुदाय का असहयोग। परम्परावाद के नाम पर प्रतिगामिताओं ने, मूढ़ मान्यताओं, अन्ध परम्पराओं, कुरीतियों, कुण्ठाओं ने, नारी समाज को बुरी तरह अपने चंगुल में जकड़ा है। खर्चीली शादियों ने बेटी-बेटे के बीच अन्तर की मोटी दीवार खड़ी की है। उसे पूरी तरह गिरा देने का ठीक यही समय है। बहू और बेटी के बीच अन्तर खड़ा न करने वाला दृष्टिकोण इस आन्दोलन के ही साथ जुड़ा हुआ है। जब उन्हें भावी पीढ़ी का नेतृत्व करना है, तो आवश्यक है कि उन्हें शिक्षित, सुयोग्य, दक्ष एवं प्रगतिशील भी बनाया जाए। २४ हजार यज्ञों के साथ जहाँ महिला संगठन का प्रयोजन प्रत्यक्ष है, वहाँ यह भी उत्साह भरना आवश्यक है कि उन्हें हर दृष्टि से सुयोग्य बनाने में कुछ कमी न छोड़ी जाए।
आशा की गई है कि अगले पाँच वर्षों में एक भी नारी अशिक्षित न रहेगी और खर्चीली शादियों का प्रचलन कहीं भी दृष्टिगोचर न होगा। महिलाएँ हर क्षेत्र में पुुुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर काम करती दिखाई देंगी।
लोकसेवी जीवनदानी, न केवल पुरुषों में उत्पन्न किए जाने है; वरन् योजना यह भी है कि बच्चों वाली महिलाएँ अपने निकटवर्ती क्षेत्र में काम करें और जिनके ऊपर बच्चों की जिम्मेदारी नहीं है, वे नारी उत्थान का तूफान उठाने, घर-घर अलख जगाने के लिए, सच्चे अर्थों में देवी की भूमिका सम्पन्न करके दिखाएँ।
इन दिनों महिला वर्ग में ही साक्षरता संवर्धन का तूफानी आन्दोलन जुड़ा रहेगा। साक्षर होते ही उन्हें ऐसा साहित्य दिया जाएगा, जो उन्हें नवयुग के अनुरूप चेतना प्रदान करने में समर्थ हो। पुरुषों में प्रतिभा संवर्धन आन्दोलन चलाने के अतिरिक्त, नारी जागरण का आलोक वितरण करने वाला साहित्य भी आवश्यक है। शान्तिकुञ्ज ने उसे देश की सब भाषाओं में उपलब्ध कराने का निश्चय किया है।
इसी प्रकार अन्य सम्पन्न देशों में नारी की स्थिति लगभग पुरुष के समान ही जा पहुँची है और वे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में बढ़ चढ़ कर ऐसा परिचय दे रही हैं, जिसे देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि वे पुरुषों से किसी प्रकार पीछे हैं। ‘इस्लाम धर्म में नारी पर अधिक प्रतिबन्ध है; शासन सत्ता उन्हें सौंपने का विधान नहीं है। फिर भी पाकिस्तान की बेनजीर भुट्टो ने प्रधानमन्त्री का पद हथिया लिया और एक नई परम्परा को जन्म दिया था।’
भारत का नारी जागरण अपने ढंग का अनोखा हुआ। उनका आत्मविश्वास जागेगा। प्रगति पथ पर चलने का मनोरथ अदम्य रूप से उभरेगा। इस बार पुरुषों का रुख बाधा पहुँचाने का नहीं, वरन् उदारतापूर्ण सहयोग देने का होगा।
शान्तिकुञ्ज ने निश्चय किया है कि भारत के हर गाँव-नगर में पहुँचकर महिलाओं को भावी सम्भावनाओं से अवगत कराया जाएगा और उन्हें प्रगतिशील बनाने के लिए उनमें अदम्य उत्साह जगाया जाएगा। इसके लिए प्रथम कार्यक्रम यह हाथ में लिया गया है कि २४ हजार महिला दीपयज्ञ इस प्रकार सम्पन्न किए जाएँगे कि उनमें देश की अधिकांश महिलाओं को एकत्रित और संगठित किया जा सके। इसके लिए शिक्षित महिलाओं को कमान सँभालने के लिए विशेष रूप से आमन्त्रित किया गया है, जो अपने-अपने समीपवर्ती क्षेत्र में इस आन्दोलन को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाने में निरत होंगी।
