Books - साकार और निराकार ध्यान
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Language: HINDI
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साकार और निराकार ध्यान
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दीपक की तरह जलें, प्रेरणा दें
मैं आपको दीपक का उदाहरण देकर समझा रहा था कि दीपक आप जलाएँ। दीपक जलाने के साथ-साथ और दीपक जलाने के बाद आप यह ध्यान रखें कि भगवान की भक्ति का एक मूलभूत सिद्धांत यह भी है कि आदमी को जलना पड़ता है, गलना पड़ता है। यह भगवान का भक्त जो है, वह बरगद के पेड़ की तरह से बड़ा तो हो जाता है, यह हमने माना, लेकिन बरगद के पेड़ की तरह से बड़ा होने से पहले बीज को गलना पड़ता है। बड़ा होने से पहले आदमी को भी गलना तो पड़ेगा। महाराज जी! मैं तो वृक्ष की तरह से बड़ा हो जाऊँगा? हाँ बेटे, जरूर हो जाएगा, लेकिन गलना तो पड़ेगा। नहीं, मैं गलना तो नहीं चाहता। जो कुछ भी हो, मैं तो मालदार बनना चाहता हूँ; मोटा बनना चाहता हूँ। बेटा, मोटा तो तू नहीं बन सकता, तेरी औलाद बन सकती है।
बेटे, जो प्रेरणाएँ मैं आपको दे रहा हूँ ये आपके मस्तिष्क में गूँजती रहें, गूँजती रहें। दीपक आप जलाते चले जाएँ और यह विचार करते चले जाएँ कि हमारी एक छटाँक जैसी हैसियत और औकात है। हमारे भीतर जो स्नेह चिकनाई लबालब भरी हुई है, उसके द्वारा हम अपने आप को जलाते हैं और जलकर रोशनी पैदा करते हैं, दिशाएँ देते हैं। रोशनी कैसे पैदा करते हैं? जैसे प्रकाशस्तंभ बीच समुद्र में जलते रहते हैं और जल करके निकलने वाले राहगीरों को, चलने वाली नावों को रास्ता बताते रहते हैं। आप उधर से मत जाइए इधर से जाइए। स्वयं रात में प्रकाशस्तंभ (लाइट हाउस) जलते रहते हैं।
सितारे ऊपर रात में जलते रहते हैं और हम निकलने वालों को रास्ता बताते रहते हैं-आप इधर से चले जाइए आप उधर से चले जाइए। सितारे जी! आपको क्या फायदा है? हमको यह फायदा है कि आपको ठोकर नहीं लगे, आप अपने रास्ते पर चले जाएँ इसीलिए हम रात भर जलते रहते हैं। कौन जलता रहता है? तारे जलते रहते हैं और छोटे बच्चे उनको दुआएँ देते रहते है। थैंक्यू। ट्विकिल-ट्विकिल लिटिल स्टार, हाऊ आई वंडर हाट यू आर......! आसमान पर चमकने वाले सितारे चमको, चमको, तुम ऊपर चमकते रहो। तुम्हारी तरह हमें भी रास्ता मिलता रहे। आप पहले आसमान के सितारों की तरह जलो। गाँधी जी ने जब राजा हरिश्चंद्र का ड्रामा देखा, तो यह निश्चय किया कि हम भी इनके तरीके से सत्य पर चलेंगे। हम भी ऐसी शानदार जिंदगी जिएँगे।
बेटा, दीपक जलाने से मतलब यह है कि हम जलें और दूसरों को भी जलने के लिए प्रोत्साहित करें। हम अपनी जिंदगी में रोशनी पैदा करें, शानदार जिंदगी ही जिएँ और उतनी रोशनी दूसरों को भी दें, यही सिद्धांत बनाएँ। ये भाव दीपक जलाते समय होने चाहिए। नहीं साहब, दीपक जलाने से भगवान जी प्रसन्न हो जाते हैं। आप से हुए होंगे, मेरे खयाल से प्रसन्न नहीं हो सकते। नहीं महाराज जी, दीपक जलाने से भगवान जी बहुत प्रसन्न हो जाते हैं, पर असली गाय के घी से प्रसन्न होते हैं और नकली घी से प्रसन्न नहीं होते। अच्छा! पर मेरा ऐसा खयाल है कि हमारी जिंदगी दीपक की तरह जलने वाली हो तो भगवान