Books - व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर
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Language: HINDI
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स्वदेशी से स्वावलम्बन
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व्याख्यान का उद्देश्य :-
1. स्वदेशी का तात्पर्य समझ में आ जाए।
2. विदेशी कम्पनियों के षड्यन्त्र व लूट का परिचय कराना।
3. स्वदेशी के प्रति गौरव व स्वाभिमान के भाव जागृत करना।
4. हस्त निर्मित स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प करना।
5. घर पर तैयार हो सकने वाले उत्पाद- मोमबत्ती, काला मंजन, प्राकृतिक साबुन आदि का निर्माण विधि सिखाना।
व्याख्यान क्रम :-
स्वदेशी क्या है?
महात्मा गाँधी के शब्दों में- ‘‘स्वदेशी की भावना का अर्थ है हमारी वह भावना जो हमें दूर का छोड़कर अपने समीपवर्ती परिवेश का ही उपयोग और सेवा करना सिखाती है। उदाहरण के लिए इस परिभाषा के अनुसार धर्म के सम्बन्ध में यह कहा जायेगा कि मुझे अपने पूर्वजों से प्राप्त धर्म का पालना करना चाहिए। यदि मैं उसमें दोष पाऊँ तो मुझे उन दोषों को दूर करके उस धर्म की सेवा करनी चाहिए। अर्थ के क्षेत्र में मुझे अपने पड़ोसियों द्वारा बनाई गई वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिए और उन उद्योगों की कमियाँ दूर करके उन्हें ज्यादा सम्पूर्ण और सक्षम बनाकर उनकी सेवा करनी चाहिए।’’
‘‘स्वदेशी से मेरा मतलब भारत के कारखानों में बनी वस्तुओं से नहीं है। स्वदेशी से मेरा मतलब भारत के बेरोजगार लोगों के हाथ की बनी वस्तुओं से है। शुरू में यदि इन वस्तुओं में कोई कमी भी रहती है तो भी हमें इन्हीं वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए तथा स्नेहपूर्वक उत्पादन करने वाले से उसमें सुधार करवाना चाहिए। ऐसा करने से बिना किसी प्रकार का समय और श्रम खर्च किए देश और देश की लोगों की सच्ची सेवा हो सकेगी।’’- महात्मा गाँधी।
स्वदेशी क्या- क्या है?
स्वदेशी वस्तु नहीं -चिन्तन है।
स्वदेशी तन्त्र है- ऋषि जीवन का।
स्वदेशी मन्त्र है- सुख शान्ति का।
स्वदेशी शस्त्र है- युग क्रान्ति का।
स्वदेशी समाधान है- बेरोजगारी का।
स्वदेशी कवच है- शोषण से बचने का।
स्वदेशी सम्मान है- श्रमशीलता का।
स्वदेशी संरक्षक है- प्रकृति पर्यावरण का।
स्वदेशी आन्दोलन है- सादगी का।
स्वदेशी संग्राम है- जीवन मरण का।
एक सवालः-
स्वदेशी क्या है?
~जो अपने आसपास ही उत्पन्न हो और उपलब्ध हो जाए।
स्वदेशी क्यों?
~क्योंकि इसके बिना हमारा आर्थिक शोषण नहीं रुक सकेगा।
स्वदेशी कहाँ?
~जो कुछ हमें प्रकृति से उपलब्ध हो जाए वहां।
स्वदेशी कब?
~जब हमें सामाजिक सुख शान्ति की चाह हो तब।
स्वदेशी कितना?
~जिससे हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए न कि इच्छाओं की उतना।
स्वदेशी कौन?
~जो हमारी चेतना में उपभोग नहीं उपयोग का भाव जागृत करें।
स्वदेशी कैसे?
~अपने आसपास के हस्त निर्मित वस्तुओं को उपयोग का संकल्प लेकर।
स्वदेशी कब तक?
~जीवन भर।
स्वदेशी में क्या- क्या?
भाषा, भूषा (पहनावा), भेषज (औषधियाँ), शिक्षा, रीति- रिवाज, भौतिक उपयोग की वस्तुएँ, कृषि, न्याय व्यवस्था आदि। स्वदेशी आग है- अनाचार को भस्म करने का।
स्वदेशी आधार है- समाज की सेवा का।
स्वदेशी उपचार है- मानवता के पतन का।
स्वदेशी उत्थान है- समाज व राष्ट्र का।
किसी भी देश को यदि आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, सुरक्षा आदि क्षेत्र में समर्थ व महाशक्ति बनना है, तो स्वदेशी मन्त्र को अपनाना ही होगा दूसरा कोई मार्ग नहीं। जैसेः-
अमेरिका- लम्बे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा, 200 वर्ष पहले तक कोई अस्तित्व नहीं था। पर जब वहाँ स्वदेशी का मन्त्र सिखाने वाले जार्ज वाशिंगटन ने क्रांति किया तो आज अमेरिका विश्व में महाशक्ति बना बैठा है। दुनिया के बाजार में अमेरिका का 25 प्रतिशत सामान आज बिकता है।
जापान- तीन बार गुलाम हुआ पहले अंग्रेज, फिर डच+पुर्तगाली स्पेनिश का मिला जुलाके, फिर तीसरी बार अमेरिका का गुलाम हुआ जिसने सन् 1945 में जापान के हिरोशिमा व नागासाकी में परमाणु बम गिरा दिये थे। 100 वर्ष पहले तक जापान का दुनिया में कोई पहचान नहीं था। लेकिन स्वदेशी के जज्बा के कारण जापान पिछले 60 वर्षों में पुनः खड़ा हो गया।
चीन- ये भी अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेजों ने चीन के लोगों को अफीम के नशे में डूबो दिया था। सन् 1949 तक चीन भिखारी देश था। विदेशी कर्जा में डूबा था। बाद में वहाँ एक स्वदेशी के क्रान्तिकारी नेता माओजेजांग ने पूरे देश की तस्वीर ही बदल दी। आज चीन उस ऊँचे पायदान पर खड़ा है, जिससे अमेरिका भी घबराता है। आज दुनिया के बाजार में चीन का 25 प्रतिशत सामान बिकता है।
मलेशिया- 25 वर्षों में खड़ा हो गया, स्वदेशी के कारण।
विदेशी बैसाखियों पर कोई भी देश ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकता। अंग्रेजों के आने के पहले हमारा भारत हर क्षेत्र में विकसित व महाशक्ति था।
अंग्रेजों के शासन काल में ट.बी. मैकाले ने भारत की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को आमूलचूल बदल दिया। पढ़ाई जाने वाली इतिहास के किताबों में भारत की गौरवपूर्ण इतिहास में फेरबदल कर दिया गया। भारत को गरीबों का देश, सपेरों का देश, लुटेरों का देश, हर तरह से बदहाल देश दर्शाया गया। जबकि इंग्लैण्ड व स्कॉटलैण्ड के ही करीब 200 इतिहासकारों ने अपने इतिहास के किताबों में जो भारत का इतिहास लिखा है वह दूसरी ही कहानी कहता है। उसके अनुसार तो भारत सर्वसम्पन्न देश, ऋषियों का देश, हीरे जवाहरातों का देश था।
