Books - व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर
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Language: HINDI
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सफल जीवन के सूत्र
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व्याख्यान का उद्देश्यः-
1. जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो।
2. दृढ़ संकल्पशक्ति पैदा हो तथा सकारात्मक लक्ष्य के लिए संकल्पित हो।
3. सकारात्मक चिन्तन जागृत हो।
4. अपनी आत्मशक्ति की ताकत पहचाने।
5. मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, परन्तु कैसे? इसके सूत्र को जाने।
व्याख्यान का क्रमः-
‘‘असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया।’’ संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में हर क्षेत्र में सफल होना चाहता है चाहे नौकरी हो या व्यापार, विद्यार्जन हो, प्रतियोगी परीक्षा हो, चाहे कोई कलाकार, संगीतकार, वैज्ञानिक, व्यवसायी हो या कृषक। लड़का हो या लड़की, विवाहित हो या अविवाहित, सभी सफलता चाहते हैं। लेकिन सफलता शेखचिल्लियों या ख्याली पुलाव पकाने वाले या कोरी कल्पनाओं में सोए रहकर सपने देखने वालों को नहीं मिलती।
सफलता ब्याज चाहती है, सफलता को मूल्य देकर (पैसा नहीं) पाना होता है। यह सत्य है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। लेकिन अपनी सफलता की कहानी लिखी जा सके इससे पहले कुछ सूत्रों को अपनाना होगा। दुनिया के सफलतम व्यक्तियों जिन्होंने अपने जीवन में कामयाबी हासिल की उन्होंने कुछ सूत्रों को जीवन में स्थान दिया। सफलता के शिखर को जिन्होंने छुआ, उस पर प्रतिष्ठित हुए ऐसे महापुरुषों के जीवन में अपनाए गए प्रयोगों से हम प्रेरणा लें।
1. दृढ़ इच्छा शक्ति :-
सफलता का मूल मनुष्य की इच्छाशक्ति में सन्निहित होती है। समुद्र से मिलने की प्रबल आकांक्षा करने वाली नदी की भांति वह मनुष्य भी अपनी सफलता के लिए मार्ग निकाल लेता है, जिसकी इच्छाशक्ति दृढ़ और बलवती होती है, उसके मार्ग में कोई भी रुकावट बाधा नहीं डाल सकती। संसार के सभी छोटे- बड़े कार्य किए जा सकने के माध्यम शक्ति है। लेकिन वास्तविक शक्ति मनुष्य की इच्छा शक्ति है। इच्छा की स्फुरण से कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। प्रेरणा से व्यक्ति कर्म करने के लिए प्रवृत्त हो जाता है।
इस प्रकार सारी सफलताएँ इच्छा शक्ति के अधीन होती है। एक गांव में मजदूर के घर पला हुआ बच्चा लखपति बन जाता है। छोटे से किसान के घर सामान्य जीवन जीने वाला विद्यावान् बन जाता है। यह उसकी इच्छा शक्ति है। महात्मा गांधी प्रबल इच्छा शक्ति के जीते जागते आदर्श थे। कु. केलर गूंगी बहरी अंधी होकर भी कई विषयों एवं भाषाओं में स्नातक थी। नेपोलियन ने 25 वर्ष में इटली पर विजय पा ली थी।
2. दृढ़ संकल्प शक्ति :-
केवल इच्छा करने से बात नहीं बनती। इच्छा को दृढ़ संकल्प में बदलना होगा। जब आप दृढ़ संकल्प कर लेंगे तो पानी के बुलबुले की भांति पल-पल में आपकी इच्छा नहीं बदलेगी। दृढ़ संकल्प का तात्पर्य है- मन, बुद्ध व शरीर से इच्छित लक्ष्य को पाने के लिए कठोर परिश्रम करने को तत्पर होना। इस हेतु
(क) कार्य को खेल की तरह रुचि लेते हुए योजना बनाकर करें।
(ख) धैर्यपूर्वक लक्ष्य पर अडिग रहें।
(ग) जो विपरीत परिस्थितियाँ आए उसे सफलता की सीढ़ी मानते हुए पार करें,कठिनाइयां सफलता की सहचरी है।
