आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी का 108 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में संबोधन
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अपने पांच दिवसीय प्रवास के तीसरे दिन आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी महाराष्ट्र के अमरावती जिले के परतवाड़ा, गौरखेड़ा में आयोजित 108 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में पहुंचे। देवपूजन के शुभ अवसर पर यज्ञीय जीवन की प्रेरणा को जीवन में आत्मसात करने के भाव से विदर्भ के विभिन्न अंचलों से आए परिजनों को आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या जी ने संबोधित किया।
गायत्री और यज्ञ के सही अर्थ को समझाते हुए आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने कहा, "यदि आप वेदों और उपनिषदों को पढ़ें, तो एक ही तथ्य पर पहुंचेंगे कि संसार की सारी साधनाओं का आधार गायत्री साधना है। जब शब्दों में हमारी भावनाएं प्रवाहित होती हैं, तो शब्द मंत्र बन जाते हैं। भावनाओं की भाषा से ही ईश्वर से मिलन और संवाद संभव है।"
उन्होंने आगे कहा, "यज्ञ जीवन चेतना के नवीनीकरण की विधा है। यह यज्ञ ही समस्त ब्रह्मांड के पोषण का आधार है। महाभारत काल में यज्ञ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा था कि असुर और बुरे लोग तो खत्म हो गए, लेकिन बुराई और असुरता अब भी बची हुई है। इसलिए यज्ञ के माध्यम से वातावरण को शुद्ध कर असुरता का संपूर्ण संहार करना आवश्यक है।"
अखिल विश्व गायत्री परिवार के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा, "यज्ञ का उद्देश्य यह है कि भगवान की यज्ञशाला अर्थात इस संसार में दुखियों की सेवा करें, पीड़ितों की सहायता करें। सुविधा संवर्धन, पीड़ा निवारण और पतन रोकने का संकल्प लेकर समाज के कष्टों को दूर करें। यही सच्चे अर्थों में यज्ञ है। गायत्री परिवार का उद्देश्य भी यही है—भटके हुए को दिशा दें, दुखियों को प्रेम दें। इस दुनिया को बदलने की शक्ति केवल भावनाओं में है।"
इस कार्यक्रम के साथ उन्होंने गायत्री शक्तिपीठ गौरखेड़ा में दर्शन कर परिजनों से भेंट की। श्री गायत्री यज्ञ चिकित्सा केंद्र के शुभारंभ के अवसर पर उन्होंने श्रीराम स्मृति उपवन, यज्ञशाला, साधक कुटी, औषधि निर्माण कुटी के अवलोकन के साथ यज्ञ कर परिजनों से आत्मीय मुलाकात की।