उन इतिहासकारों के अनुसारः-
1. भारत के गांवों में जरूरत के सभी सामान तैयार होते थे, शहरों से केवल नमक आती थी।
2. सन् 1835 तक भारत का सामान दुनिया के बाजार में 33 प्रतिशत बिकता था।
3. भारत में तैयार लोहा दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। सरगुजा (छ.ग.) के आसपास लोहे के 1000 कारखाने थे।
4. यूरोप के देशों की तुलना में भारत की फसल प्रति एकड़ तीन गुना ज्यादा होती थी।
5. गुरुकुल शिक्षा पद्धति बहुत मजबूत थी। वैदिक गणित के फार्मूलों से गणना कैलकुलेटर से भी शीघ्र हो जाती थी।
6. भारत के गाँवों में लोगों के घर में सोने के सिक्कों के ढेर पाए जाते थे, जिसे व गिनकर नहीं तौलकर रखते थे।
7. गांवों में 36 तरह के उद्योग चलते थे।
8. गांवों में ही करीब 2000 प्रकार के प्राथमिक उत्पाद तैयार होते थे जिसे 18 प्रकार के कारीगर (जुलाहा, बुनकर, धुनकर, तेली, कुम्हार, बढ़ई आदि) तैयार करते थे।
9. हाईटेक उत्पाद समझा जाने वाला स्टील भारत में 3000 वर्षों तक बनता रहा है।
10. यहाँ का कपड़ा विदेशों में सोना के वजन के बराबर तौल में बिकता था।
11. यहाँ इतनी अधिक समृद्धि थी कि मन्दिर भी सोने के बनवा दिये गए।
मित्रो!भारत का वैभव देखकर ही अंग्रेजों ने इसे ‘‘सोने की चिड़िया’’ कहा।
पर एक सवाल उठता है कि इतना शक्तिशाली, सम्पन्न भारत की दुर्दशा कैसे हुए? इसका संक्षिप्त में जवाब यही है कि अंग्रेजों ने जान बूझकर अपने शासन काल में 3735 ऐसे कानून बना दिए जिससे हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूर्णतः ध्वस्त हो गई। वे सभी कानून आज भी चलते हैं कोई परिवर्तन नहीं है।
भारत को व्यवस्थित तरीके से लूटने का काम विदेशी कम्पनियों के द्वारा हुआ। जैसा कि आप जानते हैं ईस्ट इंडिया नामक कम्पनी भारत में व्यापार के बहाने आई थी। आज़ादी के पहले तक भारत को चूसने वाले 733 बहुराष्ट्रीय कम्पनियां सक्रिय थी। सत्ता हस्तान्तरण समझौते के तहत सिर्फ ईस्ट इंडिया कम्पनी को वापस भेजा गया बाकी 732 कम्पनियां बाद में भी बनी रहीं।
जिन विदेशी कम्पनियों ने भारत को खोखला बनाया और जिन विदेशी कम्पनियों के बहिष्कार के लिए स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने स्वदेशी आन्दोलन चलाते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये, उन्हीं कम्पनियों को आज भारत सरकार आमन्त्रित करके स्वयं दलाली खाने में मस्त है। आज हमारे देश में ऐसे 5000 से भी अधिक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपना सामान बेच रही है।
विदेशी कम्पनियों को बुलाने के पीछे हमारी सरकार चार तर्क देती है। 1. पूंजी आती है। 2. निर्यात बढ़ता है। 3. रोजगार बढ़ता है। 4. नई तकनीकी मिलती है।
खोजबीन करने पर पता चला है कि ये तर्क निराधार है, बल्कि स्थिति विपरीत है।
1. सच्चाई यह है कि विदेशी कम्पनियां बहुत ही कम पूंजी लेकर आती है और 1 वर्ष में ही तीन गुना पूंजी वापस विदेशी ले जाती है। उदाहरण।
() हिन्दुस्तान (यूनी) लीवन लिमिटेड (ब्रिटेन+हालैंड)- 1933 में 33 लाख रू. पूंजी लेकर आई। प्रतिवर्ष 217 करोड़ रूपए विदेश ले जाती है।
() कोलगेट पॉमोलीव (अमेरिका)- पूंजी लाई 13 लाख। प्रतिवर्ष 231 करोड़ ले जाती है।
() नोवार्टिस 40 वर्षों से है- पूंजी निवेश 15 लाख, प्रतिवर्ष ले जाती है 94 करोड़।
() फाइजर (अपेरिका) पूंजी निवेश 2 करोड़ 90 लाख, ले जाती है 338 करोड़ प्रतिवर्ष।
() फिलिप्स (हालैण्ड)- 50 वर्षों से है, पूंजी निवेश 1 करोड़ 50 लाख, ले जाती है 190 करोड़ प्रतिवर्ष।
() गुडियर (अमेरिका) टायर बनाती है। पूंजी निवेश 2 करोड़ 37 लाख, 240 करोड़ प्रतिवर्ष ले जाती है।
() ग्लैक्सो 30 वर्षों से है। पूँजी निवेश 8 करोड़ 40 लाख रुपए, प्रतिवर्ष ले जाती है 533 करोड़ 66 लाख रुपए।
() आई.टी.सी. (इंडियन टोबैको कंपनी) असली काम एटीसी (अमेरिका) 20 वर्षों से है। पूँजी निवेश 38 करोड़, प्रतिवर्ष ले जाती है। 3170 करोड़।
यदि सरकार के इस तर्क को मान भी लिया जाए कि विदेशी कम्पनियों के आने से पूँजी आती है तो इसका मतलब है कि हमारी गरीबी कम होनी चाहिए। सन् 1949 में सरकार ने 126 विदेशी कम्पनियों को बुलाया तब भारत में गरीबों की संख्या गरीब साढ़े चार करोड़ थी। आज भारत में 5000 विदेशी कम्पनियाँ आ चुकी हैं। तो सरकार के तर्क के अनुसार बहुत पूँजी आ गई, तो इसका सीधा सा मतलब है कि गरीबी लगभग समाप्त हो गई। पर आज भारत सरकार के ही आँकड़े बताते हैं कि भारत में आज गरीबों की संख्या 84 करोड़ से भी ज्यादा है। अर्थात् गरीबी 21 गुना बढ़ा है। तो स्पष्ट हो जाता है कि विदेशी कम्पनियाँ पूँजी लाती नहीं बल्कि पूँजी ले जाती है, वह भी बहुत ज्यादा।
2. दूसरा तर्क भी गलत साबित होता है जब हम यह आँकड़ा देखते हैं।
1840 में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था एक विदेशी कम्पनी ईष्ट इण्डिया कम्पनी थी। उस समय भारत का निर्यात विदेशों में 33 प्रतिशत था। भारत के कुल निर्यात में ईष्ट इण्डिया कम्पनी 3.6 प्रतिशत ही निर्यात करती थी।
1936 में भारत का निर्यात घटकर 4.5 प्रतिशत रह गया।
1950- 2.2 प्रतिशत 1955- 1.5 प्रतिशत
1960- 1.2 प्रतिशत 1965- 1 प्रतिशत
1970- 0.7 प्रतिशत 1975- 0.5 प्रतिशत
1980- 0.1 प्रतिशत 1990- 0.5 प्रतिशत
1991- 0.4 प्रतिशत 2009- 0.5 प्रतिशत
1840 में एक विदेशी कम्पनी थी जो भारत के निर्यात में 3.6 प्रतिशत मदद करती थी। आज 5000 कम्पनियाँ मिलकर केवल 5.52 प्रतिशत मदद करती है।