छोटे- छोटे संकल्प लें और धैर्यपूर्वक उसे पूरा करें। इससे संकल्प शक्ति का विकास होता है। जैसे आज टी.वी. नहीं देखूँगा, गप्पेबाजी में समय नहीं लगाऊँगा, गाली नहीं दूँगा, गुटखा नहीं खाऊँगा। बाद में बड़े बड़े संकल्प लेने और पूरा करने की ताकत आ जाती है। लाल बहादुर शास्त्री जी, मिसाइल मैन अब्दुल कलाम आजाद ने अपने दृढ़ संकल्प से लक्ष्य को पा लिया।
3. परिश्रम एवं पुरुषार्थ :-
जो व्यक्ति अपने शरीर से हमेशा अपने लक्ष्य के अनुरूप श्रम करने को तत्पर रहता है, अपनी शक्तियों का समुचित उपयोग करता है, वह कृतकृत्य हो जाता है। सक्रियता ही जीवन है और निष्क्रियता ही मृत्यु। श्रम से जी चुराने वाले, आलस्य और प्रमाद में पड़े रहने वाले युवा को युवा तो क्या जीवित भी नहीं कहा जा सकता।
श्रम करने से शरीर स्वस्थ एवं स्फूर्तिवान् बनता है। जिससे वांछित सफलता की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। निष्क्रिय कामनाएँ कभी सफल नहीं होते। सफलता पाने योग्य शक्तियाँ मनुष्य में निहित तो होती हैं लेकिन उनका उभार, निखार और उपयोग परिश्रम एवं पुरुषार्थ करने में ही है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सफलता मनुष्य के पसीने का मूल्य है।
4. आत्म विश्वास एवं आत्म निर्भरता :-
कोई व्यक्ति परिश्रमी पुरुषार्थी तो है किन्तु उसमें आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता की भावना का अभाव है, तो भी उसका पुरुषार्थ व्यर्थ चला जायेगा। अपने आपको दीन हीन नहीं शक्तिशाली समझें। विश्वास करें कि बीज रूप में मेरे भीतर सारी शक्तियाँ विद्यमान है। मैं सब कुछ कर सकता हूँ, जो अन्य सफल व्यक्तियों ने किया है। ‘‘विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो’’। वास्तव में सबके भीतर परमात्मा ने एक जैसी शक्ति दी है। आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने आप पर विश्वास करता है और सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को पार कर लेता है। लेकिन परावलम्बी व्यक्ति आत्मविश्वास के अभाव में हर कदम पर झिझकता है। सफलता के मार्ग में अवरोध तो आते हैं। आत्मविश्वासपूर्वक डटे रहने से अन्य सहयोगी भी साथ आ जाते हैं और सहयोग मिलने लगता है। उदा.- महात्मा गांधी अपने आत्मविश्वास से सारे भारत को अपने पीछे चलाने व देश को आजादी दिलाने में सफल हो गए। अब्राहम लिंकन का जीवन असफलताओं के थपेड़ों के बीच सफलता की कहानी है (पृ.......देखें)। युगनिर्माण योजना के सूत्रधार युग ऋषि पं. श्री राम शर्मा आचार्य अपने आत्म विश्वास के सहारे करोड़ों लोगों की जीवन दिशा बदलने में कामयाब हो गये। एवं निम्नस्तर के कहे जाने वाले लोग आज उच्च स्थिति में पहुँच गए। लक्ष्य पर संकल्प पूर्वक डटे रहने से, संकल्पों का पूरा होने से आत्मविश्वास बढ़ता है। कठिनाइयों से जूझने पर आश्चर्यजनक रूप से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
5. निरन्तर प्रयास :-
जो व्यक्ति लक्ष्य की प्राप्ति तक बिना रुके निरन्तर चलते रहते हैं, चाहे कछुए की भांति धीरे- धीरे ही क्यों न हो, सफल हो जाते हैं। जिन्हें अपने ध्येय, लक्ष्य के प्रति लगन है, निष्ठा है, उसके मार्ग में ऐसा कौन सा अवरोध हो सकता है जो उसे रोक सके? लेकिन आज का सोया हुआ कल बदल गया या चार दिन परिश्रम करने के बाद पानी के बुलबुले की भांति लक्ष्य देने के बाद कुछ दिन लक्ष्य के प्रति समर्पण दिखाने के बाद आराम करने लग गए तो खरगोश की भांति (कछुए व खरगोश की कहानी की भांति) असफलता ही हाथ लगेगी। लक्ष्य के प्रति समर्पित व्यक्ति का सूत्र होता है- No vacation, No Expectation, No Discrimination (कोई छुट्टी नहीं, किसी से कोई अपेक्षा नहीं, कोई भेदभाव नहीं)
उदा.- वन- वन फिरकर घास की रोटी खाने वाले महाराणा प्रताप हिम्मत नहीं हारे और अन्त तक निरन्तर चलते रहे।
