Books - संस्कृति का वैभव पुन:लौटेगा
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
धार्मिक मर्यादाएँ-वैज्ञानिक मान्यताएँ
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मित्रो! इसके लिए हमारा अलग शोध-संस्थान खड़ा हो रहा है। अभी तक हम क्या करते रहे? प्रचार के लिए प्रशिक्षण के लिए यज्ञ करते रहे। दुकान पर से समिधाएँ ले आइए टाल पर से ले आइए और दुकानदार से पूछना कि आम की है? अच्छा महाराज जी! आम की समिधा मिल जाएगी। बेटे! जिसकी दे, उसी की ले आना और चीर-फाड़कर हवन कर देना। तो फिर वह जो सामर्थ्य की बात थी, वह आएगी? नहीं बेटे! इससे नहीं आएगी। अब आप क्या कर रहे हैं? अब हम पुरश्चरण कर रहे हैं। इसे इस वर्ष से हमने प्रारंभ कर दिया है। पुरश्चरण में जप, जप के साथ हवन अनिवार्य है। हवन के बिना जप पूरा नहीं होता। इस यज्ञ की अपनी मर्यादाएँ हैं, अनुशासन हैं। पिछले यज्ञों में अब तक ऐसा नहीं था। उसमें क्या था? चलिए भाई साहब! यज्ञ में बैठ जाइए। नहीं साहब! हमारे काम में देर हो जाएगी। नहीं साहब! देखिए एक पारी बीस मिनट में खतम हो जाती है। इतने में क्या देर हो जाएगी। हवन से कुछ फायदा होता होगा, तो जरूर मिलेगा। बैठिए तो सही, २० मिनट ही सही। हाथ धोइए और हवन में बैठ जाइए। अच्छा साहब! सिगरेट के हाथ तो धो लूँ। हाँ धो लीजिए। सिगरेट के हाथ से हवन मत कीजिए। मोजा पहनकर हवन में बैठ गए। क्यों साहब! यह मोजा कितने दिनों का धुला हुआ है? यह तो छह महीने से धुला नहीं है। छह महीने से इसे पहने हुए हैं। धोती भी धुली हुई नहीं है। अत: धुली हुई धोती पहनिए नहीं तो हवन में नहीं बैठने देंगे। नहीं साहब! इसमें क्या फरक पड़ता है? नहीं बेटे! अब हम इस तरह के यज्ञ नहीं करने देंगे।