स्पष्ट है कि विदेशी कंपनियाँ भारत का निर्यात नहीं बढ़ाती बल्कि आयात बढ़ाती है। ऊपर से ये कम्पनियाँ भारत सरकार पर बराबर दबाव डालती रहती है कि भारतीय मुद्रा रुपए की कीमत घटे। 1950 में 1 डालर- 1 रु. था। आज 1 डालर=50 रु.इससे तो हम अमेरिका से 50 वर्ष ऐसे ही पिछड़ गए।
3. विदेशी कंपनियाँ कोई हाईटेक लेकर नहीं आतीं। 90 प्रतिशत कंपनियाँ तो शून्य तकनीकी का ही काम करती है। जैसे साबुन बनाना, यह घर पर भी बनाया जा सकता है। साबुन बनाने में कोई मशीन की जरूरत नहीं पड़ती। मशीन तो कटिंग व पैकिंग में लगती है। साबुन बनाने में करीब 50 विदेशी कंपनियाँ काम कर रही हैं।
इसी प्रकार बिस्किट, चाकलेट, सौन्दर्य प्रसाधन, बोतल बन्द पानी, डबल रोटी, आचार, गेहूँ का आटा, आलू चिप्स आदि। इनमें से कोई भी उत्पाद हाई टेक्नोलाजी का नहीं है। 10 प्रतिशत कम्पनियाँ ही कुछ काम की चीजों में काम करती है। जैसे मोटर, इंजन आदि। पर उसमें भी वे इंजन भारत में नहीं बनाते, अपने देश से बनाकर लाते हैं यहाँ केवल फिटिंग कर देते हैं। टेक्नोलाजी ट्रांसफर नहीं करते।
हाईटेक काम तो है- सेटेलाईट बनाना, मिसाइल बनाना, परमाणु बम, सुपर कम्प्यूटर बनाना, लेकिन इस काम के लिए कोई भी विदेशी कम्पनी नहीं आती। इन क्षेत्रों में भारत ने बहुत प्रगति किया है, लेकिन स्वदेशी वैज्ञानिकों के द्वारा। अमेरिका में जो तकनीकी 20- 30 वर्ष पुरानी हो गई है, जिसे वहाँ डम्प कर दिया गया है, उसे वे भारत में ला देते हैं जैसे- जहरीली कीटनाशक बनाने की तकनीकी, रासायनिक खाद बनाने वाली तकनीकी। भोपाल में यूनियन कार्बाइड कम्पनी में 777 नमक रसायन बनता था। 1984 की दुर्घटना के बारे में आप सभी जानते हैं। ऐसे 56 कारखाने भारत में स्थापित है।
एलोपैथी दवाओं के क्षेत्र में भी विदेशी कम्पनियाँ बिना काम की हजारों दवाएँ भारत में बेचकर करोड़ों रुपये कमा रही है। जस्टिस हाती कमीशन के अनुसार एलोपैथी की 117 दवाएँ ही भारत में काम की है, बाकि बेकार हैं बल्कि कुछ तो घातक भी हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में एलोपैथी के 84 हजार से भी अधिक प्रकार की दवाएँ धड़ल्ले से बिकती हैं। ऐसी दवाईयाँ जो विदेशों में 20 वर्षों से बैन है, वे भी भारत में बिकती है।
4. सरकार की चौथी तर्क कि यहाँ रोजगार के अवसर बढ़ते हैं स्पष्ट दिख रहा है कि गलत है। बेरोजगारी का आँकड़ा विदेशी कम्पनियों के आने के साथ- साथ बढ़ती ही जा रही है। साधारण सी बात है कि जब किसी काम को मशीनों के द्वारा किया जाएगा तो जहाँ 100 लोगों की जरूरत थी वहाँ 10 से ही काम चल जाता है 90 तो बेरोजगार हो गए।
तो मित्रों! अब जरूरत है कि स्वदेशी आन्दोलन को हम सब तेज गति से आगे बढ़ाएँ। इस हेतु व्यक्तिगत स्तर पर हम यह जरूर करें-
1. स्वदेशी व विदेशी कम्पनियों की सूची अपने पास रखें और स्वदेशी वस्तुएँ ही खरीदें।
2. यदि हस्त निर्मित स्वदेशी वस्तुएँ उपलब्ध हो तो वही वस्तुएँ उपयोग करें, गुणवत्ता में कमी हो तो निर्माणकर्ताओं से निवेदन करें सुझाव दें प्रोत्साहन दें।
3. यदि व्यवस्था बन सके तो आप स्वयं कुछ कुटीर उत्पाद तैयार करें।
वस्तु निर्माण प्रशिक्षण
1. मोमबत्ती 2. काला दन्त मंजन 3. प्राकृतिक साबुन
नोटः- यह प्रायोगिक शिक्षण है।
दैनिक जीवन में उपयोगी स्वदेशी सामान की सूची
विदेशी वस्तुओं का करें बहिष्कार, स्वदेशी को करें स्वीकार।
नोटः- स्वदेशी कम्पनियों के उत्पाद का उपयोग भी तभी करें जब हस्त निर्मित वस्तुएँ उपलब्ध न हो।
(1) उत्पाद- टूथपेस्ट/दंतमंजन
विदेशी- अधिकतर टूथपेस्ट हड्डियों के चूरे से बनाते हैं। कोलगेट, हिन्दुस्तान लीवर (क्लोजअप, पेप्सोडेंट, ऐम, सिबाका), एक्वाफ्रेश, एम वे (फोरहन्स), ओरबली, क्वान्टम आदि।
स्वदेशी- कामधेनु काला दंतमंजन, दंतक्रान्ति, दंत मंजन (पतंजलि), मंजन एम.डी.एच.,विको बज्रदन्ती, वैद्यनाथ, गुरुकुल फार्मेसी, चॉइस, नीम, एंकर, मिस्वाक, बबूल, प्रोमिस आदि।
(2) उत्पाद- टूथब्रश
विदेशी- कोलगेट, क्लोजअप, पेप्सोडेन्ट, एक्वाफ्रेश, सिबाका आदि।
स्वदेशी- प्रोमिस, अजय, अजन्ता, मोनेट, रोयल, क्लासिक, डॉ. स्ट्रॉक आदि।
(3) उत्पाद- नहाने का साबुन
विदेशी- हिन्दुस्तान लीवर, (लक्स, लिरिल, लाईफबॉय, लेसांस, डेनिम, केमे, डॉव, रेवलॉन, पियर्स, रेक्सोना, ब्रीज, हमाम, ओके) पॉण्डस, डिटोल, क्लियरसिल, पामोलिव, एमवे, जॉनसन बेबी आदि।
स्वदेशी- प्राकृतिक स्नान बटी, कायाकान्ति, कायाकान्ति एलोविरा (पतंजलि), निरमा, मेडीमिक्स, नीम, निमा, जेस्मीन, मैसूर, सेंदल, कुटीर, सहारा हिमानी, ग्लिसरीन, गोदरेज (सिंथोल, फेयरग्लो, शिकाकाई, गंगा) विप्रो, संतुन आदि।
(4) उत्पाद- शैम्पू
विदेशी- कोलगेट पामोलिव (हैलो पामोलिव), हिन्दुस्तान लीवर (लक्स, क्लिनिक, सनसिल्क, रेवलॉन, लेक्मे) प्रोक्टर एवं गेंबल (पेन्टीन, मेडीकेयर), पोण्डस, ओल्ड स्पाइस, शावर टू शावर, हेड एवं शोल्डर, जॉनसन बेबी आदि।
स्वदेशी- केशकांति (पतंजलि), विप्रो, पार्क अवेन्यु, स्वातिक अयुर हर्बल, केशनिखार, हेयर एण्ड, केयर, नाइसिल, अर्निका, वेलवेट, डाबर वाटिका, बजाज, नाईल, लेवेण्डर, गोदरेज आदि।
(5) उत्पाद- कपड़े व बर्तन धोने के साबुन, वाउडर व नील
विदेशी- हिन्दुस्तान लीवर (सर्फ, रिन, सनलाइट, व्हील, ओके, विम) एरियल, चेक, हेन्को, रिविल, एमवे, क्वान्टम। ऊनी कपड़ों के लिए- वुलवाश, ईजी,। नील, रॉबिन ब्लू टीनापाल, स्काईलार्क आदि।
स्वदेशी- टाटा शुद्ध, निमा, मोदी, केयर, सहारा, स्वास्तिक, विमल, हिपोलीन, फेना, ससा, टीसीरिज, डॉ. डेट, घड़ी। ऊनी कपड़ों के लिए- जैटिल। नील- उजाला, रानीपाल, निरमा, चमको, डिप आदि।
