Books - साकार और निराकार ध्यान
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Language: HINDI
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साकार ध्यान का स्वरूप
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बेटे, साकार ध्यान यह है कि माँ गायत्री की कृपा हमारे ऊपर बरसती है, उसका अनुग्रह हमारे ऊपर बरसता है। गायत्री माता क्या है? गायत्री माता वह है कि जिसमें हम जवान स्त्री को माता के रूप में देखना शुरू करते हैं। जो सद्बुद्धि की देवी है, जो सद्विवेक की देवी है। सद्विचारणाओं की देवी का नाम गायत्री है। गायत्री देवी है महाराज जी! हाँ देवी है। तो आपको खूब सामान दे जाती है? हाँ बेटे, पहले देवी कभी कभी आती थी, पर अब हमें यह खयाल आया कि देवी है भी कि नहीं, सो हमने अपने गुरु का ध्यान शुरू कर दिया है। गुरु का ध्यान? हाँ बेटे, हम अपने गुरु का ध्यान करते हैं। गुरु को हमने देखा है। उनके बारे में हमको विश्वास है। गायत्री माता के बारे में तो हमको यह विश्वास हो गया है कि जो शक्ल हमने बना रखी है, यह शक्ल हमारी कल्पित है। यह कल्पना है? हाँ ये कल्पना है, सिद्धांतों की, आदर्शों की। यह आदर्श है। कौन सा आदर्श ?? जिसमें हम जवान औरत को जिस भावना से और दृष्टि से देखते हैं वह, हम माँ की तरह से देखते हैं। उस भावना का नाम ही गायत्री है।
मित्रो, कोई जवान औरत हमको दिखाई पड़े और आँखों में यह भाव आए कि यह हमारी माँ है, तो समझिए कि आपको गायत्री आ गई। जैसे शिवाजी की आँखों में एक जवान मुसलमान महिला को देखकर यह भाव आया कि काश! यह हमारी माँ होती तो अच्छा होता। अर्जुन भी एक बार देवलोक में गए। देवलोक में अर्जुन को क्या-क्या उपहार मिलने चाहिए थे? इसकी परीक्षा लेने के लिए उन्होंने क्या किया? उन्होंने यह किया कि उपहार पीछे देंगे, पहले देखें कि यह इस लायक भी है या नहीं। उन्होंने स्वर्ग की सबसे सुंदर एक महिला उर्वशी को उसके पास भेजा। उर्वशी जब उसके पास गई तो यह कहने लगी कि अर्जुन, देवताओं ने हमको तुम्हारे पास भेजा है। हम तुमसे प्रार्थना करने और यह कहने आई हैं कि तुम्हारे जैसा बच्चा हमको चाहिए। वह समझ गया कि इसका मतलब क्या है?
अर्जुन ने कहा-अच्छा, आपको मेरे जैसा बच्चा चाहिए पर आप जिस तरीके से चाहती हैं, उस तरीके से बच्चा न हुआ, कन्या हो जाए तब? और फिर मेरे जैसा न होकर पंगु हो जाए काना हो जाए तब? आप मेरे जैसा ही चाहती हैं न, तो मैं एक ही हूँ। भगवान ने जितने भी जानवर बनाए सब एक ही बनाए दूसरा नहीं बनाया। एक पेड़ भी एक जैसा ही बनाया, दूसरा वैसा पेड़ ही नहीं बनाया। एक पत्ता किसी पेड़ का जैसा है, दूसरा वैसा पत्ता दुनिया में नहीं बनाया। वह हर चीज अलग बनाता है, दूसरी तो बनाता ही नहीं है। मैं भी जैसा बनाया गया हूँ मैं तो एक ही हूँ दूसरा तो भगवान बनाने वाला नहीं है। इसलिए मेरे जैसा तो मैं एक ही हूँ और आपकी प्रार्थना मैं स्वीकार करता हूँ। आपके आदेश को मानता हूँ। अत: आज से मैं आपका बेटा होता हूँ। अच्छा आइए माताजी, यह टीका मस्तक पर लगाइए और फिर आज से मैं आपका बेटा हूँ और आप हमारी माँ हैं।
मित्रो, कोई जवान औरत हमको दिखाई पड़े और आँखों में यह भाव आए कि यह हमारी माँ है, तो समझिए कि आपको गायत्री आ गई। जैसे शिवाजी की आँखों में एक जवान मुसलमान महिला को देखकर यह भाव आया कि काश! यह हमारी माँ होती तो अच्छा होता। अर्जुन भी एक बार देवलोक में गए। देवलोक में अर्जुन को क्या-क्या उपहार मिलने चाहिए थे? इसकी परीक्षा लेने के लिए उन्होंने क्या किया? उन्होंने यह किया कि उपहार पीछे देंगे, पहले देखें कि यह इस लायक भी है या नहीं। उन्होंने स्वर्ग की सबसे सुंदर एक महिला उर्वशी को उसके पास भेजा। उर्वशी जब उसके पास गई तो यह कहने लगी कि अर्जुन, देवताओं ने हमको तुम्हारे पास भेजा है। हम तुमसे प्रार्थना करने और यह कहने आई हैं कि तुम्हारे जैसा बच्चा हमको चाहिए। वह समझ गया कि इसका मतलब क्या है?
अर्जुन ने कहा-अच्छा, आपको मेरे जैसा बच्चा चाहिए पर आप जिस तरीके से चाहती हैं, उस तरीके से बच्चा न हुआ, कन्या हो जाए तब? और फिर मेरे जैसा न होकर पंगु हो जाए काना हो जाए तब? आप मेरे जैसा ही चाहती हैं न, तो मैं एक ही हूँ। भगवान ने जितने भी जानवर बनाए सब एक ही बनाए दूसरा नहीं बनाया। एक पेड़ भी एक जैसा ही बनाया, दूसरा वैसा पेड़ ही नहीं बनाया। एक पत्ता किसी पेड़ का जैसा है, दूसरा वैसा पत्ता दुनिया में नहीं बनाया। वह हर चीज अलग बनाता है, दूसरी तो बनाता ही नहीं है। मैं भी जैसा बनाया गया हूँ मैं तो एक ही हूँ दूसरा तो भगवान बनाने वाला नहीं है। इसलिए मेरे जैसा तो मैं एक ही हूँ और आपकी प्रार्थना मैं स्वीकार करता हूँ। आपके आदेश को मानता हूँ। अत: आज से मैं आपका बेटा होता हूँ। अच्छा आइए माताजी, यह टीका मस्तक पर लगाइए और फिर आज से मैं आपका बेटा हूँ और आप हमारी माँ हैं।