मातृभूमि मंडपम में देव संस्कृति व्याख्यानमाला
उत्सर्ग को उत्सव की तरह मनाना भारतीय परंपरा है। - आदरणीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी
मातृभूमि मंडपम में देव संस्कृति व्याख्यानमाला के क्रम में दिनांक 30 अक्टूबर को ‘शांति एवं सद्भाव’ विषय पर व्याख्यान रखा गया था। मुख्य वक्ता देसंविवि के प्रति कुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने इस अवसर पर कहा कि भारतीय संस्कृति में उत्सर्ग को उत्सव की तरह मनाने की परंपरा रही है। इस संदर्भ में उन्होंने ऋYषि-मुनियों के तपस्वी जीवन, राजा विश्वरथ, राजा बलि, राजा हरिश्चंद्र जैसे अनेक आदर्शों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि इसी भाव और परम्परा के कारण भारतभूमि महामानवों की जन्मभूमि रही है। व्याख्यानमाला का शुभारंभ देसंविवि के कुलपति श्री शरद पारधी एवं प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या के साथ विशिष्ट अतिथि उत्तराखण्ड यूसीसी ड्ड्राफ्ट कमेटी के सदस्य व सामाजिक कार्यकर्त्ता श्री मनु गौड़, एस्सेल वर्ल्ड लेजर प्रा.लि. के अध्यक्ष श्री अशोक गोयल तथा शान्तिकुञ्ज के व्यवस्थापक श्री योगेन्द्र गिरी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर किया। श्री मनु गौड़ ने श्रोताओं से भारत की सामर्थ्य को बढ़ाने में भरपूर योगदान देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारत विश्व को शांति व सद्भाव देने वाला देश है। सामर्थ्यवान व्यक्ति अथवा राष्ट्र ही अन्यों को शांति व सद्भाव का संदेश देने में समर्थ होता है। श्री अशोक गोयल ने समस्त विश्व को शान्ति एवं सद्भाव का संदेश देने वाले भारत के इतिहास व विभिन्न सम्प्रदायों के जन्म पर विस्तृत जानकारी दी। कुलपति श्री शरद पारधी ने आत्म समीक्षा व आत्म निर्माण के लिए प्रेरित करते हुए आभार व्यक्त किया। व्याख्यान सभा के अंत में आदरणीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने अतिथियों को स्मृति चिह्न, युग साहित्य आदि भेंटकर सम्मानित किया। इस अवसर पर मंचासीन गणमान्यों ने विभिन्न पत्रिकाओं का विमोचन भी किया। कार्यक्रम में शान्तिकुञ्ज, देव संस्कृति विश्वविद्यालय परिवार व शान्तिकुञ्ज में आए साधकगण उपस्थित थे।