(6) उत्पाद- शेविंग क्रीम
विदेशी- ओल्डस्पाइस, पामोलिव, पॉण्डस, जिलेट, इरास्मिक, डेनिम, यार्डले आदि।
स्वदेशी- पार्क अवेन्यु, प्रीमियम, वीजोन, इमामी, बलसारा, गोदरेज, निविया आदि।
(7) उत्पाद- शेविंग ब्लेड
विदेशी- जिलेट (7 ओक्लोक, इरास्मिक) विल्मैन, विल्टेज आदि।
स्वदेशी- टोपाज, गेलेन्ट, सुपरमेक्स, लेजर, एसक्वायर, सिल्वर प्रिन्स, प्रीमियम आदि।
(8) उत्पाद- क्रीम पाउडर व सौन्दर्य प्रसाधन की सामग्री
विदेशी- हिन्दुस्तान लीवर (फेयर एवं लवली, लेक्मे, लिरिल, डेनिम, रेवलोन), प्रोक्टर एवं गेम्बल, (आयल एवं ओले, क्लिरयसिल, क्लियरटोन), चार्मिस, पोण्डस, ओल्ड स्पाइस, डेटाल, नाइसिल, चार्ली, जॉनसन बेबी आदि।
स्वदेशी- कायाकांति ऐलोवेरा, कायाकांति, नीम, कांतिलेप (पतंजलि), बोरोसिल, अयुर इमामी, विको, बोरोप्लस, बोरोलीन, हिमानी, गोल्ड, नाईल, लेवेण्डर, हेयर एंड केयर, निविया, हेवन्स, सिंथोल, ग्लोरी, वेलवेट (बेबी) आदि।
(9) उत्पाद- रेडिमेड वस्त्र
विदेशी- रैंगलर, नाईक, ड्यूक, एडीडास, न्यूपोर्ट प्यूमा आदि।
स्वदेशी -- केम्ब्रिज, पार्क अवेन्यु, ओक्जेम्बर्ग,
बॉम्बे डॉइंग, रफ एंड टफ, ट्रिगर जिंस आदि।
(10) उत्पाद -- घड़ी
विदेशी -- राडो, रॉलैक्स, स्वीसको, सीको आदि।
स्वदेशी -- टाइटन, एचएमटी, मैक्जिमा, प्रेस्टिज, अजन्ता।
(11) उत्पाद -- पेन, पेन्सिल
विदेशी -- पारकर, निकलसन, रोटोगेक, स्विसएयर,
एडजेल, राइडर, मित्सुबिषी, फ्लेयर, यूनिबाल, पायलट,
रोलगोल्ड आदि।
स्वदेशी -- कैमल, किंग्सन, शार्प, सेलो, विल्सन,
टुडे, नटराज, ऐम्बेसेडर, लिंक, मोन्टेक्स, स्टीक,
संगीता, लक्सर, अप्सरा आदि।
(12) उत्पाद -- कोल्ड ड्रिंक्स
विदेशी -- कोका कोला (कोक, फैन्टा, स्प्राईट, थम्सअप,
गोल्डपाट, लिम्का), पेप्सी (लहर, 7 अप, मिरिंडा, स्लाइस) टीम, सिट्रा, क्रश, मेकडोवल।
स्वदेशी -- गुलाब शर्बत, बादाम शर्बत (पतंजलि),
दूध लस्सी, छाछ, जूस, नींबू पानी,नारियल पानी,
शेक, ठंडाई, जलजीरा। रूहअफजा, रसना, फ्रूटी,
गोदरेज, जंपईन आदि।
(13) उत्पाद -- चाय व कॉफी
विदेशी -- लिप्टन (टाईगर, ग्रीन लेबल, येलो लेबल,
चीयर्स) ब्रुक बॉण्ड (रेड लेबल, ताजमहल), गोडफ्रे
फिलिप्स, पोलसन, गुडरिक, सनराईज, कॉफी -- नेस्ले,
नेस्केपे, रिचबू।
स्वदेशी -- चाय दिव्य पेय (पतंजलि), टाटा, ब्रह्मपुत्र,
असम, गिरनार। कॉफी -- इण्डियन कैफे, एम. आर.।
(14) उत्पाद -- शिशु आहार व दूध पाउडर
विदेशी -- नेस्ले (लेक्टोजन, सेरेलक, नेस्टम, एल.पी.एफ., मिल्क मेड, नेस्प्रे, एवरीडे, गाल्टको), ग्लेक्सो (फैरेक्स) आदि।
स्वदेशी -- शहद, दालों का पानी, उबले चावल, फलों का रस।
अमूल, इण्डाना, सागर, तपन, मिल्क, केयर आदि।
(15) उत्पाद -- आइसक्रीम
विदेशी -- अधिकतर आइसक्रीमों में जानवरों की आँतों की परत होती है। वाल्स, क्वालिटी, डोलप्स, कैडबरी आदि।
स्वदेशी -- घर की बनी आइसक्रीम, कुल्फी, अमुल, वाडीलाल, मिल्क फूड आदि।
(16) उत्पाद -- नमक
विदेशी -- अन्नपूर्णा, कैप्टन, कुक (हिन्दुस्तान लीवर), किसान (ब्रुकबाण्ड), पिल्सबरी आदि।
स्वदेशी -- अंकुर नमक, सैंधा नमक (पतंजलि) लो सोडियम व आयरन- 45, अंकुर, टाटा, सूर्या ताजा, तारा।
(17 उत्पाद -- आलू चिप्स व नमकीन
विदेशी -- अंकल, पेप्सी (रफल्स, हास्टेस), फनमंच आदि।
स्वदेशी -- बीकानो नमकीन, हल्दीराम, घर में बने
चिप्स, बीकाजी एवं एवन आदि।
(18) उत्पाद -- टमाटर सॉस, फ्रूट जैस
विदेशी -- नेस्ले, ब्रुक बॉण्ड, (किसान), ब्राउन एंड पालसन आदि।
स्वदेशी -- फ्रूट जैम, एपल जैस, मिक्स जैम, (पतंजलि) घर में बना सॉस। इण्डाना, प्रिया, रसना आदि।
(19) उत्पाद -- बिस्कुट / चॉकलेट
विदेशी -- अधिकतर चॉकलेट में आर्सेनिक नामक जहर होता है। कैडबरी (बोर्नविटा, 5 स्टार) लिप्टन, हार्लिक्स, न्यूट्रीन, इक्लेयर्स आदि।
स्वदेशी -- गुड़+मुंगफली, बादाम ज्यादा स्वास्थ्यप्रद है। आंवला, कैन्डी, बेल कैन्डी, बिस्किट, कैंडी (पतंजलि)। ब्रिटानिया, पारले, बेकमेन्स, क्रीमिका, शाग्रिला, इन्डाना, अमूल, रावलगांव आदि।
(20) उत्पाद -- पानी
विदेशी -- एक्वाफिना, किनले, बैली, प्यारे- लाईफ, इवियन, सैन- पैलेग्रीमों, पैरियर आदि।
स्वदेशी -- घर का उबला साफ पानी, गंगा, हिमालया, कैच, रेल- नीर, बिसलरी आदि।
(21) उत्पाद -- टॉनिक
विदेशी -- बूस्ट, पोलसन, बोर्नवीटा, होर्लिक्स, कॉम्पलान, स्पर्ट, प्रोटिनेक्स।
स्वदेशी -- बादाम पाक, च्यवनप्राश, अमृत रसायन (पतंजलि), न्यूट्रामूल, माल्टोवा।
(22) उत्पाद -- घी एवं खाघ तेल
विदेशी -- नेस्ले का घी, डालडा, आई.टी.सी. व हिन्दुस्तान लीवर के सभी ब्राण्ड।
स्वदेशी -- घर का गाँव का घी, परम घी, अमूल घी, गाय का देशी घी, सरसों का तेल (पतंजलि)
नोटः- 1. यघपि सूची प्रकाशन में पर्याप्त सावधानी रखी गई है तथापि किसी भी नवीन जानकारी से हमें अवश्य अवगत करवाएं जिससे आगामी संस्करण में आवश्यक संशोधन किये जा सकें। 2. आप जहां भी रहते हैं, उसके आसपास ग्रामीणों एवं लघु उघमियों द्वारा आपके दैनिक प्रयोग की कई वस्तुएं बनाई जाती हैं। आप प्राथमिकता के आधार पर उनका प्रयोग कर गांव को स्वावलम्बी बनाएं।
1. स्वदेशी का तात्पर्य समझ में आ जाए।
2. विदेशी कम्पनियों के षड्यन्त्र व लूट का परिचय कराना।
3. स्वदेशी के प्रति गौरव व स्वाभिमान के भाव जागृत करना।
4. हस्त निर्मित स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प करना।
5. घर पर तैयार हो सकने वाले उत्पाद- मोमबत्ती, काला मंजन, प्राकृतिक साबुन आदि का निर्माण विधि सिखाना।
व्याख्यान क्रम :-
स्वदेशी क्या है?