6. नकारात्मक सोंच (चिन्ता) से दूर रहें :-
नकारात्मक सोच अर्थात् निराशा, भय, सन्देह, उद्विग्नता, अविश्वास के भाव, घुटन भरी सोच। चिन्ता और चिता एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह हैं, जो व्यक्ति की जीवनी शक्ति एवं कार्यक्षमता को घटाते- घटाते समाप्त कर देती है। अतीत या भविष्य को लेकर चिन्तित न हों बल्कि स्वस्थ चिन्तन करें। चिन्ता में व्यक्ति अतीत की असफलताओं, गलतियों, अपमान, दुःख आदि अप्रिय प्रसंगों को याद करते हुए केवल यही सोचता है कि ऐसा क्यों हुआ, कैसे हो गया, आगे अब क्या होगा? कैसे होगा? केवल परेशान होता है उसकी शारीरिक मानसिक और आत्मिक स्थिति अत्यन्त दीन दुर्बल हो जाती है। जो बीत गई सो बात गई, तकदीर का शिकवा कौन करे। जो तीन कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे।
स्वस्थ चिन्तन से समस्या का हल निकलता है, मस्तिष्क की ऊर्जा सक्रिय दिशा में तेजी से काम करती है। चिंतामुक्त होने का रामबाण उपाय है- ‘‘व्यस्त रहें मस्त रहें’’। अचिन्त्य चिन्तन से मुक्त होकर श्रेष्ठ विचारों से ऊँचाई की पराकाष्ठा पर पहुँचा जा सकता है। मानसिक सन्तुलन प्रसन्नता के अधीन रहा करता है। सफलता पाने के लिए प्रसन्नता की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर यात्रा के लिए जीवन की। अप्रसन्न व्यक्ति एक प्रकार से निर्जीव होता है, उसे विषाद और निराशा का क्षय रोग लग जाता है। इस प्रकार के निम्न स्वभाव वाला व्यक्ति सफलता के महान पथ पर किस प्रकार चल सकता है? अतः प्रसन्न रहने की आदत डालें, मुस्कुराएं, अपना सुख तथा दूसरों का दुःख आपस में बाँटे, बटाएं। मुस्कुराने से स्वभाव या आसपास का वातावरण महकने लगता है, आशा का उमंग का संचार होता है। प्रसन्न रहने के दो उपाय हैं- आवश्यकताएँ कम करें तथा परिस्थितियों से तालमेल बिठाएँ।
7. सफल व्यक्तियों को जीवन का आदर्श बनाएँ :-
ऐसे सफल व्यक्ति, महापुरुष जिन्होंने आदर्शों पर चलकर कठिनाइयों से लड़कर जीवन में सफलता पाई हैं, इतिहास में ऐसे गौरवशाली चरित्र के बहुत उदाहरण हैं, उन्हें अपना Role Model (आदर्श) बनाना चाहिए। ये महापुरुष हमारे जीवन के लिए प्रकाश स्तम्भ (Lamp Post) हैं। इससे हमें समस्याओं, अभावों, प्रतिकूलताओं से लड़ने को हौसला बढ़ता है, सत्प्रेरणा मिलती है, न कि किसी फिल्मी एक्टर, खिलाड़ी, विश्व सुन्दरी या गलत साधनों व तरीकों से मंजिल पर पहुँचने वाले नेता, अभिनेता या धनपतियों को अपना आदर्श बना लें। मार्टिन लूथर ने 21 वर्ष में धार्मिक सुधार किया। न्यूटन ने अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण आविष्कार 21 वर्ष आयु में कर लिया। सिकन्दर 22 वर्ष में दिग्विजय को निकला था। स्वामी विवेकानन्द ने युवावस्था में भारतीय संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व में प्रतिष्ठित करने सन्यास लेकर को देश की अपूर्व सेवा की। सो क्रान्तिकारी वीर देश के लिए अपना यौवन व जीवन कुर्बान कर दिए। सरोजिनी नायडू, मेघा पाटकर, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, किरण बेदी आदि नारी समाज की आदर्श बनी। लिंकन और लाल बहादुर शास्त्री गरीब थे। उनका जीवन एक मिसाल है।
8. कुसंग से बचें :-
