Books - नवयुग का मत्स्यावतार
Media: TEXT
Language: EN
Language: EN
ईश चेतना से जुड़ें
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
ईश्वर का सबसे निकटवर्ती और सही स्थान अपना अन्त:करण है। बाहर खोजने से तो दृश्यमान वस्तुएँ, जो जड़ पदार्थों की बनी हैं, वही मिलेंगी। देवालयों और तीर्थों में उनकी झलक झाँकी ही मिल सकती है, पर यदि वस्तुत: उसे पाना हो, तो कस्तूरी मृग की तरह जहाँ-तहाँ भटकने की अपेक्षा यह उचित है कि अपनी नाभि को सूँघा जाए, अन्त:करण टटोला जाए।
ईश्वर के मिलन और बिछुड़न की स्थिति को तुरन्त परखा और प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। दैवी सत्ता किसी पर अनुग्रह करती है, तो उसके मानस एवं क्रिया-कलाप में अद्भुत-आश्चर्यजनक परिवर्तन करती है। उन्हें क्षुद्रता की कीचड़ से उबार कर, महानता की साज सज्जा से सजाती है। माता अपने शिशु को तभी गोदी में उठाती है, जब उसकी मल-मूत्र से सनी स्थिति को धोकर साफ कर लेती है। यही बात शत्-प्रतिशत् भगवद् भक्ति के सम्बन्ध में भी है। आग के साथ यदि ईंधन घनिष्ठता स्थापित करेगा, तो उसका समूचा स्वरूप अग्निमय हुए बिना नहीं रहता। नरकीटकों की तुलना में नर-नारायणों का दृष्टिकोण ही नहीं, क्रिया-कलाप भी कुछ ऐसा हो जाता है, जो औरों जैसे नहीं, वरन् अपने आप में कुछ विचित्र-विलक्षण किन्तु उच्चस्तरीय दीख पड़ने लगता है। ‘‘लोहा पारस को छूकर सोना बनता है’’ की उक्ति वस्तुत: आत्मा को परमात्मा के साथ जुड़ जाने पर ही सार्थक दृष्टिगोचर होती है।
परमात्मा जब भी आत्मा से मिलेगा, तो अपनी संवेदनाएँ शरणागत पर उड़ेले बिना नहीं रहेगा। उसका कथन-परामर्श मार्ग-दर्शन भली प्रकार सुनाई देने लगता है। आदान-प्रदान में अनुशासन भी जुड़ा रहता है। कुछ खरीदना हो, तो उसका मूल्य भी चुकाया जाना पड़ता है। भगवान् का स्मरण करते ही उसके परामर्श रूपी अनुदानों का प्रवाह आने लगता है। जागो और जगाओ, उठो और उठाओ, चलो और चलाओ, उभरो और उभारो, जियो और जीने दो, उछलो और उछालो, जैसे दुहरे आदेशों की झड़ी लग जाती है और उन्हें पूरा किए बिना किसी प्रकार, किसी क्षण चैन नहीं पड़ता। ऐसी ही स्थिति में रहते देखे जाते हैं, वे भगवद् भक्त, जिन्हें तात्कालिक आदेश के रूप में युगपुरुष, युग देवता या युग सृजेता कहलाने का श्रेय एवं सन्तोष मिल सकता है। अच्छा हो, उस उपलब्धि को स्वीकार करने से इंकार न किया जाए। द्वार पर खड़े हुए सौभाग्य को ठोकर मार कर वापस न लौटाया जाए।
समय की कसौटी पर खरे सिद्ध होने के लिए इन दिनों एक ही तैयारी में जुटना चाहिए कि किस प्रकार लोक मानस को परिष्कृत करने के लिए कटिबद्ध होकर, नियन्ता का हाथ बँटाया जाए, और बदले में वैसा कुछ पाया जाए, जैसा कि धरती से स्वर्ग तक छलाँग सकने वालों को तत्काल ही प्राप्त हो सकता है।
ईश्वर के मिलन और बिछुड़न की स्थिति को तुरन्त परखा और प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। दैवी सत्ता किसी पर अनुग्रह करती है, तो उसके मानस एवं क्रिया-कलाप में अद्भुत-आश्चर्यजनक परिवर्तन करती है। उन्हें क्षुद्रता की कीचड़ से उबार कर, महानता की साज सज्जा से सजाती है। माता अपने शिशु को तभी गोदी में उठाती है, जब उसकी मल-मूत्र से सनी स्थिति को धोकर साफ कर लेती है। यही बात शत्-प्रतिशत् भगवद् भक्ति के सम्बन्ध में भी है। आग के साथ यदि ईंधन घनिष्ठता स्थापित करेगा, तो उसका समूचा स्वरूप अग्निमय हुए बिना नहीं रहता। नरकीटकों की तुलना में नर-नारायणों का दृष्टिकोण ही नहीं, क्रिया-कलाप भी कुछ ऐसा हो जाता है, जो औरों जैसे नहीं, वरन् अपने आप में कुछ विचित्र-विलक्षण किन्तु उच्चस्तरीय दीख पड़ने लगता है। ‘‘लोहा पारस को छूकर सोना बनता है’’ की उक्ति वस्तुत: आत्मा को परमात्मा के साथ जुड़ जाने पर ही सार्थक दृष्टिगोचर होती है।
परमात्मा जब भी आत्मा से मिलेगा, तो अपनी संवेदनाएँ शरणागत पर उड़ेले बिना नहीं रहेगा। उसका कथन-परामर्श मार्ग-दर्शन भली प्रकार सुनाई देने लगता है। आदान-प्रदान में अनुशासन भी जुड़ा रहता है। कुछ खरीदना हो, तो उसका मूल्य भी चुकाया जाना पड़ता है। भगवान् का स्मरण करते ही उसके परामर्श रूपी अनुदानों का प्रवाह आने लगता है। जागो और जगाओ, उठो और उठाओ, चलो और चलाओ, उभरो और उभारो, जियो और जीने दो, उछलो और उछालो, जैसे दुहरे आदेशों की झड़ी लग जाती है और उन्हें पूरा किए बिना किसी प्रकार, किसी क्षण चैन नहीं पड़ता। ऐसी ही स्थिति में रहते देखे जाते हैं, वे भगवद् भक्त, जिन्हें तात्कालिक आदेश के रूप में युगपुरुष, युग देवता या युग सृजेता कहलाने का श्रेय एवं सन्तोष मिल सकता है। अच्छा हो, उस उपलब्धि को स्वीकार करने से इंकार न किया जाए। द्वार पर खड़े हुए सौभाग्य को ठोकर मार कर वापस न लौटाया जाए।
समय की कसौटी पर खरे सिद्ध होने के लिए इन दिनों एक ही तैयारी में जुटना चाहिए कि किस प्रकार लोक मानस को परिष्कृत करने के लिए कटिबद्ध होकर, नियन्ता का हाथ बँटाया जाए, और बदले में वैसा कुछ पाया जाए, जैसा कि धरती से स्वर्ग तक छलाँग सकने वालों को तत्काल ही प्राप्त हो सकता है।