महात्मा गाँधी के शब्दों में- ‘‘स्वदेशी की भावना का अर्थ है हमारी वह भावना जो हमें दूर का छोड़कर अपने समीपवर्ती परिवेश का ही उपयोग और सेवा करना सिखाती है। उदाहरण के लिए इस परिभाषा के अनुसार धर्म के सम्बन्ध में यह कहा जायेगा कि मुझे अपने पूर्वजों से प्राप्त धर्म का पालना करना चाहिए। यदि मैं उसमें दोष पाऊँ तो मुझे उन दोषों को दूर करके उस धर्म की सेवा करनी चाहिए। अर्थ के क्षेत्र में मुझे अपने पड़ोसियों द्वारा बनाई गई वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिए और उन उद्योगों की कमियाँ दूर करके उन्हें ज्यादा सम्पूर्ण और सक्षम बनाकर उनकी सेवा करनी चाहिए।’’
‘‘स्वदेशी से मेरा मतलब भारत के कारखानों में बनी वस्तुओं से नहीं है। स्वदेशी से मेरा मतलब भारत के बेरोजगार लोगों के हाथ की बनी वस्तुओं से है। शुरू में यदि इन वस्तुओं में कोई कमी भी रहती है तो भी हमें इन्हीं वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए तथा स्नेहपूर्वक उत्पादन करने वाले से उसमें सुधार करवाना चाहिए। ऐसा करने से बिना किसी प्रकार का समय और श्रम खर्च किए देश और देश की लोगों की सच्ची सेवा हो सकेगी।’’- महात्मा गाँधी।
स्वदेशी क्या- क्या है?
स्वदेशी वस्तु नहीं -चिन्तन है।
स्वदेशी तन्त्र है- ऋषि जीवन का।
स्वदेशी मन्त्र है- सुख शान्ति का।
स्वदेशी शस्त्र है- युग क्रान्ति का।
स्वदेशी समाधान है- बेरोजगारी का।
स्वदेशी कवच है- शोषण से बचने का।
स्वदेशी सम्मान है- श्रमशीलता का।
स्वदेशी संरक्षक है- प्रकृति पर्यावरण का।
स्वदेशी आन्दोलन है- सादगी का।
स्वदेशी संग्राम है- जीवन मरण का।
एक सवालः-
स्वदेशी क्या है?
~जो अपने आसपास ही उत्पन्न हो और उपलब्ध हो जाए।
स्वदेशी क्यों?
~क्योंकि इसके बिना हमारा आर्थिक शोषण नहीं रुक सकेगा।
स्वदेशी कहाँ?
~जो कुछ हमें प्रकृति से उपलब्ध हो जाए वहां।
स्वदेशी कब?
~जब हमें सामाजिक सुख शान्ति की चाह हो तब।
स्वदेशी कितना?
~जिससे हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए न कि इच्छाओं की उतना।
स्वदेशी कौन?
~जो हमारी चेतना में उपभोग नहीं उपयोग का भाव जागृत करें।
स्वदेशी कैसे?
~अपने आसपास के हस्त निर्मित वस्तुओं को उपयोग का संकल्प लेकर।
स्वदेशी कब तक?
~जीवन भर।
स्वदेशी में क्या- क्या?
भाषा, भूषा (पहनावा), भेषज (औषधियाँ), शिक्षा, रीति- रिवाज, भौतिक उपयोग की वस्तुएँ, कृषि, न्याय व्यवस्था आदि। स्वदेशी आग है- अनाचार को भस्म करने का।
स्वदेशी आधार है- समाज की सेवा का।
स्वदेशी उपचार है- मानवता के पतन का।
स्वदेशी उत्थान है- समाज व राष्ट्र का।
किसी भी देश को यदि आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, सुरक्षा आदि क्षेत्र में समर्थ व महाशक्ति बनना है, तो स्वदेशी मन्त्र को अपनाना ही होगा दूसरा कोई मार्ग नहीं। जैसेः-
अमेरिका- लम्बे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा, 200 वर्ष पहले तक कोई अस्तित्व नहीं था। पर जब वहाँ स्वदेशी का मन्त्र सिखाने वाले जार्ज वाशिंगटन ने क्रांति किया तो आज अमेरिका विश्व में महाशक्ति बना बैठा है। दुनिया के बाजार में अमेरिका का 25 प्रतिशत सामान आज बिकता है।
जापान- तीन बार गुलाम हुआ पहले अंग्रेज, फिर डच+पुर्तगाली स्पेनिश का मिला जुलाके, फिर तीसरी बार अमेरिका का गुलाम हुआ जिसने सन् 1945 में जापान के हिरोशिमा व नागासाकी में परमाणु बम गिरा दिये थे। 100 वर्ष पहले तक जापान का दुनिया में कोई पहचान नहीं था। लेकिन स्वदेशी के जज्बा के कारण जापान पिछले 60 वर्षों में पुनः खड़ा हो गया।
चीन- ये भी अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेजों ने चीन के लोगों को अफीम के नशे में डूबो दिया था। सन् 1949 तक चीन भिखारी देश था। विदेशी कर्जा में डूबा था। बाद में वहाँ एक स्वदेशी के क्रान्तिकारी नेता माओजेजांग ने पूरे देश की तस्वीर ही बदल दी। आज चीन उस ऊँचे पायदान पर खड़ा है, जिससे अमेरिका भी घबराता है। आज दुनिया के बाजार में चीन का 25 प्रतिशत सामान बिकता है।
मलेशिया- 25 वर्षों में खड़ा हो गया, स्वदेशी के कारण।
विदेशी बैसाखियों पर कोई भी देश ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकता। अंग्रेजों के आने के पहले हमारा भारत हर क्षेत्र में विकसित व महाशक्ति था।
अंग्रेजों के शासन काल में ट.बी. मैकाले ने भारत की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को आमूलचूल बदल दिया। पढ़ाई जाने वाली इतिहास के किताबों में भारत की गौरवपूर्ण इतिहास में फेरबदल कर दिया गया। भारत को गरीबों का देश, सपेरों का देश, लुटेरों का देश, हर तरह से बदहाल देश दर्शाया गया। जबकि इंग्लैण्ड व स्कॉटलैण्ड के ही करीब 200 इतिहासकारों ने अपने इतिहास के किताबों में जो भारत का इतिहास लिखा है वह दूसरी ही कहानी कहता है। उसके अनुसार तो भारत सर्वसम्पन्न देश, ऋषियों का देश, हीरे जवाहरातों का देश था।
उन इतिहासकारों के अनुसारः-
1. भारत के गांवों में जरूरत के सभी सामान तैयार होते थे, शहरों से केवल नमक आती थी।
2. सन् 1835 तक भारत का सामान दुनिया के बाजार में 33 प्रतिशत बिकता था।
3. भारत में तैयार लोहा दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। सरगुजा (छ.ग.) के आसपास लोहे के 1000 कारखाने थे।
