Books - इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण
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संधि बेला एवं इक्कीसवीं सदी का अवतरण
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बीसवीं
सदी का अन्त और इक्कीसवीं सदी के आरम्भ का मध्यवर्ती अन्तर बारह वर्ष का माना गया
है। सन् १९८९ से सन् २००० तक की अवधि को युगसन्धि माना गया है। रात्रि का अवसान और
दिनमान का अरुणोदय जब मिलते हैं, तो उसे सन्धि या संध्याकाल कहा जाता है। इस अवधि का अत्यधिक
महत्त्व होता है। पक्षी चहचहाते, फूल खिलते और सभी प्राणी तन्द्रा छोड़कर अपने-अपने कार्य में
उत्साहपूर्वक निरत होते हैं। उपासना जैसे, कृत्यों का भी यही उपयुक्त समय माना
जाता है। समझा जाना चाहिए कि युगसन्धि के बारह वर्ष अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
सम्भावनाओं से भरे-पूरे हैं। इसमें पिछले तीन सौ वर्षों से चली आ रही
अवांछनीयताओं का प्रायश्चित होगा और सुखद संभावनाओं से भरी-पूरी इक्कीसवीं सदी
का बीजारोपण भी इन्हीं दिनों होगा। अवांछनीयताओं का समापन और सत्प्रवृत्तियों के
संवर्धन की दुहरी प्रक्रिया इन्हीं दिनों पूरे जोर-शोर से चलेगी।
घड़ी का पेण्डुलम एक सीमा तक ही आगे बढ़ता है, फिर उसे वापस लौटना
पड़ता है। प्रकृति का नियम है कि वह अतिवाद किसी का भी सहन नहीं करती। सृष्टि ने
नियन्त्रण और सन्तुलन का नियम भी बनाया है। पिछले तीन सौ वर्षों में मनुष्य ने हर
क्षेत्र में उद्दण्डता अपनाई है। उसका प्रतिफल मिलना ही है। नियन्ता न तो इस
पृथ्वी का सर्वनाश सह सकता है और न उसे यही अभीष्ट है कि मनुष्य अपनी गरिमा का
परित्याग कर, नर
पशु या नर पिशाच जैसा आचरण अपनाकर स्रष्टा को कलंकित करे। असन्तुलन, विनाश का बीज बोता
है। इसलिए प्रकृति समय रहते अनर्थ को रोक देती है और शाश्वत सौजन्य को उसके नियत
स्थान पर विराजमान करा देती है।
इक्कीसवीं सदी में अब तक बिखेरी गई गन्दगी की सफाई होने जा रही
है। तूफानी अन्धड़ कूड़े-कचरे को उड़ाकर कहीं से कहीं पहुँचाने वाला है; ताकि सुन्दरता और
सुव्यवस्था अपने स्थान पर अक्षुण्ण बनी रहे। दिव्यदर्शी यह अनुभव करते रहे हैं कि
बीसवीं सदी के अन्त तक अवांछनीयताएँ अपना पसारा समेट लेंगी और इक्कीसवीं सदी
उज्ज्वल भविष्य को आँचल में लपेटकर स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरेगी।
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