Books - व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर
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Language: HINDI
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युवा संगठन निर्माण- प्रेरणा एवं प्रक्रिया
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युवा संगठन निर्माण- प्रेरणा एवं प्रक्रिया
(शिविर समापन से एक दिन पूर्व संध्याकाल में)
संगठन की आवश्यकता :-
1. संघौ शक्ति कलियुगे -- कलियुग में संघ की शक्ति ही प्रमुख है प्रभावी है। सज्जनों के संगठित होने पर ही उनका कल्याण है। जब भी किसी महत्त्वपूर्ण कार्य को अंजाम देना होता है उसके लिए संगठित प्रयास ही अपेक्षित होते हैं। सामान्य सामाजिक कार्य हेतु ही नही, अवतारी चेतनाओं के द्वारा भी समय- समय पर तत्कालीन परिस्थतियों में, युगों में, वांछित परिवर्तन लाने हेतु संगठन बनाया गया। भगवान राम ने रीछ, वानर, भालू, गिद्ध, गिलहरी को, तो भगवान कृष्ण ने गोप ग्वाल को ,, पाण्डवों को संगठित किया था और अनीति व अधर्म के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। भगवान बुद्ध ने चीवरधारी भिक्षुक- भिक्षुणियों के साथ धर्मचक्र प्रवर्तन का विश्वव्यापी अभियान चलाया था। गाँधी जी ने देश की आजादी हेतु देश के लिए मर मिटने का जज्बा रखने वाले देश भक्तों का संगठन बनाया, तब कहीं भारत को स्वतंत्रता मिली।
उसी प्रकार आज युग निर्माण हेतु प्रज्ञावतार के साथ सृजन सेनानियों, प्रज्ञा परिजनों को संगठित होने की आवश्यकता है। इसके लिए युगदेवता आप नौजवानों को आह्वान कर रहे हैं। युग निर्माण हेतु युवाशक्ति की आवश्यकता है। ज्ञान यज्ञ की लाल मशाल जो युग निर्माण योजना का प्रतीक है युगदेवता का प्रतीक प्रतिनिधि है- उसे थामने हेतु युवाओं का संगठित हाथ चाहिए। (मशाल का अर्थ समझायें) अतः आपका संगठित होना अति आवश्यक है।
परमपूज्य गुरुदेव ने कहा -- ‘‘आप जहाँ संघबद्ध होकर रहेंगे मेरा संरक्षण एवं मेरी सदा आपके साथ होगी। मै संगठन में निवास करता हुँ।’’
2. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता-
सींक से बुहारी बनती है। सींक यदि बिखर जाए तो वह कचरा में रूपान्तरित हो जाते है लेकिन यदि उन्हें इकट्ठा करके बाँध दिया जाए तो वही कचरा को साफ करने का साधन बन जाता है। दुर्जन तथा समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने वाले लोग शीघ्रता से आपस में संगठित हो जाते हैं- जैसे शराब पीने वाले, जुआ खेलने वाले। तो क्या आप संगठित नहीं हो सकते? श्रेष्ठ चिन्तन और श्रेष्ठ उद्देश्य से युक्त लोग यदि संगठित हो जाए तो सृजनकारी गतिविधियाँ समाज में आसानी से चलने लगेगी एवं समाज की तस्वीर ही बदल जाएगी।
आजकल युवाओं के प्रति लोगों का नजरिया प्रायः नकारात्मक होता है। उनकी छवि अधिकतर उच्छृंखल, मनमानी करने वाले गैर जिम्मेदार, लफुट छोकरों की होता है। उन्हें आमतौर पर प्रामाणिक नहीं माना जाता। इसका कारण भी है कि युवाओं का एक वर्ग ऐसी मानसिकता एवं ऐसी ही गतिविधियों में संलग्न भी होता है। आपको अपने आचरण में बदलाव लाकर, संगठित होकर अपने गाँव/क्षेत्र में कुछ सामूहिक रचनात्मक प्रयास करके उस पुरानी घटिया छबि को बदल देना है। आप पर, आप के क्रियाकलापों पर उन्हें गर्व हो। आप औरों से भिन्न हैं, यह बात आपके क्रियाकलापों से प्रमाणित होना है।