4. यूरोप के देशों की तुलना में भारत की फसल प्रति एकड़ तीन गुना ज्यादा होती थी।
5. गुरुकुल शिक्षा पद्धति बहुत मजबूत थी। वैदिक गणित के फार्मूलों से गणना कैलकुलेटर से भी शीघ्र हो जाती थी।
6. भारत के गाँवों में लोगों के घर में सोने के सिक्कों के ढेर पाए जाते थे, जिसे व गिनकर नहीं तौलकर रखते थे।
7. गांवों में 36 तरह के उद्योग चलते थे।
8. गांवों में ही करीब 2000 प्रकार के प्राथमिक उत्पाद तैयार होते थे जिसे 18 प्रकार के कारीगर (जुलाहा, बुनकर, धुनकर, तेली, कुम्हार, बढ़ई आदि) तैयार करते थे।
9. हाईटेक उत्पाद समझा जाने वाला स्टील भारत में 3000 वर्षों तक बनता रहा है।
10. यहाँ का कपड़ा विदेशों में सोना के वजन के बराबर तौल में बिकता था।
11. यहाँ इतनी अधिक समृद्धि थी कि मन्दिर भी सोने के बनवा दिये गए।
मित्रो!भारत का वैभव देखकर ही अंग्रेजों ने इसे ‘‘सोने की चिड़िया’’ कहा।
पर एक सवाल उठता है कि इतना शक्तिशाली, सम्पन्न भारत की दुर्दशा कैसे हुए? इसका संक्षिप्त में जवाब यही है कि अंग्रेजों ने जान बूझकर अपने शासन काल में 3735 ऐसे कानून बना दिए जिससे हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूर्णतः ध्वस्त हो गई। वे सभी कानून आज भी चलते हैं कोई परिवर्तन नहीं है।
भारत को व्यवस्थित तरीके से लूटने का काम विदेशी कम्पनियों के द्वारा हुआ। जैसा कि आप जानते हैं ईस्ट इंडिया नामक कम्पनी भारत में व्यापार के बहाने आई थी। आज़ादी के पहले तक भारत को चूसने वाले 733 बहुराष्ट्रीय कम्पनियां सक्रिय थी। सत्ता हस्तान्तरण समझौते के तहत सिर्फ ईस्ट इंडिया कम्पनी को वापस भेजा गया बाकी 732 कम्पनियां बाद में भी बनी रहीं।
जिन विदेशी कम्पनियों ने भारत को खोखला बनाया और जिन विदेशी कम्पनियों के बहिष्कार के लिए स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने स्वदेशी आन्दोलन चलाते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये, उन्हीं कम्पनियों को आज भारत सरकार आमन्त्रित करके स्वयं दलाली खाने में मस्त है। आज हमारे देश में ऐसे 5000 से भी अधिक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपना सामान बेच रही है।
विदेशी कम्पनियों को बुलाने के पीछे हमारी सरकार चार तर्क देती है। 1. पूंजी आती है। 2. निर्यात बढ़ता है। 3. रोजगार बढ़ता है। 4. नई तकनीकी मिलती है।
खोजबीन करने पर पता चला है कि ये तर्क निराधार है, बल्कि स्थिति विपरीत है।
1. सच्चाई यह है कि विदेशी कम्पनियां बहुत ही कम पूंजी लेकर आती है और 1 वर्ष में ही तीन गुना पूंजी वापस विदेशी ले जाती है। उदाहरण।
() हिन्दुस्तान (यूनी) लीवन लिमिटेड (ब्रिटेन+हालैंड)- 1933 में 33 लाख रू. पूंजी लेकर आई। प्रतिवर्ष 217 करोड़ रूपए विदेश ले जाती है।
() कोलगेट पॉमोलीव (अमेरिका)- पूंजी लाई 13 लाख। प्रतिवर्ष 231 करोड़ ले जाती है।
() नोवार्टिस 40 वर्षों से है- पूंजी निवेश 15 लाख, प्रतिवर्ष ले जाती है 94 करोड़।
() फाइजर (अपेरिका) पूंजी निवेश 2 करोड़ 90 लाख, ले जाती है 338 करोड़ प्रतिवर्ष।
() फिलिप्स (हालैण्ड)- 50 वर्षों से है, पूंजी निवेश 1 करोड़ 50 लाख, ले जाती है 190 करोड़ प्रतिवर्ष।
() गुडियर (अमेरिका) टायर बनाती है। पूंजी निवेश 2 करोड़ 37 लाख, 240 करोड़ प्रतिवर्ष ले जाती है।
() ग्लैक्सो 30 वर्षों से है। पूँजी निवेश 8 करोड़ 40 लाख रुपए, प्रतिवर्ष ले जाती है 533 करोड़ 66 लाख रुपए।
() आई.टी.सी. (इंडियन टोबैको कंपनी) असली काम एटीसी (अमेरिका) 20 वर्षों से है। पूँजी निवेश 38 करोड़, प्रतिवर्ष ले जाती है। 3170 करोड़।
यदि सरकार के इस तर्क को मान भी लिया जाए कि विदेशी कम्पनियों के आने से पूँजी आती है तो इसका मतलब है कि हमारी गरीबी कम होनी चाहिए। सन् 1949 में सरकार ने 126 विदेशी कम्पनियों को बुलाया तब भारत में गरीबों की संख्या गरीब साढ़े चार करोड़ थी। आज भारत में 5000 विदेशी कम्पनियाँ आ चुकी हैं। तो सरकार के तर्क के अनुसार बहुत पूँजी आ गई, तो इसका सीधा सा मतलब है कि गरीबी लगभग समाप्त हो गई। पर आज भारत सरकार के ही आँकड़े बताते हैं कि भारत में आज गरीबों की संख्या 84 करोड़ से भी ज्यादा है। अर्थात् गरीबी 21 गुना बढ़ा है। तो स्पष्ट हो जाता है कि विदेशी कम्पनियाँ पूँजी लाती नहीं बल्कि पूँजी ले जाती है, वह भी बहुत ज्यादा।
2. दूसरा तर्क भी गलत साबित होता है जब हम यह आँकड़ा देखते हैं।
1840 में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था एक विदेशी कम्पनी ईष्ट इण्डिया कम्पनी थी। उस समय भारत का निर्यात विदेशों में 33 प्रतिशत था। भारत के कुल निर्यात में ईष्ट इण्डिया कम्पनी 3.6 प्रतिशत ही निर्यात करती थी।
1936 में भारत का निर्यात घटकर 4.5 प्रतिशत रह गया।
1950- 2.2 प्रतिशत 1955- 1.5 प्रतिशत
1960- 1.2 प्रतिशत 1965- 1 प्रतिशत
1970- 0.7 प्रतिशत 1975- 0.5 प्रतिशत
1980- 0.1 प्रतिशत 1990- 0.5 प्रतिशत
1991- 0.4 प्रतिशत 2009- 0.5 प्रतिशत
1840 में एक विदेशी कम्पनी थी जो भारत के निर्यात में 3.6 प्रतिशत मदद करती थी। आज 5000 कम्पनियाँ मिलकर केवल 5.52 प्रतिशत मदद करती है।