दीपयज्ञ नितान्त सुगम, खर्च रहित और अतीव प्रेरणाप्रद सिद्ध हुए हैं। उनमें परमार्थ श्रद्धा जगाने की प्रक्रिया का भी समुचित समावेश सिद्ध हो चुका है। पिछले दिनों पुरुष प्रधान दीपयज्ञ आशा से अधिक सफल हुए हैं। इस माध्यम से लोगों द्वारा आत्मपरिष्कार एवं लोककल्याण के लिए बढ़-चढ़कर व्रत धारण किए और संकल्प लिए गए हैं। इस वर्ष महिला प्रधान यज्ञों की बारी रहेगी। पुरुष उसमें सहयोगी की तरह सम्मिलित रहेंगे और सफल बनाने में योगदान देंगे। केंद्र से भेजी गई गाडिय़ों की अपेक्षा स्थानीय नर-नारियों को यह मोर्चा सँभालने के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित और प्रशिक्षित किया जा रहा है। इन आयोजनों के साथ-साथ ही महिला मण्डलों का संगठन आरम्भ कर दिया जाएगा। एक से पाँच, पाँच से पच्चीस बनने का उपक्रम नव सृजन का आधारभूत सिद्धान्त है। इस आधार पर जीवन्त-जाग्रत महिलाओं की सुसंगठित टोलियाँ हर क्षेत्र में खड़ी होती दिखाई पड़ेंगी।
महिला आन्दोलन अगले ही दिनों दो कार्य हाथ में लेगा। एक शिक्षा और स्वावलम्बन की विधा को प्रोत्साहन; दूसरा धूम-धाम वाली खर्चीली शादियों में महिला समुदाय का असहयोग। परम्परावाद के नाम पर प्रतिगामिताओं ने, मूढ़ मान्यताओं, अन्ध परम्पराओं, कुरीतियों, कुण्ठाओं ने, नारी समाज को बुरी तरह अपने चंगुल में जकड़ा है। खर्चीली शादियों ने बेटी-बेटे के बीच अन्तर की मोटी दीवार खड़ी की है। उसे पूरी तरह गिरा देने का ठीक यही समय है। बहू और बेटी के बीच अन्तर खड़ा न करने वाला दृष्टिकोण इस आन्दोलन के ही साथ जुड़ा हुआ है। जब उन्हें भावी पीढ़ी का नेतृत्व करना है, तो आवश्यक है कि उन्हें शिक्षित, सुयोग्य, दक्ष एवं प्रगतिशील भी बनाया जाए। २४ हजार यज्ञों के साथ जहाँ महिला संगठन का प्रयोजन प्रत्यक्ष है, वहाँ यह भी उत्साह भरना आवश्यक है कि उन्हें हर दृष्टि से सुयोग्य बनाने में कुछ कमी न छोड़ी जाए।
आशा की गई है कि अगले पाँच वर्षों में एक भी नारी अशिक्षित न रहेगी और खर्चीली शादियों का प्रचलन कहीं भी दृष्टिगोचर न होगा। महिलाएँ हर क्षेत्र में पुुुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर काम करती दिखाई देंगी।
लोकसेवी जीवनदानी, न केवल पुरुषों में उत्पन्न किए जाने है; वरन् योजना यह भी है कि बच्चों वाली महिलाएँ अपने निकटवर्ती क्षेत्र में काम करें और जिनके ऊपर बच्चों की जिम्मेदारी नहीं है, वे नारी उत्थान का तूफान उठाने, घर-घर अलख जगाने के लिए, सच्चे अर्थों में देवी की भूमिका सम्पन्न करके दिखाएँ।
इन दिनों महिला वर्ग में ही साक्षरता संवर्धन का तूफानी आन्दोलन जुड़ा रहेगा। साक्षर होते ही उन्हें ऐसा साहित्य दिया जाएगा, जो उन्हें नवयुग के अनुरूप चेतना प्रदान करने में समर्थ हो। पुरुषों में प्रतिभा संवर्धन आन्दोलन चलाने के अतिरिक्त, नारी जागरण का आलोक वितरण करने वाला साहित्य भी आवश्यक है। शान्तिकुञ्ज ने उसे देश की सब भाषाओं में उपलब्ध कराने का निश्चय किया है।