वातावरण का, सत्संग का प्रभाव पड़ता है। कुसंग, बुरी संगति में अच्छा व्यक्ति भी निकम्मा, अधर्मी, दुर्व्यसनी, नास्तिक, डरपोक बन जाता है, जबकि अच्छी संगति में सामान्य स्तर का मनुष्य भी श्रेष्ठ आचरण करने को बाध्य हो जाता है। श्रेष्ठ संगति से मनुष्य की गति भी श्रेष्ठ दिशा की ओर होती है अतः सावधान हों। गंदे नाले में गंगा जल की सात्विकता नहीं रह जाती, अतः समझदारी इसी में है कि दुर्व्यसनी, हिंसक, व्यभिचारी, चोर प्रकृति, अशुद्ध भाषण करने वाले, कपटी, आलसी, प्रमादी, धन व समय का अपव्यय व दुरुपयोग करने वाले मित्रों की संगति त्याग दें। सुदामा ने कृष्ण से मित्रता की वे निहाल हो गये। दुर्योधन ने शकुनि से मित्रता की थी परिणामस्वरूप सारे कौरव वंश का नाश हो गया। महापुरुषों की संगति श्रेष्ठ संगति है। उनसे संगति करने का माध्यम है स्वाध्याय। श्रेष्ठ पुस्तकें, सत्साहित्य हमारे सच्चे मित्र हैं। ‘सद्ग्रन्थों के अध्ययन से तत्काल प्रकाश, उल्लास और मार्गदर्शन मिलता है।’ विचारों में सकारात्मकता आती है।
9. क्रोध और अहंकार से बच्चे :-
क्रोध और अहंकार करने वाले का कोई मित्र नहीं होता। पग- पग पर उसके विरोधी, दुश्मन, और आलोचक पैदा हो जाते हैं। क्रोध से अविवेक और अविवेक से उत्तेजना पैदा होती है। सम्पूर्ण मस्तिष्क अज्ञानता से भर जाता है और अज्ञान से क्रोधी व्यक्ति का पतन और अन्ततः सर्वनाश हो जाता है। दिन भर में एक व्यक्ति जितना भोजन करता है उसकी सारी ऊर्जा एक बार के क्रोध से नष्ट हो जाती है। अहंकारी व्यक्ति अपने ही मद में चूर रहता है उसके लिए संसार में सीखने के सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं, उसकी उन्नति असम्भव है। हमेशा अपने व्यवहार को सौम्य बनाकर रखें, विनम्रतापूर्वक विद्यार्थी भाव रखने वाले के सामने सारी प्रकृति और परिवार समाज सभी अपना रहस्य व सहयोग के द्वारा खोल देती है। विनम्रता व शालीनता से माता- पिता, मित्र, गुरुजन सभी अपना सद्भाव भरा सहयोग और आशीर्वाद से आपकी झोली भर देते हैं जो सफलता का बहुत बड़ा कारण है।
10. समय का प्रबन्धन :-
‘‘जो जीवन से प्यार करते हों वे आलस्य में समय न गंवायें।’’ समय ही जीवन है। हम समय की कीमत चुकाकर ही सफल विद्यार्थी, कलाकार, संगीतकार, धनपति, आविष्कारक, किसी विषय का विशेषज्ञ हो सकते हैं। जो समय को गप्पबाजी, आवारागर्दी आलस्य में गँवाता है वह सब कुछ गंवा देता है। जो समय को काटता है, टाइम पास करता है, टाइम उसे पास कर देता है। बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता समय को संग्रह नहीं कर सकते। एक समय विशेष के साथ जो सम्भावनाएँ जुड़ी रहती है वह उसके साथ ही चली जाती है, इसलिए समय का नुकसान सबसे बड़ा नुकसान है। उदा. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य।
अतः समय का संयम बरतें- क) दिनचर्या चार्ट बनाएँ आज का काम कल पर न टालें। ‘‘काल करें सो आज कर, आज करें सो अब्ब, पल में परलय होएगी बहुरि करेगा कब्ब।’’ ख) प्राथमिकता क्रम में कार्यों को रखें। अपना प्रत्येक कार्य समय पर पूरा करें। ग) रात्रि में शयन से पहले अपने समय की समीक्षा करें।
सफलता की सिद्धि मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। जो व्यक्ति अपने इस अधिकार की अपेक्षा करके जैसे तैसी जी लेने में ही सन्तोष मान लेते हैं, वे इस महा मूल्यवान मानव जीवन का अवमूल्यन कर एक ऐसे सुअवसर को खो देते हैं जिसका दोबारा मिल सकना संदिग्ध है। अस्तु उठिए और आज से ही अपनी वांछित सफलता को वरण करने के लिए उद्योग में जुट पड़िए।
तुम चलो तो आंधियां तूफान खुद ही चल पड़ेंगे,
सागरों की बात क्या है, हिमगिरी के शिखर ढल पड़ेंगे।
मत समझना ये निशाएं तुम्हारा पथ रोक लेगी,
तुम जले तो दीप क्या, सूरज हजार जल पड़ेंगे।।
प्रश्नोत्तरीः-
1. आपने अपने जीवन का कोई लक्ष्य बनाया है?
2. आप सफलता का तात्पर्य क्या समझते हैं?
3. इच्छा और संकल्प में क्या अंतर है?
4. आपका रोल मॉडल कौन है?
5. आपके विचार में दुनिया में सफल व्यक्ति कौन- 2 हैं?