स्पष्ट है कि विदेशी कंपनियाँ भारत का निर्यात नहीं बढ़ाती बल्कि आयात बढ़ाती है। ऊपर से ये कम्पनियाँ भारत सरकार पर बराबर दबाव डालती रहती है कि भारतीय मुद्रा रुपए की कीमत घटे। 1950 में 1 डालर- 1 रु. था। आज 1 डालर=50 रु.इससे तो हम अमेरिका से 50 वर्ष ऐसे ही पिछड़ गए।
3. विदेशी कंपनियाँ कोई हाईटेक लेकर नहीं आतीं। 90 प्रतिशत कंपनियाँ तो शून्य तकनीकी का ही काम करती है। जैसे साबुन बनाना, यह घर पर भी बनाया जा सकता है। साबुन बनाने में कोई मशीन की जरूरत नहीं पड़ती। मशीन तो कटिंग व पैकिंग में लगती है। साबुन बनाने में करीब 50 विदेशी कंपनियाँ काम कर रही हैं।
इसी प्रकार बिस्किट, चाकलेट, सौन्दर्य प्रसाधन, बोतल बन्द पानी, डबल रोटी, आचार, गेहूँ का आटा, आलू चिप्स आदि। इनमें से कोई भी उत्पाद हाई टेक्नोलाजी का नहीं है। 10 प्रतिशत कम्पनियाँ ही कुछ काम की चीजों में काम करती है। जैसे मोटर, इंजन आदि। पर उसमें भी वे इंजन भारत में नहीं बनाते, अपने देश से बनाकर लाते हैं यहाँ केवल फिटिंग कर देते हैं। टेक्नोलाजी ट्रांसफर नहीं करते।
हाईटेक काम तो है- सेटेलाईट बनाना, मिसाइल बनाना, परमाणु बम, सुपर कम्प्यूटर बनाना, लेकिन इस काम के लिए कोई भी विदेशी कम्पनी नहीं आती। इन क्षेत्रों में भारत ने बहुत प्रगति किया है, लेकिन स्वदेशी वैज्ञानिकों के द्वारा। अमेरिका में जो तकनीकी 20- 30 वर्ष पुरानी हो गई है, जिसे वहाँ डम्प कर दिया गया है, उसे वे भारत में ला देते हैं जैसे- जहरीली कीटनाशक बनाने की तकनीकी, रासायनिक खाद बनाने वाली तकनीकी। भोपाल में यूनियन कार्बाइड कम्पनी में 777 नमक रसायन बनता था। 1984 की दुर्घटना के बारे में आप सभी जानते हैं। ऐसे 56 कारखाने भारत में स्थापित है।
एलोपैथी दवाओं के क्षेत्र में भी विदेशी कम्पनियाँ बिना काम की हजारों दवाएँ भारत में बेचकर करोड़ों रुपये कमा रही है। जस्टिस हाती कमीशन के अनुसार एलोपैथी की 117 दवाएँ ही भारत में काम की है, बाकि बेकार हैं बल्कि कुछ तो घातक भी हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में एलोपैथी के 84 हजार से भी अधिक प्रकार की दवाएँ धड़ल्ले से बिकती हैं। ऐसी दवाईयाँ जो विदेशों में 20 वर्षों से बैन है, वे भी भारत में बिकती है।
4. सरकार की चौथी तर्क कि यहाँ रोजगार के अवसर बढ़ते हैं स्पष्ट दिख रहा है कि गलत है। बेरोजगारी का आँकड़ा विदेशी कम्पनियों के आने के साथ- साथ बढ़ती ही जा रही है। साधारण सी बात है कि जब किसी काम को मशीनों के द्वारा किया जाएगा तो जहाँ 100 लोगों की जरूरत थी वहाँ 10 से ही काम चल जाता है 90 तो बेरोजगार हो गए।
तो मित्रों! अब जरूरत है कि स्वदेशी आन्दोलन को हम सब तेज गति से आगे बढ़ाएँ। इस हेतु व्यक्तिगत स्तर पर हम यह जरूर करें-
1. स्वदेशी व विदेशी कम्पनियों की सूची अपने पास रखें और स्वदेशी वस्तुएँ ही खरीदें।
2. यदि हस्त निर्मित स्वदेशी वस्तुएँ उपलब्ध हो तो वही वस्तुएँ उपयोग करें, गुणवत्ता में कमी हो तो निर्माणकर्ताओं से निवेदन करें सुझाव दें प्रोत्साहन दें।
3. यदि व्यवस्था बन सके तो आप स्वयं कुछ कुटीर उत्पाद तैयार करें।
वस्तु निर्माण प्रशिक्षण
1. मोमबत्ती 2. काला दन्त मंजन 3. प्राकृतिक साबुन
नोटः- यह प्रायोगिक शिक्षण है।
दैनिक जीवन में उपयोगी स्वदेशी सामान की सूची
विदेशी वस्तुओं का करें बहिष्कार, स्वदेशी को करें स्वीकार।
नोटः- स्वदेशी कम्पनियों के उत्पाद का उपयोग भी तभी करें जब हस्त निर्मित वस्तुएँ उपलब्ध न हो।
(1) उत्पाद- टूथपेस्ट/दंतमंजन
विदेशी- अधिकतर टूथपेस्ट हड्डियों के चूरे से बनाते हैं। कोलगेट, हिन्दुस्तान लीवर (क्लोजअप, पेप्सोडेंट, ऐम, सिबाका), एक्वाफ्रेश, एम वे (फोरहन्स), ओरबली, क्वान्टम आदि।
स्वदेशी- कामधेनु काला दंतमंजन, दंतक्रान्ति, दंत मंजन (पतंजलि), मंजन एम.डी.एच.,विको बज्रदन्ती, वैद्यनाथ, गुरुकुल फार्मेसी, चॉइस, नीम, एंकर, मिस्वाक, बबूल, प्रोमिस आदि।
(2) उत्पाद- टूथब्रश
विदेशी- कोलगेट, क्लोजअप, पेप्सोडेन्ट, एक्वाफ्रेश, सिबाका आदि।
स्वदेशी- प्रोमिस, अजय, अजन्ता, मोनेट, रोयल, क्लासिक, डॉ. स्ट्रॉक आदि।
(3) उत्पाद- नहाने का साबुन
विदेशी- हिन्दुस्तान लीवर, (लक्स, लिरिल, लाईफबॉय, लेसांस, डेनिम, केमे, डॉव, रेवलॉन, पियर्स, रेक्सोना, ब्रीज, हमाम, ओके) पॉण्डस, डिटोल, क्लियरसिल, पामोलिव, एमवे, जॉनसन बेबी आदि।
स्वदेशी- प्राकृतिक स्नान बटी, कायाकान्ति, कायाकान्ति एलोविरा (पतंजलि), निरमा, मेडीमिक्स, नीम, निमा, जेस्मीन, मैसूर, सेंदल, कुटीर, सहारा हिमानी, ग्लिसरीन, गोदरेज (सिंथोल, फेयरग्लो, शिकाकाई, गंगा) विप्रो, संतुन आदि।
(4) उत्पाद- शैम्पू
विदेशी- कोलगेट पामोलिव (हैलो पामोलिव), हिन्दुस्तान लीवर (लक्स, क्लिनिक, सनसिल्क, रेवलॉन, लेक्मे) प्रोक्टर एवं गेंबल (पेन्टीन, मेडीकेयर), पोण्डस, ओल्ड स्पाइस, शावर टू शावर, हेड एवं शोल्डर, जॉनसन बेबी आदि।
स्वदेशी- केशकांति (पतंजलि), विप्रो, पार्क अवेन्यु, स्वातिक अयुर हर्बल, केशनिखार, हेयर एण्ड, केयर, नाइसिल, अर्निका, वेलवेट, डाबर वाटिका, बजाज, नाईल, लेवेण्डर, गोदरेज आदि।
(5) उत्पाद- कपड़े व बर्तन धोने के साबुन, वाउडर व नील
विदेशी- हिन्दुस्तान लीवर (सर्फ, रिन, सनलाइट, व्हील, ओके, विम) एरियल, चेक, हेन्को, रिविल, एमवे, क्वान्टम। ऊनी कपड़ों के लिए- वुलवाश, ईजी,। नील, रॉबिन ब्लू टीनापाल, स्काईलार्क आदि।