संगठन निर्माण के लिए आपको बहुत त्याग करने की आवश्यकता नहीं है केवल सप्ताह में एक दिन आप सभी शिविरार्थी जो एक गाँव से या स्थान से आए हों (भाई- बहिन यदि संख्या में पर्याप्त है तो अलग- अलग अन्यथा एक साथ) मिलें, बैठे, यह न्यूनतम शर्त है।
संगठन की न्यूनतम शर्त --
1. न्यूनतम 5 सदस्य हों।
2. साप्ताहिक सत्संग गोष्ठी -- गोष्ठी डेढ़ से दो घंटे की बैठक है जिसके तीन खण्ड होंगे -- (क) सामूहिक साधना (ख) सामूहिक स्वाध्याय (ग) गतिविधियों की योजना एवं समीक्षा।
सामूहिक साधना :-
सर्वप्रथम सभी मिलकर एक सामूहिक गीत गाएँ, संकीर्तन तत्पश्चात् 24 बार गायत्री मंत्र का सस्वर सामूहिक उच्चारण/आहुति तथा 10 से 15 मिनट का सामूहिक ध्यान। सामूहिक ध्यान प्रार्थना में ‘ सबके लिए सद्बुद्धि एवं सबके लिए उज्ज्वल भविष्य’ की भावना हो। सामूहिक साधना से सामूहिक शक्ति पैदा होती है जिससे सामूहिक कार्य सम्भव हो पाते हैं। समूह में साधना करने से सबके मन एक हो जाते हैं।
सामूहिक स्वाध्याय :-
एक सदस्य या तीन- चार सदस्य बारी- बारी से किसी सत्साहित्य (यथा -- अखण्ड ज्योति, यु.नि.यो., ऋषि चिन्तन, सफल जीवन की दिशाधारा आदि) के अंश को समझाते हुए पढ़ें और शेष सदस्य ध्यान से सुनें। युग निर्माण सत्संकल्प के 18 सूत्रों का पाठ व स्वाध्याय भी किया जा सकता है। (सन्दर्भ पुस्तक -- इक्कीसवीं सदी का संविधान) यह क्रम लगभग 45 मिनट चले।
गतिविधियों की योजना व समीक्षा :-
सामूहिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर संगठन की ओर से चलाई जाने वाली आगामी गतिविधियों के बारे में विचार विमर्श कर योजना बनाई जाए तथा पिछले सप्ताह की निर्धारित गतिविधियों की समीक्षा की जाए। यथा- स्थानीय स्तर पर साप्ताहिक या पाक्षिक स्वच्छता सफाई अभियान, झोला पुस्तकालय बाल संस्कार शाला या अन्य रचनात्मक गतिविधियाँ।
अपने- अपने संगठन के सभी सदस्य अपनी सुविधानुसार परस्पर विचार विमर्श करके गोष्ठी का दिन निर्धारित कर लें। अकारण कोई गोष्ठी में अनुपस्थित न हो। संभव हो तो युवाओं, नये सदस्यों को बैठकों में लाने का प्रयास करें।
संगठन के अन्य लाभ :-
१. समूह में रहने पर आपका मनोबल ऊँचा बना रहेगा। झिझक नहीं रहेगी। परस्पर एक दूसरे से मिलते- जुलते रहने से सृजनात्मक विषयों पर चर्चा हो पायेगी। इस प्रकार ऊर्जा का स्तर ऊँचा बना रहेगा। आप जो यहाँ से सीखकर जा रहे हैं उस पर दृढ़ और स्थिर रह पायेंगे।
२. अन्य लोग आपके संगठित स्वरूप से प्रेरणा लेंगे। युवाओं के प्रति लोगों के सकारात्मक विचार बनेंगे। क्षेत्र के गाँव के बुजुर्ग आपका सम्मान करेंगे।
३. आप अपने गाँव/मोहल्ले में आदर्श प्रस्तुत कर सकेंगे।
प्रशिक्षकों से :-
उपरोक्त बातें समझाकर सभी शिविरार्थियों को (लड़के/लडकियाँ सम्मिलित) स्थानवार, ग्रामवार, समूह चर्चा के लिए अलग- अलग ग्रुप बनाकर बैठा दिया जाये एवं संगठन निर्माण व गतिविधियों को अपने समूह में चलाने हेतु छपे हुए फार्म को प्रत्येक समूह को दे दें। फार्म भरने हेतु निर्देश देकर सबको सामूहिक रूप से गतिविधियों के विषय में समझाते हुए जानकारी दे दी जाए कि वे अनिवार्यतः एवं वैकल्पिक रूप से कैसे तथा किन- किन गतिविधियों को चला सकते हैं। फार्म को भलीभाँति भरने हेतु पर्याप्त समय दें एवं भरे हुए फार्म को एकत्रित कर लें। आयोजकों को उस फार्म के आधार पर शिविर का अनुयाज का क्रम चलाने में सुविधा होगी।