सन्दर्भ पुस्तकें:-
1. सफलता के सात सूत्र साधन
2. समय का सदुपयोग
3. संकल्प शक्ति की प्रचण्ड प्रक्रिया
4. प्रखर प्रतिभा की जननी इच्छा शक्ति
5. सफल जीवन की दिशा धारा
आदर्श युवा बनें
युवा स्यात्। साधु युवा, अध्यायिक :।
आशिष्ठों, दृढिष्ठो, बलिष्ठः।
अर्थः- ऋषि कहते हैं- युवा बनों? युवा कैसे हों? उत्तर है- युवा साधु स्वभाव वाले हो, अध्ययनशील हों, आशावादी हो, दृढ़ निश्चय हों वाले और बलिष्ठ हों। - उपनिषद्
एक मनीषी- ‘‘शालीनता के अभाव में भूल बन जाता है अपराध। शौर्य बन जाता है उद्दण्डता, और सत्य बन जाता है बद्तमीजी।’’
इसलिए ऋषि चाहता हैं कि- उत्साह शौर्य के धनी युवक साधु हों, शालीनता एवं सज्जनता से विभूषित हों।
-- ‘युग निर्माण में युवा शक्ति का सुनियोजन’ से
1. जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो।
2. दृढ़ संकल्पशक्ति पैदा हो तथा सकारात्मक लक्ष्य के लिए संकल्पित हो।
3. सकारात्मक चिन्तन जागृत हो।
4. अपनी आत्मशक्ति की ताकत पहचाने।
5. मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, परन्तु कैसे? इसके सूत्र को जाने।
व्याख्यान का क्रमः-
‘‘असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया।’’ संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में हर क्षेत्र में सफल होना चाहता है चाहे नौकरी हो या व्यापार, विद्यार्जन हो, प्रतियोगी परीक्षा हो, चाहे कोई कलाकार, संगीतकार, वैज्ञानिक, व्यवसायी हो या कृषक। लड़का हो या लड़की, विवाहित हो या अविवाहित, सभी सफलता चाहते हैं। लेकिन सफलता शेखचिल्लियों या ख्याली पुलाव पकाने वाले या कोरी कल्पनाओं में सोए रहकर सपने देखने वालों को नहीं मिलती।
सफलता ब्याज चाहती है, सफलता को मूल्य देकर (पैसा नहीं) पाना होता है। यह सत्य है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। लेकिन अपनी सफलता की कहानी लिखी जा सके इससे पहले कुछ सूत्रों को अपनाना होगा। दुनिया के सफलतम व्यक्तियों जिन्होंने अपने जीवन में कामयाबी हासिल की उन्होंने कुछ सूत्रों को जीवन में स्थान दिया। सफलता के शिखर को जिन्होंने छुआ, उस पर प्रतिष्ठित हुए ऐसे महापुरुषों के जीवन में अपनाए गए प्रयोगों से हम प्रेरणा लें।
1. दृढ़ इच्छा शक्ति :-
सफलता का मूल मनुष्य की इच्छाशक्ति में सन्निहित होती है। समुद्र से मिलने की प्रबल आकांक्षा करने वाली नदी की भांति वह मनुष्य भी अपनी सफलता के लिए मार्ग निकाल लेता है, जिसकी इच्छाशक्ति दृढ़ और बलवती होती है, उसके मार्ग में कोई भी रुकावट बाधा नहीं डाल सकती। संसार के सभी छोटे- बड़े कार्य किए जा सकने के माध्यम शक्ति है। लेकिन वास्तविक शक्ति मनुष्य की इच्छा शक्ति है। इच्छा की स्फुरण से कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। प्रेरणा से व्यक्ति कर्म करने के लिए प्रवृत्त हो जाता है।
इस प्रकार सारी सफलताएँ इच्छा शक्ति के अधीन होती है। एक गांव में मजदूर के घर पला हुआ बच्चा लखपति बन जाता है। छोटे से किसान के घर सामान्य जीवन जीने वाला विद्यावान् बन जाता है। यह उसकी इच्छा शक्ति है। महात्मा गांधी प्रबल इच्छा शक्ति के जीते जागते आदर्श थे। कु. केलर गूंगी बहरी अंधी होकर भी कई विषयों एवं भाषाओं में स्नातक थी। नेपोलियन ने 25 वर्ष में इटली पर विजय पा ली थी।
2. दृढ़ संकल्प शक्ति :-
केवल इच्छा करने से बात नहीं बनती। इच्छा को दृढ़ संकल्प में बदलना होगा। जब आप दृढ़ संकल्प कर लेंगे तो पानी के बुलबुले की भांति पल-पल में आपकी इच्छा नहीं बदलेगी। दृढ़ संकल्प का तात्पर्य है- मन, बुद्ध व शरीर से इच्छित लक्ष्य को पाने के लिए कठोर परिश्रम करने को तत्पर होना। इस हेतु
(क) कार्य को खेल की तरह रुचि लेते हुए योजना बनाकर करें।
(ख) धैर्यपूर्वक लक्ष्य पर अडिग रहें।
(ग) जो विपरीत परिस्थितियाँ आए उसे सफलता की सीढ़ी मानते हुए पार करें,कठिनाइयां सफलता की सहचरी है।