स्वदेशी- टाटा शुद्ध, निमा, मोदी, केयर, सहारा, स्वास्तिक, विमल, हिपोलीन, फेना, ससा, टीसीरिज, डॉ. डेट, घड़ी। ऊनी कपड़ों के लिए- जैटिल। नील- उजाला, रानीपाल, निरमा, चमको, डिप आदि।
(6) उत्पाद- शेविंग क्रीम
विदेशी- ओल्डस्पाइस, पामोलिव, पॉण्डस, जिलेट, इरास्मिक, डेनिम, यार्डले आदि।
स्वदेशी- पार्क अवेन्यु, प्रीमियम, वीजोन, इमामी, बलसारा, गोदरेज, निविया आदि।
(7) उत्पाद- शेविंग ब्लेड
विदेशी- जिलेट (7 ओक्लोक, इरास्मिक) विल्मैन, विल्टेज आदि।
स्वदेशी- टोपाज, गेलेन्ट, सुपरमेक्स, लेजर, एसक्वायर, सिल्वर प्रिन्स, प्रीमियम आदि।
(8) उत्पाद- क्रीम पाउडर व सौन्दर्य प्रसाधन की सामग्री
विदेशी- हिन्दुस्तान लीवर (फेयर एवं लवली, लेक्मे, लिरिल, डेनिम, रेवलोन), प्रोक्टर एवं गेम्बल, (आयल एवं ओले, क्लिरयसिल, क्लियरटोन), चार्मिस, पोण्डस, ओल्ड स्पाइस, डेटाल, नाइसिल, चार्ली, जॉनसन बेबी आदि।
स्वदेशी- कायाकांति ऐलोवेरा, कायाकांति, नीम, कांतिलेप (पतंजलि), बोरोसिल, अयुर इमामी, विको, बोरोप्लस, बोरोलीन, हिमानी, गोल्ड, नाईल, लेवेण्डर, हेयर एंड केयर, निविया, हेवन्स, सिंथोल, ग्लोरी, वेलवेट (बेबी) आदि।
(9) उत्पाद- रेडिमेड वस्त्र
विदेशी- रैंगलर, नाईक, ड्यूक, एडीडास, न्यूपोर्ट प्यूमा आदि।
स्वदेशी -- केम्ब्रिज, पार्क अवेन्यु, ओक्जेम्बर्ग,
बॉम्बे डॉइंग, रफ एंड टफ, ट्रिगर जिंस आदि।
(10) उत्पाद -- घड़ी
विदेशी -- राडो, रॉलैक्स, स्वीसको, सीको आदि।
स्वदेशी -- टाइटन, एचएमटी, मैक्जिमा, प्रेस्टिज, अजन्ता।
(11) उत्पाद -- पेन, पेन्सिल
विदेशी -- पारकर, निकलसन, रोटोगेक, स्विसएयर,
एडजेल, राइडर, मित्सुबिषी, फ्लेयर, यूनिबाल, पायलट,
रोलगोल्ड आदि।
स्वदेशी -- कैमल, किंग्सन, शार्प, सेलो, विल्सन,
टुडे, नटराज, ऐम्बेसेडर, लिंक, मोन्टेक्स, स्टीक,
संगीता, लक्सर, अप्सरा आदि।
(12) उत्पाद -- कोल्ड ड्रिंक्स
विदेशी -- कोका कोला (कोक, फैन्टा, स्प्राईट, थम्सअप,
गोल्डपाट, लिम्का), पेप्सी (लहर, 7 अप, मिरिंडा, स्लाइस) टीम, सिट्रा, क्रश, मेकडोवल।
स्वदेशी -- गुलाब शर्बत, बादाम शर्बत (पतंजलि),
दूध लस्सी, छाछ, जूस, नींबू पानी,नारियल पानी,
शेक, ठंडाई, जलजीरा। रूहअफजा, रसना, फ्रूटी,
गोदरेज, जंपईन आदि।
(13) उत्पाद -- चाय व कॉफी
विदेशी -- लिप्टन (टाईगर, ग्रीन लेबल, येलो लेबल,
चीयर्स) ब्रुक बॉण्ड (रेड लेबल, ताजमहल), गोडफ्रे
फिलिप्स, पोलसन, गुडरिक, सनराईज, कॉफी -- नेस्ले,
नेस्केपे, रिचबू।
स्वदेशी -- चाय दिव्य पेय (पतंजलि), टाटा, ब्रह्मपुत्र,
असम, गिरनार। कॉफी -- इण्डियन कैफे, एम. आर.।
(14) उत्पाद -- शिशु आहार व दूध पाउडर
विदेशी -- नेस्ले (लेक्टोजन, सेरेलक, नेस्टम, एल.पी.एफ., मिल्क मेड, नेस्प्रे, एवरीडे, गाल्टको), ग्लेक्सो (फैरेक्स) आदि।
स्वदेशी -- शहद, दालों का पानी, उबले चावल, फलों का रस।
अमूल, इण्डाना, सागर, तपन, मिल्क, केयर आदि।
(15) उत्पाद -- आइसक्रीम
विदेशी -- अधिकतर आइसक्रीमों में जानवरों की आँतों की परत होती है। वाल्स, क्वालिटी, डोलप्स, कैडबरी आदि।
स्वदेशी -- घर की बनी आइसक्रीम, कुल्फी, अमुल, वाडीलाल, मिल्क फूड आदि।
(16) उत्पाद -- नमक
विदेशी -- अन्नपूर्णा, कैप्टन, कुक (हिन्दुस्तान लीवर), किसान (ब्रुकबाण्ड), पिल्सबरी आदि।
स्वदेशी -- अंकुर नमक, सैंधा नमक (पतंजलि) लो सोडियम व आयरन- 45, अंकुर, टाटा, सूर्या ताजा, तारा।
(17 उत्पाद -- आलू चिप्स व नमकीन
विदेशी -- अंकल, पेप्सी (रफल्स, हास्टेस), फनमंच आदि।
स्वदेशी -- बीकानो नमकीन, हल्दीराम, घर में बने
चिप्स, बीकाजी एवं एवन आदि।
(18) उत्पाद -- टमाटर सॉस, फ्रूट जैस
विदेशी -- नेस्ले, ब्रुक बॉण्ड, (किसान), ब्राउन एंड पालसन आदि।
स्वदेशी -- फ्रूट जैम, एपल जैस, मिक्स जैम, (पतंजलि) घर में बना सॉस। इण्डाना, प्रिया, रसना आदि।
(19) उत्पाद -- बिस्कुट / चॉकलेट
विदेशी -- अधिकतर चॉकलेट में आर्सेनिक नामक जहर होता है। कैडबरी (बोर्नविटा, 5 स्टार) लिप्टन, हार्लिक्स, न्यूट्रीन, इक्लेयर्स आदि।
स्वदेशी -- गुड़+मुंगफली, बादाम ज्यादा स्वास्थ्यप्रद है। आंवला, कैन्डी, बेल कैन्डी, बिस्किट, कैंडी (पतंजलि)। ब्रिटानिया, पारले, बेकमेन्स, क्रीमिका, शाग्रिला, इन्डाना, अमूल, रावलगांव आदि।
(20) उत्पाद -- पानी
विदेशी -- एक्वाफिना, किनले, बैली, प्यारे- लाईफ, इवियन, सैन- पैलेग्रीमों, पैरियर आदि।
स्वदेशी -- घर का उबला साफ पानी, गंगा, हिमालया, कैच, रेल- नीर, बिसलरी आदि।
(21) उत्पाद -- टॉनिक
विदेशी -- बूस्ट, पोलसन, बोर्नवीटा, होर्लिक्स, कॉम्पलान, स्पर्ट, प्रोटिनेक्स।
स्वदेशी -- बादाम पाक, च्यवनप्राश, अमृत रसायन (पतंजलि), न्यूट्रामूल, माल्टोवा।
(22) उत्पाद -- घी एवं खाघ तेल
विदेशी -- नेस्ले का घी, डालडा, आई.टी.सी. व हिन्दुस्तान लीवर के सभी ब्राण्ड।
स्वदेशी -- घर का गाँव का घी, परम घी, अमूल घी, गाय का देशी घी, सरसों का तेल (पतंजलि)
नोटः- 1. यघपि सूची प्रकाशन में पर्याप्त सावधानी रखी गई है तथापि किसी भी नवीन जानकारी से हमें अवश्य अवगत करवाएं जिससे आगामी संस्करण में आवश्यक संशोधन किये जा सकें। 2. आप जहां भी रहते हैं, उसके आसपास ग्रामीणों एवं लघु उघमियों द्वारा आपके दैनिक प्रयोग की कई वस्तुएं बनाई जाती हैं। आप प्राथमिकता के आधार पर उनका प्रयोग कर गांव को स्वावलम्बी बनाएं।