सेवाव्रती साधुओं! आओ!!
हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज की सेवा के व्रती लाखों साधु संन्यासी, भारतवर्ष के ग्रामों, कस्बों और नगरों में स्वतन्त्रता से विचरते हैं। हिन्दू जाति के इस घोर संकट के समय उनका क्या कर्तव्य है? इस विषय पर कुछ लिखना अनुचित न होगा। क्योंकि जो प्रभाव हिन्दू जनता पर इन विरक्तों का पड़ता है, वह और किसी का नहीं पड़ सकता। अविद्या अन्धकार में सोई हुई हिन्दू जनता को यह महात्मा लोग बहुत शीघ्र जगा सकते हैं। उनका सिंहनाद हिन्दू सन्तान में नई जान फूँक सकता है। छोटे से छोटे कस्बे में सन्त महात्माओं के मठ बने हुए है, जहाँ से हिन्दू संगठन का काम बड़ी आसानी से हो सकता है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि साधु सन्त हिन्दू संगठन के उद्देश्य को भली प्रकार जाने।
हिन्दू जनता आज कैसी दीनावस्था में है, उस पर विधर्मी गुण्डे कैसा संगठित प्रहार कर रहे हैं, यह सब देखकर कौन ऐसा साधु संन्यासी होगा, जिसका हृदय न फटता हो। हिन्दू गृहस्थ सदा श्रद्धा और प्रेम से साधुओं की सेवा करते है, देवियाँ बड़ी भक्ति भाव से विरक्तों की पूजा करती हैं, आज उन विरक्तों को हिन्दू गृहस्थों के प्रति अपना अपना कर्तव्य पालने का समय आ गया है। प्रत्येक साधु को दण्ड और कमण्डलु उठाकर, हिन्दू संगठन के काम में लग जाना चाहिए। ग्राम ग्राम और कस्बे कस्बे में घूम कर अज्ञानी जनता को चैतन्य करना चाहिए, और उसे स्वार्थी लोगों के हथकंडों से बचाना चाहिए। कोई नगर, कोई कस्बा, हिन्दू संगठन से, संघ से खाली न रहे। बड़ी शान्ति से गृहस्थों को समझा बुझाकर ऐसे विचार फैलावें, कि जिससे हिन्दू फौलादी दीवार की तरह संगठित हो जावें, और कोई उन्हें सता न सके।
जो साधु महात्मा देश जाति और धर्म की सेवा करना चाहते हैं, वे अब कमर कस कर तैयार हो जायं और संगठन के बिगुल को हाथ में लेकर नगर नगर में इसे बजाते हुए घूमें। आज बैठने का समय नहीं, जिससे जो कुछ हो सकता है उसे उतना काम करना ही चाहिए। हिन्दू संगठन की इस जागृति के काल में जो साधु महात्मा इस महाप्रतापी हिन्दू जाति की सेवा करेगा उसका नाम भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायगा।
यदि हम अपन भगवे कपड़े को सार्थक करना चाहते हैं तो हमें हिन्दू संगठन का कठिन व्रत लेना होगा। स्थान स्थान पर व्यायामशालायें खुलवा कर, हिन्दू बच्चों में क्षात्र धर्म का तेज भरना होगा। उनको उन्नत मार्ग दिखलाना होगा, लाखों साधु आज इस धर्मक्षेत्र में आकर अपने जीवन को पवित्र बना सकते हैं। धर्म की सेना में आज ऐसे लाखों विरक्तों की आवश्यकता है। इसलिए आइए हम साधुओं का जबर्दस्त संगठन कर हिन्दू जाति की सेवा में लग जायें इसी में हमारा कल्याण है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
वाङमय-नं-३७-पेज-१२.३७
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