Books - संस्कृति का वैभव पुन:लौटेगा
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Language: HINDI
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संस्कृति का वैभव पुनः लौटेगा
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
कांगो का संत
मित्रो! एक बार मैं कांगो गया। कांगो वह देश है, जिसमें आदमियों की ऊँचाई और लंबाई कोई ऐसी होती है-तीन और चार फीट के बीच। प्राय: अधिकांश आदमी नंगे रहते हैं। औरतें पत्तों से अपना तन ढक लेती हैं। खेती-बाड़ी? तीन फीट का आदमी खेती-बाड़ी क्या करेगा! वे छोटे-छोटे भाले और छोटी-छोटी लाठियाँ लिए फिरते हैं। इन्हीं से बेचारे मेंढक मार लेते हैं; चूहे, चिड़िया, इन्हीं को जाल में फँसा लेते हैं और भून-भानकर खाते रहते हैं। घूमते-फिरते रहते हैं। इन गरीबों के पास न पैसा है, न दान-दक्षिणा का साधन है। उनके बीच में स्विट्जरलैंड के एक पादरी चालीस साल से काम कर रहे थे। वे वहीं डेरा डाले हुए पड़े थे। उन्होंने उन लोगों से कहा कि ईसा एक भूली हुई भेड़ को, जो भटक गई थी, कंधे पर रखकर लाए थे। तो ये भूले हुए पिछड़े हुए लोग हैं, जिनकी हम सेवा करने आए हैं। अब हम यहीं रहेंगे। वे वहीं रहने लगे। उन लोगों के पास न डाकखाने का इंतजाम था, न सड़कें थीं, न सिनेमा, न कोई आनंद, न आने जाने का साधन और न कोई सवारी-कोई कुछ नहीं था। जंगल में रहते थे। पानी के जहाज कभी आते थे तो वही कुछ सामान छोड़कर चले जाते थे। विदेशों से जब कोई पानी के जहाज आते थे तो हजामत बनाने के ब्लेड, चाय के पैकेट आदि ईसाई मिशन उन्हें भेज देता था। वहीं मे मिला हुआ कपड़ा आ गया इस तरह जो कुछ आ गया, उसी से गुजारा कर लिया। इस तरह चालीस साल से वे वहाँ निवास कर रहे थे।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
कांगो का संत
मित्रो! एक बार मैं कांगो गया। कांगो वह देश है, जिसमें आदमियों की ऊँचाई और लंबाई कोई ऐसी होती है-तीन और चार फीट के बीच। प्राय: अधिकांश आदमी नंगे रहते हैं। औरतें पत्तों से अपना तन ढक लेती हैं। खेती-बाड़ी? तीन फीट का आदमी खेती-बाड़ी क्या करेगा! वे छोटे-छोटे भाले और छोटी-छोटी लाठियाँ लिए फिरते हैं। इन्हीं से बेचारे मेंढक मार लेते हैं; चूहे, चिड़िया, इन्हीं को जाल में फँसा लेते हैं और भून-भानकर खाते रहते हैं। घूमते-फिरते रहते हैं। इन गरीबों के पास न पैसा है, न दान-दक्षिणा का साधन है। उनके बीच में स्विट्जरलैंड के एक पादरी चालीस साल से काम कर रहे थे। वे वहीं डेरा डाले हुए पड़े थे। उन्होंने उन लोगों से कहा कि ईसा एक भूली हुई भेड़ को, जो भटक गई थी, कंधे पर रखकर लाए थे। तो ये भूले हुए पिछड़े हुए लोग हैं, जिनकी हम सेवा करने आए हैं। अब हम यहीं रहेंगे। वे वहीं रहने लगे। उन लोगों के पास न डाकखाने का इंतजाम था, न सड़कें थीं, न सिनेमा, न कोई आनंद, न आने जाने का साधन और न कोई सवारी-कोई कुछ नहीं था। जंगल में रहते थे। पानी के जहाज कभी आते थे तो वही कुछ सामान छोड़कर चले जाते थे। विदेशों से जब कोई पानी के जहाज आते थे तो हजामत बनाने के ब्लेड, चाय के पैकेट आदि ईसाई मिशन उन्हें भेज देता था। वहीं मे मिला हुआ कपड़ा आ गया इस तरह जो कुछ आ गया, उसी से गुजारा कर लिया। इस तरह चालीस साल से वे वहाँ निवास कर रहे थे।