Books - साकार और निराकार ध्यान
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Language: HINDI
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निराकार ध्यान ऐसे करें
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मित्रो, दूसरा वाला ध्यान हम सविता का कराते हैं, जिसको हम निराकार ध्यान कहते हैं। वह हमारे अंदर शक्ति देता है। महाराज जी! हम सविता का शुरू में ध्यान करें? नहीं बेटे, शुरू में मत करना, पहले माता का ध्यान करना, बाद में सविता का ध्यान करना। सविता क्या देता है? सविता बेटे, सारा सामान देता है। क्या क्या सामान देता है? पिता क्या देता है? पिता बेटे की पढ़ाई के लिए फीस देता है, अपनी कमाई का मकान देता है और तेरी औरत को जेवर बनाकर देता है। कहीं तेरी नौकरी के लिए सिफारिश के लिए जाता है। बेटे, बाप के पास माल है और अम्मा के पास माल नहीं है। तो अम्मा के पास क्या है? बेटे, उसके पास प्यार है, दुलार है। तुम्हें छाती से वही लगाए रहेगी, दूध वही पिलाएगी। तू जब गंदगी कर लेगा तो धोएगी भी वही, प्यार भी वही देगी। और बाप? बाप के पास टट्टी कर लेता है, तो कहता है, अजी ले जाओ जी इसे, इसकी टट्टी धोओ, हमारे कोट को भी धो देना और कपड़े भी धो देना। अरे तो आप धो देते? नहीं साहब, यह हमारा काम नहीं है। बेटे, बाप कहता है कि अपने बच्चे को ले जाओ यहाँ से और इसकी सफाई करो और कुरता भी ले जाओ, देखो जी, यह सब गंदा कर दिया, दूसरा कुरता लाओ। बच्चे पर भी झल्ला रहा है, उसकी माँ पर भी झल्ला रहा है और खुद पर भी झल्ला रहा है।
कौन झल्ला रहा है? बाप। बाप कौन है? सविता-हमारा पिता। एक आँख प्यार की और एक आँख सुधार की। प्यार की आँख गायत्री माता के पास है और सुधार की आँख सविता के पास है। स्नेह, जिसकी हमको प्रारंभिक आवश्यकता है, गायत्री माता से मिलता है और शक्ति हमें सविता से मिलती है। दोनों की उपासनाओं की जरूरत है। ध्यान करते समय आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर आप प्रारंभिक उपासक हों, तो आपको गायत्री माता का ध्यान करना चाहिए। ध्यान करना चाहिए कि सद्बुद्धिरूपी माता, सद्विवेक की माता, सद्ज्ञानरूपी माता, करुणारूपी माता, प्रेमरूपी माता अपना अमृत सा दूध हमको पिला देती है। उस दूध को पीकर हमारी नसें और हमारी नाड़ियों शुद्ध-पवित्र होती हुई चली जाती हैं। हम स्नेह से भर रहे हैं, करुणा से भर रहे हैं, भावना से भर रहे हैं, कोमलता से भर रहे हैं। हमारा जो दुष्ट मन है, उसके अंदर कोमलता तो पैदा होनी ही चाहिए सरसता तो पैदा होनी ही चाहिए श्रद्धा तो पैदा होनी ही चाहिए।