भी हमारे ऊपर प्रसन्न हो जाते हैं। कब बरसेगा दैवी अनुग्रह मित्रो, भगवान हमारे नजदीक हैं। भगवान का अनुग्रह हमारे पास है। जो फल भक्ति के लिखे हुए हैं, वे सब आपको मिलते चले जाएँगे। एकोएक फल मैं आपको निश्चित दिला सकता हूँ और इस बारे में मैं आपको विश्वास दिला सकता हूँ इसकी गारण्टी हमारे पास है। आप जिस देवता की कृपा की कहें, उसी देवता की कृपा करा दूँ लेकिन शर्त यह है कि अपना जीवन गंदा नहीं हो। नहीं साहब, जीवन तो हमारा गंदा ही रहेगा। नहीं बेटे, जीवन गंदा रहेगा तो देवता भी कृपा नहीं करेंगे।
मित्रो, भगवान को जल से स्नान कराने से मतलब चेतना को स्नान कराने से है। नहीं महाराज जी चेतना को तो मैं स्नान बाद में कराऊँगा, पहले पानी से अपने शरीर को नहलाऊँगा। बेटे, कैसे करा लेगा, बता तो सही, शरीर से क्या काम हो जाता है? महाराज जी! मैं तो ऐसे ही नहा लेता हूँ। नहा लेता है तो तू एक बात बता कि तेरी चमड़ी के खोल में क्या क्या भरा हुआ है? माँस भरा हुआ पड़ा है। अच्छा, तो तू यह बता कि पूजा की कोठरी में माँस तो नहीं ले जाता? नहीं महाराज जी, पूजा की कोठरी में माँस तो नहीं ले जाता। और हड्डी? हड्डी भी नहीं ले जाता। मुँह से जब भजन करता है तो पहले तू कुल्ला कर लेता है न? हाँ महाराज जी, कुल्ला कर लेता हूँ। मुँह में गंदी चीज तो नहीं रखता? नहीं महाराज जी, नहीं रखता। ऐसा तो नहीं होता कि तेरे मुँह में माँस-वास भरा रहता हो और तू जप करता रहता हो? नहीं महाराज जी, मुँह में माँस भरा रहेगा तो मैं जप कैसे करूँगा? ऐसा तो नहीं कि सूखी हड्डी मुँह में भरे रहता हो और राम नाम लेता हो। ऐसी गलती मत करना कहीं। यदि इस तरह जप किया तो भगवान जी नाराज हो जाएँगे। नहीं महाराज जी, ऐसा तो नहीं करता।
मैं आपको दीपक का उदाहरण देकर समझा रहा था कि दीपक आप जलाएँ। दीपक जलाने के साथ-साथ और दीपक जलाने के बाद आप यह ध्यान रखें कि भगवान की भक्ति का एक मूलभूत सिद्धांत यह भी है कि आदमी को जलना पड़ता है, गलना पड़ता है। यह भगवान का भक्त जो है, वह बरगद के पेड़ की तरह से बड़ा तो हो जाता है, यह हमने माना, लेकिन बरगद के पेड़ की तरह से बड़ा होने से पहले बीज को गलना पड़ता है। बड़ा होने से पहले आदमी को भी गलना तो पड़ेगा। महाराज जी! मैं तो वृक्ष की तरह से बड़ा हो जाऊँगा? हाँ बेटे, जरूर हो जाएगा, लेकिन गलना तो पड़ेगा। नहीं, मैं गलना तो नहीं चाहता। जो कुछ भी हो, मैं तो मालदार बनना चाहता हूँ; मोटा बनना चाहता हूँ। बेटा, मोटा तो तू नहीं बन सकता, तेरी औलाद बन सकती है।
बेटे, जो प्रेरणाएँ मैं आपको दे रहा हूँ ये आपके मस्तिष्क में गूँजती रहें, गूँजती रहें। दीपक आप जलाते चले जाएँ और यह विचार करते चले जाएँ कि हमारी एक छटाँक जैसी हैसियत और औकात है। हमारे भीतर जो स्नेह चिकनाई लबालब भरी हुई है, उसके द्वारा हम अपने आप को जलाते हैं और जलकर रोशनी पैदा करते हैं, दिशाएँ देते हैं। रोशनी कैसे पैदा करते हैं? जैसे प्रकाशस्तंभ बीच समुद्र में जलते रहते हैं और जल करके निकलने वाले राहगीरों को, चलने वाली नावों को रास्ता बताते रहते हैं। आप उधर से मत जाइए इधर से जाइए। स्वयं रात में प्रकाशस्तंभ (लाइट हाउस) जलते रहते हैं।
