देव संस्कृति विश्व विद्यालय में अध्ययन हेतु 1550 युवाओं ने दी प्रवेश परीक्षा
हरिद्वार, नोएडा, भोपाल, लखनऊ, पटना सहित 8 स्थानों में एक साथ आयोजित हुई परीक्षा
हरिद्वार 30 जून।
युवाओं में नैतिकता व सांस्कृतिक विरासत को पिरोये रखने के लिए संकल्पित देवसंस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार में प्रवेश के लिए हजारों युवा वर्षों से सपना संजोये रहते हैं। ऐसे युवाओं के लिए देवसंस्कृति विश्वविद्यालय प्रशासन ने हरिद्वार, नोएडा, भोपाल, लखनऊ, पटना, कोलकाता, नागपुर और राजनांदगांव में एक साथ प्रवेश परीक्षा आयोजित की। इसमें 1550 युवाओंं ने नई शिक्षा नीति के अनुसार संचालित हो रहे 35 पाठ्यक्रमों हेतु परीक्षा दी। उत्तराखण्ड, उ.प्र., बिहार, बंगाल, पंजाब, हरियाणा, जम्मू, महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, अरुणाप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, तमिलनाडू, केरल, छत्तीसगढ़ सहित देश के 25 प्रदेशों के विद्यार्थियों ने परीक्षा में भाग लिया।
कुलसचिव श्री बलदाऊ देवांगन ने बताया कि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में इस वर्ष से नई शिक्षा नीति के अनुसार पाठ्यक्रम संचालित होंगे। भारत के 25 राज्यों के 1550 युवाओं ने प्रवेश परीक्षा में भाग लिया। ये विद्यार्थी स्नातक एवं परास्तानक पाठ्यक्रम के लिए हैं। हरिद्वार, भोपाल, नोएडा, लखनऊ, पटना, कोलकाता, नागपुर व राजनांदगांव में एक साथ प्रवेश परीक्षा आयोजित हुई। सभी परीक्षा केन्द्रों में देसंविवि की टीम परीक्षा संचालित के लिए गयी हंै। उन्होंने बताया कि प्रवेश परीक्षा का परिणाम 5 जुलाई को आयेगा। परीक्षा में उत्तीर्ण हुए छात्र-छात्राओं का साक्षात्कार 8 से 11 जुलाई तक हरिद्वार में होगा। साक्षात्कार का परिणाम 12 जुलाई को निकेलगा। चयनित विद्यार्थी 22 जुलाई को हरिद्वार में आयोजित ज्ञानदीक्षा समारोह में शामिल होंगे।
देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने सभी विद्यार्थियों को शुभकामनाएँ दी। उन्होंने बताया कि परीक्षा एक उत्सव है, इसे उत्साहपूर्वक मनाने से यह शानदार परिणाम देता है। यहाँ के शैक्षणिक व पारिवारिक वातावारण में विद्यार्थियों की रचनात्मकता के साथ उनके जीवन के विकास की सभी संभावनाएँ विद्यमान है। कुलपति श्री शरद पारधी ने भी छात्र-छात्राओं को शुभकामनाएं दी। डॉ संतोष विश्वकर्मा, डॉ अरुणेश पाराशर, डॉ स्मिता वशिष्ठ, डॉ उमाकांत इंदौलिया, कैप्टन इंद्रजीत सिंह, श्री निश्चल राय, डॉ रामावतार पाटीदार, श्री सूर्यप्रकाश उपराले, श्री रविकांत साहू आदि ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
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