छोटे- छोटे संकल्प लें और धैर्यपूर्वक उसे पूरा करें। इससे संकल्प शक्ति का विकास होता है। जैसे आज टी.वी. नहीं देखूँगा, गप्पेबाजी में समय नहीं लगाऊँगा, गाली नहीं दूँगा, गुटखा नहीं खाऊँगा। बाद में बड़े बड़े संकल्प लेने और पूरा करने की ताकत आ जाती है। लाल बहादुर शास्त्री जी, मिसाइल मैन अब्दुल कलाम आजाद ने अपने दृढ़ संकल्प से लक्ष्य को पा लिया।
3. परिश्रम एवं पुरुषार्थ :-
जो व्यक्ति अपने शरीर से हमेशा अपने लक्ष्य के अनुरूप श्रम करने को तत्पर रहता है, अपनी शक्तियों का समुचित उपयोग करता है, वह कृतकृत्य हो जाता है। सक्रियता ही जीवन है और निष्क्रियता ही मृत्यु। श्रम से जी चुराने वाले, आलस्य और प्रमाद में पड़े रहने वाले युवा को युवा तो क्या जीवित भी नहीं कहा जा सकता।
श्रम करने से शरीर स्वस्थ एवं स्फूर्तिवान् बनता है। जिससे वांछित सफलता की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। निष्क्रिय कामनाएँ कभी सफल नहीं होते। सफलता पाने योग्य शक्तियाँ मनुष्य में निहित तो होती हैं लेकिन उनका उभार, निखार और उपयोग परिश्रम एवं पुरुषार्थ करने में ही है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सफलता मनुष्य के पसीने का मूल्य है।
4. आत्म विश्वास एवं आत्म निर्भरता :-
कोई व्यक्ति परिश्रमी पुरुषार्थी तो है किन्तु उसमें आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता की भावना का अभाव है, तो भी उसका पुरुषार्थ व्यर्थ चला जायेगा। अपने आपको दीन हीन नहीं शक्तिशाली समझें। विश्वास करें कि बीज रूप में मेरे भीतर सारी शक्तियाँ विद्यमान है। मैं सब कुछ कर सकता हूँ, जो अन्य सफल व्यक्तियों ने किया है। ‘‘विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो’’। वास्तव में सबके भीतर परमात्मा ने एक जैसी शक्ति दी है। आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने आप पर विश्वास करता है और सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को पार कर लेता है। लेकिन परावलम्बी व्यक्ति आत्मविश्वास के अभाव में हर कदम पर झिझकता है। सफलता के मार्ग में अवरोध तो आते हैं। आत्मविश्वासपूर्वक डटे रहने से अन्य सहयोगी भी साथ आ जाते हैं और सहयोग मिलने लगता है। उदा.- महात्मा गांधी अपने आत्मविश्वास से सारे भारत को अपने पीछे चलाने व देश को आजादी दिलाने में सफल हो गए। अब्राहम लिंकन का जीवन असफलताओं के थपेड़ों के बीच सफलता की कहानी है (पृ.......देखें)। युगनिर्माण योजना के सूत्रधार युग ऋषि पं. श्री राम शर्मा आचार्य अपने आत्म विश्वास के सहारे करोड़ों लोगों की जीवन दिशा बदलने में कामयाब हो गये। एवं निम्नस्तर के कहे जाने वाले लोग आज उच्च स्थिति में पहुँच गए। लक्ष्य पर संकल्प पूर्वक डटे रहने से, संकल्पों का पूरा होने से आत्मविश्वास बढ़ता है। कठिनाइयों से जूझने पर आश्चर्यजनक रूप से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
5. निरन्तर प्रयास :-
जो व्यक्ति लक्ष्य की प्राप्ति तक बिना रुके निरन्तर चलते रहते हैं, चाहे कछुए की भांति धीरे- धीरे ही क्यों न हो, सफल हो जाते हैं। जिन्हें अपने ध्येय, लक्ष्य के प्रति लगन है, निष्ठा है, उसके मार्ग में ऐसा कौन सा अवरोध हो सकता है जो उसे रोक सके? लेकिन आज का सोया हुआ कल बदल गया या चार दिन परिश्रम करने के बाद पानी के बुलबुले की भांति लक्ष्य देने के बाद कुछ दिन लक्ष्य के प्रति समर्पण दिखाने के बाद आराम करने लग गए तो खरगोश की भांति (कछुए व खरगोश की कहानी की भांति) असफलता ही हाथ लगेगी। लक्ष्य के प्रति समर्पित व्यक्ति का सूत्र होता है- No vacation, No Expectation, No Discrimination (कोई छुट्टी नहीं, किसी से कोई अपेक्षा नहीं, कोई भेदभाव नहीं)
उदा.- वन- वन फिरकर घास की रोटी खाने वाले महाराणा प्रताप हिम्मत नहीं हारे और अन्त तक निरन्तर चलते रहे।
6. नकारात्मक सोंच (चिन्ता) से दूर रहें :-