सितारे ऊपर रात में जलते रहते हैं और हम निकलने वालों को रास्ता बताते रहते हैं-आप इधर से चले जाइए आप उधर से चले जाइए। सितारे जी! आपको क्या फायदा है? हमको यह फायदा है कि आपको ठोकर नहीं लगे, आप अपने रास्ते पर चले जाएँ इसीलिए हम रात भर जलते रहते हैं। कौन जलता रहता है? तारे जलते रहते हैं और छोटे बच्चे उनको दुआएँ देते रहते है। थैंक्यू। ट्विकिल-ट्विकिल लिटिल स्टार, हाऊ आई वंडर हाट यू आर......! आसमान पर चमकने वाले सितारे चमको, चमको, तुम ऊपर चमकते रहो। तुम्हारी तरह हमें भी रास्ता मिलता रहे। आप पहले आसमान के सितारों की तरह जलो। गाँधी जी ने जब राजा हरिश्चंद्र का ड्रामा देखा, तो यह निश्चय किया कि हम भी इनके तरीके से सत्य पर चलेंगे। हम भी ऐसी शानदार जिंदगी जिएँगे।
बेटा, दीपक जलाने से मतलब यह है कि हम जलें और दूसरों को भी जलने के लिए प्रोत्साहित करें। हम अपनी जिंदगी में रोशनी पैदा करें, शानदार जिंदगी ही जिएँ और उतनी रोशनी दूसरों को भी दें, यही सिद्धांत बनाएँ। ये भाव दीपक जलाते समय होने चाहिए। नहीं साहब, दीपक जलाने से भगवान जी प्रसन्न हो जाते हैं। आप से हुए होंगे, मेरे खयाल से प्रसन्न नहीं हो सकते। नहीं महाराज जी, दीपक जलाने से भगवान जी बहुत प्रसन्न हो जाते हैं, पर असली गाय के घी से प्रसन्न होते हैं और नकली घी से प्रसन्न नहीं होते। अच्छा! पर मेरा ऐसा खयाल है कि हमारी जिंदगी दीपक की तरह जलने वाली हो तो भगवान भी हमारे ऊपर प्रसन्न हो जाते हैं। कब बरसेगा दैवी अनुग्रह मित्रो, भगवान हमारे नजदीक हैं। भगवान का अनुग्रह हमारे पास है। जो फल भक्ति के लिखे हुए हैं, वे सब आपको मिलते चले जाएँगे। एकोएक फल मैं आपको निश्चित दिला सकता हूँ और इस बारे में मैं आपको विश्वास दिला सकता हूँ इसकी गारण्टी हमारे पास है। आप जिस देवता की कृपा की कहें, उसी देवता की कृपा करा दूँ लेकिन शर्त यह है कि अपना जीवन गंदा नहीं हो। नहीं साहब, जीवन तो हमारा गंदा ही रहेगा। नहीं बेटे, जीवन गंदा रहेगा तो देवता भी कृपा नहीं करेंगे।
मित्रो, भगवान को जल से स्नान कराने से मतलब चेतना को स्नान कराने से है। नहीं महाराज जी चेतना को तो मैं स्नान बाद में कराऊँगा, पहले पानी से अपने शरीर को नहलाऊँगा। बेटे, कैसे करा लेगा, बता तो सही, शरीर से क्या काम हो जाता है? महाराज जी! मैं तो ऐसे ही नहा लेता हूँ। नहा लेता है तो तू एक बात बता कि तेरी चमड़ी के खोल में क्या क्या भरा हुआ है? माँस भरा हुआ पड़ा है। अच्छा, तो तू यह बता कि पूजा की कोठरी में माँस तो नहीं ले जाता? नहीं महाराज जी, पूजा की कोठरी में माँस तो नहीं ले जाता। और हड्डी? हड्डी भी नहीं ले जाता। मुँह से जब भजन करता है तो पहले तू कुल्ला कर लेता है न? हाँ महाराज जी, कुल्ला कर लेता हूँ। मुँह में गंदी चीज तो नहीं रखता? नहीं महाराज जी, नहीं रखता। ऐसा तो नहीं होता कि तेरे मुँह में माँस-वास भरा रहता हो और तू जप करता रहता हो? नहीं महाराज जी, मुँह में माँस भरा रहेगा तो मैं जप कैसे करूँगा? ऐसा तो नहीं कि सूखी हड्डी मुँह में भरे रहता हो और राम नाम लेता हो। ऐसी गलती मत करना कहीं। यदि इस तरह जप किया तो भगवान जी नाराज हो जाएँगे। नहीं महाराज जी, ऐसा तो नहीं करता।