मित्रो, हमारी प्रारंभिक आवश्यकता है सौम्यता की, करुणा की। अभी हमारा संबंध सब जगह से निष्ठुरता से भरा हुआ पड़ा है। जब इसमें दयालुता आ जाए श्रद्धा आ जाए तो फिर हम यह कहने के अधिकारी हैं कि भगवान हमको शक्ति दीजिए। अगर शक्ति आपको आ गई। कब? जब तक कि आप शुद्ध-पवित्र नहीं हुए तो आपकी हानि हो जाएगी। आपका नुकसान हो जाएगा। दुर्वासा ऋषि ने अपने क्रोध का समापन नहीं किया था और उपासना करने लगे तो उनके क्रोध की वृद्धि हो गई। विश्वामित्र जब तक अपने आप को संशोधित करने की पूरी प्रक्रिया नहीं कर सके थे और तपस्या करने लगे। उस तप में, भजन में लगने का परिणाम यह हुआ कि उनकी कामवासना ज्यादा उद्दीप्त हो गई। उसके फलस्वरूप फिर क्या हुआ? बेटे, उनके यहाँ अप्सरा से एक लड़की पैदा हुई थी, तुझे मालूम नहीं है। विश्वामित्र ऋषि के पास एक मेनका नामक अप्सरा आई थी। उसने चक्कर चलाकर विश्वामित्र से विवाह कर लिया था। महाराज जी, ऐसा हो सकता है? हाँ बेटे, ऐसा हो सकता है, इसीलिए शक्ति को प्राप्त करने से पहले पवित्रता-संशोधन की जरूरत है। संशोधन आप प्राप्त कर लें तब, तब आपको सविता का ध्यान करना चाहिए।
कौन झल्ला रहा है? बाप। बाप कौन है? सविता-हमारा पिता। एक आँख प्यार की और एक आँख सुधार की। प्यार की आँख गायत्री माता के पास है और सुधार की आँख सविता के पास है। स्नेह, जिसकी हमको प्रारंभिक आवश्यकता है, गायत्री माता से मिलता है और शक्ति हमें सविता से मिलती है। दोनों की उपासनाओं की जरूरत है। ध्यान करते समय आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर आप प्रारंभिक उपासक हों, तो आपको गायत्री माता का ध्यान करना चाहिए। ध्यान करना चाहिए कि सद्बुद्धिरूपी माता, सद्विवेक की माता, सद्ज्ञानरूपी माता, करुणारूपी माता, प्रेमरूपी माता अपना अमृत सा दूध हमको पिला देती है। उस दूध को पीकर हमारी नसें और हमारी नाड़ियों शुद्ध-पवित्र होती हुई चली जाती हैं। हम स्नेह से भर रहे हैं, करुणा से भर रहे हैं, भावना से भर रहे हैं, कोमलता से भर रहे हैं। हमारा जो दुष्ट मन है, उसके अंदर कोमलता तो पैदा होनी ही चाहिए सरसता तो पैदा होनी ही चाहिए श्रद्धा तो पैदा होनी ही चाहिए।
मित्रो, हमारी प्रारंभिक आवश्यकता है सौम्यता की, करुणा की। अभी हमारा संबंध सब जगह से निष्ठुरता से भरा हुआ पड़ा है। जब इसमें दयालुता आ जाए श्रद्धा आ जाए तो फिर हम यह कहने के अधिकारी हैं कि भगवान हमको शक्ति दीजिए। अगर शक्ति आपको आ गई। कब? जब तक कि आप शुद्ध-पवित्र नहीं हुए तो आपकी हानि हो जाएगी। आपका नुकसान हो जाएगा। दुर्वासा ऋषि ने अपने क्रोध का समापन नहीं किया था और उपासना करने लगे तो उनके क्रोध की वृद्धि हो गई। विश्वामित्र जब तक अपने आप को संशोधित करने की पूरी प्रक्रिया नहीं कर सके थे और तपस्या करने लगे। उस तप में, भजन में लगने का परिणाम यह हुआ कि उनकी कामवासना ज्यादा उद्दीप्त हो गई। उसके फलस्वरूप फिर क्या हुआ? बेटे, उनके यहाँ अप्सरा से एक लड़की पैदा हुई थी, तुझे मालूम नहीं है। विश्वामित्र ऋषि के पास एक मेनका नामक अप्सरा आई थी। उसने चक्कर चलाकर विश्वामित्र से विवाह कर लिया था। महाराज जी, ऐसा हो सकता है? हाँ बेटे, ऐसा हो सकता है, इसीलिए शक्ति को प्राप्त करने से पहले पवित्रता-संशोधन की जरूरत है। संशोधन आप प्राप्त कर लें तब, तब आपको सविता का ध्यान करना चाहिए।