नकारात्मक सोच अर्थात् निराशा, भय, सन्देह, उद्विग्नता, अविश्वास के भाव, घुटन भरी सोच। चिन्ता और चिता एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह हैं, जो व्यक्ति की जीवनी शक्ति एवं कार्यक्षमता को घटाते- घटाते समाप्त कर देती है। अतीत या भविष्य को लेकर चिन्तित न हों बल्कि स्वस्थ चिन्तन करें। चिन्ता में व्यक्ति अतीत की असफलताओं, गलतियों, अपमान, दुःख आदि अप्रिय प्रसंगों को याद करते हुए केवल यही सोचता है कि ऐसा क्यों हुआ, कैसे हो गया, आगे अब क्या होगा? कैसे होगा? केवल परेशान होता है उसकी शारीरिक मानसिक और आत्मिक स्थिति अत्यन्त दीन दुर्बल हो जाती है। जो बीत गई सो बात गई, तकदीर का शिकवा कौन करे। जो तीन कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे।
स्वस्थ चिन्तन से समस्या का हल निकलता है, मस्तिष्क की ऊर्जा सक्रिय दिशा में तेजी से काम करती है। चिंतामुक्त होने का रामबाण उपाय है- ‘‘व्यस्त रहें मस्त रहें’’। अचिन्त्य चिन्तन से मुक्त होकर श्रेष्ठ विचारों से ऊँचाई की पराकाष्ठा पर पहुँचा जा सकता है। मानसिक सन्तुलन प्रसन्नता के अधीन रहा करता है। सफलता पाने के लिए प्रसन्नता की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर यात्रा के लिए जीवन की। अप्रसन्न व्यक्ति एक प्रकार से निर्जीव होता है, उसे विषाद और निराशा का क्षय रोग लग जाता है। इस प्रकार के निम्न स्वभाव वाला व्यक्ति सफलता के महान पथ पर किस प्रकार चल सकता है? अतः प्रसन्न रहने की आदत डालें, मुस्कुराएं, अपना सुख तथा दूसरों का दुःख आपस में बाँटे, बटाएं। मुस्कुराने से स्वभाव या आसपास का वातावरण महकने लगता है, आशा का उमंग का संचार होता है। प्रसन्न रहने के दो उपाय हैं- आवश्यकताएँ कम करें तथा परिस्थितियों से तालमेल बिठाएँ।
7. सफल व्यक्तियों को जीवन का आदर्श बनाएँ :-
ऐसे सफल व्यक्ति, महापुरुष जिन्होंने आदर्शों पर चलकर कठिनाइयों से लड़कर जीवन में सफलता पाई हैं, इतिहास में ऐसे गौरवशाली चरित्र के बहुत उदाहरण हैं, उन्हें अपना Role Model (आदर्श) बनाना चाहिए। ये महापुरुष हमारे जीवन के लिए प्रकाश स्तम्भ (Lamp Post) हैं। इससे हमें समस्याओं, अभावों, प्रतिकूलताओं से लड़ने को हौसला बढ़ता है, सत्प्रेरणा मिलती है, न कि किसी फिल्मी एक्टर, खिलाड़ी, विश्व सुन्दरी या गलत साधनों व तरीकों से मंजिल पर पहुँचने वाले नेता, अभिनेता या धनपतियों को अपना आदर्श बना लें। मार्टिन लूथर ने 21 वर्ष में धार्मिक सुधार किया। न्यूटन ने अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण आविष्कार 21 वर्ष आयु में कर लिया। सिकन्दर 22 वर्ष में दिग्विजय को निकला था। स्वामी विवेकानन्द ने युवावस्था में भारतीय संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व में प्रतिष्ठित करने सन्यास लेकर को देश की अपूर्व सेवा की। सो क्रान्तिकारी वीर देश के लिए अपना यौवन व जीवन कुर्बान कर दिए। सरोजिनी नायडू, मेघा पाटकर, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, किरण बेदी आदि नारी समाज की आदर्श बनी। लिंकन और लाल बहादुर शास्त्री गरीब थे। उनका जीवन एक मिसाल है।
8. कुसंग से बचें :-
वातावरण का, सत्संग का प्रभाव पड़ता है। कुसंग, बुरी संगति में अच्छा व्यक्ति भी निकम्मा, अधर्मी, दुर्व्यसनी, नास्तिक, डरपोक बन जाता है, जबकि अच्छी संगति में सामान्य स्तर का मनुष्य भी श्रेष्ठ आचरण करने को बाध्य हो जाता है। श्रेष्ठ संगति से मनुष्य की गति भी श्रेष्ठ दिशा की ओर होती है अतः सावधान हों। गंदे नाले में गंगा जल की सात्विकता नहीं रह जाती, अतः समझदारी इसी में है कि दुर्व्यसनी, हिंसक, व्यभिचारी, चोर प्रकृति, अशुद्ध भाषण करने वाले, कपटी, आलसी, प्रमादी, धन व समय का अपव्यय व दुरुपयोग करने वाले मित्रों की संगति त्याग दें। सुदामा ने कृष्ण से मित्रता की वे निहाल हो गये। दुर्योधन ने शकुनि से मित्रता की थी परिणामस्वरूप सारे कौरव वंश का नाश हो गया। महापुरुषों की संगति श्रेष्ठ संगति है। उनसे संगति करने का माध्यम है स्वाध्याय। श्रेष्ठ पुस्तकें, सत्साहित्य हमारे सच्चे मित्र हैं। ‘सद्ग्रन्थों के अध्ययन से तत्काल प्रकाश, उल्लास और मार्गदर्शन मिलता है।’ विचारों में सकारात्मकता आती है।