(शिविर समापन से एक दिन पूर्व संध्याकाल में)
संगठन की आवश्यकता :-
1. संघौ शक्ति कलियुगे -- कलियुग में संघ की शक्ति ही प्रमुख है प्रभावी है। सज्जनों के संगठित होने पर ही उनका कल्याण है। जब भी किसी महत्त्वपूर्ण कार्य को अंजाम देना होता है उसके लिए संगठित प्रयास ही अपेक्षित होते हैं। सामान्य सामाजिक कार्य हेतु ही नही, अवतारी चेतनाओं के द्वारा भी समय- समय पर तत्कालीन परिस्थतियों में, युगों में, वांछित परिवर्तन लाने हेतु संगठन बनाया गया। भगवान राम ने रीछ, वानर, भालू, गिद्ध, गिलहरी को, तो भगवान कृष्ण ने गोप ग्वाल को ,, पाण्डवों को संगठित किया था और अनीति व अधर्म के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। भगवान बुद्ध ने चीवरधारी भिक्षुक- भिक्षुणियों के साथ धर्मचक्र प्रवर्तन का विश्वव्यापी अभियान चलाया था। गाँधी जी ने देश की आजादी हेतु देश के लिए मर मिटने का जज्बा रखने वाले देश भक्तों का संगठन बनाया, तब कहीं भारत को स्वतंत्रता मिली।
उसी प्रकार आज युग निर्माण हेतु प्रज्ञावतार के साथ सृजन सेनानियों, प्रज्ञा परिजनों को संगठित होने की आवश्यकता है। इसके लिए युगदेवता आप नौजवानों को आह्वान कर रहे हैं। युग निर्माण हेतु युवाशक्ति की आवश्यकता है। ज्ञान यज्ञ की लाल मशाल जो युग निर्माण योजना का प्रतीक है युगदेवता का प्रतीक प्रतिनिधि है- उसे थामने हेतु युवाओं का संगठित हाथ चाहिए। (मशाल का अर्थ समझायें) अतः आपका संगठित होना अति आवश्यक है।
परमपूज्य गुरुदेव ने कहा -- ‘‘आप जहाँ संघबद्ध होकर रहेंगे मेरा संरक्षण एवं मेरी सदा आपके साथ होगी। मै संगठन में निवास करता हुँ।’’
2. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता-
सींक से बुहारी बनती है। सींक यदि बिखर जाए तो वह कचरा में रूपान्तरित हो जाते है लेकिन यदि उन्हें इकट्ठा करके बाँध दिया जाए तो वही कचरा को साफ करने का साधन बन जाता है। दुर्जन तथा समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने वाले लोग शीघ्रता से आपस में संगठित हो जाते हैं- जैसे शराब पीने वाले, जुआ खेलने वाले। तो क्या आप संगठित नहीं हो सकते? श्रेष्ठ चिन्तन और श्रेष्ठ उद्देश्य से युक्त लोग यदि संगठित हो जाए तो सृजनकारी गतिविधियाँ समाज में आसानी से चलने लगेगी एवं समाज की तस्वीर ही बदल जाएगी।
आजकल युवाओं के प्रति लोगों का नजरिया प्रायः नकारात्मक होता है। उनकी छवि अधिकतर उच्छृंखल, मनमानी करने वाले गैर जिम्मेदार, लफुट छोकरों की होता है। उन्हें आमतौर पर प्रामाणिक नहीं माना जाता। इसका कारण भी है कि युवाओं का एक वर्ग ऐसी मानसिकता एवं ऐसी ही गतिविधियों में संलग्न भी होता है। आपको अपने आचरण में बदलाव लाकर, संगठित होकर अपने गाँव/क्षेत्र में कुछ सामूहिक रचनात्मक प्रयास करके उस पुरानी घटिया छबि को बदल देना है। आप पर, आप के क्रियाकलापों पर उन्हें गर्व हो। आप औरों से भिन्न हैं, यह बात आपके क्रियाकलापों से प्रमाणित होना है।