9. क्रोध और अहंकार से बच्चे :-
क्रोध और अहंकार करने वाले का कोई मित्र नहीं होता। पग- पग पर उसके विरोधी, दुश्मन, और आलोचक पैदा हो जाते हैं। क्रोध से अविवेक और अविवेक से उत्तेजना पैदा होती है। सम्पूर्ण मस्तिष्क अज्ञानता से भर जाता है और अज्ञान से क्रोधी व्यक्ति का पतन और अन्ततः सर्वनाश हो जाता है। दिन भर में एक व्यक्ति जितना भोजन करता है उसकी सारी ऊर्जा एक बार के क्रोध से नष्ट हो जाती है। अहंकारी व्यक्ति अपने ही मद में चूर रहता है उसके लिए संसार में सीखने के सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं, उसकी उन्नति असम्भव है। हमेशा अपने व्यवहार को सौम्य बनाकर रखें, विनम्रतापूर्वक विद्यार्थी भाव रखने वाले के सामने सारी प्रकृति और परिवार समाज सभी अपना रहस्य व सहयोग के द्वारा खोल देती है। विनम्रता व शालीनता से माता- पिता, मित्र, गुरुजन सभी अपना सद्भाव भरा सहयोग और आशीर्वाद से आपकी झोली भर देते हैं जो सफलता का बहुत बड़ा कारण है।
10. समय का प्रबन्धन :-
‘‘जो जीवन से प्यार करते हों वे आलस्य में समय न गंवायें।’’ समय ही जीवन है। हम समय की कीमत चुकाकर ही सफल विद्यार्थी, कलाकार, संगीतकार, धनपति, आविष्कारक, किसी विषय का विशेषज्ञ हो सकते हैं। जो समय को गप्पबाजी, आवारागर्दी आलस्य में गँवाता है वह सब कुछ गंवा देता है। जो समय को काटता है, टाइम पास करता है, टाइम उसे पास कर देता है। बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता समय को संग्रह नहीं कर सकते। एक समय विशेष के साथ जो सम्भावनाएँ जुड़ी रहती है वह उसके साथ ही चली जाती है, इसलिए समय का नुकसान सबसे बड़ा नुकसान है। उदा. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य।
अतः समय का संयम बरतें- क) दिनचर्या चार्ट बनाएँ आज का काम कल पर न टालें। ‘‘काल करें सो आज कर, आज करें सो अब्ब, पल में परलय होएगी बहुरि करेगा कब्ब।’’ ख) प्राथमिकता क्रम में कार्यों को रखें। अपना प्रत्येक कार्य समय पर पूरा करें। ग) रात्रि में शयन से पहले अपने समय की समीक्षा करें।
सफलता की सिद्धि मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। जो व्यक्ति अपने इस अधिकार की अपेक्षा करके जैसे तैसी जी लेने में ही सन्तोष मान लेते हैं, वे इस महा मूल्यवान मानव जीवन का अवमूल्यन कर एक ऐसे सुअवसर को खो देते हैं जिसका दोबारा मिल सकना संदिग्ध है। अस्तु उठिए और आज से ही अपनी वांछित सफलता को वरण करने के लिए उद्योग में जुट पड़िए।
तुम चलो तो आंधियां तूफान खुद ही चल पड़ेंगे,
सागरों की बात क्या है, हिमगिरी के शिखर ढल पड़ेंगे।
मत समझना ये निशाएं तुम्हारा पथ रोक लेगी,
तुम जले तो दीप क्या, सूरज हजार जल पड़ेंगे।।
प्रश्नोत्तरीः-
1. आपने अपने जीवन का कोई लक्ष्य बनाया है?
2. आप सफलता का तात्पर्य क्या समझते हैं?
3. इच्छा और संकल्प में क्या अंतर है?
4. आपका रोल मॉडल कौन है?
5. आपके विचार में दुनिया में सफल व्यक्ति कौन- 2 हैं?
सन्दर्भ पुस्तकें:-
1. सफलता के सात सूत्र साधन
2. समय का सदुपयोग
3. संकल्प शक्ति की प्रचण्ड प्रक्रिया
4. प्रखर प्रतिभा की जननी इच्छा शक्ति
5. सफल जीवन की दिशा धारा
आदर्श युवा बनें
युवा स्यात्। साधु युवा, अध्यायिक :।
आशिष्ठों, दृढिष्ठो, बलिष्ठः।
अर्थः- ऋषि कहते हैं- युवा बनों? युवा कैसे हों? उत्तर है- युवा साधु स्वभाव वाले हो, अध्ययनशील हों, आशावादी हो, दृढ़ निश्चय हों वाले और बलिष्ठ हों। - उपनिषद्
एक मनीषी- ‘‘शालीनता के अभाव में भूल बन जाता है अपराध। शौर्य बन जाता है उद्दण्डता, और सत्य बन जाता है बद्तमीजी।’’
इसलिए ऋषि चाहता हैं कि- उत्साह शौर्य के धनी युवक साधु हों, शालीनता एवं सज्जनता से विभूषित हों।
-- ‘युग निर्माण में युवा शक्ति का सुनियोजन’ से