संगठन निर्माण के लिए आपको बहुत त्याग करने की आवश्यकता नहीं है केवल सप्ताह में एक दिन आप सभी शिविरार्थी जो एक गाँव से या स्थान से आए हों (भाई- बहिन यदि संख्या में पर्याप्त है तो अलग- अलग अन्यथा एक साथ) मिलें, बैठे, यह न्यूनतम शर्त है।
संगठन की न्यूनतम शर्त --
1. न्यूनतम 5 सदस्य हों।
2. साप्ताहिक सत्संग गोष्ठी -- गोष्ठी डेढ़ से दो घंटे की बैठक है जिसके तीन खण्ड होंगे -- (क) सामूहिक साधना (ख) सामूहिक स्वाध्याय (ग) गतिविधियों की योजना एवं समीक्षा।
सामूहिक साधना :-
सर्वप्रथम सभी मिलकर एक सामूहिक गीत गाएँ, संकीर्तन तत्पश्चात् 24 बार गायत्री मंत्र का सस्वर सामूहिक उच्चारण/आहुति तथा 10 से 15 मिनट का सामूहिक ध्यान। सामूहिक ध्यान प्रार्थना में ‘ सबके लिए सद्बुद्धि एवं सबके लिए उज्ज्वल भविष्य’ की भावना हो। सामूहिक साधना से सामूहिक शक्ति पैदा होती है जिससे सामूहिक कार्य सम्भव हो पाते हैं। समूह में साधना करने से सबके मन एक हो जाते हैं।
सामूहिक स्वाध्याय :-
एक सदस्य या तीन- चार सदस्य बारी- बारी से किसी सत्साहित्य (यथा -- अखण्ड ज्योति, यु.नि.यो., ऋषि चिन्तन, सफल जीवन की दिशाधारा आदि) के अंश को समझाते हुए पढ़ें और शेष सदस्य ध्यान से सुनें। युग निर्माण सत्संकल्प के 18 सूत्रों का पाठ व स्वाध्याय भी किया जा सकता है। (सन्दर्भ पुस्तक -- इक्कीसवीं सदी का संविधान) यह क्रम लगभग 45 मिनट चले।
गतिविधियों की योजना व समीक्षा :-
सामूहिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर संगठन की ओर से चलाई जाने वाली आगामी गतिविधियों के बारे में विचार विमर्श कर योजना बनाई जाए तथा पिछले सप्ताह की निर्धारित गतिविधियों की समीक्षा की जाए। यथा- स्थानीय स्तर पर साप्ताहिक या पाक्षिक स्वच्छता सफाई अभियान, झोला पुस्तकालय बाल संस्कार शाला या अन्य रचनात्मक गतिविधियाँ।
अपने- अपने संगठन के सभी सदस्य अपनी सुविधानुसार परस्पर विचार विमर्श करके गोष्ठी का दिन निर्धारित कर लें। अकारण कोई गोष्ठी में अनुपस्थित न हो। संभव हो तो युवाओं, नये सदस्यों को बैठकों में लाने का प्रयास करें।
संगठन के अन्य लाभ :-
१. समूह में रहने पर आपका मनोबल ऊँचा बना रहेगा। झिझक नहीं रहेगी। परस्पर एक दूसरे से मिलते- जुलते रहने से सृजनात्मक विषयों पर चर्चा हो पायेगी। इस प्रकार ऊर्जा का स्तर ऊँचा बना रहेगा। आप जो यहाँ से सीखकर जा रहे हैं उस पर दृढ़ और स्थिर रह पायेंगे।
२. अन्य लोग आपके संगठित स्वरूप से प्रेरणा लेंगे। युवाओं के प्रति लोगों के सकारात्मक विचार बनेंगे। क्षेत्र के गाँव के बुजुर्ग आपका सम्मान करेंगे।
३. आप अपने गाँव/मोहल्ले में आदर्श प्रस्तुत कर सकेंगे।
प्रशिक्षकों से :-
उपरोक्त बातें समझाकर सभी शिविरार्थियों को (लड़के/लडकियाँ सम्मिलित) स्थानवार, ग्रामवार, समूह चर्चा के लिए अलग- अलग ग्रुप बनाकर बैठा दिया जाये एवं संगठन निर्माण व गतिविधियों को अपने समूह में चलाने हेतु छपे हुए फार्म को प्रत्येक समूह को दे दें। फार्म भरने हेतु निर्देश देकर सबको सामूहिक रूप से गतिविधियों के विषय में समझाते हुए जानकारी दे दी जाए कि वे अनिवार्यतः एवं वैकल्पिक रूप से कैसे तथा किन- किन गतिविधियों को चला सकते हैं। फार्म को भलीभाँति भरने हेतु पर्याप्त समय दें एवं भरे हुए फार्म को एकत्रित कर लें। आयोजकों को उस फार्म के आधार पर शिविर का अनुयाज का क्रम चलाने में सुविधा होगी।